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सीखना व्यर्थ नहीं जाता

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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जीवन भी एक पहेली है। जो सोचते हैं वह कब कहाँ छूट जाता है कह नहीं सकते है। मैं अंग्रेजी साहित्य में स्नाकोत्तर हूँ। किन्तु जब नौकरी का सोचा तो शुरुआत सहकारी बैंक से की। शब्दों को छोड़ अंकों का दामन थामा। सहकारी प्रशिक्षण में म.प्र. में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाया। किन्तु एक माँ व पत्नी को छुट्टियों वाली नौकरी ज़्यादा सुविधाजनक होती है।
दस वर्ष पश्चात शिक्षण के क्षेत्र में कदम रखने के लिए बी एड किया। एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश हुआ। यहॉं भी चुनौतियाँ थी। अंग्रेजी की ज्ञाता तो थी पर अंग्रेजी अच्छे से बोलने में झिझक थी। एक गाँव की लड़की व सरकारी विद्यालय की छात्रा जो थी मैं। बस लगी रही मुन्नाभाई की तरह। एक शिक्षिका होकर घर पर विद्यार्थी बन जाती।
एक प्रशिक्षक के साथ कॉन्वेंट वाली अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करने लगी। और गटर-पटर करते मेरी गाड़ी चल पड़ी। मेरी पदोन्नति होती गई। साल दर साल के जी से दसवीं कक्षाओं तक पढ़ाने लगी। हाँ,
बैंक सेवा का एक फ़ायदा यह हुआ कि मैं गणित की भी सफ़ल अध्यापिका बन गई। मुझमें हर नई कला सीखने की ललक बहुत थी। मुझे जो भी विषय पढ़ाने को दिया जाता सहर्ष स्वीकार कर लेती। सामाजिक अध्ययन पढ़ाने के लिए दसवीं तक के कोर्स की तैयारी करती रही। उस समय अंग्रेजी माध्यम से इतिहास, भूगोल व नागरिकशास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक मिलना आसान नहीं था। इस तरह मैं वह सब करती रही जो मेरे सम्मानीय प्राचार्यों ने कहा। साथ ही हिंदी तो मेरी मातृभाषा ही थी। नैतिकशास्त्र मेरा पसंददीदा विषय था। यूँ भी मुझे पढ़ाई के अतिरिक्त अपने छात्र-छात्राओं को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना भी भाता था। मुझे कई बार मेरे साथीगण कहते भी कि मैं हर बात क्यूँ मान लेती हूँ। लेकिन आज मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो लगता है कि जो भी नई कला सीखने को मिले तो कभी पीछे मत हटो। कौनसी बात कब काम आ जाए, कह नहीं सकते है।
एक और महत्व की बात यह कि मुझे विद्यालय के कार्यक्रमों के लिए नाटक कव्वाली आदि सृजन करने होते थे। सबसे अलग कुछ सन्देश लिए हुए। परिणामस्वरूप जीवन के इस पड़ाव पर साहित्य साधना करके अपना समय सफ़ल कर पा रही हूँ। अतः कोई भी कला कभी व्यर्थ नहीं जाती है।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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