Friday, May 10राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

प्रयास ही श्रेष्ठ पूजा है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
********************

 हमारे देश का सुप्रसिद्ध शास्त्र “योगवाशिष्ठ रामायण” उद्यम के विषय में क्या कहता है तुमने सुना है? “यदि मनुष्य ने ठीक-ठीक तथा सच्चे ह्रदय से प्रयास किया हो, तो इस संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं है। किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा से प्रेरित होकर यदि कोई सच्चा प्रयास करें, तो उसे निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। मनुष्य अपने जीवन में कुछ पाने की इच्छा करें, उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहे, तो देर-सबेर वह अवश्य सफल होगा। परंतु उसे अपने मार्ग पर अटल भाव के साथ आत्मसात करते हुए बेहिचक चलना होगा।”
इस जगत में बहुत से लोग अभाव तथा निर्धनता की गहराई से निकलकर सौभाग्य के शिखर पर पहुंच गए। केवल अपने भाग्य पर ही निरर्थक विश्वास रखने वालों ने नहीं, अपितु अपने उद्यम पर निर्भर रहने वाले बुद्धिमान लोगों ने ही कठिन तथा संकटपूर्ण परिस्थितियों पर विजय पाई। “जेहि के जेहि सत्य सनेहू, सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू।” जो व्यक्ति किसी वस्तु के लिए हृदय से इच्छा करता है, अपनी कल्पना शक्ति को जागृत कर उसे पाने के लिए पूरा प्रयास करता है, उसे निश्चय ही उसकी उपलब्धि होगी।
किसी आलसी व्यक्ति को जीवन में कभी सफलता नहीं मिल सकती है। हर मनुष्य को समझ लेना चाहिए, कि वह स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु है। जो स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकता, उसे कोई दूसरा भी नहीं बचा सकता। स्वप्रयास के द्वारा मनुष्य निश्चित रूप से समस्त दु:खद परिस्थितियों से उभर सकता है। अतः दृढ़ इच्छाशक्ति तथा आत्मश्रद्धा के साथ हर व्यक्ति को उचित मार्ग पर बढ़ना होगा। साहसी, पराक्रमी, नेकी तथा ज्ञानी लोगों ने कभी भाग्य की बात नहीं जोही।
“भाग्य पहले है ऐसे सोच रखना बेकार की बात है, क्योंकि हम जिधर भी देखते हैं उधर ही अकर्मण्यता के नहीं, बल्कि परिश्रम तथा चेष्टा के फल देखते हैं। मृत देह इच्छाशक्ति के पूर्ण अभाव का द्योतक है जो किसी छुपा नहीं है और उससे कभी कुछ होते किसी से नहीं सुना है। भाग्य कुछ नहीं करता यह महज एक कल्पना है जिसका अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं।” अतः कर्म के आधार पर ही भाग्य का निर्माण होता है भाग्य को जन्म देता है। पूर्वकाल में हमारे द्वारा किए गए भले तथा बुरे कर्मों के फल को ही भाग्य कहते हैं। मनुष्य के साथ मनुष्य के हाथ में केवल प्रयत्न करना है, उसी को अन्य लोग भाग्य कहते हैं। बिना कुछ प्रयास किए भाग्य सृजन नहीं होगा, बल्कि भाग्य भाग जायेगा। सफलता अंततः व्यक्ति अपने स्तर पर ही निर्भर करती है। इसलिए सद्कर्म करते रहें। अच्छे कर्मों के अनुसार ही भाग्य की प्राप्ति होगी।

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *