Monday, May 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

रेडियो की बात निराली

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
********************

गीत की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन की मधुरता कानो में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों की राग, संगीत जरिए घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टीवी, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका-सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस में जुड़ जाते थे। वो गीतों में इतने भावुक हो जाते थे की वे अपने आप को हीरो-हीरोइन समझने लगते। फिल्मो के शीर्षक भी रखे जाने लगे-गीत, गीत गाता चल, गीत गया पत्थरों ने आदि। वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने व् हेड फोन कानों में लगाकर गीत सुनने से भी दुर्घटनाओं की आशंका बानी रहती है। क्योकि वाहन चालक का ध्यान मोबाइल सुनने में लगा रहता है। पीछे से हार्न देने वाले की सुनवाई भी नहीं होती। मोबाइल पर बातें व् गीत सुनने का शोक है तो तनिक रुक कर या घर जाकर भी तसल्ली सी गीत मोबाईल पर सुने जा सकते है और दुर्घटनाओं के आकड़ों में कमी करने में अपनी भूमिका अदा की जा सकती है। दूर कही सुनसान माहौल में बजता गीत वाकई कानों में मधुर रस आज भी घोल जाता है। गीत अब मोबाईल के संग जेबों में जा घुसे, गीतों में प्रतिस्पर्धा होने लगी। हर चैनल पर गायकों की प्रतियोगिता में अंक मिलने लगे। निर्णायकों की डॉट पढ़ने और समझाईश की टीप प्राप्त होने लगी। जिससे प्रतिभागियों के चेहरे पर उतार चढाव झलकने लगा। पृथ्वी पर देखा जाये तो गीतों को अमरता प्राप्त है। पृथ्वी पर कोई भी ऐसा देश नहीं है जहाँ गीतों का चलन न हो। वैज्ञानिकों ने गीतों को ब्रम्हांड में भी प्रेषित किया है ताकि बाहरी दुनिया के लोग इस संकेत को पकड़ सके। शादी-ब्याह में वाद्य यंत्रों के साथ गीत गाने का चलन बढ़ने लगा है। गीतों की पसंदगी व् हिस्सेदारी में हर कोई आगे आया है। पहले के ज़माने में बच्चे-बूढ़े सभी अंतराक्षरी खेल कर अपने गायन कला का परिचय करवाने के साथ ही जीतने व् ज्यादा गीतों को याद रखने की कला को बखूबी जानते थे। वर्तमान में जम्मू कश्मीर में फिजाएं भय मुक्त होकर गीत गाने लगी है। जो खुशहाली पक्ष की एक नई दिशा कही जाएगी। गीतों में मधुरता जब ही प्राप्त होती जब कोरोना जैसी समस्याओं का त्वरित हल होता। रेडियो पर बजते गीत आज भी कितने गीत मन को छू जाते है। जो लॉगडाउन में घर मे बैठ कर इन गीतों कोआप और हम सुनते है।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *