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घर एक मंदिर
आलेख, कविता

घर एक मंदिर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "घर" शब्द में जितनी मिठास भरी है, वह "मकान" में कहाँ। लोगों को अक्सर कहते सुना है, "अरे, बस अब घर पहुँच ही रहे हैं। आराम से घर पर ही सब सुकून से करेंगे।" जहाँ तक घर के संदर्भ में मेरे संस्मरण हैं, कुछ हट कर हैं। बचपन बीता हवेली में। पढ़ाई हेतु देवास में दो कमरों का किराए का मकान। रहने वाले माँ और हम पाँच भाई बहन। ऊपर से आने वाले मेहमान अलग से। पढ़ाई के साथ सबका खाना व घर के अन्य काम। बड़ी बहन तो होती ही है जिम्मेदार। सामान बहुत कम, पंखा भी नहीं। सजावट के नाम को सबकी किताबें। ब्याह के पश्चात सरकारी क्वार्टर्स मिलते रहे। एक ईमानदार पुलिसवाले के यहाँ सोफ़ा वगैरह के लिए सामान पैक करने के खोखों का उपयोग होता। उन्हें कपड़ो के कव्हर से सजा दिया जाता। एक दो साल हुए नहीं कि स्थानान्तर झेलो। बंजारों के माफ़िक़ सामान बाँध एक डेरे से दूसरे डेरे...
रिश्ते की डोर
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रिश्ते की डोर

पियुष कुमार रोहतास (बिहार) ******************** मानव जीवन में रिश्तों का निर्माण प्राचीन काल में ही प्रारंभ हो गया था। रिश्तों का विकास ही समाज निर्माण का परिणाम है। यद्यपि यह मानव निर्मित विचारधारा अथवा भावना है, फिर भी ये परमात्मा या ईश्वर का उद्देश्य ही प्रतीत होता है। प्राचीन काल में जब मानव विकास के पथ पर यात्रा करना प्रारंभ किए तो सबसे पहला कार्य उनका समूह में रहना ही है। मानव को समूह में रहने की आवश्यकता उनके भोजन को इक्कठा करने या बहुत बड़ी मात्रा में भोजन संग्रहण को लेकर हुई। क्योंकि भोजन कभी कभी ज्यादा मात्रा या बड़े जानवरों को मारने से प्राप्त हो जाती तो कभी-कभी बहुत दिनों तक भोजन के बिना ही रहना पड़ता था। इसलिए भोजन को संग्रह करना प्रारंभ किए जिसके लिए एक से अधिक लोगों की आवश्यकता हुई। धीरे-धीरे कुछ लोग समूहन करना प्रारंभ किए जिसमे एक भावना उत्पन्न होने लगी और वो भि...
श्रीकृष्ण एक… रुप अनेक…
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श्रीकृष्ण एक… रुप अनेक…

राजकिशोर वाजपेयी "अभय" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** भादों मास के कृष्ण-पक्ष की अष्टमी तिथि को कंस के कारागार (मथुरा) में जन्मे देवकी और वसुदेव के आँठवे पुत्र कृष्ण सनातनी परम्परा में बिष्णु के अवतार हैं, जो अपनी गीता में की गई घोषणा अनुसार संभवानि युगे-युगे के अनुरुप द्वापर युग के अंतिम काल में दुष्टों के संहार और धर्म की स्थापना हेतु अवतरित होते हैं। जन्म लेते ही कंस से उनकी प्राण-रक्षा हेतु पिता वसुदेव मूसलाधार बरसात के बीच बाढ-ग्रस्त यमुना नदी में होकर अर्ध-रात्रि में ही उन्हें गोकुल में अपने मित्र नंद के पास पहुँचा देते हैं, जहां उनका पालन-पोषण नंद और यशोदा के द्वारा किया जाता है। कृष्ण ही है जो भारतीय समाज की उत्सव-धर्मिता को वखूबी प्रकट कर, कहीं बाल रुप में लड्डू गोपाल है, कहीं विठ्ठल,कहीं रंगनाथ,कहीं जगन्नाथ, और कहीं बद्री विशाल और कहीं द्वारकाधीश स...
उपेक्षा का मलाल
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उपेक्षा का मलाल

