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पद्य

चंद्रमा की रोशनी में
ग़ज़ल

चंद्रमा की रोशनी में

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** २१२२ २१२२ २१२२ २१२ काफिया- 'आ' स्वर वाले शब्द रदीफ़- रुक जाएगी चंद्रमा की रोशनी में हर अमा रुक जाएगी शब भी ये सब देखने को बाख़ुदा रुक जाएगी इश्क़ में रुकते नहीं आशिक़ क़यामत तक यहाँ साथ साजन का मिले तो हर क़ज़ा रुक जाएगी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा इतना ही है ये जान लो फ़ासले रिश्तों में हों तो हर दुआ रुक जाएगी ग़र करोगे बंदगी माँ चरणों की ईमान से तो यकीनन ज़िंदगी की हर बला रुक जाएगी है बहुत ही नेक यह फ़रमान इस सरकार का जो सफ़ाई से रहोगे तो वबा रुक जाएगी यदि सनातन सभ्यता की सीख पर तुम ध्यान दो फिर तो सारी पश्चिमी ये बद हवा रुक जाएगी कह रही 'रजनी' इसे तुम अब गिरह में बाँध लो ईश के आगे झुकोगे तो सज़ा रुक जाएगी परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्त...
महिमा
कविता

महिमा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच है तेरी लज्जा - मर्यादा भी, नारी तेरा हथियार है । उद्देश्य निकलने का घर से, प्रथम देहली से तू बोलना।। जब भी अवसर आये, अवगुण या आसुरी वृत्ति हो। प्रकट होता शक्ति अवतार, भीतर अपने टटोलना ।। नहीं अरी कोई तेरा, तू सबको देती प्रेम है। हृदय के विशाल महलों से, घृणा के ताले खोलना।। घर के संस्कारों का, सच्चा दर्शन होता वाणी से । स्फुटीत होने वाले शब्दों को, पहले काँटे पर तोलना ।। समर्पण संतोष भाव, दिया प्रभु ने तुझको सहज । थोड़ा मिला ज्यादा मिला, सीखा तुने स्वीकारना।। असीम गुणों का और भी, तुझमे अमित भंडार माँ। निज संतती को देना, और, कहना इसे संभालना ।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से ले...
न जाने क्यूँ
कविता

न जाने क्यूँ

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** न जाने क्यूँ लोग मुझे नहीं समझते, मेरे अल्फ़ाज़ों को नहीं पढ़ते। मेरे तजुर्बे को उँगली दिखाते उम्र का बहाना करके, क्या कमी हैं मुझमें हर वक्त यही ढूंढता रहा मैं रौशनी से जगमगाते आँगन में सारा चिराग़ बुझाकर, शाम को सुबह से मिलाने की जद्दोजहद में खुद को जैसे जला दिया, राखों के ढ़ेर पे बैठ कर न जाने कौन सा मोती मार गया। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
शरद सुहावन
कविता

शरद सुहावन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो आया शरद सुहावन मन को भाए सुन्दर मौसम ठंडी हवा के झोंके बहते मंद समीर सुहानी चलती रंग बिरंगे फूल खिले हैं धरती दुल्हन सी सजी है ऋतुओं का राजा शरद सबके मन हर्षाने आया गुनगुनी धूप सुहानी लगती कहीं बारिश की फुहार ठंडक का एहसास कराती चाय की चुस्की अच्छी लगती रिश्तों में गर्माहट लाती थोड़ी सावधानी जो बरतता बीमारियों को दूर भगाए शरद ऋतु का आनंद वो लेता खेतों में लहलहाती फसलें धरती का श्रृंगार हैं करती शरद है ऋतुराज सुहाना नाचो गाओ धूम मचाओ परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
कविता, स्मृति

