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पद्य

हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम
कविता

हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम माँ भारती तव पुत्र-सेवक हम हिन्दी विश्व भाल पर चन्दन प्रथम करते हम मातृ वन्दन राष्ट्र-धरा के हैं उपासक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम अनाहद नाद ने संस्कृत रची माँ शारदा आकर उसमें बसी संस्कृत से हिन्दी को पाते हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम भाषा जिसमें विज्ञान आधार स्वर-व्यंजन-संयोजन विस्तार मानव भाषा के आराधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम संस्कृत से जीवन में संस्कार सर्व जगत ने किया स्वीकार जीवन विकास के साधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक...
चाय का महत्व
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चाय का महत्व

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* चाय चतुर्भुज रूप है, कप नारायण जान। भगवन माया केटली, पीजे जल्दी छान।। रोज थकान मिटाती चाय। सबके मन को भाती चाय।।१ सुबह शाम दिन में चाय। रुकते काम बनाती चाय।।२ बाबू जी भी होटल जाय। फ़ाइल का सब हाल बताय।।३ वेटर कहता पीलो चाय। सबके होंश जगाती चाय।।४ जगते उठते चाय चाय। बच्चे बूढ़े सब चिल्लाय।।५ अब तो हमको देदो चाय। दादी-नानी मांगे चाय।।६ दादाजी पहले पी जाय। शौचालय से पहले चाय।।७ चाय-चाय जग चिल्लाय। मै भी रोज बनाता चाय।।८ अदरक कूटा डाली चाय। शकर दूध सही मिलाय।।९ कड़क उकाले वाली चाय। पत्नी पीके खुश हो जाय।।१० रेलों में भी मिलती चाय। घोल पाउडर तुरत पिलाय।।११ गुजराती की अच्छी चाय। मोदी जी की ऊंची चाय।।१२ जो दिल्ली तक ले जाय। जापानी भी पीते चाय।।१३ चीन अमरीका मांगे चाय। कोरोना को गि...
शहर से अलग है, गांव के घर
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शहर से अलग है, गांव के घर

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** शहर से अलग है गांव के घर घास मिट्टी से बने है घर !! बर पीपल के छांव में घर लगते सुंदर न्यारे घर !! तुलसीचौरा सबके घर, गौ माता पूजे घर घर !! पशुओं को भी घर में रखते, हरदम उनकी सेवा करते ! गोबर से घर आँगन लिपते, स्वच्छ सुंदर घर है दिखते ! कोसो दूर बीमारी रहते, घर से दूर शौचालय रखते ! दादा परदादा साथ में रहते, आपस में सब बाते करते ! रिश्ते नाते साथ निभाते, गीत ख़ुशी के सब है गाते !! मम्मी, चाची पारस करते, बैठ जमी में खाना खाते! बंद दरवाजा कभी ना रखते, मेहमानों का आदर करते ! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
ऐ जिंदगी….
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ऐ जिंदगी….