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सामान्य विद्यार्थियों के संदर्भ में शिक्षक कैसे हो ? विषय के संदर्भ में मेरी कहानी सरला के दिल से... एक दशक पश्चात विद्यालय की एक बेच का मिलन समारोह चल रहा है। देश विदेश से शिरकत करने आए हैं... नामी गिरामी डॉ. पत्रकार इंजीनियर्स, प्रोफेसर्स, व्यापारी आदि-आदि। सारे सहपाठी आए हैं अपने परिवारों के साथ। मिलने मिलाने का दौर चल रहा है। पहचान नहीं पा रहे हैं अपने संगी साथियों को। मज़े की बात यह कि कइयों को बच्चों में उनके माँ-पापा की झलक मिल रही है। शिक्षकों के साथ भी सब भूली-बिसरी यादें साँझा कर रहे हैं। कहाँ हैं ? कैसे है ? क्या चल रहा है ? सभी की उत्सुकताएँ बढ़ रही थी जानने के लिए। सब बड़े आदर से अपनी पसंदीदा शिक्षिका मिसेस घोष से मिल रहे हैं। वे बहुत प्रसन्न नज़र आ रही हैं अपने पढ़ाए हुए बच्चों की प्रगति जान कर। मिसेस घोष का कौन ...
गोकुलाष्टमी
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गोकुलाष्टमी

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** आज गोकुलाष्टमी... गोकुलाष्टमी भगवान श्रीकृष्ण ने श्रावण मास में जन्म लेकर श्रावण मास को सिद्धि/पूर्णता प्रदान की है। श्री कृष्ण अवतार का मूल सूत्र भक्ति है। श्रीकृष्ण का जन्म ऐसे स्थान पर हुआ था कि उन्होंने भक्ति के साथ शुरुआत की। वे गोपियों के संपर्क में आए। दर्शन और अध्ययन बाद में आए। कोई नहीं जानता कि भगवान के जलक्रीड़ा उनके बचपन की थी। श्री राम के अवतार में भगवान को जानने वाले सभी ऋषियों ने मोक्ष की इच्छा के साथ उन्हें गले लगाने की इच्छा व्यक्त की। बाद में जब श्रीकृष्ण अवतार में यहां आए तो पिछले जन्मों के सभी ऋषि गोपाकन्या के रूप में पैदा हुए, बचपन तक उनके साथ खेल खेले और उन्हें गले लगाया। उसके बाद, जब भगवान मथुरा गए, तो वे केवल साढ़े ग्यारह वर्ष के थे। भगवान कृष्ण के आदर्श को आंखों के सामने रखना चाहिए। जब वे गोकुल में...
ईमानदारी व्यर्थ नहीं जाती
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ईमानदारी व्यर्थ नहीं जाती

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यकायक एक अनजाना सा, गुमनाम सा नाम द्रोपदी मुर्मू जी का चर्चा में आ गया है। एन डी ए से राष्ट्र के सर्वोच्च पद के लिए एक आदिवासी महिला का नाम घोषित होता है। सभी उत्सुक हैं जानने के लिए आखिर ये मोहतरमा हैं कौन ? सचमुच द्रोपदी मुर्मू जी एक साधारण महिला ही है। जैसे कभी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद या लालबहादुर शास्त्री देहात परिवेश से आकर अपनी योग्यताओं के कारण देश के उच्च पदों पर आसीन हो गए थे। द्रोपदी मुर्मू जी का जन्म २० जून १९५८ को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी ग्राम में एक सांथाल परिवार में हुआ था। पिता ने इन्हें गाँव में ही प्राथमिक शिक्षा दिलवाई थी। वे खूब पढ़ना चाहती थी ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सके। घर में गरीबी इतनी थी परिवार को शौच के लिए जंगल जाना पड़ता था। उन्होंने स्नातक की शिक्षा भुवनेश्वर में रह कर अर्जित की। ...
पर्यावरण दिवस
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पर्यावरण दिवस

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** हम चारों तरफ से आवरण से घिरे रहते हैं उस प्राकृतिक तत्व को पर्यावरण कहा जाता है। यह प्राकृति तत्व ही जीवन की संभावना का निर्माण करता है। इसमें हवा, पानी, धरती, आकाश, प्रकाश, पेड़, पशु, पक्षी सभी सम्मिलित हो जाते हैं। पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन की संभावना है और इसी जीवन के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण अति आवश्यक हो जाता है। प्रत्येक वर्ष ५ जून को पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मनाता है। यह पर्यावरण के संरक्षण हेतु एक अभियान है। पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले तत्वों को रोकने का संकल्प लिया जाता है। पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत इस उद्देश्य के साथ की गई थी कि वातावरण की स्थितियों पर इस दौरान ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा और भविष्य में भी पृथ्वी पर सुरक्षित जीवन की सुनिश्चित किया जा सकेगा...
अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो… वाद-विवाद
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अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो… वाद-विवाद

