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कविता

वक्त कहाँ
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वक्त कहाँ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम्हें सोचने का वक्त कहाँ तुम्हें भूलने का वक्त कहाँ तुम्हें बुलाने का वक्त कहाँ आ जाते तुम ख्वाबों में तो अच्छी बात थी तुम्हें मिलने का अब वक्त कहाँ। तुम्हें कुछ कहने का वक्त कहाँ तुम्हें कुछ सुनाने का वक्त कहाँ समझ लेते खुद ही दिल की तन्हाइयों को तो अच्छी बात थी गम सुनाने का अब वक्त कहाँ। दिल लगाने का वक्त कहाँ दिल बहलाने का वक्त कहाँ रूठ कर मनाने का वक्त कहाँ तुम खुद ही इश्क कर लेते हमसे तो अच्छी बात थी बार-बार इजहार करने का वक्त कहाँ। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
चक्षु बंद कर मैं तुम्हें पढूँगा
कविता

चक्षु बंद कर मैं तुम्हें पढूँगा

प्रदीप कुमार अरोरा झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तो हूँ कर्म पथ का राही, नित जीवन के स्वप्न बुनूँगा, कहते जाओ जो कहना है, सबकी मैं हर बात सहूँगा। मेरी चुप्पी ताकत मेरी, तुम चाहो कमजोरी कह लेना, यही आचरण कवच है मेरा, इसे धारण मैं किये रहूँगा । दिल ही तो है दिल की बातें, आकर मुझसे कह लेना, संकेतों की वाणी सुन लेना, समर्थन के ही शब्द कहूँगा। घर मेरा सराय नहीं है, आओ तो आकर मत जाना, बिन लहरों के कहो बालू पर, नौका बन मैं कैसे बहूँगा। मेरा लक्ष्य तेरा हो जाये, हो तेरा लक्ष्य फिर मेरा, पहुँच शिखर तुम लहराना, ध्वजदंड-सा मैं तुम्हें धरूँगा। दिल ही तो है दिल की बातें, जब दुनिया दोहराएगी, तब-तब बाहुपाश में लेकर, चक्षु बंद कर मैं तुम्हें पढूंगा। परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : बैंक अधिकारी प्रकाशन ...
मिट्टी के घर
कविता

मिट्टी के घर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी खेल-खेल में, मिट्टी के घर बनाती है। और दूसरे ही पल, गिरते ही, जिंदगी बदल जाती है। जिंदगी खेल-खेल में, मिट्टी के घर बनाती है....। कितनी हसरतों से, सहेज कर सपनों को, महलों को धीरे-से थपथपाती है। नन्ही-सी एक ठेस से, रेत-सी जिंदगी की तस्वींरें बदल जाती है। जिंदगी खेल-खेल में, मिट्टी के घर बनाती है....। हर बार बिखर के, फिर से, सपने सहेजती है। जिंदगी के खेल में, रेत-सी कितनी बार, बनती और बिगड़ती है। लेकिन यह खेल, फिर भी...कहां छोड़ती है। जिंदगी खेल-खेल में.... परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
ये आंखे
कविता

ये आंखे

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** प्रकृति की अनमोल रचनाओ मे से एक है ये आंखे, एक दूसरे का साथ निभाने की मिसाल है ये आंखे! प्यार जताने की क्षमता रखती है ये आंखे, गुस्सा दर्शाने का भी जरिया है ये आंखे! साजन के प्रति प्यार से भरी है ये आंखे, भाई के प्रति दुलार से भरी है ये आंखे! बच्चो के प्रति ममता दर्शाती है ये आंखे, दुष्टो पर अपना क्रोध बरसाती है ये आंखे! साथ कैसे निभाया जाता है सिखलाती है ये आंखे, खुशी के आंसू हो या नमी गम की, एक साथ भर आती है ये आंखे! जरा संभाल कर रखना इन आंखो को, क्योकि मरने के बाद भी जिन्दगी दूसरो की रोशन कर जाती है ये आंखे! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
कही लगता नहीं
कविता