डॉ. राजेंद्र प्रसाद

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सादा जीवन और थे उच्च विचार ! सत्यनिष्ठ, शांत, निर्मल व्यवहार !! निष्ठावान उच्च मूल्यों को अर्पित ! राष्ट्र सेवा हेतु जीवन समर्पित !! कर्तव्यनिष्ठ देशभक्त राजनेता ! महान व्यक्तित्व ज्यो सतयुग त्रेता!! बिहार जीरादेई सिवान जिला ! कमलेश्वरी गोद अप्रतिम कमल खिला!! सामान्य जमींदार परिवार में पले... कोलकाता लॉ कालेज स्नातक पढ़े!! वहीं उच्च न्यायालय में किया अभ्यास! फिर पटना तबादले का किया प्रयास !! गांधी के आह्वान पर होकर विकल! कानून की प्रैक्टिसे छोड़ दी सकल !! महात्मा गांधी थे उनके आदर्श ! सत्य अहिंसा का लघु जीवन विमर्श !! असहयोग, सत्याग्रह, भारत छोड़ो! मे सक्रिय रह बोले ब्रिटिश बल तोड़ो!! भोगी कारावास की यातनाएँ ! आत्मबल समक्ष नत रही विपदाएं!! राष्ट्रहित हेतु बने सक्रिय पत्रकार ! हिंदी हित आजीवन राष्...
थारे राज
हास्य

थारे राज

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** ए सांचा दिन देखिया, नाती थारे राज अस्सी सूं तो कम नहीं, सौ से सारे पास क्यूँ प्रभु सूं प्रार्थना, क्यूँ प्रभु सूं आस कर नाती सूं धरमेला, शीघ्र करेला पास नियत म्हारी साफ़ घणी, मत बताओ खोट जै बणणो आर ए एस, तो म्हाने दीजो वोट शिक्षा रथ रो पैरवी, खूब जमायो रंग गहलोत थारी ग्वाल ने, नात करावे भंग जुग जुग जीये सूरमां, टाबर करे पुकार थांसू होसी सगपणा, थारी जय जयकार जय जय थारे काम ने, जय थारी सरकार गधा घोड़ा सब एक कर, सांची मारी मार राजा भया रंक भया, भयी न घृणा क्रोध एहड़ा अंक जमाविया, टाबर करसी मोद अंतिम विणती आपने, नाती जी सरकार आर ए एस थारे सगां ने, म्हाने करे पटवार परिचय :- तनेंद्रसिंह "खिरजा" निवासी : ग्राम- खिरजा आशा, जोधपुर प्रांत, (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक (विज्ञान वर्ग) जयनारायण व्यास विश्वविद्या...
ज़िन्दगी का संघर्ष
कविता

ज़िन्दगी का संघर्ष

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) ******************** रुसवा है यूं जिंदगी , कल का कुछ पता नहीं। नाराज सभी है मुझसे, पर की मैंने कुछ खता नहीं। आगे बढ़ने की चाहत है , लेकिन डग का पता नहीं । कब कौन चुभा जाए खंजर, इस जुल्मी जग का पता नहीं। कुछ पाने की कोशिश मेरी, ना जाने क्यों नाकाम रही। दौलत शोहरत औरों को मिली, तड़पन ही मेरे नाम रही। अब तड़पन ही सच्चा सुख है, जीवन का दूसरा सार नहीं। दुख सुख में साम्यता है जिसकी, दुख उसके लिए संसार नहीं। परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
दिल तोड़ कर मजे़ से
ग़ज़ल

दिल तोड़ कर मजे़ से

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल तोड़ कर मजे़ से, लो मुस्कुरा रहे हैं घर को गिरा के मेरा, अपना बसा रहे हैं सारे हसीन गुल थे, जो मेरे  गुलसिताँ के बे-नूर चमन करके, दुनियां महका रहे हैं पूछा जो हाल मैंने, तब सच छुपा गये वे दिल को जलाने वाले, लो मुँह बना रहे हैं ऐसा ये इश्क़ होगा, सोचा नहीं कभी भी दिल में छुपाये ख़ंजर, मुझको डरा रहे हैं मंजिल मेरी तुम्हीं हो, जो बात बोलते थे दामन छुडा़ के मुझसे, अब दूर जा रहे हैं करते थे प्यार खु़दही, मर्जी मेरी कहाँ थी दिल को लगाया क्यूँ था, बैठे जता रहे हैं ताजे़ हैं ज़ख्म 'कोमल' कैसे भरेंगे सोंचो गै़रों में खुश रहे वे, नमकें छिड़का रहे हैं परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से ले...
वृक्ष
कविता

