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पद्य

हनुमान जन्म
भजन, स्तुति

हनुमान जन्म

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** चैत्र मास पूर्णिमा आई, हनुमान जन्मोत्सव अपने संग लाई। हम सबके उर में अपार आनंद पाई, चहुंओर हर्ष की लहर छाई। हम सब हनुमान जन्मोत्सव धूमधाम से मनाई। हे!हनुमान तेरे दर्शन को नैना तरस गए, हे!पवन पुत्र हनुमान। आज भारत भू जन्मे हो। हे! राम भक्त हनुमान, तुम्हें हम करबद्ध हो सादर करें प्रणाम। सबहि भक्त तेरे चरणों में लिपट जाए। हे!पवन पुत्र तुम तो शंकर अवतारी हो। अंजनी लाल हो जग के तुम, तेरी महिमा अति न्यारी, निराली अनंत। तुम सूरज निगल बजरंगी कहलाए हो। लंका जला सीता सूचना लाए, लक्ष्मण प्राण बचाने, पूरा पर्वत उठा लाए। हम सब तेरा गुणगान करें। ऐसा वरदान दो। घर-घर तेरा नाम करें, दुष्ट दलन तुम कहलाए, भक्तों के कष्ट हरने आए हो। दो शक्ति हमें इतनी अपार, हम तेरी सेवा निस्वार्थ भाव से कर पाए...
अजर-अमर हैं अंजनि नंदन
भजन, स्तुति

अजर-अमर हैं अंजनि नंदन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बुद्धिमान तुम महाबली हो, ज्ञानी गुणी कहाते। स्वर्ण शिखर-सी देह आपकी, बजरंगी कहलाते। ज्ञान गुणों के सागर हो तुम, अतुलित बल तन भरते। रामदूत कहलाते हो तुम, कष्ट सभी के हरते। पवन पुत्र, हनुमान हठीले, पवन वेग से जाते। रक्त वर्ण फल समझ सूर्य को, पलभर में खा जाते। अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, बल बुद्धि विद्या देते। भय-बाधा, पीड़ा जीवन की, पल भर में हर लेते। अजर-अमर, तुम अंजनि नंदन, दूर करो मम पीड़ा। करने खोज, जानकी जी की, लिया आपने बेड़ा। ह्रदय आपके राम सिया हैं, राम दूत बजरंगी। संकट मोचन, कुमति निवारक, सदा सुमित के संगी। तेजपुंज महावीर आपको, सीताराम हमारी। सेवा भाव देख हनुमत का, स्वयं राम बलिहारी। दुर्गम काज जगत के जितने, सभी सुगम हो जाते। पाते हैं बैकुंठ, भक्त जन, जो हनुमत गुण गाते...
संकल्प
कविता

संकल्प

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तपस्विनी की सुता भला, तप में विश्राम क्या पाऊंगी। प्रतिदिन नव कोपल सम ही मैं, आगे बढ़ती ही जाऊंगी। हरक्षण जो कष्ट लिए उर में, मैं उस वसुधा की जाई हूं। हो आदि पुरुष भी नतमस्तक, ऐसी शक्ति बन आई हूं। क्यों लक्ष्य नहीं मैं पाऊंगी, ना पीछे कदम हटाऊंगी। बाधाओं से लड़ जाऊंगी, निज स्वत: ढाल हो जाऊंगी। गर मार्ग बिना कंटक के हों, मंजिल में प्रीत न पाऊंगी। बिन बाधाओं के प्राप्त हुआ, वह लक्ष्य नहीं अभिशाप हुआ। जितनी ही असफलता आए, उतना ही कदम बढ़ाऊंगी। हरगिज भी ना अकुलाऊंगी, एक दिन मंजिल पा जाऊंगी। परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
राम नवमी
भजन, मुक्तक

राम नवमी

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** प्रभू राम के अवतरण का दिवस है, था उद्देश्य क्या ये जगत को बताओ। प्रभू नाम पावन है गंगा के जल सा, जपो इसको और जग से मुक्ति को पाओ। प्रभु राम के... प्रभू ने मनु को वचन ये दिया था, मैं बन पुत्र आऊंगा घर मे तुम्हारे। धरा को प्रभू ने वचन ये दिया था, हारूँगा तेरा भार राक्षस संघारे। वचन को निभाकर दिया ये संदेसा, वचन जो दिया है उसे तुम निभाओ। प्रभू राम के ... ऋषि श्राप को मान देने के हेतु, रची लीला, सीता हरण थे कराये। विरह में बिलखते फिरे वो बनो में, तो हनुमंत ले जाके स्वामी मिलाये। दिया वचन उसको तेरा दुःख हारूँगा, और तुम खोज सीता को मैत्री निभाओ। प्रभू राम के... प्रभुनाम उच्चार हनुमत गए तो, हरी माँ की पीड़ा, और लंका जलाये। चले रामजी साथ बनार और भालू, थे नल नील लिख "राम" सेतु बनाये। दिए कई अवसर पर दंभी ...
हारते हुए मन को समझना
कविता