कही लगता नहीं

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सीने से लगाकर तुमसे बस इतना ही कहना है। की मुझे जिंदगी भर तुम अपनी बाहों में रखना।। मेरी साँसों में तुम बसे हो दिलपे तुम्हारा नाम लिखा है। मैं अगर खुश हूँ मेरी जान तो ये एहसान तुम्हारा है...।। मुझे आँखो में हरपल तेरी ही एक तस्वीर दिखती रहती है। दिल दिमाग पर तू ही तू हर पल छाई रहती है।। भूलकर भी मुझे छोड़ने का तुम कभी इरादा मत करना। वरना मेरी मौत का पैग़ाम तुझे जल्दी ही मिल जायेगा।। देख नहीं सकता तुझे मैं अब किसी और के बाहों में। क्योंकि ये दिल अब तेरे बिन कही और मेरा लगता नहीं।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंद...
दौर ए ज़िन्दगी
कविता

दौर ए ज़िन्दगी

रुखसाना बानो अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर) ******************** एक दौर वो भी था ज़िन्दगी का, बातों की कीमत समझते थे लोग। हाँ में हाँ कम मिलाते थे लोग, शाम होते ही चौपले सजाते थे लोग। चलता था दौर गुफ्तगू का, अपनी-अपनी उलझन सुलझाते थे लोग। मुलाक़ातों का सिलसिला था, पड़ोसी के घर आते-जाते थे लोग। दुःख हो या सुख हो, शादी हो या मय्यत, मिलकर रस्म निभाते थे लोग। गिले-शिकवे भी बहुत होते थे, बाद नाराज़गी के हँसकर गले लगाते थे लोग। घृणा, द्वेष तो था कल भी, प्रेम से ईर्ष्या की आग बुझाते थे लोग। लो आया दौर तरक्क़ी का, स्वार्थ में दूसरों को गिराने लगे हैं लोग। महफिले तो बहुत सजती हैं आज भी, अब गले कम लगाते हैं लोग। बस हाथ ही तो अब मिलते हैं, नफरत के दिए दिल में जलाते हैं लोग। रिश्ता कितना भी हो करीब का, अब बहुत दूर का बताते हैं लोग। परिचय :-  रुखसान...
हरियाली
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हरियाली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अस्त हुआ रवि अंबर मे ढल आई है शाम चलो-चलो रे कि वृदंवो अपनी-अपनी धाम धीर धीर घटा घनघोर आए अमर अवनी के भूतल में हरी-हरी हरियाली छाई वसुंधरा के अंतर तल में गाओ गाओ खग वृदो गाओ तुम गान करने स्वागत वर्षा ऋतु का मधुर गाओ पणो पुष्पो हर क्षण अवनी निखरी पाकर जल कण परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
वृक्ष
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वृक्ष

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्राण वायु भण्डार वृक्ष हैं जीवन के आधार वृक्ष हैं देते हैं वे शीतल छाया सुख का शुभ संसार वृक्ष हैं फल प्रदान करते हैं अगणित स्वप्न करें साकार वृक्ष हैं फूल पर्ण शाखा फल या जड़ इन सबका का आगार वृक्ष हैं जीव-जन्तुओं को आमंत्रण देते बारम्बार वृक्ष हैं विहग बनाते नीड़ डाल पर जग में बहुत उदार वृक्ष हैं अंग-अंग इनका उपयोगी सतत करें उपकार वृक्ष हैं कभी पालना बन जाते हैं कभी बनें अंगार वृक्ष हैं जब 'रशीद' आरी चलती है सहते दुखद प्रहार वृक्ष हैं परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोव...
देख सुन कभी
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देख सुन कभी

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बहती हवा को कभी सुना है नही सुना न अब सुनो वो गीत जीवन के गाती है। खिले हुए फूलों को कभी गौर से देखा है नही देखा न अब देखो होते उसमे जीवन के रंग है। उगते सूर्य की सुगंध को कभी महसूस किया नही न अब करो उसकी सुगंध रश्मियों के साथ आंखों से अन्तस् में उतर जाती है। बारिश की किरणों से आलोकित हुए कभी नही न अब भीगना बारिश में सारे शरीर से प्रकाश की किरणें फूटने लगती है देखा कभी प्रसव वसुधा का नही न देखना उसकी कोख से नवांकुर कैसे निकलते है। आत्मा का नृत्य देखा कभी नही न कर कुछ परोपकार होंठो पर वो नृत्य कर रही होती है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पु...
जनक दरबार
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जनक दरबार

