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कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….
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कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** आज पूरा विश्व कोरोना जैसी विशाल महामारी से लड़ रहा है। और यह बड़े दुख की बात है कि, इसके चलते भारत में सभी लोगों का जीवन बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पिछले १ वर्ष से सभी लोगों में निराशा और चिंता का स्तर पहले से और अधिक बढ़ता हुआ ही पाया गया है। और इसी चिंता और निराशा के कारण, कई किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, उनमें "आत्म-हत्या" जैसे विचार भी पनपने लगे है। भारत में किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, वे सभी इस महामारी से अत्यंत दुखी एवं ग्रसित हो चुके है। उनके इस निराशा के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे :- १. ऋण का भुगतान कर पाने में असमर्थ होना २. अनियमित मौसम की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान पहुँचना ३. सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं का उपलब्ध न होना ४. सरकार के नीतियों में बढ़ती असमानता ५. स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दे ६. व्य...
पाश्चात्य संस्कृति में माता-पिता का स्थान
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पाश्चात्य संस्कृति में माता-पिता का स्थान

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** आँखों से निकलकर झुर्रिवाले गालों से होकर टपकते हुए आँसू, कपकपाते होंठ और मन में दर्दभरे एक जलजले ने उसकी अंतरात्मा को मानो हिला कर रख दिया हो। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसने उसके पालन पोषण में कोई कमी रखी या उसने कोई गलती कर दी। पूरा एक दिन उसे अनाथ आश्रम में आए हुए हो चुका था। अपनी उम्र के सत्तर बरस पार कर चुका है वो। एक फैक्टरी में काम करने वाला एक मजदूर है रघुराम और एक पुत्र का पिता बनने पर खुशी मना रहा है। उसने अपने पुत्र को सूरज नाम दिया ये सोचकर कि वह उसका नाम रोशन करेगा। परिवारजन एवं उसके साथी उसे बधाईयाँ दे रहे है। रघुराम अपने पुत्र के लिए बड़ा आदमी बनाने के सपने देखने लगा। दिन रात काम में लगा रहता समय बीतता चला गया सूरज ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली अब वह अब कॉलेज में प्रवेश की तैयारी कर रहा है। र...
हिन्दी कविता में आम आदमी
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हिन्दी कविता में आम आदमी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** हिन्दी कविता ने बहुधर्मिता की विसात पर हमेशा ही अपनी ज़मीन इख्तियार की है। इस बात की पुष्टि हर युग के कवियों द्वारा की गई कृत्यों से प्रतीत होती रही है। हिंदी कविता ने रामधारी सिंह दिनकर की क्षमता का उपयोग कर के राष्ट्र आह्वान का मार्ग प्रशस्त किया और साथ ही साथ आम आदमियों की दिक्कतों और रोज़मर्रा की समस्याओं को भी बेहद गंभीरता से उजागर किया है। अगर कोई साहित्य उस वर्ग की बात नहीं कर पाता जो मूक और बधिर है तो फिर साहित्य को अपने नज़रिये को बदलने की महती आवश्यकता होती है। रामधारी सिंह दिनकर सरीखे कवियों ने अपनी लेखनी में जनमानस की विपरीत परिस्थितियों का सजीव चित्रण ही नहीं किया बल्कि धनाढ्य और रसूखदारों पर करारा प्रहार भी किया और यह प्रश्न अक्षुण्ण रखा कि गरीबी और लाचारी के लिए क्या गरीब स्वयं जिम्मेदार है या फिर वह वर्ग भी जिमीदार है ज...
रेडियो की बात निराली
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रेडियो की बात निराली