वृक्ष

संतोष गौरहरी साहू डोंबिवली पूर्व मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देखो बागों में कैसे फल फूल से बगिया सजी हुई ! हरियाली इस जग में अपने वृक्षों से ही बनी हुई! रहते कड़ी धूप में वो, कहते नहीं कभी कुछ भी ! देते हमको सब कुछ वो, ना लेते बदले में कुछ भी ! कड़ी धूप से बचना हो तो छाया वृक्षों की लगती ! ताजे मीठे फलो को खाने से मिलती हमको शक्ति! आंधी तूफ़ा हो बाढ भुकम्प, इनको ना किसीका डर! पर इंसानों की बस्ती में, लगता इनको सबसे डर! वृक्ष है तो जीवन धरती पर सफल और साकार है! वृक्ष ना हो इस जग में तो फिर सुना ये संसार है! धरती पर वृक्षों ने हमको, दिया अनमोल खजाना है! वृक्ष हमें लगाना है, इस जग को हमे बचाना! परिचय -   संतोष गौरहरी साहू पिता : श्री गौरहरी कैलास साहू जन्म तिथि : २८/०२/१९९० जन्म स्थान : मुंबई, महाराष्ट्र। निवासी : डोंबिवली पूर्व, मुंबई (महाराष्ट्र) ...
हिचकी
कविता

हिचकी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दरवाजा बंद करता हूँ तब घर में खालीपन महसूस होता अकेला मन बिन तुम्हारे तुम्हारी यादें देती संदेशा मै हूँ ना मृत्यु नाप चुकी रास्ता अटल सत्य का किंतु सात फेरों का संकल्प सात जन्मों का छोड़ साथ कर जाता मुझे अकेला फिर आई हिचकी से ऐसा लगता क्या तुम मुझे याद कर रही हो ? परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थ...
उस रोज़
कविता

उस रोज़

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। इंसान का मानता हूँ..... कोई वजूद नहीं। उस रब ने साथ मिलकर मेरी हस्ती मिटाई थी। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। शगुन-अपशगुण की, कोई बात ना आई थी। समझ ही ना पाया, किसने नज़र लगाई। किसने नज़र चुराई थी। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। ना दुआओं ने असर दिखाया। ना ज्योतिषी कोई गिन पाया। ना हवन-पूजन काम आया। ना मन्नत का कोई धागा किस्मत बदल पाया। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। सजदे में जिसके हम थे। लगता था ..... नहीं कोई गम थे। उसने भी हाथ छोड़ा। विश्वास ऐसा तोड़ा। जिंदगी ने,मार कर फिर से जिन्दा छोड़ा। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। मै समझा नहीं..... क्योकि अनगिनत विश्वाशों... ने आँखों पर एक गहरी परत चढ़ाई थी। रब है....
बेटियां
कविता

बेटियां

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उड़ती हुई चिडि़या सी, होती है बेटियां, इस डाल से उस डाल, पे रौशन है बेटियाँ। दो कुल की लाज निभाती है बेटियां, सुख दुःख में साथ निभाती है बेटियां। माँ की मददगार होती, है बेटियां, पापा का अभिमान होती है बेटियां। घर की शान होती है बेटियां, शुभ मंगल कार्य में आगे आती है बेटियां। घर को सजाती संवारती है बेटियां, ममता की खान चंद दिन की मेहमान होती है बेटियां। बेटी बहू के रुप पत्नी माँ होती है बेटियां। बेटे से ज्यादा प्यारी, होती है बेटियां। अब तो अग्नि संस्कार भी करती है बेटियां। कितनी महान होती है प्यारी बेटियां। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्...
विसर्जन
कविता

विसर्जन

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** अपने अंदर के अहंकार का जलन द्वेष और कड़वाहट का सकुनी जैसे रिस्तेदारो का विसर्जन करना जरूरी है। चोर नेताओ का फर्जी पत्रकारो का नई पीढ़ी को बर्बाद करती बोतल,गांजा,ओर स्मेक का विसर्जन बहुत जरूरी है। जात-पात के सरनेमो का धर्म के ठेकेदारों का निर्भया के दोषियों का विसर्जन अब जरूरी है नई पीढ़ी को अब समझना है करना गलत चीजों का विसर्जन है तभी होगा देश मेरा खुशहाल ओर तभी बनेगा मेरा देश महान।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक्षा : स्नातक भाषा : हिंदी, बुंदेली विशेष : स्वरचित रचना, विचारो हेतु विभाग उत्तरदायी नही है, इनका संबंध स्वउ...
पोती आई
कविता

