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हिन्दी हमारी जीवनशैली एवं हमें हमारी मां की तरह प्यारी है
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हिन्दी हमारी जीवनशैली एवं हमें हमारी मां की तरह प्यारी है

शिवांकित तिवारी "शिवा" रीवा मध्य प्रदेश ******************** हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि यह हमारे अल्फाजों को समेट,हमारी बातों को सरलता एवं सुगमता से कहने का विशेष माध्यम हैं। हिन्दी बिल्कुल हमारी की तरह ही हमसे जुड़ाव रखती है और हम भी मां हिन्दी के बिना अपने अस्तित्व की कभी कल्पना नहीं कर सकते। क्योंकि मां के बिना बेटे की कल्पना बिल्कुल असम्भव है। जब भी हम हिन्दी भाषा में बात कर रहे होते है,तो हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपनी बोली में अपनेपन एवं आत्मीयता के भावों में बंधकर बात रहे है। हिन्दी का हमारी जीवनशैली में अहम योगदान है,क्योंकि और सभी भाषाओं का उपयोग हम अपने गांवों में,अपनी मांओं से या अन्यत्र लोंगो से नहीं कर सकते क्योंकि वो उतने पढ़े लिखे नहीं होते और ना ही वो हमारी और किसी भाषा के बारे में अच्छी तरह परिचित होते है,लेकिन हमारी हिन्दी भाषा से सब विशेष रूप से परिचित होते ...
सांस्कृतिक प्रशिक्षण में हिंदी विरोध
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सांस्कृतिक प्रशिक्षण में हिंदी विरोध

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" २००७ में मुझे शासन स्तर (डाइट प्राचार्य श्री अनिल जी चतुर्वेदी और डीईओ-श्रीमती माया मालवीय इंदौर) से भारतीय सांस्कृ तिक प्रशिक्षण लेने केंद्रीय सांस्कृतिक स्रोत प्रशिक्षण  (सीसीआरटी.) हैदराबाद भेजा गया। २१ दिनी प्रशि क्षण में हमने निर्मल पेंटिंग, मुखौटे बनाना और बुटीक प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, मलयालम, उड़िया, कन्नड़ भाषा के प्राध्यापकों के व्याख्यान सुने।        प्रारंभिक दिवस हमने उपसंचालक सीसीआरटी श्री पी.एन.बालन द्वारा सभी प्रशिक्षणार्थियों से पूछा कि यहां प्रशिक्षण अंग्रेजी में होगा तो हिंदी भाषी राज्यों के समस्त प्रशिक्षणार्थियों के साथ मैने भी अपना स्वर मिलाते हुए कहा-"श्रीमान हम हिंदी भाषी, विदेशी भाषा मे प्रशिक्षण ले यह उचित है क्या ? तब पी.एन.बालन बोले यहां वो लोग भी है जो हिंदी नही जानते या हिंदी कम आती है। तो हमने...
शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार
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शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" छात्रों को पूरे समय व्यस्त रखा जाएगा तो वे निश्चित रूप से सफलता पाएंगे। व्यस्त रखने के पूर्व इन बातों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। १ - छात्रों के साथ मित्रवत भाव नवाचार का पहला पद है। २ - प्रत्येक जाति,धर्म,गरीब-अमीर,दादा बहादुर हो या सीधा सा प्राणी सब छात्रों के साथ एकत्व भाव । उनकी गलती पर दंड की बजाय पुरस्कार दीजिये- वो चाहे जिस अनुसार हो यथा- उनसे गीत,कविता,भजन, कहानी सुविचार, पहेली,कहावत,चुटकुले सुनकर ।              या -डांस (नृत्य) करवाकर -मस्ती के साथ दंड-बैठक लगवाकर. -मैदान में दौड़ लगवाकर। -कोई चित्र बनवाकर -आसपास के वातावरण की जानकारी लेकर। -छात्र के मकान में खिड़की-दरवाज़े की बात पूछकर।              या -टॉफी-बिस्किट देकर ।  बच्चों में इस पहल का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मैंने इन गतिविधियों का उपयोग किया है। ३ - "विनोद ...
ऑन लाइन खरीदी का बहिष्कार 
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ऑन लाइन खरीदी का बहिष्कार 