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वाद-विवाद आदरणीय निर्णायक गण, विपक्ष के प्रतिभागी एवं उपस्थित मेरे प्रिय साथियों !!! मैं सरला मेहता प्रदत्त विषय के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ। पूर्व जन्म में मैं क्या थी, मुझे नहीं पता। किन्तु अगले जन्म में भी मुझे बिटिया बनने की ही चाह है। हाँ, सुना है मैंने 'नारी सर्वत्र पूजयते'। मैं पूजित होने के लिए नहीं वरन परिवर्तन की प्रणेता बनने के लिए बेटी के रूप में पुनः आना चाहूँगी। अभी तक मैं अनुभव ही बटोरती रही। अब मैं चाहती हूँ कि उनका सदुपयोग कर सकूँ। बेटी- जन्म के प्रति सामान्यजन की सोच बदलना चाहती हूँ। अभी वह इस संसार में आई ही नहीं है। जन्म पूर्व ही उसका पोस्टमार्टम कर दिया जाता है। मैं चाहती हूँ कि मेरा स्वागत भी एक बेटे जैसा ही हो। अरे! सुने होंगे ना पारम्परिक गीत। जन्मे बच्चे के लिए गाया जाता है, "अवधपुरी...
औषधीय गुणों से युक्त “काफल”
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औषधीय गुणों से युक्त “काफल”

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** फलों में पोटेशियम की अधिक मात्रा होने से उच्च रक्तचाप और गुर्दे में पथरी होने से बचा जा सकता है। साथी हड्डियों के क्षय को भी रोका जा सकता है। फलों के तुल्य कोई भी अन्य भोज्य पदार्थ नहीं हो सकता है फलों में कई ऐसे जादुई सूक्ष्मात्रिकतत्वोंऔर एंटी-आक्सीडेंट्स का मिश्रण पाया जाता है जिनकी पूर्ण खोज वह ज्ञान अभी भी अज्ञात है। जिन फलों के सेवन से स्वास्थ्य को अच्छा लाभ बनाए रखने में मदद मिलती है उनमें- सेव, अमरुद, अंगूर, संतरा, केला, पपीता, विशेष रूप से प्रयोग किया जा सकता है। उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल उत्तराखंड और नेपाल में पाया जाने वाला सदैव हरा भरा रहने वाला "काफल' का वृक्ष प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। जिसके फल को "बेबेरी" नाम से भी जाना जाता है का- फल खाने में अत्यधिक स्वादिष्ट, हरा, लाल, व काले रंग में पाए जाते ...
माँ तू बहोत याद आती
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माँ तू बहोत याद आती

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होले से चपत लगाकर के सूरज संग मुझे जगा देती जो मेरे सपने सजाती थी वो सपनों में क्यूँ समा गई माँ ! तू बहोत याद आती माथा मेरा सहला करकर बालों को तू सुलझाती थी लाल रेशमी रिबन बांधके भालपे मीठी मुहर लगाती माँ ! तू बहोत याद आती नाज़ुक महकते हाथों से गरम नाश्ता रोज़ कराती बस में मुझे चढ़ा कर के भारी  बस्ता थमा जाती माँ ! तू बहोत याद आती जन्मदिन की तैयारियों में कई रातें माँ तू नहीं सोती मुश्किलें जो आती मुझपे हर मर्ज़ की दवा बताती माँ ! तू बहोत याद आती अब तेरी नातिन मुझको दिनभर  नाच नचाती है झुंझलाती थकके मैं बैठूँ तस्वीर से तू है मुस्काती माँ ! तू बहोत याद आती परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सीखना व्यर्थ नहीं जाता
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सीखना व्यर्थ नहीं जाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भी एक पहेली है। जो सोचते हैं वह कब कहाँ छूट जाता है कह नहीं सकते है। मैं अंग्रेजी साहित्य में स्नाकोत्तर हूँ। किन्तु जब नौकरी का सोचा तो शुरुआत सहकारी बैंक से की। शब्दों को छोड़ अंकों का दामन थामा। सहकारी प्रशिक्षण में म.प्र. में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाया। किन्तु एक माँ व पत्नी को छुट्टियों वाली नौकरी ज़्यादा सुविधाजनक होती है। दस वर्ष पश्चात शिक्षण के क्षेत्र में कदम रखने के लिए बी एड किया। एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश हुआ। यहॉं भी चुनौतियाँ थी। अंग्रेजी की ज्ञाता तो थी पर अंग्रेजी अच्छे से बोलने में झिझक थी। एक गाँव की लड़की व सरकारी विद्यालय की छात्रा जो थी मैं। बस लगी रही मुन्नाभाई की तरह। एक शिक्षिका होकर घर पर विद्यार्थी बन जाती। एक प्रशिक्षक के साथ कॉन्वेंट वाली अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करने लगी। और गटर-पटर करते मेरी गाड़ी चल ...
पुस्तकों का जीवन में महत्व
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पुस्तकों का जीवन में महत्व

