कोशिश हो रफ्तार की
विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की।
बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की।
तानों से कुछ भटके तो, गानों से फिर महके भी
शानों में कभी जो अटके, सम्मानों संग चहके भी
जीवन के हैं स्वर्ण रथी, सारथी सोच परिहार की।
अश्व चाल के चिन्ह मिले, जहां दिशा परिवार की
उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की।
बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की।
आधी दोस्ती मतलब ही, दुश्मनी आधी सुनते हैं।
शतरंज मोहरे जैसे फिर, कदम चाल में घिरते हैं।
खट्टे मीठे अनुभव पाते, ऐसी बातें कुछ यार की।
कपट विश्वास का पुल, नैय्या कथा मझधार की।
उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की।
बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की।
गाड़ी जैसा होता जीवन, समतल पर रुकावट भी
मिले सही डॉक्टर मिस्त्री, थोड़ी कभी बनावट भी
थकावट वाले कलपुर्जे, चाहत सच्चे हथियार की।...

