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" समसामयिक विषय पर आलेख विदेशों की तर्ज पर भारत में भी ऑन लाइन खरीदी का दौर चल पड़ा है। विदेशों में बच्चे बड़े होकर मम्-डेड से अलग अपनी जिंदगी जीना शुरू कर देते है।कभी-कभी आपस मे कहीं मिल जाये तो दोपहर का खाना(लंच) या रात्रि भोज (डिनर)के लिए एक दूसरे को आमंत्रित करते है,हमारा पड़ोसी कौन ? हमारे रिश्तेदार कौन ये विदेशों में(अपवाद छोड़कर) नही होता। जबकि माता-पिता, भाई-बहन,काका-काकी,भैया-भाभी साथ-साथ रहकर प्रेम और अपनत्व के साथ जीवन जीते है। वहीं मेरे मामा के लड़के की लड़की की सास की भुआ की बेटी की सास की ननंद है,मेरी बेटी की ननद की ननद की भुआ की काकी की जिठानी की बड़ी बहन के बेटे का साला है ये! कितने लम्बे-चौड़े रिश्ते हम भारतीय पालते है। अरे साहब रिश्ते तो रिश्ते पड़ोसी के रिश्तेदारों से भी हम रिश्ते पाल लेते है।शहरों में पूरी कालोनी वाल...
मल्टियों के असल मालिक कौन ….?
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मल्टियों के असल मालिक कौन ….?

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" समसामयिक विषय पर आधारित देश मे मल्टियों पर मल्टियाँ तानी जा रही है। यही स्थिति हमारे मध्यप्रदेश और औद्योगिक राजधानी-इंदौर में भी बनती जा रही है। १ बीएचके, २ बीएचके के अतिरिक्त रो हाउस, बंगलो, अपना घर आदि-आदि नाम से लगा तार सीमेंट कंक्रीट के जंगल तैयार किये जा रहे है जहां मानव निवास करेंगे। प्रतिदिन समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए जा रहे है। सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। फोन कॉल के द्वारा भी लोगों को साइट पर बुलाया जाकर उन्हें घुमाया जा रहा है। विभिन्न प्रकार के ऑफर चल रहे है। पुरस्कारों के लालच दिए जा रहे है। फटाफट लोन दिए जाने के लिए अनेकों बैंक के साथ लोन प्रोवाइड करवाने वाली संस्थाएं भी अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रयास को आतुर दिखाई दे रहे है। वर्तमान में लोगों को ऐसा भी लगने लगा है कि भविष्य में पता नही हम मकान य...
हिंदी भाषा पर गर्व है
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हिंदी भाषा पर गर्व है

============================= रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है। अंग्रेजी भाषा ये खूबी देखने को नही मिलती। कंठ से निकलने वाले शब्द, तालू से, जीभ से जब जीभ तालू से लगती, जीभ के मूर्धा से, जीभ के दांतों से लगने पर, होठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द। इन निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से निकलते है। इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है। वर्तमान में अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में से निकालना यानि बड़ा ही दुष्कर कार्य है। सुधार का पक्ष देखे तो हिंदी व्याकरण और वर्तनी का भी बुरा हाल है। कोई कैसे भी लिखे , कौन सुधार करना चाहता है ? भाग दौड़ की दुनिया में शायद बहुत कम लोग ही होंगे जो इस और ध्यान देते होंगे। जाग्रति लाने की आवश्यकता है। जैसे कोई लिखता है कि "लड़की ससुराल में "सूखी "है। सही तो ये है की लड़की ससुराल में "सुखी "है। ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे। बच्चों को अपनी सृ...
वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल
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वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल

रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" बालमन के भी स्वप्न है, वे भी कल्पना लोक में विचरण करते है उनके भी मन मे लालसा के साथ जिज्ञासा होती है। बच्चों के बचपन को पुस्तकों, ग्रीष्म कालीन,शीतकालीन शिविरों में झोंका जा रहा है। छुट्टियां भी कम होती जा रही है। प्रातःकाल घूमना, दौड़ लगाना, खेलकूद आदि तो जैसे जड़वत होते जा रहे है। उनकी जगह मोबाइल फोन दूरदर्शन आदि ने ले ली है। वीडियो गेम से खेल की कमी को पूरा किया जा रहा है। इससे एक तेजतर्रार व मजबूत नस्ल की अपेक्षा नही की जा सकती। कमजोर बच्चे भले पढ़ने - लिखने में आगे हो जाये लेकिन उनमें सामान्य ज्ञान का अभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। पहले हम पढ़ाई के साथ पट्टी पहाड़े में पाव, अद्दा, पौन आदि भी सीखते थे। लेकिन आज के बच्चों को यह सब समझ नही आता। आज बच्चों को कोई सामान लाने का कहा जाए तो वह आना कानी शुरू कर देते है या बहाना बना लेते है। जबकि पहले अगर पड़ोसी भी...
जानलेवा तम्बाकू का सेवन
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जानलेवा तम्बाकू का सेवन

रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" विश्व मे ८० लाख लोग प्रतिवर्ष तम्बाकू सेवन के पश्चात होने वाले असाध्य रोगों की वजह से काल के गाल में समा रहे है, वही भारत देश मे प्रतिवर्ष १० लाख लोग जान गंवा रहे है।       विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ विश्वभर के राष्ट्र और समाजसेवी संगठन तम्बाकू के सेवन से होने वाले रोग और होने वाली मौतों से बचाने के लिए विश्वव्यापी अभियान चलाए हुए है। इतना कुछ होने के बावजूद लोग इस कचरे को खाना नही छोड़ रहे है। इसके बनाये उत्पादों पर स्पष्ट चेतावनी लिखी होने के पश्चात भी इसका सेवन करने वालों की संख्या में कमी ना के बराबर हो रही है।      मैं दो घटनाएं और तम्बाकू के उत्पादन के बारे में बताने जा रहा हूँ, घटनाएं तो दिलचस्प है पर उत्पादन गन्दगी से सराबोर......        मैं कक्षा तीसरी का छात्र था, मेरे समाज बन्धु और पुराने घर के सामने वाले जो मेरे साथ पढ़ रहे थे, मुझे बड़े प्य...
धरा बचाओं-जीवन बचाओं (पृथ्वी दिवस विशेष)
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धरा बचाओं-जीवन बचाओं (पृथ्वी दिवस विशेष)

रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" =========================================================================================================== धरा बचाओं-जीवन बचाओं (पृथ्वी दिवस विशेष)          आज हमारी धरती माँ का दिन है यानि "विश्व पृथ्वी दिवस" - जिस धरा पर हमारा जन्म होता है और जन्म से लेकर मृत्यु तक का सम्पूर्ण समय हम इसी पावन पुनीत धरा पर व्यतीत करते है। यह हमारे जीवन की सबसे अनमोल धरोहर है और सबसे पवित्र स्थान है। जिस प्रकार माँ नौ महीने कोख में रख कर हमें जीवन देती है और हमारे जीवन का संरक्षण करती है उसी तरह धरती माँ हमारे सारे जीवन को सदैव संरक्षण प्रदान करती है। हमारे जीने के लिये आश्रय स्थान,खाने के अनाज और जीवन-यापन के लिये जो भी आवश्यक वस्तुयें चाहिये वह समस्त वस्तुयें इस धरा से ही प्राप्त होती हैं। यदि इस धरती में रहकर हम इसको बचाने के लिये जागरुक नहीं...
वास्तविक मुद्दों को गुमराह कर “आरोप-प्रत्यारोप” की राजनीति
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वास्तविक मुद्दों को गुमराह कर “आरोप-प्रत्यारोप” की राजनीति

रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" ==================================== वास्तविक मुद्दों को गुमराह कर "आरोप-प्रत्यारोप" की राजनीति भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहाँ सभी वर्गों, जातियों एवं सम्प्रदायों से जुड़े लोगो को अपनी बात कहने और अपना पक्ष रखने की स्पष्ट रूप से स्वतंत्रता है। लेकिन, अगर हम भारत देश की वर्तमान राजनीति की बात करते है तो दिलो-दिमाग में बहुत ही नकरात्मक छवि सामने आती है क्योंकि आज की राजनीति का स्तर दिनोंदिन नीचे गिरता जा रहा है और वर्तमान राजनीतक छवि पूर्णतया दूषित होती जा रही है। राजनीति के इस गिरते हुये स्तर के कारण जनमानस की वास्तविक एवं मूलभूत आवश्यकतायें और प्रमुख मद्दे गायब होते जा रहे हैं। राजनीति के ठेकेदारों के द्वारा जनता को सिर्फ वायदों का लालच देकर ठगा जाता है और इस तरह उनके साथ सिर्फ और सिर्फ छलावा ही किया जाता है।राजनेता एक-दूसरे पर व्यक्तिग...
उम्र की कहानी
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उम्र की कहानी