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गीत की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन की मधुरता कानो में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों की राग, संगीत जरिए घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टीवी, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका-सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस...
गृहस्थाश्रम में पत्नी
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गृहस्थाश्रम में पत्नी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** मनुष्य ब्रह्मचर्याश्रम के बाद विवाह संस्कार करके गृहस्थाश्रम मेंं प्रवेश करता है, गृहस्थी के लिए पत्नी मात्र कामपूर्ति के उद्देश्य से नहीं है, अपितु यह मानव को सभ्य सुसंस्कृत व संस्कारवान बनाती है। यदि यह विवाह संस्कार नहीं होता तो मानव समाज में-माँ, बहन, बेटी आदि पहचानने की शक्ति नहीं होती। सृष्टिकर्ता के दांए स्कंध से पुरुष और बांए स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति होने के कारण स्त्री को वामांगी कहा जाता है, अतेव शादी के बाद उसे पति के बांई ओर बैठाने की परंपरा है। धर्मग्रंथों में पत्नी को पति का आधा अंग कहा जाता है उसमें भी उसे वामांगी कहा जाता है, अर्थात वह पति का बांंयां भाग है, शरीर विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान ने भी पुरुष के दांए व स्त्री के बांए भाग को शुभ माना है। मनुष्य के शरीर का वांया हिस्सा खासतौर पर मस्तिष्क की रचनात्मकता का प...
कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है
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कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर संघन जंगल है। शुद्ध आबोहवा है। इतनी प्राकृतिक संपदा निःशुल्क प्रकृति देती आई है। किंतु कोरोना की आपदा इंसानों पर आगई है। जिससे वो जूझता जा रहा है। वही प्रकृति कई तरह के जीव-जंतु का पोषण कर रही है, साथ ही प्रकृति की आबो हवा निर्मल होगई है। स्वच्छता हर स्थान पर नजर आने लगी है। पृथ्वी के रहवासी संक्रमण से जूझ रहे है, ये संक्रमण को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित अभी तक सुनने पढ़ने में नहीं आया संक्रमण की चेन तोड़ने की बात सभी करते मगर संक्रमण के आँकड़े घटते बढ़ते हर जगह दिखाई देते है। अनलॉक प्रक्रिया भी इसी कारण से बढ़ाई जाती होगी। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्व रहते ही है। शाकाहारी भोजन को विदेश...
वनिता
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वनिता

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे नारी !! तुम्हें भय कैसा आँखों मे अश्रु और माथे पर ये लकीरें...?? तुम्हें दुख किस बात का है...?? ऐसी कौन सी पीड़ा है जो तुम्हें अंदर ही अंदर खाये जा रही...?? मैं क्या कहूँ कैसे कहूँ, मुझसे कुछ कहा भी नहीं जा रहा। मैं इस युग में खुद का अस्त्तित्व मिटते देख रही हूँ। मैं अबला जैसे नामों से पुकारी जा रहीं हूँ। मेरे हाथों में सजी ये हरी लाल चूड़ियाँ कमज़ोर एवं नकारे इंसान के लिए प्रयुक्त होने लगी हैं। और पैरों में सजे ये पायल बेड़ियों का रूप ले चुके हैं। मेरे अपने भी मुझे भार समझ बैठे हैं। उन्हें लगता है मैं कमजोर हूँ, मैं कुछ नहीं कर सकती। तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ। मुझे लगता है मेरा होना सच में ही व्यर्थं है। तुम्हीं बताओं मैं कैसे बतलाऊँ उन्हें अपनी महत्ता...?? लेखिका- हे देवी, आप बिलकुल भी परेशान न हो औ...
सनक हिम्मत और अनुभव
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सनक हिम्मत और अनुभव

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** सनक-हिम्मतऔर अनुभव ये जीवन की तरक्की के तीन महत्वपूर्ण सूत्र हैं। सनक आपसे वो भी करवा लेता है, जो आप नहीं कर सकते थे। अथवा ये मानते थे कि ये काम मेरी क्षमता से बाहर है और मुझसे कभी नहीं होगा। असंभव को भी संभव कर के दिखाना ये जुनून का काम है। एक विश्वविजयी सम्राट ने कभी अगर ये कहा है था कि मेरे शब्दकोष में असंभव जैसा कोई शब्द ही नहीं तो ये उसका जुनून ही था जो उसे भीतर से दुनिया को मुठ्ठी में करने का आत्मबल प्रदान कर रहा था। हिम्मत आपसे वो करवाती है, जो आप करना चाहते हैं। जीवन में कुछ बड़ा करने का अथवा कुछ अलग करने का स्वप्न लगभग हर कोई देखता है मगर हौसले के अभाव में उनका वह महान स्वप्न भी केवल दिवास्वप्न बनकर रह जाता है। जीवन में कुछ बड़ा करने के सपने देखना भी अच्छी बात है मगर उन सपनों को साकार करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहना उससे भी अ...
अक्षय तृतीया
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अक्षय तृतीया