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझ पर विश्वास तो कर ऐ जिंदगी, मैं तुझ से खफा नहीं। लोग समझते हैं तू बेवफा हो गई, मगर तेरी रजा है ही निराली, जिसने जैसे तुझे अपनाया, तू उसके लिए वैसी ही बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए स्वप्न तो किसी के लिए रंंगमच बन गई जिंदगी। तू किसी के लिए गमों का खारा सागर तो किसी के लिए प्यार का गीत बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए संघर्ष तो किसी के लिए पुष्पों की सेज बन गई जिंदगी। इंसान का असली चेहरा दिखाने के लिए आईना बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए अभिशाप तो किसी के लिए वरदान बन गई जिंदगी। सच कहूँ तो हमने तुझे जीना सीखा ही नहीं ऐ जिंदगी। जीने का जज्बा ग़र दिलों में जगा हो, संघर्षों और मुफलिसी के अंधकार को आशाओं की किरणो से प्रकाशित कर, बुलंद हौसलों की उड़ानों से नित नए मार्ग प्रशस्त करती है जिंदगी। हस...
लिख रही है कलम
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लिख रही है कलम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आज का ये जहाँ पहले जैसा कहा, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल कबड्डी का, माँ की वो लोरियां लिख रही है कलम। नखरे इक-इक सभी बेवजह छुट्टियां, मेरी हर खामियां लिख रही है कलम। गाँव की टोलियाँ छांव पीपल के वो, खेलना गोटियां लिख रही है कलम। घसकुटी गुलीडंडा के न्यारे वो खेल, रुठकर मान जाना अनोखे थे मेल, बचपना मस्तियां लिख रही है कलम। अब तो होली दीवाली में रौनक नहीं, संडे की छुट्टियां लिख रही है कलम। झूले सावन के हरियालियां खेतों की, कुक कोयल की वो लिख रही है कलम। लिखते आनन्द की आंख भी भर गयी, अब कहाँ वो शमां लिख रही है कलम। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र :...
पर्यावरण बचाना होगा
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पर्यावरण बचाना होगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चारों ओर आवरण दिखता, पर्यावरण कहाता। हरा भरा चहुँ ओर आवरण, मन को खूब सुहाता। इसके बिना जिंदगी सूनी, सूना है घर आँगन। पर्यावरण प्रदूषित हो तब, सबको होती लाँघन। हरा-भरा धरती का आँचल, सबका मन हर लेता। धनसंपदा रसद भी मिलती, खाली घर भर देता। अपना उल्लू सीधा करने, वृक्ष काटते सारे। पारा आसमान को छूता, दिन में दिखते तारे। रात दिवस चलती रहती है, अंधाधुंध कटाई। हम खुद कालिदास बने हैं, जीवन पड़ा खटाई। शीतल छाँव नहीं पंथी को, पंछी नहीं बसेरा। मोर, पपीहा नहीं दीखते, घने वृक्ष का डेरा। धुआँ उगलती चिमनी देखो, पर्यावरण मिटाती। दूषित वायु प्रकृति सोख कर, पल-पल ताप घटाती। ड़ाल रसायन हम खेती को, मिलकर बाँझ बनाते। देख अधिक उत्पादन हम सब, खुशियाँ साँझ मनाते। आस्तीन के साँप स्वयं हम, ड़सते हैं अ...
ज्ञान की ज्योति
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ज्ञान की ज्योति

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** ज्ञान की जोत न जलती तो जीवन उजियार नही होता प्रथम शिक्षक कौन होता गर माँ का प्यार नही होता कानो मे लोरी गा गा कर जिसने मुझको दीक्षा दी प्रथम गुरु तो माँ ही है जिसने शब्दो की शिक्षा दी जिसके ममता दुलार से मन मे भाव यही आया मेरे होटों पे सबसे प्यारा पहला अक्षर माँ आया उसके शिक्षक होने का उसको ये परीणाम मीला मुझे मिली माँ गुरु रूप मे उसको माँ का मान मिला उसकी सूरत के भावो से मैने हंसना रोना सीखा उसकी उंगली थाम के ही धरती पर चलना सीखा क्या होता है सही गलत माँ ने ही सिखलाया है हर पथ पर हर एक जगह जीने का ढंग बतलाया है हर विपदा हर एक खुशी सहना माँ से ही सीखा है माता से ही इस जग मे जीने का समान मिला है माता ने ही तो मन मे मेरे सुंदर शब्द उगाए है मेरे सम्मुख स्नेह भरे सिर्फ शब्द ही लाये है ...
बहुत है अंधेरा बहुत रात बाकी
कविता