उम्र की कहानी रचयिता : रामनारायण सोनी ===================================================================================================================== "उम्र की बीती कहानी याद फिर आयी कहीं से।" अतीत की कन्दराओं में उकेरे भित्तिचित्रों में भी कई आख्यान उभरते हैं। जिन में से कुछ हमने बनाए है कुछ कोई और चितर गया है। ये बोलते भी हैं जैसे बुन्देले हरबोलो के मुख से झाँसी का इतिहास फूट पड़ता है। इन आख्यानों में छुपे होती है कुछ रहस्य, कुछ स्मृतियाँ, कुछ अनुभूतियाँ। इनमें समाहित हैं जीवन से जुड़े यथार्थ, खट्टे-मीठे, कषाय-तिक्त और संगतियों-विसंगतियों के भिन्न भिन्न आस्वादन। इनका सम्मिश्रण भी एक अजीब केमिस्ट्री है। जहाँ धुआँ है वहाँ आग होगी ही, जहाँ उजास है वहाँ कहीं आस पास ही अन्धकार भी होगा। खूबसूरत गुलाब काँटों के बीच हैं। नागफ़नी के फूलों का सौंदर्य अनोखा होता है। नैसर्गिक गुण धर्मों से लप...
आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”
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आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”

आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का "अन्तिम-संस्कार" रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" ===================================================================================================================== विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी धर्मो को मानने वाले लोगों का बसेरा है एवं सभी जातियों व संप्रदायों के अनुयायी यहाँ निवासरत है। भारत देश प्राचीनकाल में 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था क्योंकि यहाँ पर निवासरत समस्त लोगो में एकता और एकजुटता के प्रमुख गुण सहजता से मिलते थे। लोगो के लिये उनके संस्कार और संस्कृति व सभ्यता सबसे महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी थे। उस समय लोगों में सामजिकता और सामंजस्यता के बड़े अद्भुत नजारें देखने को मिलतें थे। उस समय की लोगों के मन में दया, प्रेम एवं परोपकार के भाव बड़ी ख़ूबसूरती से विद्यमान होते थे। सभी एकजुट होकर एक दूसरे की मदद के लिये तत्परता से आगे आते...
गीतों चलन होता अमर 
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गीतों चलन होता अमर 

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ===================== गीत  की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन  की मधुरता  कानो  में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों  की राग, संगीत  जरिए  घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टी वी, रेडियों, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान होता का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी - प्रे...
उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो
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उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो

उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो रचयिता : डॉ सुरेखा भारती ===================================================================================================================== अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है सनातन धर्म में उत्सवों की एक श्रृंखला होती है। दीपावली, वसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, नववर्ष प्रतिपदा, श्रीरामनवमी जितने भी उत्सव आते हैं, उन्हे धर्म से, आध्यात्मिकता से जोड़ा गया है। इसी सच्चाई के लिए यह घोषणा की गई की मनुष्य जाति एक है। जो भौतिकवाद से जुडे़ हैं, वह नहीं कहतें कि हम एक है। क्योकि वहाँ एक-दूसरे का स्वार्थ आता हेै। जिस मंच से, जिस धरातल से यह बोला गया है कि मनुष्य जाति एक है वह आध्यात्मिक धरातल है। अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है और भौतिकता व्यक्ति को तोडती है। आधात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है आध्यात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है। आध्यात्मिक व्यक्ति समाज म...
दहेज प्रथा: आदर्श विवाह द्वारा उन्मूलन
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दहेज प्रथा: आदर्श विवाह द्वारा उन्मूलन

रचयिता : डाॅ. संध्या जैन दहेज हमारे समाज को लगी हुई कैंसर से भी अधिक भयानक बीमारी है। यदि शीघ्र ही इस बीमारी से ग्रसित समाज को राहत नहीं दिलाई गई तो वह पतन के गड्ढे में जा गिरेगा। ऐसी कुत्सित प्रथा के पक्ष में लिखना तो ठीक वैसा ही है जैसा कि ‘अन्धे को लाठी दिखाना।’ समाज में व्याप्त इस दहेज-प्रथा ने अनके परिवारों को उजाड़ दिया है। विशेषतः निम्न और मध्यम वर्ग के परिवार इसके शिकार हुए हैं। इस दहेज की कुत्सित वृत्ति के कारण अनेक माता-पिता विवश होकर अपनी लड़की को कुरूप या वृद्ध वर के हाथों बेच देते हैं। यही नहीं वरन् लड़कियों की जिंदगी को भ्रष्ट करने में भी दहेज-प्रथा का बहुत बड़ा हाथ है। कितनी ही लड़कियाँ जीवन से हताश हो आत्म-हत्या कर लेती हैं तथा गलत कामों की ओर उन्मुख हो जाती हैं। तलाक, बाल-विवाह, अनमेल-विवाह, आर्थिक ढाँचा चरमराने पर माता-पिता द्वारा आत्म-हत्या, बहू को जिंदा जलाकर मार डालन...