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहता है, जिसमें रहने के लिए बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिए। मनुष्य का समाज में सामाजिक और मानसिक विकास भी होता है। पुराने मंदिर और इतिहास की चीजें नष्ट हो जाती है, लेकिन किताबों में सब कुछ सुरक्षित रहता है, जिसके द्वारा हम इतिहास के विषय में जान सकते हैं। अगर पुस्तक ना हो तो हम बहुत सी बातें हैं बातों से अनजान रह जाएंगे। जिस प्रकार तन को स्वस्थ रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता होती है। जीवन की वास्विकता का अनुभव करने के लिए पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुस्तकें ही हमारे ज्ञानकोष का भंडार है। पुस्तक इंसान की सबसे अच्छी मित्र है, हमेशा पास रहती है, वह बिना बोले ही सब कुछ कह जाती हैं। पुस्तक...
क्षमा- एक दिव्य गुण
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क्षमा- एक दिव्य गुण

सुनीता चौधरी 'सरस' अबोहर फाजिल्का (पंजाब) ******************** एक सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ कई दिव्य गुणों से अभिभूत है। यह दिव्यता परमात्मा ने उसे हर क्षेत्र में प्रदान की है। चाहे हम भौतिक गुणों की बात करें या आध्यात्मिक गुणों की। इन गुणों से सरोबार मनुष्य है दिन प्रतिदिन विकास की ऊंचाइयों को छूता हुआ अपने किस्मत का सितारा आसमान में चमक आ रहा है। इन सितारों को चमकाते-चमकाते वह क्या सही और क्या गलत कर रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है। माना कि जब भी मानव गलती करता है तो हर बार परमात्मा उसे किसी न किसी रूप में क्षमा कर देता है। लेकिन बुलंदियों को छूता हुआ मनुष्य अन्य लोगों को रुलाता हुआ इस प्रकार आगे बढ़ता है कि उसे अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता लेकिन अगर हम पुराने समय की बात करें तो समाज में जियो और जीने दो की भावना पूरे समाज को सरोबार वह तरोताजा रखती थी। लेकिन आज का मनुष्य क्...
होलिका और भक्त प्रहलाद
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होलिका और भक्त प्रहलाद

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** राक्षस राज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु प्रहलाद के जन्म से बहुत खुश थे। परन्तु प्रहलाद की भक्ति देख हिरण्यकश्यप बहुत परेशान रहने लगा। भक्त पहलाद के जन्म लेते ही वह भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा और जब यह बात उसके पिता राक्षस राज हिरणयकश्यप को पता लगी। तो उसने अपने पुत्र को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया। कि वह भगवान विष्णु की भक्ति करना छोड़ दें, क्योंकि हिरण कश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। और बदले की भावना में जलता रहता था।क्योंकि भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। लाख प्रयास करने के बाद भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना करना नहीं छोड़ा। अंततः हिरण्यकश्यप ने हार मान कर भक्त पहलाद को मारने का निश्चय कर लिया। और उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली।ज्ञहिरणयकश्यप की बहन होलिका एक दुष्...
पंचम आरा और कलयुग
आलेख, धार्मिक