पोती आई

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** छब्बीस नवंबर दो हजार। इक्कीस को पोती आई। कितनी प्यारी पोती आई। सबसे न्यारी पोती आई। मेरी पोती मेरे परिवार में आई। संग में ढेरों खुशियां लाई। हम सबके उर उमंग छाई। हमने प्रभु से अनमोल भेंट पाई। परिवार में दीप बन आई। परिवार में प्रकाश फैलाने आई। हमारे अंतस मधुर गीत गुनगुनाई परिवार में तारे सी टिमटिमाई। हमने तो पोती पा जन्नत पाई। परिवार को परी सी भाई। मैया उसकी हरषाई। मैया ने बेटी जाई। मैया गोद संतान सुख समाई। बेटे-बहू तपस्या सफल वर पाई। हमने दादा-दादी पदवी पाई। मात-पित नाना-नानी पद पाई। कोऊ मौसी,कोऊ भुआ-फूफा बन लज्जाई, शरमाई। मोहे आज परिवार लगे स्वर्ग सम, मेरे अंगना लक्ष्मी आई। पायल झंकार सुनाने। मेरा अंगना तेरे अधरों की मुस्कान से सुमन सा खिला। सुंदर उपवन सा बना। परिचय :-...
संविधान दिवस
हास्य

संविधान दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए ! मौका भी है दस्तूर भी है हमारे मन भरा फितूर जो है, आज भी हम संविधान-संविधान खेलते हैं, जब रोज ही हम पूरी ईमानदारी से खेलते हैंं, तब आज भला खेलने से क्यों बचते हैं? चलिए तो सही आज संविधान दिवस की भी तनिक औपचारिकता निभाते हैं, आखिर साल के बाकी दिन हम संविधान का माखौल ही उड़ाते हैं। हमें भला संविधान से क्या मतलब हम तो रोज ही कानून का मजाक उड़ाते हैं। कभी धर्म के नाम पर तो कभी अधिकारों के नाम तो कभी बोलने की आजादी के नाम पर अनगिनत बहाने हम ढूंढ ही लेते संविधान का उपहास उड़ाने के। संविधान की रक्षा पालन की कसमें खाते हैं, पर संविधान में लिखे कानून को हम कितना मानते हैं? हिंसा, तोड़फोड़, घर, दुकान सरकारी संपत्तियों का तोड़फोड़ भड़काऊ भाषण, आपसी विभेद जातीय टकराव, हिंसा अलगाववादी विचारधा...
तिनका-तिनका जिंदगी…
कविता

तिनका-तिनका जिंदगी…

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सिमटती रही मरुस्थल जैसी धारा पर मिट्टी के, रेत में लिपटे हुए इस शरीर में सारी खुशियां सारे दर्द मट मैले हो गए पर जिंदगी है तो जहां भी है मन रमता भी है उचटता भी तो है कभी सीलन सी हवाओं में, एक तिनका कहीं पकड़ आता, कभी गुम हो जाता किसी तूफान में तलाशती हूं, फिर भी अपनी सौगातों में कुछ बचे हुए अवशेष, लकीरें बन मिल जाते हैं सहेज लेती हूं इन टुकड़ों को नहीं देख सकती यूं ही व्यर्थ होते एक भी तिनका बेशकीमती हैं .... ये जिंदगी है तिनका-तिनका !! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की...
प्यार बाँटना सीखो
कविता

प्यार बाँटना सीखो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अपनो के लिए हम सभी जी लेते हैं कभी गैरों के लिए भी जीना सीखो। सिर्फ अपने लिए जिया तो क्या जिया कभी गैरों के लिए कुछ करना सीखो। इंसान है तो इंसानों का फर्ज भी निभा कभी गैरों के लिए इंसानियत सीखो। यह खुशियाँ तुझ पर खूब मेहरबान है कभी गैरो के लिए इसे लुटाना सीखो। किसी को गम देना तुझे खूब आता है कभी गैरों के लिए आँसू पोछना सीखो। किसी के चेहरे को रुलाना खूब आता है कभी गैरों के लिए मुस्कान देना सीखो। यह जिंदगी सदा खुशियों से भर जाए कभी गैरों के लिए प्यार बाँटना सिखो परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
चूडियाँ
कविता

चूडियाँ

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ऊर्जा सकारात्मक आती घर में, जब-बजती हैं सुहागन की चूडियाँ | कलियुगी सुहागिनें नहीं जानती , क्या होती सुहागन की चूडियाँ || नवग्रह शांत नव चूडियाँ गृह में, एकादश शांति प्रदान करें चूडियाँ | सम संख्या की संतान बचाती, सौभाग्य प्रदान करें पाँच चूडियाँ || आधुनिक शब्द सँवारे देवी तो, भला क्यों धारण करेंगी चूडियाँ | कर लिया यदि एक कडा धारण, उपकृत हो जायेंगी सारी चूडियाँ || होता है अपमानित अब श्रृंगार तो, रहकर करेगी क्या ये चूडियाँ | नहीं हो रहा है संमान इनका तो, जीवन में रहेगी क्या ये चूडियाँ || होंगी सम्मानित अगर ये चूडियाँ, सदा ही घर में बजेगी चूडियाँ | रखती सुरक्षित गृहस्थी चूडियाँ, यदि हाथों में रहेगी चूडियाँ || पहचान सृष्टि में बनी है चूडियाँ, जो जाती आधुनिकता में चूडियाँ | न निशानी किसी की अब चूडिय...
राम नाम की मधुशाला (भाग- १)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- १)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हनुमत तुमने ही पकड़ाई, राम नाम अमृत माला। अंतर में प्रेरणा जगाई, लिखूं नाम की मधुशाला। तुमसे बड़ा 'नाम' का साकी, नहीं कोई इस धरती पर । अमृत जाम बनाते जाना, पूरी हो ये मधुशाला। बहुत विघ्न आएंगे पथ में, तुम रक्षक बनकर रहना। विघ्नों पर तुम गदा चलाना, मेरे कर में दे माला। राम नाम हर स्वांस में तेरी, तुम हो सदा भरा प्याला। बतलाते जाना तुम महिमा, में तो बस लिखने वाला। हर घर मे अब राम नाम की, मदिरा को पहुंचाना है। हर जिव्हा को स्वाद चखाकर, मुक्ति मार्ग ले जाना है। जब हर कर में आजायेगा, राम नाम मधु का प्याला । तो हर आंगन बन जायेगा, राम नाम की मधुशाला। तुलसी ने बतलाया कलयुग में, बस नाम सहारा है। सभी संत बतलाते केवल, नाम ही तारण हारा है। इतना नाम पिलादो मुझको, हो जाऊं मैं मतवाला। मेरे रोम रोम से निक...
हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे
ग़ज़ल

हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुनहरी शोख़ियों की हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे तुम्हें जाने-जिगर दे दे के हम आवाज़ ढूँढ़ेंगे दिए हमने जलाए हैं किसी के इश्क़ में अक़्सर उन्हीं में रोशनी का हम सनम आग़ाज़ ढूँढेंगे ये नादाँ दिल कभी सुनता नहीं मेरी सदा अब तो मेरे दिलदार तुममें ही सदा हमराज़ ढूँढ़ेंगे चले आओ सनम तुम अब हमारे पास होली पर कि रँगने का तुम्हें बेहद नया अंदाज़ ढूँढ़ेंगे तुम्हारे इश्क़ में कितनी हुई 'रजनी' ये दीवानी बताने को तुम्हें हम यह नये अल्फ़ाज़ ढूँढ़ेंगे परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहण...
देश के लिए
कविता

देश के लिए

भोलाराम सिन्हा गुरुजी धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** भारत के वीरों से देश के लिए संघर्ष करना सीखें। अपनी पावन धरती के लिए बलिदान करना सीखें। देश को आजाद कराने के लिए अनेकों वीर शहीद हुए। ऐसे वीर शहीदों का सम्मान करना सीखें। अपने लिए जिये, तो क्या जीये यारो दीन दुखियों का सहारा बनना सीखें। हम भारत के और भारत हमारा। बाती की तरह जलकर प्रकाश करना सीखें। परिचय :-भोलाराम सिन्हा गुरुजी निवासी : ग्राम डाभा पो. करेली छोटी, वि.ख. मगरलोड़ जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
चौकीदारी छोड़ तू
कविता