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन जो दान पुण्य किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है, ऐसी मान्यता है, कि इस दिन को शुभ माना जाता है क्योंकि इस दिन मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए गृह प्रवेश से लेकर शादी तक अक्षय तृतीया को करना चाहते हैं। अक्षय तृतीया के दिन आज भी गांव में बाल विवाह करने की प्रथा है। बाल विवाह करने और करवाने वालों को भले ही दंड मिलता है, परंतु इसके बावजूद भी अक्षय तृतीया के दिन बहुत सी शादियां होती हैं। यह एक कुरीति है, क्योंकि १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चे नाबालिक समझे जाते हैं, और इस उम्र में लड़कियों की शादी के करने के किसकी पढ़ाई रुक जाती है और उसका शरीर भी गर्भधारण करने के लिए भी तैयार नहीं होता। कम उम्र में शादी होने से ना ही रुतबा होता है, न ही शक्ति ...
जगदगुरु आदि शंकराचार्य जन्म जयंती विशेष
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जगदगुरु आदि शंकराचार्य जन्म जयंती विशेष

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) **********************                             भारतवर्ष सदैव से एक अलौकिक राष्ट्र रहा, जहां अपने महापुरुषों का स्मरण करने की परंपरा रही है। अनेक सन्तों, वैज्ञानिक, क्रांतिकारियों की जन्मभूमि होने के कारण भारत विश्व मे आध्यात्म का केंद्र ही नही रहा अपितु अपनी भूमिका को भारत ने विश्वगुरु बनकर सदैव निभाया भी है। आज से लगभग १२३० वर्ष पूर्व एक निर्धन ब्राह्मण परिवार जो केरल के कलाड़ी ग्राम में निवास करता था, शिवगुरु व सुभद्रा दोनों पति पत्नी अनन्य शिव भक्त थे। अपनी संतान न होने के कारण वे अत्यंत व्यथित थे, अपने इष्ट से सदैव ही सन्तान प्राप्ति का आशीष मांगते। एक दिन महादेव ने इस परिवार को आशीष दिया, घर में बालक का जन्म हुआ। महादेव के आशीष से पुत्र प्राप्ति होने के कारण इस बालक का नाम शंकर रखा गया। शंकर बचपन से ही जिज्ञासु, ज्ञान अर्जन को समर्पित र...
मां के लिए … बेटियां कभी पराई नहीं होती…
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मां के लिए … बेटियां कभी पराई नहीं होती…

वंदना गोपाल शर्मा "शैली" भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** मां कभी धूप सी... तो कभी छांव सी होती है... मां के लिए बेटियां कभी पराई नहीं होती है! बहुत डांटती थी मां बचपन में, तब धूप सी लगती थी! जैसे धूप का विटामिन ई मजबूती प्रदान करता है, सहनशीलता भी बढ़ाता है और ज्यादा लाड़ बिगाड़ता है मानों शुगर बढ़ाता है। अधिकांशतः मांएं कहती है- "बिटिया...! तुम्हें दूसरे घर जाना है, समायोजन भी सीखना है, कभी तुम्हारे लिए रसोईघर में सब्जी न बचे तो आचार या दही से खा लेना पर शोर न मचाना बच्चों की तरह... मेरे सामने सब चलेगा पर वहां नहीं, क्योंकि मैं जन्मदात्री हूं और सासुमां धर्म की मां होगी।" वगैरह-वगैरह...! कितना सीखाती थी मां। बचपन में कभी एहसास नहीं हुआ कि मुझे अकेला छोड़ा हो, जरूर मेरे जन्म पर भी सबसे पहले मां ही खुश हुई होगी, हम भाई-बहनों की परवरिश और प्यार में कभी भेदभाव नही कीया। वो हमारी छ...
मां से भी कोई माफ़ी मांगता है भला?
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मां से भी कोई माफ़ी मांगता है भला?