पंचम आरा और कलयुग

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** २१००० हजार वर्ष का यह पंचम आरा है उसमें से विक्रम संवत २०२६ वर्ष पूरें हो चुके है। २१०००-२०२६=१८०७४ वर्ष बचें है, पांचवा आरा पूरा होनें में। इस पंचम आरें को कलयुग कहा है। इस युग में जीने की इच्छा से देवता भी धरती पर आना चाहतें है पर जन्म नही ले सकते क्योंकि "कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरे तारा" अगर प्रभु का स्मरण भाव से व केवल नाम का रटन मात्र से इन्सान भव तिर जायेगें। मगर मन इन्सान के पास नही होगा सो देवता धरती पर आकर क्या करेंगें। साल बितते वक्त नही लगता। समय जैसे पंख लगाकर बैठा है, पलक छपकतें ही बीतता जा रहा है और हमारी मात्र १०० वर्ष की आयु कहाँ बीत जाती है इन्सानों को पता भी नही चलता। ८४ लाख अवतारों में जन्म लेने के बाद ऐसा दुर्लभ मानव भव हमें भाग्य से मिलता है, और अगर इस भव में आकर मानव होने का महत्व नही समझ...
हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व
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हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मानव जीवन पुरी तरह से संस्कृति पर आधारित होता है। बिना सस्कृति के जीवन निर्वाह सम्भव नही है। संस्कृति हमारी और अपने देश की पहचान होती है। वैसे तो हर देश की हर प्रांत की अपनी अलग-अलग संस्कृति होती है। और सभी को अपनी संस्कृति से बेहद प्यार भी होता है। और इसी संस्कृति से ही मानव, समाज, देश उन्नति-प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो पाता है। और इसी से ही वह अपनी परम्पराएँ रीति-रिवाज, धर्म-आस्था-विस्वास, सामाजिक-एकता, खान-पान, रहन-सहन को अक्षुण बना पाता है। और इस प्रकार से वह अपनी संस्कृति का पोषण कर पाता है। और वह पुष्पित पल्लवित हो पाता है। आने वाली नई पीढ़ी के लिए वह मार्गदर्शन का काम करती है। और उसी मार्ग पर चल कर वह अपने आप को एक सुसभ्य इंसान बनाने में सफल हो पाता है। एक तरह से यह संस्कृति हमारी थाती है। हमारा धरोहर है। हमारी पूंजी है। हम...
वोट किसे और क्यों दूॅं ?
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वोट किसे और क्यों दूॅं ?

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** चुनाव आने से पहले ही गॉंवों के बीएलओ को वोट बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। जिसमें उन्हें उन युवाओं और युवतियों की वोट बनानी होती है जिनकी आयु अठारह वर्ष हो गयी हो और उनकी वोट काटनी होती है जिनकी मृत्यु हो चुकी है और जो लड़कियॉं शादी करके ससुराल जा चुकी है। प्रायः देखा जाता है कि बीएलओ अपने पक्ष के प्रत्याशी वाले लोगों की नयी वोट भी बना देते हैं और मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों और ससुराल जा चुकी लड़कियों की वोट भी नहीं काटते हैं क्योंकि मौका मिलने पर मृत लोगों की वोट भी किसी ना किसी पर डलवा दी जाती है और ससुराल जा चुकी लड़कियों को बुला लिया जाता है या उनकी वोट भी किसी और से ही डलवा दी जाती है। जो बीएलओ के विरोध वाला प्रत्याशी होता है उसके पक्ष की नयी वोट बनाने के लिए आवश्यक कागजात तो ले लिए जाते हैं परन्तु उनमें से आधे ही आगे...
साहित्य की सबसे बड़ी धरोहर वसन्त ऋतु
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साहित्य की सबसे बड़ी धरोहर वसन्त ऋतु

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** "जीवन में उत्साह का प्रतीक- वैदिक साहित्य से लेकर उपनिषद वेद पुराण और महाभारत,रामायण सहित कालिदास और हिंदी साहित्य के इतिहास पर जब हम दृष्टि डालते हैं तो हम यह पाते हैं कि इन सभी कालों के कवियों ने ऋतुओं पर एक से बढ़कर एक सुंदर साहित्य सृजन किया है। पर वसन्त ऋतु के सौंदय पर जो वर्णन हुआ है,वह कहीं और अन्यत्र देखने को नही मिलता। विशेष करके कामदेव की ऋतुराज वसन्त पर जो लेखनी चली है वह साहित्य के इतिहास की अनमोल धरोहर मानी जाती है। जिसने हिंदी को उपकृत ही नही किया बल्कि इसे पुष्पित पल्लवित और सुरभित भी किया है। इस ऋतु में प्रकृति सोलह सृंगार से युक्त पलास महुए आम की सौरभता मदमस्त कराती सुरभित सुंदरता। फागुन के फाग की मस्ती और रंगीली वातावरण को उत्साह से भर देती है। इस वसन्त का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन विद्या दायिनी माँ...
शाकाहार – सर्वोत्तम
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शाकाहार – सर्वोत्तम