चौकीदारी छोड़ तू

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** सड़कों पर गुंडई दिखा वह खास हो गए, बदमाशी की परीक्षा में अब पास हो गए । ये राजा क्यो किताब से बाहर नहीं चलता- जब, टेड़ी अंगुलियों के सभी दास हो गए । सब हो गए हैं स्वार्थी, इस जंगल के पेड़ ये- झूंठे शब्द ही इनका अब विस्वास हो गए । इस घर का होगा क्या ये भगवान ही जाने- सारे ही नियम यहाँ के, बकवास हो गए । विकास के पहाड़ पर हम चढ़ते चले गए- पर ये हृदय क्यों हमारे बदहवास हो गए । डंडा की जगह गधों को जब पान दोगे तुम- तो आरोप तो लगेंगे ही क्यों उदास हो गए । ये चौकीदारी छोड़ तू, ग्वाले का काम कर- ये विकसित-खंडहर, ढोरों का वास हो गए । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार क...
हिंद रक्षक
कविता

हिंद रक्षक

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** खून खौला था कभी हम भारतीय सिंहों का जब काल बनकर किया तांडव विदेशी कायरों पे तब फिर से गरम खून वाली वो जवानी चाहिए भर दे ज्वाला इन रगों में वो रवानी चाहिए हम क्यों बने रहते हैं अंधे भोंके जब दुश्मन कटार अनसुनी करते हैं क्यों अपनों की सुनकर चीत्कार हो गया अब बहुत आग हर सीने में जलनी चाहिए फिर से गरम खून वाली वो जवानी चाहिए भर दे ज्वाला इन रगों में वो रवानी चाहिए भूलकर इतिहास से हम सीख कुछ लेते नहीं मूढ़ बनकर चुप हैं रहते अब भी कुछ चेते नहीं प्रताप भगत सुभाष की घर-घर कहानी चाहिए फिर से गरम खून वाली वो जवानी चाहिए भर दे ज्वाला इन रगों में वो रवानी चाहिए कुचक्र चालें चल रहें फिर देश के दुश्मन सभी भूलकर भी हम ना भूलें दुश्मनों के छल कभी भाँप लें छलियों को वो आंखें सयानी चाहिए फिर ...
इतना आसान है क्या
कविता

इतना आसान है क्या

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** तुमने कह तो दिया भूल जाओ भूलना इतना आसान है क्या, मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं जीना बिन तेरे आसान है क्या। सूख जाता है जब कोई शज़र छूट जाता है पत्तों का घर, टूटे पत्तों से जाकर के पूछो टूटना इतना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं.... जाने कितनी दफा हम तुम एक दूजे से छुप-छुप मिले, भूल जाते थे शिकवे सभी जब भी नैना से नैना मिले। इतने पहरो में मिलना कोई जान बोलो ना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं... याद तुमको वो वादे भी है क्या तुम थे मैं था और कोई नहीं, जाने कितनी ही रातें बिताई मैं जगा तुम भी सोई नहीं। इश्क़ की ऐसी लहरें उठी तैरना इतना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं... मैने माना था सब कुछ तुम्हें तुमने धोखा दिया क्यू मुझे, तुम सजाओगी घर को मेरे हाय सपनो के दीपक बूझे। ते...
एक अनजाना फरिश्ता
कविता

एक अनजाना फरिश्ता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी के किसी मोड़ में जब खुद को तराशने जी जरूरत हुई अनजाने राहों में अचानक ही एक अजनबी से मुलाकात हुई वो अपनापन का पहला एहसास आज फिर महसूस हुई और वो अजनबी अपना जाना पहचाना जरूरत बन गई कभी तन्हा का साथ था कभी कल्पना की दुनिया साकार हुई वो अजनबी वो अनजाना रिश्ता खास अजीज बन गई वो अजनबी जीवन के राह में अनजाना फरिश्ता बन गया मेरे हर अनकहे, अनजाने लब्जों को समझने लग गया हर दुःख हर सुख हर विपत्ति का सशक्त हमदर्द बन गया जीवन की अस्मिता का रक्षक बिखरते रिश्ते को संवारने लग गया गम के बहते हुए आंखों के अश्कों को शबनम की बूंदे बना गया आसमानी फरिश्तों के बारे में मैंने किताबों में पढा था जिंदगी के किसी मोड़ पे उस जमीनी फरिश्ते से मुलाकात हो गया मेरा दिल उसके मनमोहक छवि के आईने में कैद हो गया पता नही...