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************                             मां तो वो होती है जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है, जो कभी नहीं रूठती, रूठती भी है तो तुरंत मान जाती है। मां की बातें हमेशा इतनी एक सी होती है कि लगभग रट चुकी होती है। खाना ठीक से खाओ, क्या हुआ क्यों नहीं खा रहे, तबीयत ठीक नहीं है क्या, कहां जा रहे, किसके साथ जा रहे, कब आवोगे, शाम को जल्दी आ जाना, दोस्तों के फोन नंबर देते जाओ, गाड़ी धीरे चलाना, जल्दी सो-जल्दी उठो, कपड़े ढ़ंग से पहनो, बाल दाढ़ी कटवा लो, बाहर का खाना ज्यादा मत खाओ, अच्छे दोस्त बनावो, उफ़!!! इस सूची का कोई अंत नहीं। इन सारी हिदायतों के लगातार प्रसारण से हम मां को लेकर लापरवाह हो जाते हैं। ये सारी बातें मां के सामने तो बुरी लगती है, पर जब हम अकेले होते हैं यहीं बातें बहुत याद आती है। हमें अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम मां की बातों को गंभीरता से नह...
भगवान कृष्ण-वाद्य कला
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भगवान कृष्ण-वाद्य कला

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************                       भगवान कृष्ण के जान से जुडी कथाएं है उनमें से एक यह भी है जब देवकी ने श्री कृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्री कृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्री कृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। पूजा हेतु सभी प्रकार के फलाहार, दूध, मक्खन, दही, पंचामृत, धनिया मेवे की पंजीरी, विभिन्न प्रकार के हलवे, अक्षत, चंदन, रोली, गंगाजल, तुलसीदल, मिश्री तथा अन्य भोग सामग्री से भगवान का भोग लगाया जाता है। जन्माष्टमी पर्व पर नई पोशाख, मोर पंख, पारिजात के फूलों का भी महत्त्व है ऐसी मान्यता है जन्माष्टमी के व्रत का विधि पूर्वक पूजन क...
बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं
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बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ’यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो, तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रही हों, तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो’? इसी संदर्भ में मुजफ्फरपुर के जनाब आदित्य रहबर लिखते हैं, यदि इसका जवाब हां है तो मुझे आपसे कुछ नही कहना है, क्योंकि आपके अंदर की संवेदना मर चुकी है और जिसके अंदर संवेदना न हो, वह कुछ भी हो लेकिन मनुष्य तो कत्तई नहीं हो सकता है। आज कोरोना महामारी ने जिस तरह से हमारे देश में तबाही मचा रखी है, उसमें किसी की मृत्यु,किसी की पीड़ा पर आपको दुःख नहीं हो रहा है, तो निश्चित ही आप अमानवीय हो रहे हैं। जब देश में चारों ओर कोहराम मचा है, प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग (जो एक दि...
मजदूर
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मजदूर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हमारे देश में मजदूरों की दशा कभी भी अच्छी नहीं रही। यह अलग बात है कि वर्तमान में सरकारों के द्वारा मजदूरों के लिए काफी कुछ किया गया। लेकिन मजदूरों की दशा में मूलभूत सुधार नहीं हो पाया। आज भी हमारे देश का मजदूर अपने मूलभूत जरूरतों के दल-दल को पार नहीं कर पाया है। मजदूरों की अपनी समस्याएं हैं। परिवार स्वास्थ्य शिक्षा उनकी मूलभूत समस्याएं हैं। जिस पर कार्य किए जाने की जरूरत सभी प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है कि मजदूरों के लिए प्रभावी योजनाएं बनाएं और उसका सख्ती से पालन कराएं। सरकारों को यह भी देखना होगा कि उनके द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन कितना धरातल पर उतर रहा है। कोरोना काल में मजदूरों की जो दुर्दशा हुई है, वे जिस दर्द से गुजरे हैं वह काफी असहनीय और राष्ट्र समाज के शर्मनाक भी है और दर्दनाक भी। ...
जिन्दगी का अर्थ समझे
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जिन्दगी का अर्थ समझे

