मृगतृष्णा
रशीद अहमद शेख 'रशीद'
इंदौर म.प्र.
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सागर की गहराई लगती मृगतृष्णा है!
अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है!
निर्धन-निर्बल है परिवार!
कुटिया है आवासाधार!
परिणय योग्य आत्मजा सहित,
कुल सदस्य संख्या है चार!
आँगन की शहनाई लगती मृगतृष्णा है!
अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है!
कानन में काटे सब वृक्ष!
बना उपनगर व्यापे कक्ष!
पर्यावरण हुआ आहत,
मौन ही रहे पक्ष-विपक्ष!
बस्ती में अमराई लगती मृगतृष्णा है!
अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है!
नभस्पर्शी बने भवन हैं!
बढ़ती जाती और लगन है!
नियमित भू से दूर हो रहे,
लटकन जैसा अब जीवन है!
सदन संग अँगनाई लगती मृगतृष्णा है!
अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है!
स्वार्थकेन्द्रित है अब मानव!
अंतर में रहता है दानव!
पर परिचय की बात करें क्या,
आत्मबोध हो गया असंभव!
अपनी ही परछाई लगती मृगतृष्णा है!
अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है!
परिचय - रशीद अहमद शेख 'रश...
