हारते हुए मन को समझना

काजल कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** ये जिंदगी है मेरे दोस्त, बहुत आजमाएगी। जो चाहा नहीं कभी, वो भी करवाएगी ।। पर मतलब नहीं इसका, हम हारकर बैठ जाएं। कोशिशें छोड़ दें, खुद को समझाकर बैठ जाएं ।। अभी तो सफर लंबा है, बहुत दूर जाना है। जो रूठे हैं रास्ते उनको भी मनाना है ।। मत सुना करो उनकी जो रास नहीं आते । इंतजार उनका कैसा ..... जो इंतजार का अर्थ नही जानते ।। हर कोई हमें प्यार करे ये हमारे बस में नहीं । पर हम सबको प्यार दें, बेशक हमारे बस में है ।। हां, टूटी चीजें चुभती हैं, बहुत सताती हैं। मन की उदासी का बवंडर ले आती है ।। घुट-घुट के हम खुद में सिमट से जाते हैं । चाहकर भी इससे निकल नही पाते हैं ।। इसलिए खुद को ऐसा बनने मत देना । बेवजह आसुओं को बाहर निकलने मत देना ।। कह दे कोई खुदगर्ज तो चुपचाप सुनना । पर हमदर्द हमेश...
रामभक्त हनुमान जी
स्तुति

रामभक्त हनुमान जी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** चिरंजीवी परमभक्त, भगवान राम के अनन्य सेवक बजरंगबली हनुमान जी का जन्मोत्सव आज है जिसे दुनिया उनके बारह नामों हनुमान, अजंनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुण सखा, पिंगाक्ष, अमित विक्रम, उदधि क्रमण सीता शोक विनाशन, लक्ष्मण प्राणदाता, दशग्रीव दर्पहा से जानती, पुकारती है रोज प्रातः काल इन नामों का जाप करती है। तुलसीदास जी ने जिसे विज्ञानी बताया जिनके विज्ञान ज्ञान से, दुनिया आज भी हैरान है। लंका दहन के लिए रावण की सभा में पूंछ को बढ़ाते जाना अशोक वाटिका में मां सीता के सामने अपने लघु और विशालकाय रुप दिखाना विशालकाय समुद्र के पार जाना विज्ञान ही तो था जिसे रामकथा वाचक मुरारी बापू विश्वास का विज्ञान मानते कहते हैं लंका मे सीता जी की खोज, संजीवनी बूंटी लाकर, लक्ष्मण की प्र...
ज़िम्मेदार कौन
कविता

ज़िम्मेदार कौन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कहीं ट्रक से ट्रक टकराता है, कहीं कोई बिना ब्रेक की गाड़ी दौड़ाता है इनका परिणाम हादसा होता है इनका ज़िम्मेदार कौन होता है? कहीं शराबी ड्राइवर ट्रक चलाता है कहीं बिना लाइसेंस के वैन भगाता है कभी स्कूल बस अनफ़िट होती है ये सब हादसों के शिकार होते हैं इनका ज़िम्मेदार कौन होता है कभी ८० की रफ़्तार मासूमों की जान लेती है कभी ओवरलोडेड ट्रक पलट जाता है कहीं गड्ढे गाड़ी उछालते हैं प्रति दिन हज़ारों जानें जाती हैं कोई मोबाइल के चलते गाड़ी चलाता है कोई असावधान हो जाता है लगातार गाड़ी चलाचला कर किसी की नींद पूरी नहीं होती ये सब कइयों की मौत से खेल जाते हैं इन सबका ज़िम्मेदार कौन होता है? ज़रा सोचें, ज़रा समझें, इनमें से कोई कारणों के ज़िम्मेदार हम स्वयं होते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : ...
हे ! महावीर
कविता

हे ! महावीर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** महावीर कल्याणक तुमने दिया अहिंसा-गीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। राजपाठ तुमने सब त्यागा, करने जग कल्याण। हिंसा और को मारा, अधरम को नित वाण।। जितीन्द्रिय तुम नीति-प्रणेता, तुम करुणा की जीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। कठिन साधना तुमने साधी, तुम पाया था ज्ञान। नवल चेतना, उजियारे से, किया पाप-अवसान।। तुमने चोखा साधक बनकर, दिया हमें नवनीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। नीति, रीति का मार्ग दिखाया, सत्य सार बतलाया। मानवता के तु हो प्रहरी, रूप हमें है भाया।। त्यागी तुम-सा और न देखा, खोजा बहुत अतीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। भटक रहा था मनुज निरंतर, तुमने उसको साधा, महावीर तुम, इंद्रिय-विजेता, परे भोग की बाधा।। कर्म सिखाया, सदाचार भी, तुम हो भावातीत। तुम हो म...
दूर कहीं अब चल
कविता

दूर कहीं अब चल

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** राहत के दो पल आँखों से ओझल। रोज लड़े हम तुम निकला कोई हल ? न्यौता देतीं नित दो आँखें चंचल। झेल नहीं पाए हम अपनों के छल। भीड़ भरे जग से दूर कहीं अब चल। मौन तुझे पाकर चुप है कोलाहल। कितने गहरे हैं रिश्तों के दलदल। है आस मिलेंगे ही आज नहीं तो कल। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
सम्राट अशोक
कविता

सम्राट अशोक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिंदुसार के पुत्र आपने एकछत्र साम्राज्य बनाया था, देश तो देश विदेशों में भी अपना लोहा मनवाया था, देख लहू की धार, अपने मन को विचलित पाया था, मन की शांति पाने खातिर बुद्धत्व को अपनाया था, लाखों स्तूप और शिलालेख धम्म के लिए बनाया था, हिंसा त्यागा अहिंसा अपनाया, खुद का मन निर्मल बनाया, आपने ही अथक प्रयत्न कर बुद्ध राह सहेजा था, पुत्र महेंद्र पुत्री संघमित्रा को समुद्र पार तभी तो भेजा था, शिक्षा लेने दुनियाभर से हर वर्ष हजारों आते थे, शिक्षा के संग शासन सुमता की बातें लेकर जाते थे, अशोक चक्र और चार शेर चिन्ह को देश ने यूं ही नहीं अपनाया है, विदेशियों ने अपने ग्रंथों में महान अशोक के निर्भीक शासनकाल का गुण गाया है, लड़ना नहीं है हमको अब तो मिलकर एक हो जाना है, अपना राज लाकर फिर से प्रियदर्शी का ...
जीत-जीत सोच तू जीत जायेगा
कविता

जीत-जीत सोच तू जीत जायेगा

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जीत-जीत सोच तू जीत जायेगा। हार से कभी न फिर घबरायेगा। अकेला चल राह में कदमों को बढ़ा, एक दिन तेरा ये मेहनत रंग लायेगा।। कुरुक्षेत्र के मैदान में जंग है जारी। जी जान लगा अपनी कर तैयारी। धनुर्धारी अर्जुन बन संशय में न घिर, कृष्ण की तरह दिखा विराट अवतारी।। मंजिल की आंखों में पहले आंखें तो मिला। लक्ष्य पाने मनबाग में कुसुम तो खिला। नित कर्म ही तेरा भाग्य है वीर मनुज, रुकना नहीं चाहिए अभ्यास का सिलसिला।। आयेंगी चुनौतियां तेरी लेने परीक्षा। दृढ़ पर्वत के समान खड़ा कर प्रतीक्षा। साहस भरके मन में सामना तो कर, मिलेगी सफलता पूरी होगी हर इच्छा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित। घोषणा पत्र : मैं ...
दामिनी की आवाज
कविता

दामिनी की आवाज

श्रीमती निर्मला वर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है बहन बेटी की रक्षा और दुलार की जगह हवस की भावना पनप रही है लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है क्या वक्त, क्या जगह, क्या उम्र, क्या ब्याहता, कुमारी कन्या या वृद्धा सभी पर वासना कहर ढा रही हैं लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है एक "शक्ति" का प्रतीक पर छः छह दानवों ने अपनी घिनौनी ताकत दिखाई पुरुष होने की क्रूर से क्रूरतम हैवानियत दिखाई नारी की सुरक्षा खतरे में दिख रही है लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है उन दरिंदों के लिए अबला असहाय होने लगी, किंतु उसकी "कराह" सिहिनी की गर्जना बनी दामिनी नाम दिया है उसकी आह को क्योंकि दामिनी जब कड़कती है गरजती है तो आसमान से धरती को हिला देती है आज इस धरती की "दामिनी" ने हिला दिया है देश को क्षण भर की ...
उनको जब यह अहम हो गया हो गया
कविता

उनको जब यह अहम हो गया हो गया

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया, हर कार्य होगा उनसे ही उनको यह बहम हो गया। मुर्गे के बाग देने के पहले ही भोर का सूर्य उदय हो गया।। यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया। हर कार्य होगा उनसे ही उनको यह बहम हो गया। हर कार्य सफल होता है सब के सहयोग से वर्चस्व की लड़ाई से बना बनाया काम विफल हो गया।। यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया, काम उनसे ‌ही होगा उनको यह बहम हो गया। कहे "अरविंद" सबका साथ-सबका सहयोग होगा तो आपका हर काम सफल हो गया। यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया, काम उनसे ‌ही होगा उनको यह बहम हो गया। परिचय :-  अरविन्द सिंह गौर जन्म तिथि : १७ सितम्बर १९७९ निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) लेखन विधा : कविता, शायरी व समसामयिक सम्प्रति : वाणिज्य कर इंदौर संभाग सहायक ग्रेड तीन के पद में कार्यरत घोषणा पत्र :...
जरा होश में तो आओ
कविता

जरा होश में तो आओ

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** रिश्वत का बजार क्यों है? हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर है, रिश्वत में ताला लगाओ। अधिकार का नारे बहुत हैं, हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर है, संविधान के पाठ पढा़ओ। भ्रूण हत्या क्यों हो रहे हैं, हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर हैं, बेटी को सम्मान दिलाओ। ये गरीबी कारण क्या है? हमें तो कारण बताओ। कारण खुद के अंदर हैं, शिक्षा की ज्योति जलाओ। हम दुःखी क्यों रहते हैं, हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर है, जरा होश में तो आओ। परिचय :- डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
गौरी की रक्षा…
कविता

गौरी की रक्षा…

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** किसानों का यह असली साथी हर फुर्सत है इसके उपयोगी पीते हम गोरी का गोरस शरीर अपना बनाते मक्खन, छाछ, दही जैसे और कई मिठाइयां हम खाते गोबर से खाद बनता उपयोग इसका खेत में होता हरि घास से ये खाती है सूखे खाने में रह लेती है कभी न कोई इसकी शिकायत होती हर पल, हर समय यह शांत रहती ग्रामों में लोग शौक से पालते शहरों में इसके लिए कोई घर नहीं गौशाला का निर्माण करवाओ माता रूपी गाय की सेवा करो और तुम रक्षा करो परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
सुख और दुख
कविता

सुख और दुख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अनुभव और ज्ञान मनुष्य के सुख दुख का कारण है, अब बताइए इसका क्या निवारण है, बंदर को कह दो हाथी, दुखी नहीं होगा उनका कोई साथी, हाथी को कह दो गधा, बिगड़ेगा नहीं चाल रहेगा सधा का सधा, शेर को कह दो सियार, नहीं बदलेगा वो खूंखार, खरगोश को कह दो चीता वो घास ही खायेगा, नहीं कोई खुशी मनाएगा, इन सारे जानवरों को बिल्कुल नहीं पता उनका नाम क्या है, पर इतना जरूर जानते हैं कि उनका काम क्या है, किसी को अपना नाम ज्ञात नहीं, नाम तो इंसानों की देन है, अपने अनुसार खेलता मानवी गेम है, ज्ञान और अनुभव के बिना वो अपनी दुनिया में खुश है, मगर सब कुछ जान कर मोह माया, स्वार्थ में डूबा आदमी नाखुश है, हर जीव जंतु अपने काम से जाने जाते हैं, केवल मनुष्य ही है जो नाम से जाने जाते हैं, तो मनुष्यों दुखी हो जाओ या सुख...
गाँव की बेटी-दोहों में
दोहा

गाँव की बेटी-दोहों में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी भाती गाँव की, जो गुण से भरपूर। जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।। बेटी प्यारी गाँव की, प्रतिभा का उत्कर्ष। मायूसी को दूरकर, जो लाती है हर्ष।। बेटी जो है गाँव की, करना जाने कर्म। हुनर संग ले जूझती, सतत् निभाती धर्म।। गाँवों की बेटी सुघड़, बढ़ती जाती नित्य। चंदा-सी शीतल लगे, दमके ज्यों आदित्य।। कुश्ती लड़ती, दौड़ती, पढ़ने का आवेग। गाँवों की बेटी लगे, जैसे हो शुभ नेग।। बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम। जिसके खाते काम के, हैं अनगिन आयाम।। खेतों से श्रम का सबक, बढ़ना जाने ख़ूब। गाँवों की बेटी प्रखर, होती पावन दूब।। करती बेटी गाँव की, अचरज वाले काम। मुश्किल में भी लक्ष्य पा, हासिल करती नाम।। गाँवों को देती खुशी, रचती है सम्मान। बेटी मिट्टी से बनी, रखती है निज आन।। राजनीति, सेना ...
हे राम जी! मेरी गुहार सुनो
कविता

हे राम जी! मेरी गुहार सुनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे राम जी! मेरी पुकार सुनो एक बार फिर धरा पर आ जाओ धनुष उठाओ प्रत्यंचा चढ़ाओ कलयुग के अपराधियों आतताइयों, भ्रष्टाचारियों पर एक बार फिर से प्रहार करो। उस जमाने में एक ही रावण और उसका ही कुनबा था जो कुल, वंश भी राक्षस का था फिर भी अपने उसूलों पर अडिग था, पर आज तो जहां-तहां रावण ही रावण घूम रहे हैं जाने कितने रावण के कुनबे फलते-फूलते वातावरण दूषित कर रहे हैं। इंसानी आवरण में जाने कितने राक्षस बहुरुपिए बन धरा पर आज स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं समाज सेवा का दंभ भर रहे हैं सिद्धांतों की दुहाई गला फाड़कर दे रहे हैं भ्रष्टाचार, अनाचार अत्याचार ही नहीं दंगा फसाद भी खुशी से कर रहे हैं दहशत का जगह-जगह बाजार सजा रहे हैं। जाति धर्म की आड़ में अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं अकूत धन संपत्ति से ...
श्री राम बसें सबके मन में
स्तुति

श्री राम बसें सबके मन में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नवमी तिथि चैत्रमास पावन, सुंदरता प्रभु की मनभावन। जन्मे है आज रामप्यारे, सुंदरता में जग से न्यारे। हे राम आपको नमन करूँ, अपने उर मैं विश्वास भरूँ। आ जाओ जग मंगल करने, भक्तों के मन श्रद्धा भरने। जो डूबे पापाचारों में, उलझे हैं अत्याचारों में। दिन रात कुकर्मों में रत हैं, कुविचारों में चिंतन रत हैं। आघात करें मानवता पर, हर्षित होते दानवता पर। पशु वृत्ति समाई है इनमें, ना दया धर्म इनके मन में। शुचिता का इनको भान नहीं, निज जननी का अभिमान नहीं। हैं कायर और कपूत बड़े, मानवता के विपरीत खड़े। श्री राम उठा लो धनुष बाण, जनमानस के विपदा में प्राण। आ जाओ राम संताप हरो, दुष्टों का सत्यानाश करो। जब मनुज मुक्त हो हर दुख से, तब मने रामनवमी सुख से। चहुँ ओर खुशी हो जन-जन में, प्रभु राम बसें सबके मन म...
नारी शक्ति
कविता

नारी शक्ति

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** युग कोई भी आ जाए, क्यों नारी छली ही जाती है। कभी सिया कभी मीरा राधा, बन वह कष्ट उठाती है। अग्नि परीक्षा देकर भी, क्यों वन को भेजी जाती है। कभी सिया कभी मीरा राधा बन वो कष्ट उठाती है। अब तो रघुवर आ जाओ, सीता का कष्ट मिटा जाओ। उस युग में ना सही मगर, इस युग में न्याय दिला जाओ। विरह कलह सतवार सहन कर, हरगिज़ ना अकुल आती है। प्रचंड ज्वार हर बार प्रहार को, छलनी करती जाती है। कभी सिया कभी मीरा राधा, बन वह कष्ट उठाते हैं। परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
बदली आबो-हवा देख रहा हूं
ग़ज़ल