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** सत्य है कि ईश्वर का दिया यह जीवन हर व्यक्ति के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं। यह एक सुंदर उपहार है। इसे स्वीकार करते हुए बस अपने दम पर जिंदगी को सुकूनभरा बनाते जाएं यह प्रयास हमें ही करना होंगे। इसलिए हमेशा जिंदगी का धन्यवाद करें और उसने जो दिया है उसी में प्रसन्न रहना ही उचित होगा। जीवन अविरल और अविनाशी यात्रा हैं। सृष्टि चक्र के साथ मानव प्राणी भी अपने कर्मों मुताबिक पार्ट करने हेतु साकार शरीर धारण करता है।यह गतिशील चक्र ठीक पांच हजार वर्षों का है। जिसमें मनुष्य प्राणी सिर्फ ८४ जन्म कम या पूरे लेता है। अतः मनुष्य का हर जन्म महत्वपूर्ण हैं। जन्म मृत्यु का चक्र जो समझ लेता है वह अपने भविष्य को सार्थक बनाने में जुट जाता है। ८४ लाख योनी का कोई हिसाब नहीं होता है।यह जीवन रहस्य जो समझे वह प्रति सेकंड का सदुपयोग करता है। वह ईश्वर के प्रति हर जन्म...
गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा
आलेख, धर्म, धर्म-आस्था, धार्मिक

गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** तारा जयंती विशेष जयंती चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस वर्ष महातारा जयंती २१ अप्रैल २०२१, के दिन मनाई जाएगी। चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों और उनके भक्तों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। दस महाविद्याओं में से एक हैं-भगवती तारा। महाकाली के बाद मां तारा का स्थान आता है। जब इस दुनिया में कुछ भी नहीं था तब अंधकार रूपी ब्रह्मांड में सिर्फ देवी काली थीं। इस अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई जो माता तारा कहलाईं। मां तारा को नील तारा भी कहा जाता है। जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप मान...
ओरा और कोरा
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ओरा और कोरा