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आम के फल का स्वाद नहीं ले सकता। इसी प्रकार बीज रूप में जैसा आहार लिया जाता है, वैसे ही भाव-विचार और आचार होते हैं। आहार दो प्रकार के है- शाकाहार और मांसाहार। शाकाहार अहिंसामूलक है, तो मांसाहार हिंसामूलक। शाकाहार स्वास्थ्यप्रद है, तो मांसाहार रोगों का घर, शाकाहार मानवीय और सौन्दर्यपरक आहार है तो मांसाहार आसुरी और विकृतिपरक, in ७७ सात्विक है तो मांसाहार कालकूटविष, शाकाहार प्रकाश की ओर ले जाता है तो की गौरव गरिमा है। शाकाहार ही मानव के अन्दर संतोष, सादगी, सदाचार, स्नेह, सहानुभूति और समरसता जैसे चारित्रिक गुणों का विकास कर सकता है, मांसाहार कदापि नहीं। शाकाहारी का मन जितना संवेदनशील होता है मांसाहारी का नहीं हो सकता। शाकाहार का तात्पर्य है चारों ओर स्नेह और वि वास का वातावरण बनाकर प्रकृति के कण-कण को सह अस्तित्व की भावना स...
वसंत पर सरस्वती पूजा क्यों?
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वसंत पर सरस्वती पूजा क्यों?

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                     बसंत पंचमी हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार में से एक है। वसंत ऋतु के आगमन पर उत्सव मनाने का यह दिन वसंत पंचमी है। एक पौराणिक कथा है, कि जब ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी, तो उन्होंने देखा कि पूरी सृष्टि मूक है। यहां कोई बात नहीं कर रहा है, फिर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, और एक सुंदर स्त्री चार भुजाओं के साथ प्रकट हुई। उसके एक हाथ में वीणा थी। जब उन्होंनेे वीणा बजाई, तब उसकी आवाज इतनी मधुर थी, कि सृष्टि में स्वर आ गया। ब्रह्मा जी ने इस देवी को सरस्वती का नाम दिया। उसके बाद से इस दिन को वसंत पंचमी के तौर पर मनाया जाता है। मॉ सरस्वती ज्ञान की देवी है, इसकी वजह से मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व माना गया है। मां की पूजा करने से ज्ञान का विस्तार होता है, साथ ही साथ ...
हिंदी की वैश्विक चमक
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हिंदी की वैश्विक चमक

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक भाषा के रूप में हिंदी हमारी पहचान है हमारे, जीवन मूल्यों संस्कृति संस्कार, का संप्रेषक परिचायक है हिंदी विश्व की सहज सरल वैज्ञानिक, भाषा है हिंदी अधिक बोले जाने वाली ज्ञान प्राचीन सभ्यता आधुनिक प्रगति के बीच सेतु है। वंदेमातरम की शान है। हिंदी, देश का मान है, हिंदी संविधान का गौरव हिंदी है भारत की आत्म-चेतना हिंदी है। राष्ट्रीय भाषा भारत की पहचान हिंदी, आदर्षों की मिसाल है हमारी हिंदी, सूर और मीरा की तान भी हिंदी है। हमारे वक्ताओं की शक्ति है। फूलों के खुशबुओं-सी महक है हमारी हिंदी और संपूर्ण देश में छाई है।हिंदी हमारे साहित्य पुराणों की आत्मा में बसी है। हिंदी देव नागरिक लिपि भी हिंदी है। मां की बोली से प्रथम संवेदना में हिंदी ही है परंन्तु अंग्रेजी पूरे देश में छाई है, हिंदी देश की राष्ट भाषा होने के पश्चात हर जगह अग्रेजी का वर...
विश्व हिंदी दिवस
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विश्व हिंदी दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  हिंदी की लोकप्रियता को लेकर समूचे विश्व में १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी प्रेमियों के लिए इस दिवस का विशेष महत्व है। २०१८ की जानकारी के अनुसार विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा हिंदी लगभग ७० करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। जबकि १.१२ अरब के साथ अग्रेंजी शीर्ष पर है। चीनी भाषा १.१० अरब, स्पेनिश भाषा ६१.२९ करोड़, अरबी भाषा ४२.२ करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने के साथ क्रमशः दूसरे, चौथे और पाँचवें। स्थान पर है। २०१७ में प्रकाशित पुस्तक 'एथनोलाग' के अनुसार दुनिया भर में २८ ऐसी भाषाएँ है, जिन्हें ५ करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं। यह पुस्तक दुनिया में मौजूद भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित हुई थी। भारत को बहुभाषाओं का धनी देश मानने के बावजूद भारत की मूल भाषा हिंदी ही मानी जाती है। ...
हार और जीत
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हार और जीत

