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मुझे तो राधा ही रहने दो

कीर्ति सिंह गौड़
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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क्या करूँगी मैं तुम्हारी रुक्मणी बनके
मुझे तो बस राधा ही रहने दो।

परमानंद है प्रेम की सम्पूर्णता में
मुझे तो अंग तुम्हारा आधा ही रहने दो।

जीवन का सच सिर्फ़ इतना सा है कान्हा
इस जग में प्रेम के अलावा सब कुछ है,

नहीं है दुःख मुझे आठों पहर संग रहने का
इन संग के पहरों को भी तुम आधा ही रहने दो।

समय कहाँ होगा रुक्मणी को,
तुम्हारी बांसुरी को अपने अधरों पे धरने का।

तुम्हारे कांधे पर झुका हुआ मेरा शीश और
तुम्हारी बांसुरी को मेरे अधरों पर ही रहने दो।

कान्हा, कभी बैठे हो कदम की छाया में रुक्मणी के संग
उस कदम की छाया के नीचे संग हम दोनों का ही रहने दो।

व्यस्त कर रखा है रुक्मणी को तुमने अपने घर संसार में,
पहरों बैठकर जमना के तीर प्रतीक्षा का वो अधिकार भी मेरा ही रहने दो।

“मुझे तो बस राधा ही रहने दो”
“ओ‘कान्हा’मुझे तो बस तुम्हारी राधा ही रहने दो”

परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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