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** ओरा के विषय में बहुत लोग जानते हैं। ओरा मनुष्य के विचार और कर्मों का शूक्ष्म प्रकाश होता है जो शरीर के बाहर प्रकट होता रहता है। इसे तेज भी कहा जा सकता है। जब हम किसी संत या महात्मा या चिंतक के करीब पहुंचते हैं तो उनके ओरा क्षेत्र में हमारे विचार बदल जाते हैं क्योंकि यह एक सूक्ष्म प्रकाश है और प्रकाश किसी को दिखाई नहीं देता बल्कि उससे वस्तुएं दिखाई देती हैं। भले ही वह वायु में तैरती धूल या अन्य वस्तुएं हों। इसी प्रकार ओरा किसी को दिखाई नहीं देता अच्छे विचारों के प्रभाव से हमारी बुद्धि अच्छा महसूस करने लगती है और यह भी होता है कि हमारी अपनी समस्याएं उस क्षेत्र में आकर अपने आप सुलझने लगती हैं। यही ओरा का प्रकाश होता है। यह प्रकाश दूसरे व्यक्ति को पकड़ भी लेता है या दिया भी जा सकता है। यह गंध जैसा घ्राण इंद्रिय द्वारा भी प्राप्त क...
घटते पाठक, बढ़ती चिंता
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घटते पाठक, बढ़ती चिंता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************   यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि शिक्षा और साहित्य के विस्तार के बावजूद पाठक वर्ग का अभाव बढ़ता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह कैसा जूनून है कि हम लिखते जा रहे हैं, औरों से अपने सृजन को पढ़कर प्रतिक्रिया भी चाहते हैं। परंतु अफसोस कि हम औरों को पढ़ना ही नहीं चाहते। आखिर हम जो सोचते हैं, वैसा ही कुछ और लोग भी तो सोचते हैं। तभी भी रचनकार अधिक और प्रतिक्रिया देने वाले मात्र गिने चुने ही होते प्रायः दिख जाते हैं। जो हमें ही आइना दिखाते प्रतीत होते हैं। हो भी क्यों न? बढ़ते आधुनिकीकरण ने हर क्षेत्र में सकारात्मक/नकारात्मक असर डाला है। फिर भला सृजन, पाठन कैसे अछूता रह सकता है। आज जब सृजन क्षमता का विकास अत्यधिक तेजी से हो रहा है, नये सृजनकार तेजी से बढ़ रहे हैं, विशेष कर कोरोना काल में साहित्य के क्षेत्र मे...
शिव तत्व को आत्मसात करवाता नालागढ़ हिमाचल का प्राचीन पंचमुखी शिव मंदिर
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शिव तत्व को आत्मसात करवाता नालागढ़ हिमाचल का प्राचीन पंचमुखी शिव मंदिर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** देव-भूमि हिमाचल में जहां कण-कण में भगवान शिव विराजमान है। बस आपको अपने भीतर शिव तत्व को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जब आप ईश्वर का साक्षरताकार पा जाते हैं तो फिर आप बाहरी आडंबर, उनकी परिकल्पना से परे हो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन में नालागढ़ क्षेत्र के अंतर्गत भगवान शिव का पंचमुखी शिव मंदिर का इतिहास सोलहवीं सदी के लगभग माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना की बड़ी ही रोचक कथा है कहां जाता है कि राजा नलसेन जो कि उस समय के राजा थे महल परिसर में शिव मंदिर की स्थापना करवा रहे थे, पहाड़ पर ले जाते हुए अचानक उनके हाथ से भगवान शिव का प्रतिरूप शिवलिंग छूट गया और नीचे चोए में गिर गया। चोया हिमाचली भाषा में पानी के उस स्त्रोत को कहते हैं जो पहाड़ी क्षेत्रों में बहता रहता है। इस मंदिर का एक अन्य नाम चोय वाला मंदिर भी है। कहा जाता...
संयोग
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संयोग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             अब इसे संयोग नहीं तो और क्या कहूँ आप ही बताइए कि आभासी संचार माध्यमों ने कुछ ऐसे नये रिश्तों को जन्म दे दिया कि कल्पना करना कठिन लगता है कि इन रिश्तों के मध्य उपजे आत्मिक संबंध कहीं से भी वास्तविक रिश्तों से कम महत्वपूर्ण अहसास नहीं कराते। बहुतों के साथ हुआ होगा, हो रहा होगा या आगे भी होता ही रहेगा। जहाँ आपको रिश्तों की मिठास, अपनापन, प्यार, तकरार, एक दूसरे की चिंता और वो सब कुछ मिलता है, जो कभी कभी वास्तविक रिश्तों में भी नहीं मिलता, तो ऐसा भी होता है कि जिस रिश्ते का अधूरापन आपको सालता रहता है, वह आभासी माध्यम से बने रिश्तों से पूरा हो जाता है। हालांकि ये कहने में भी कोई संकोच न कि हर जगह कुछ न कुछ गलत भी हो जाता है, लेकिन ऐसा वास्तविक रिश्तों में भी तो होता है। अक्सर आभासी दुनियाँ में ...
प्रेम का वास्तविक स्वरूप
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प्रेम का वास्तविक स्वरूप

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने मित्र के व्हाट्सएप स्टेटस पर प्रथम बार गीत सुना "मुझे तु राजी लगती है जीती हुई बाजी लगती है" प्रेम का यह स्वरूप जब देखा तो लगा हम यह कहां आ गए? जिस प्रेम की पराकाष्ठा भक्ति है, जो प्रेम उस निर्गुण निराकार परमात्मा को सगुण साकार स्वरूप में धारण करने के लिए विवश कर देता है, वह एक हार जीत की बाजी हो गया। मेरे विचारों में यह प्रेम का सबसे विकृत रूप है। प्रेम तत्व मे तो दो होता ही नहीं है, प्रेम की पराकाष्ठा एक तत्व में विलीन हो जाना है और यदि प्रेम मे जब द्वेत भी होता है तो उस में समर्पण होता है, त्याग होता है, हारना होता है। प्रेम की किताब में या प्रेम के जगत में "जो जीता है वास्तव में वह तो हार ही गया है और जो हारता है वही वास्तव में जीता है" किसी शायर ने क्या खूब कहा है "जो डूब गया सो पार गया, जो पार गया सो डूब गया" आज की युव...
पिता का मर्म और कर्म
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पिता का मर्म और कर्म

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                              माँ की ममता की चर्चा तो खूब होती है,पर पिता के मर्म को, उसके कर्म को, उस की अनुभूति को वही समझ सकता है जिसने उसके संघर्षमय जीवन के एहसास को महसूसा हो। ऐसे भाग्यशाली पिता बहुत कम हैं, जिनके बच्चे ऐसे हैं अधिकतर तो जीवन में थोड़ा सा मुकाम पाते ही कह देते हैं, तुमने हमारे लिये किया ही क्या है, नई पीढ़ी की सोच पूरी तरह से आत्मकेंद्रित हो गई है। पिता सूरज की तरह गर्म हैं पर न हों तो अंधेरा ही है। पिता खुशियों का इंतज़ार हैं, पिता से ही हजारों सपने हैं, बाजार के हर खिलौने अपने हैं।पिता से परिवार हैं, उसी से ही माँ को मिला माँ कहने का अधिकार है। बिन्दी, सुहाग, ममता का आधार है। पिता के फैसले भले ही कड़े हों, पर हम उसी से ही खड़े होते हैं। बच्चे यह बड़े हो कर यह भूल जाते हैं, माँ से जीवन का सार ह...
ईश्वर की आवाज
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ईश्वर की आवाज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             सभी जानते, मानते हैं कि हम ईश्वर की ही सृष्टि हैं, ईश्वर का ही निर्माण हैं। फिर यह भी यथार्थ है कि बिना ईश्वरीय विधान के पत्ता तख नहीं हिलता। ऐसे में कर्ता तो मात्र ईश्वर ही हुआ न। फिर भी मानव अपने स्वभाव के अनुरूप खुद को ही सर्व समर्थ मानने की गर्वोक्ति करता रहता है। परंतु सच यह है कि ईश्वर के हाथों में ही हमारे सारे क्रियाकलापों की डोर है, तब यह मानना ही पड़ता है कि जो भी हम करते हैं वह ईश्वरीय इच्छा है। ठीक इसी तरह हम जो भी बोलते हैं वह ईश्वर की ही आवाज़ है, हम वही बोलते हैं जो ईश्वर चाहता है या यूं कहें कि हम मात्र ईश्वरीय प्रतिनिधि के तौर पर इस दुनियाँ में हैं और प्रतिनिधि को वही सब करने की बाध्यता है, जो उसका नियोक्ता चाहता है। ऐसे में यह हमें अच्छी तरह जितनी जल्दी समझ में आ जाये तो ब...
देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** "तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंँगा" इस सम्मोहक कालजयी नारे के प्रणेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के देदीप्यमान सितारे और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। जिन्होंने भारत के आजादी के लिए प्राण-प्रण से लड़ाई की और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी के नाजी नेतृत्व और जापान के शाही सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन कर उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया और उन्हें इस देश को छोड़कर अपनी जन्मभूमि जाने पर विवश कर दिया। अत्यंत प्रभावशाली युवा व्यक्तित्व श्री सुभाष ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दरम्यान भारतीय राष्ट्रीय सेना (आई एन ए) की स्थापना की और उसमें अपनी प्रभावशाली भूमिका एवं अग्रणी प्रखर नेतृत्व के द्वारा "नेताजी" की उपाधि अर्जित की! आज भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व उन्हें बड़े ...