बहुत है अंधेरा बहुत रात बाकी

संदीप पाटीदार कोदरिया महू (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत है अंधेरा, बहुत रात बाकी हाँ मे वही हूँ पापा वो बिटिया तुम्हारी हाँ मे वही हूँ पापा वो बिटिया तुम्हारी अगर आप न होते पापा, तो मे भी न होती और में न होती पापा, तो ये दुनिया न होती हाँ निर्भय बना दो पापा, में निरभया तुम्हारी सोचा न उन जालिमो ने मुझे जान से मिटा दी हाँ कैसा भरोसा करे हम इस जिंदगी का हर्श हो न पापा हमारे जैसा किसी का क्या इतनी सस्ती है क्या पापा ये जिंदगी हमारी फिर क्यों हमे बना दी बैगानी हर राह में खड़े है पापा हाँ वो आताताई फिर आपसे कहती हूँ पापा मेंरी जान पर बन आई हाँ उनको मिटा दो पापा तो कल हम रहेगी और अगर हम मिट गयी तो ये दुनिया न रहेगी हाँ बेटे उजाले है, तो हाँ हम क्यो अंधेरी हाँ उसी अंधेरी में पापा, में पड गई थी अकेली फिर सुबह न आई पापा फिर सुबह न आई हाँ ये मेंरी कह...
सुखागमन गीत
गीत

सुखागमन गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तन-मन पीड़ित प्रहर-प्रहर था, नित कठिनाई ढोने से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। चैन हृदय से चला गया था, कष्ट असीमित थे भारी। नाग विषैले बने सभी दुख, थे डसते बारी-बारी। अवसर सुख के चले गए थे, बीज अश्रु के बोने से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। दूर हुए थे सभी सहायक, पास बचीं थीं दुविधाएँ। पग-पग बाधा खड़ी हुई थी, रूठ गईं थीं सुविधाएँ। मिलने आता रहा निरन्तर, दुख महि के हर कोने से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। तुम आए तो मिले सभी सुख, भाग्य जगा जो सोया था। प्राप्त हुआ है पुनः सभी वह, जो भी मैंने ने खोया था। संध्याएँ अब लगें रजत-सी, भोर लगें सब सोने-से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्य...
मुड़ कर चले गए
कविता

मुड़ कर चले गए

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा नहीं है कि बहुत खुश हूं मैं, क्योंकि जो ख्वाब सजा कर आंखों में, छोड़ कर चले गए वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। लोग तो कहते रह गए कि मानो बाग में से कोई फूल तोड़ कर ले गया, मानो हमारी और आते मंद पवन के झोंके को कोई मोड़ कर ले गया, अरे वो तो यूं गए मानो पंछी पेड़ से उड़ कर चले गए वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। सब कहते रहे कि पिछले जन्म का कर्ज था शायद वही चुकाने आए थे,, इतनी ही जीवन रेखा थी उनकी उसमें भी वो खुशियां तमाम लाए थे,, वो गए मानो धरती के आंचल से पौधे उखड़ के चले गए वो खास है मेरे जो मुड़ कर चले गए ।। यह कविता लिखते लिखते मेरी आंखों में आंसू उमर कर चले गए, वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इन्दौर (मध्...
मिट्टी व नदी का उलाहना
कविता

मिट्टी व नदी का उलाहना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कुछ थोड़ा बहने दो मुझे कुछ थोड़ा सहने दो मुझे कुछ थोड़ी जमने मैं दो मुझे मुरझाए वृक्ष संभालने दो मुझे। जैसे तुम रोक नहीं सकते उदय अस्त होते रवि को जैसे तुम रोक नहीं सकते चांदनी बिखेरते चंद्र को जैसे तुम रोक नहीं सकते गरजते बादल उसी भांति हमें भी स्वतंत्र करो। मत जकड़ो हमें अपने बंधनों में बंधन में बंधना ठीक नहीं चढ़ना, उतरना अस्तोदय नियति है हमें भी नियति के साथ रहने दो। जीवन के पलों को मनु के साथ बहने दो भोग-भोग लालसा सब क्षणिक है क्षणों के लिए स्वयं के लिए औरों को दूर मत करो हमें जीने दो हमारी नियति के साथ मुझे बहनेे तो कल-कल ध्वनि के। हमें बढ़ने दो पत्तों की सरसराहट के साथ। मुझे जीने दो हरी पीली फसलों के साथ। मुझे गहराई को थामने दो। मैं तुम्हारे लिए हूं, न की तुम मेरे लिए। परिचय :- इं...
जब बालक इस संसार में आया
कविता