बदली आबो-हवा देख रहा हूं

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** शहर की बदली आबो-हवा देख रहा हूं, बीमारों की कतारें हाथों में दवा देख रहा हूं। मुर्दा खोर इंसानों से मिलना है तो देखिए ये बस्ती, कितने इंसानों को पूछते मैं रास्ता देख रहा हूं। खुशियों के आंसू गम के आंसू देख रहा हूं, कितने लबों पे अभी उसका चर्चा देख रहा हूं। इंसानों की लुटती दुनियां जंगली बस्ती देख रहा हूं, कदम-कदम पर पैसों को रुपए बनते देख रहा हूं। आनी जानी दुनिया में बैठा तमाशा देख रहा हूं, सोच में हूं हकीकत देख रहा हूं या सपना देख रहा हूं। बेरोजगारों की बस्ती में भुखे सियार कितने हैं, मिट्टी के इंसानों को "शाहरुख" खाते मुर्दा देख रहा हूं। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
बसन्ती महक उठी
कविता

बसन्ती महक उठी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बासन्ती, महक उठी ! चंचल-प्रकृति-बीच- कोयल बहक उठी ! गुलमोहर की डालों-पे गिलहरी-लहराई ! अढ़उल की शाखों पे- गौरैया-शरमाई ! सेमल-पलास बीच दिशाऍ लहक उठी ! पीपल पे हरी-हरी बदली छिटक उठी...! पाकड़ पे 'उजास' फूटा, बरगद पे ठिठका ! मौसम का ठौर-ठौर वृक्षों पे अटका ! महुआ के गुंचो में रसना समा रही ! अमरइया की मंजरी- किसको न भा रही ! मोरों को लय-ताल तीतर समझा रहा.. कपोत कुछ आगे फिर- पीछे-को जा रहा.. ! नीम के कोतड़ में तोते आनन्द-भरें... कठफोड़वा के श्रम पे ना जरा भी गौर करें..! जामुन के फूलों पे- भवरी-लहराई ! छींट-सारी पहनाई! शिरीष की शाखों-पे कर्णफूल लटक रहे ! अमलताश अब भी- पीताभ को तरस रहे! अर्जुन ने देखो, नव-किसलय है पाया! गूलर का फूल कहॉ सबको नजर आया! अन्दर ही अन्दर 'प्रकृति', रचना अप...
निर्बल संगम
कविता

निर्बल संगम

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** व्यक्ति व्यक्ति का निर्बल संगम कर रहा मानवता को कायर बोल रही आज अमानवता कर रहे मानवता में दानवता। सत्य, स्फुरति, स्पंदन उड़ गया मानवता से जागे आज अनेक रावण करवाते नित नए क्रंदन एक पुरुष का पौरूष जागे करें क्या एक अकेला। इस नर्तन में। रक्त देख रक्त खोलता था शिराएं थी तन जाती। वर्तमनु, मनुष्य नहीं है मांगना केवल अपनी ख्याति में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती है...
खुद को उड़ती चिड़िया कर ले
ग़ज़ल

खुद को उड़ती चिड़िया कर ले

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टूट पड़ें बस ग्राहक इतनी मोहक पुड़िया धर ले। बेशक घटिया माल रहे पर पैकिंग बढ़िया कर ले।। हाथों हाथ बिकेंगीं तेरी चीज़ें बाजारों में, जीत भरोसा जनता का फिर काली हँड़िया भर ले।। पाँव और ये पंख सलामत दोनों रखने होंगे, उड़ना ही है तो फिर खुद को उड़ती चिड़िया कर ले।। भरी जवानी में बुढ़िया सी सूरत ठीक नहीं है, रंगत बदल और खुद को खुद कमसिन गुड़िया कर ले।। ये रनिवास महल की रौनक सब मिटने वाली है, अच्छा होगा भव्य भवन को छोटी मढ़िया कर ले।। प्राण किसी के नहीं बचे हैं लाखों ने की कोशिश, इसीलिए खुद को कागज सा उड़िया मुड़िया कर ले।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
धवल चाँदनी
गीत

धवल चाँदनी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** धवल चाँदनी भी मुस्काती, रजनी भी इतराती है। मस्त मिलन की बेला आई, गोरी भी बलखाती है।। छेड़े जुगनूँ प्रीति रागिनी, दीपक आस जलाते भी। संदल खुशबू तन से आती, प्रियवर तुम्हें बुलाते भी।। अर्पित है ये जीवन सारा, साँस-साँस इठलाती है। कोण-कोण फैला उजियारा, झूम रही डाली-डाली। नभ में तारों की मालाएँ रात दिव्य प्रिय मतवाली।। तन-मन आकुल आलिंगन को, गोरी बात बनाती है। मधु-उत्सव की मदिर उमंगें, नेह नयन प्रिय बरसाते। प्रेम पालने उन्नत होते, रति जैसे हम मुस्काते।। चंदा भी अठखेली करता, निशा प्रेम की पाती है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री :...