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हारना किसे अच्छा लगता है और जीतना किसे बुरा लगता है किसी को नहीं | तो जीतकर दिखाना यदि कोई वंश हन्ता है उससे | यदि किसी ने तुमसे तुम्हारा स्वजन छीन लिया है तो तुम उसके पराक्रम छीनने का साहस न करके अपनों से ही उलझने में स्वयं को महाक्रमी समझते हैं, तो क्या कहा जा सकता है ? आपको प्रगतिशील तब माना जाता जब अपनी प्रगति के आगे हन्ता को कहीं टिकने नहीं देते | उसी के संबंधियों के आगे नतमस्तक होकर स्वजनों के पराजय की कामना करने का तात्पर्य तो सायद स्वजनहन्ता की पंक्ति में ही खड़ा हुआ माना जाता है, इसमें कितनी बुद्धिमत्ता कही जा सकती है | जीवन में रूखापन तुलनाओं से आता है, और बिना तुलना मजा भी कहाँ आता है ? जरूरी है तुलना करना पर उस तुलना की वजह से हीन भावना या अहंकार नहीं आना चाहिए | प्रेणादायक तुलना करना बहुत अच्छी बात है, परन्तु किसी ...
राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका
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राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र का तात्पर्य मात्र देश नहीं, देश के साथ उसकी संस्कृति भी है। इसमें वन, पहाड़, नदियाँ व  सामाजिक रीतिरिवाज भी समाविष्ट हैं। राष्ट्र एक प्रवाहमयी इकाई है। साहित्यकार जो अनुभव करता, वही लिखता है। साहित्य, समाज का दर्पण ही है।  आदिकाल, भक्तिकाल व रीतिकाल तक राज्याश्रय, अध्यात्म व श्रृंगार के संदर्भ में लिखा गया। आधुनिककाल में राष्ट्रप्रेम व समाजसुधार की स्वस्थ भावनाओं द्वारा साहित्य, सामान्यजन से जोड़ा जाने लगा। गद्यविधा भारतेंदु युग  इस नवजागरण युग में सदियों से सोए भारत ने अँगड़ाई ली। राष्ट्रवादी-भाव, जनवादी- विचारधारा, संस्कृति- गौरवगान, स्वराज्य- भावना पर भी लेखनी चलने लगी। भारदेन्दु अंग्रेजों की फूट नीति में... "सत्रु सत्रु लड़वाई दूर रहि लखिय तमासा" "उठो हे भारत, हुआ प्रभात" नारी दशा पर  " स्त्रीगण को विद्या देवें " ...
लक्ष्य तो होंगे
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लक्ष्य तो होंगे

आस्था साहू अशोक नगर (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्य तो होंगे यदि है तो मार्ग तो होंगे यदि मार्ग है तो बाधाएं तो आएगी और इसी पर निर्धारित हैं कि हम जीवन में सफल होंगे या असफल, यश के भागी होंगे या तिरस्कार के। मान लीजिये, आप को एक कार्य करना हैं आपको पर्वत पर चड़ना है, अब मार्ग की फिसलन आपको को कितनी बार गिराएगी। चट्टानें आपको कई बार चोट देंगी, ऐसे में क्या करेंगे। सामान्य व्यक्ति चुनता हैं- प्रतिकार उस पर्वत को ही नष्ट कर देने का विचार करता है उसकी नींव को ही खोद देने का विचार करता है, किन्तु पर्वत को तो कोई नष्ट ना कर पाए तो, असफलता की साथ-साथ अपयश का भागी बन जाता है। दूसरा मार्ग है- परिवर्तन यदि आप उस पर्वत को खोदने के स्थान पर उस पर सीढियाँ बना दे, तो आप भी पर्वत पर चढ़ सकते हैं कोई और भी उस पर्वत पर चड सकता है आने वाली पीढी भी उस पर्वत पर चढ़ सकती हैं और...