जब बालक इस संसार में आया

कु. रोशनी सोलंकी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब बालक इस संसार में आया, उसने सारा जग पाया जब वह समाज में उतरा, उसने लोगों को पाया विद्यालय जाने पर उसने, विद्या का मंदिर पाया पढ़-लिख कर महान बनने का, उसने यह संकल्प उठाया देश के लिए कुछ कर दिखाने का, उसने यह विश्वास जगाया अपनी मेहनत और लगन से, उसने कामयाबी को पाया इस अनोखी दुनिया में, उसने बहुत कुछ अद्भुत पाया संसार में आने का उसने, अपना यह कर्तव्य निभाया।। परिचय :-  कु. रोशनी सोलंकी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
सूरज लाल, जनता बेहाल
कविता

सूरज लाल, जनता बेहाल

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** पेड़ इत्ते थे पहले की धूप का पता ही नही चलता था तालाबो में नहा लिया करते थे जब लगती थी गर्मी कूलर तो नाम बस सुना था पंखा ही गर्मी कटा दिया करता था। लेकिन आज ऐ सी भी फैल है ५० डिग्री टेम्प्रेचर में सूरज लाल है पेड़ सारे काट दिया नए नए फर्नीचर बनाने को पानी खुद बोतल वाला खरीदकर पी रहे वो पेड़ो को कहा पिलाएंगे। नई पीढ़ी को हम क्या दे जाएंगे बेल, आम, नींबू रबड़ी वाली आइस क्रीम या फिर कहानियो में ही नाम सारे सुन पाएंगे यदि प्रकृति को बचाना है पेड़ अभी से लगाना है बच्चो को भी यही सिखाना है पानी हमे बचाना है।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह ...
मत रोको पर समझो
गीत

मत रोको पर समझो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** छम-छम करती नदी बहती टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे-नीचे रास्तो से। संग मिलकर वो चलती है छोटी-छोटी नदी नाले को। सबको अपना पानी देती और देती है शीतलता। बहते-बहते किनारों को हराभरा वो करती जाती।। छम-छम करती नदी चलती टेढ़े-मेड़े, ऊँचे-नीचे रास्ते से।। उदगम स्थल से देखो तो बहुत छोटी धारा दिखती है। पर जैसे-जैसे आगे बहती वैसे-वैसे बड़ती जाती है। फिर भी अपने स्वरूप पर कभी घमंड नहीं करती वो। कितने गाँवो और शहरो की प्यास बुझाती रहती है।। छम-छम करती नदी बहती टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे-नीचे रास्तो से।। जब जब रोका लोगों ने इसके चलते रास्ते को। तब-तब मिले उन्हें विनाशता के परिणाम। जितनी शीतलता ये देती है उससे ज्यादा दुख भी देती। इसलिए मैं कहता हूँ लोगों मत रोको इसके रास्ते को।। छम-छम करती नदी बहती टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे-नीचे रास्ते से।। ...
एक दिन
कविता

एक दिन

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक दिन महोब्बत तुम को भी होगी। एक दिन चाहत तुम को भी होगी। एक दिन एहसास तुम को भी होगा। एक दिन वफ़ा तुम को भी रास आएगी। एक दिन दर्द तुम को भी होगा। एक दिन बेवफाई तुमको भी खाएगी। एक दिन दिल तुम्हारा भी तड़पेगा। एक दिन तनहाई तुम्हें भी सताएगी। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
कविता

बेकार नहीं है हम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हमको भी ईश्वर ने अपने हाथों से बनाया है। अपने हाथों से मेरा सुंदर रूप सजाया है।। मत कोस हमें तु बार-बार शिकार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। मुश्किल घड़ियों में साथ तुम्हारा देंगे हम। हंस-हंस के सह लेंगे तेरे ढ़ाये वो सितम।। तु कह ले तेरे ममता के हकदार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। किश्मत की लकीरों को हम भी खूद बदलेंगे। दे छोड़ भले तु तनहा कुछ तो कर हीं लेंगे।। जो डूबो दे मंझदार में वो पतवार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। जो करते हैं वो करने दो मत रोको अब। मेरे भी साथ खड़ा है जो तेरा है रब।। दर पर तेरे खड़े मगर लाचार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। आनंद की आँखों में भी देखो पानी है। दुःख सुख को हमने भी नजदीक से...
संधि और उसके भेद
कविता

संधि और उसके भेद

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* दो या दोधिक वर्ण से, मिलके संधी आन। वर्णो का ही खेल है, कहता सकल जहान ।।१ स्वर व्यंजन अरु विसर्ग, संधि भेद है तीन। शब्दों को विच्छेद कर, संधी होती छीन।।२ स्वर से ही जब स्वर मिले, स्वर संधी का आन। अच् हल् हल् हल् जब मिलें, व्यंजन संधी मान।।३ वरण बीच विसर्ग लगे, विसर्ग संधी आन। संधी तीनों जानिये, कहते संत सुजानन।।४ दीर्घ अयादि वृद्धि अरु, गुण यण को पहिचान। स्वर संधि के पाँच रूप, कहत हैं कवि मसान।।५ स्वर - विद्या+आलय = विद्यालय व्यंजन - जगत्+नाथ = जगन्नाथ विसर्ग - रामः+अयम् = रामोऽयम् परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्...
सपने
कविता

सपने

पूजा महाजन पठानकोट (पंजाब) ******************** प्यार के वह सपने जो बुने थे हमने कभी टूटे इस तरह से कि चुने भी ना गए हमसे वह कभी दुनिया ने हमारे प्यार को इस तरह से तोड़ा की नफरत भी ना कर सके हम उनसे कभी परिचय :- पूजा महाजन निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 ...
तुम हमारी तलब हो
कविता

तुम हमारी तलब हो

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** तुम हमारी तलब हो मेरे इश्क़ की नजर हो कूएयार में आग फैली तुम हमारी खबर हो क्या कहूॅ ओरों के लिये दिल को जब सबर हो तुम ही होंसला हो मेरा ओर तुम रहबर हो ये हुस्न, इश्क़ धोखा है पर तुम मेरा मुकद्दर हो सुख दूख के तुम साथी शायद मेरी तकदीर हो मेरा आशियाना ओर तुम ही मोहन ईश्वर हो परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कभी आँसु पोंछ करके तो देख
कविता

कभी आँसु पोंछ करके तो देख

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** कभी किसी के आँसु पोंछ करके तो देख बेवजह तेरे आँसु कभी बहेंगे तो कहना। कभी किसी के दर्द बांट करके तो देख बेवजह तुझे कभी दर्द मिलेंगा तो कहना। कभी तू किसी के सहारा बनके तो देख बेवजह कभी बेसहारा बनेगा तो कहना। कभी किसी के भूख को मिटा के तो देख बेवजह कभी बिना खाए सोएगा तो कहना। कभी किसी के प्यास बुझा के तो देख बेवजह तू कभी प्यासा होगा तो कहना। कभी किसी की छत्र छाया बन के तो देख बेवजह तू छाया से वंचित होगा तो कहना। कभी किसी के लिए हाथ बढ़ा के तो देख बेवजह कोई अपना हाथ खींचेगा तो कहना कभी किसी के लिए इंसान बनके तो देख बेवजह कोई तेरा हैवान बनेगा तो कहना। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
कश्ती कागज की
कविता

कश्ती कागज की

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती कागज की, मझधारो में मिल जाए कोई खिवईया। कोई तो पार लगाएं ‌ सागर के नीले पानी में।। संभालो मुझे तूफानों में, हिलोरों में, कश्ती न डूबे जज्बातों में। ये कश्ती कागज की बहते पानी में।। समुद्र के बीचों बीच, दिखता न कोई किनारा। अब कोई हाथ तो थामें, लगा दो अब किनारे। गहराई में लहरों से डगमग चलती ये कश्ती।। अब कश्ती है मझधारों में।। ये कश्ती कागज की बहते पानी में।। अब नहीं है कोई खिवैया, अब मैं राह भटकूं।। इन मजधारों में, आंधी में तूफानों में। हुनर है मेरे पास, मुझे तो बचना आता।।‌‌ अब इन मजधारों में। यह कश्ती कागज की बहते पानी में।। ‌ अब भी है हौंसला, हम तो बैठे कागज की नाव में। इंतजार है उन लहरों का, मजधारो में।। अब लहरें इतराती नहीं, इठलाती नहीं।। किनारा दूर नहीं। अब कोई मुझे रोक न सका, ट...
नाना की नीति
कविता

नाना की नीति

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** फिरंगियों का दम खम ‌करने चूर बने वे तो क्रांति दूत साधु, ज्योतिष, कबीर, मदारी दे कर रुप अनेक, बनाई सेना न्यारी तीर्थाटन के बहाने घूम-घूम कर राजे रजवाड़ों में आजादी की अलख जगाई हाथ खड्ग! निशां था कमल रोटी रक्त कमल की भाषा ने की अगुआई नाना साहब पेशवा थे वे रहस्य भेद की नीति थी अपनाई कब कैसे कहां हुई उनकी बिदाई दुनिया भेद यह जान न पाई परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानि...
जीवन रंगमंच है
कविता

जीवन रंगमंच है

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** यह जीवन है रंगमंच, किरदार निभाते जाना तुम। अभिनय में हों लाख मुश्किलें सब को हँसाते जाना तुम। हुनर मंच का जीवन सा है प्यार लुटाते जाना तुम काँटे लाख हो राहों में गर फूल ही चुनते जाना तुम। चेहरे कई मिलेंगे हर पल झूठ व सच पहचानना तुम होंगे अश्व सवार अनेकों अपनी लगाम संभालना तुम। पट के पीछे का खेल निराला चतुर खिलाड़ी बनना तुम जीवन रथ का चक्र अनोखा उसमें घूमते जाना तुम। वायु वेग सा समय चलेगा सही समय पहचानना तुम। जब तक पर्दा न गिर जाए आगे बढ़ते ही जाना तुम। पथ के पैमाने बदलेंगे पर खुद को न बदलना तुम यह जीवन है रंगमंच किरदार निभाते जाना तुम।। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
कविता

दर्द-ए-आलम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** दर्द-ए-आलम सुनाऊं तो किससे भला, दर्द सुनने का साहस किसी में नहीं| उसकी कातिल निगाहों ने मारा मुझे, मार दे मुझको जुर्रत किसी में नहीं| जिनके कदमों में अर्पण किया जिंदगी, अपना कहने की साहस उसी में नहीं| जख्म ऐसा मिला कोई मरहम कहाँ, थोड़ी रहमत नहीं मायूसी में कहीं, कायराना हरकत किया उसने हम पर, फर्क दिखने लगा उस हंसी में सही। वक्त सबका बदलता न गुमान कर, हस्तियां हर समय सबकी रहती नहीं| मौज-ए-आनंद को ना कभी छोड़ना, मुश्किलों की डगर साहसी में नहीं| परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
महाराणा प्रताप
कविता

महाराणा प्रताप

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राजपूताने की धरती पर इक महाराणा जन्मा था वीर प्रताप मेवाड़ राज्य मुगलों का बल डोला था मातृभूमि मुगलों से पाने जंगल में डेरा डाला था छापामारी सिखलाते थे इक शक्तिसेना बनाई थी कंद मूल घास की रोटियाँ खाकरके जीवन बिताते थे लोहपुरुष सर्वप्रिय राजा थे शौर्य वीरता का दम वे भरते अकबर के अनुबंध नकारे राणा भिड़ गए थे मुगलों से मुट्ठी भर सैनिकों की सेना राणा का भाला था धारदार चेतक पर राणा की सवारी मुगलों की सेना भी थी हारी त्यागे प्राण घायल राणा ने अकबर को ना पीठ दिखाई जय-जय राणा, जय मेवाड़ परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...