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** दरबार सजा मिथला नरेश का धनुष रखा महादेव का बैठे थे अनेक भूप जो थे बडे़ कुरुप उन्हीं में था कमल सा रुप राम लखन का सुंदर स्वरुप सीता को भाया राम रुप सामने उनके थे सब कुरुप दरबार में शंखनाद हुआ शक्ति दिखाने का वक्त हुआ राजाओं ने आजमायी ताकत आ गई उनकी आफत पूरी ताकत लगा कुछ नहीं मिला धनुष उठाना तो दूर नही हिला सारे राजा हो गए बेकार जनक के मन में था हाहाकार सोचा मेरा गलत था विचार तभी उठे राम सुकुमार पहले किया राम धनुष प्रणाम फिर किया किसी से नहीं हुआ काम एक हाथ से धनुष उठा दिया चढ़ा चाप मध्य से तोड़ दिया जनक सुता संग नाता जोड़ दिया अचानक आ गयीं हों आंधी महादेव की भंग हो गई समाधि तीनों लोक एक साथ हिल गए मानों देवासुर आपस में भिड गए बिष्णु सहित शेषनाग भी डोल गए ब्रहमा भी आसन छोड़ गएगए परशुराम को आभास हुआ महाद...
मेरी कलम नहीं मेरे वश में’
कविता

मेरी कलम नहीं मेरे वश में’

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी कलम नहीं मेरे वश में मुझे ‘क’ से कविता लिखनी थी, कविता के लिए कविता लिखनी थी। बड़े शब्द सँजोए थे मैंने, एक प्रेम धार जो बहनी थी। पर ‘क’ से कातिल दिखा गई जो खाते हैं झूठी कसमें....... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ख’ से खुश मिजाज होकर मुझको, कुछ गीत खुशी के लिखने थे, बोली मुझसे खामोश रहो, तुम कुछ तो धीरज धरा करो। जो खास तुम्हारे बनते हैं, धोखा है उनकी नस-नस में........... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ग’ से गर्वित होकर मैं कुछ क्षण, अपने गणतंत्र पे इतराया। बोली चौकन्ने रहो सदा, बुन रहा जाल काला साया। जो पाक नाम से दिखते हैं, है ज़हर भरा उनके मन में.......... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘घ’ से घर लिखना चाहा तो, बोली घमंड किस बात का है? माँ-बाप रहें वृद्धाश्रम में, बेटा-बंगले में सोता है...
इंतजार हैं मुझें
कविता

इंतजार हैं मुझें

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** कशमकश हैं जिंदगी में और उम्मीद की एक आश भी। टूटकर मैं अभी बिखरी नहीं हूं ना भूली मैं कोई तलाश भी।। लम्हा तो हर कोई जी लेता हैं जिंदगी जीना सच इतना आसान नहीं। किसे हमसफर कहें ये तो पता नहीं दोस्त से भी समझना कुछ आसान नहीं।। दर्पण मन को भी अब एक मनपसंद दर्पण सा सखा चाहिए। जिंदगी जीने के लिए इस भीड़ में एक हमदर्द सा दोस्त चाहिए ।। दुनिया को समझनें का ज्यादा हुनर नहीं हैं मुझमें। मैं कहीं लड़खड़ा ना जाऊ इस जहां में आकर कोई इन हाथों को थाम ले ऐसा सच्चा एक दोस्त चाहिए।। अपनों से गिला नहीं हैं मुझें जिंदगी में बस किस्मत में लिखा एक साथ चाहिए। मैं समझ सकूं उस नादा मन को उस दोस्त में मुझें वो खुदा चाहिए।। पता हैं मुझें हर मोड़ पर नजरें गड़ी हैं नजरों से बचा सके वो हमसफर चाहिए। मैं उत्...
जीवन साथी
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जीवन साथी

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** बात दिल की कहे बिना समझ जाता है सुख हो या दुख हरदम साथ निभाता है सच्चा जीवन साथी वही तो कहलाता है। कड़क धूप में शीतल पवन बन जाता है पतझड़ में बसंत का एहसास दिलाता है सच्चा जीवन साथी वही तो कहलाता है। रोने पर रोता जो हंसने पर मुस्कुराता है साया बनकर हर कदम साथ निभाता है सच्चा जीवन साथी वही तो कहलाता है। संग होने से जिसके हर ग़म मिट जाता है स्पर्श से जिसके तन-मन खिल जाता है सच्चा जीवन साथी वही तो कहलाता है। निराशा में आशा की किरण बन जाता है जीवन की हर इक बला से जो बचाता है सच्चा जीवन साथी वही तो कहलाता है। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
मिला जो मुझे तेरा साथ
कविता

मिला जो मुझे तेरा साथ

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** मिला जो मुझे तेरा साथ मेरी जिंदगी सुथर गई मिला जो मुझे तेरा प्यार मेरी तकदीर बदल गई मिली जो मुझे तेरी हसरत मेरा सपना साकार हुआ मिली जो मुझे तेरी ख़्वाहिश मेरी कहानी बदल गई मिली जो मुझे तेरी खुशी मेरा गम निकल गया मिला जो मुझे तेरा सपना मैं भी हो गया तेरा अपना मिली जो मुझे तेरी साँस मेरी धड़कन बदल गई मिला जो मुझे तेरा हर लम्हा मेरी रूह बदल गई मिली जो मुझे तेरी प्रीत मेरी दुनिया ही बदल गई तेरा हर लम्हा मेरा हो गया मेरा हर सपना तेरा हो गया तेरी हर कहानी मेरी हो गई मेरी हर ख़्वाहिश तेरी हो गई तेरा हर गम मेरा हो गया मेरी हर खुशी तेरी हो गई तेरी हर साँस मेरी हो गई मेरी अपनी रुह तेरी हो गई तेरी प्रीत मेरी हो गई मेरी तकदीर तेरी हो गई मिला जो मुझे तेरा साथ मेरी जिंदगी सुधर गई मिला जो मुझे तेरा प्यार मे...
लड़की
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लड़की

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** मैं हूँ आज की लड़की, मेरे भी कुछ अरमान है, मेरी भी कोई उड़ान है, मेरा भी सम्मान है। हाँ मैं जानती हूँ इस दुनिया में कुछ शैतान हैं, पर इसमें मेरा क्या अपराध है, या फिर इनकी मानसिकता ही खराब है, क्या कोई दबाव है? तुम लड़की हो तो चुप रहो, तुम लड़की हो तो रुक जाओ, लड़की कोई पुतली नहीं, उसकी आँखें धुंधली नहीं। अरे अब तो बदलो, लड़की को पढ़ाओ, अपने विचारो को बढ़ाओ, कुछ तो खुदको याद दिलाओ। क्यों लड़की किसी पर निर्भर है, क्यों उसकी आँखों में आँसू है, अब बन्द करो ये सब, बहुत देर हो गई है अब। जिसे देखो लड़की को सिखाता है, लड़की को बताता है, लड़की को ही समझाता है, उसे डराता है। काम काम है, उसका कोई लिंग नहीं, मानसिकता पिछड़ी है, उसमें कोई बदलाव नहीं। जब लड़की घर की इज्ज़त है, तो पहले उसकी तो ...
करें योग रहें निरोग
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करें योग रहें निरोग

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** जगत गुरु की पथ में हमने, आगे कदम बढ़ाया है । योग को भारतवर्ष ही नहीं, विश्व में पहचान दिलाया है ।। जोड़ सकें तन मन आत्मा को, योग वही कहलाता है । जुड़ जाये आपस में तो फिर, भेद सभी का मिट जाता है ।। योग सहज साधन है ध्यान की, हमने साधना से यह पाया है योग को भारतवर्ष ही नहीं ..... करता है जो योग हमेशा निरोग वही रह पाता है । तन के सारे कष्टों से, मुक्ति उसको मिल जाता है ।। बात बड़ी सच्ची है यह, इसको हमने अजमाया है योग को भारतवर्ष ही नहीं ... तन हो स्वस्थ वचन हो मस्त , यूं ही निर्मल हो जायेगा । शारीरिक मनोविकार जैसे , ध्यान से ही भाग जायेगा ।। नरक के जगह स्वर्ग बनाकर, प्रेम का अलख जगाया है योग को भारतवर्ष ही नहीं .... सम्प्रदाय मजहब धर्मों से, योग का ना कोई नाता है । सीमाओं में कोई बंधन...
तुम्हारे रास्ते से
कविता

तुम्हारे रास्ते से

प्रिया सिंह लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम्हारे रास्ते से ज़िन्दगी आबाद बाबूजी। इसी दर्जा मिरी करते रहें इमदाद बाबूजी।। मिरे जीवन में उन का मर्तबा इतना मुक़द्दस है, ख़ुदा सब से है आला और ख़ुदा के बाद बाबूजी।। मुसीबत से हमेशा आपने लडना सिखाया है, कहीं देखा नहीं है आप सा उस्ताद बाबूजी।। मिरे अंदर नहीं था कुछ जिसे मख्सूस कहते सब बदोलत आपके फिर भी मिली है दाद बाबूजी हमेशा सर पे मेरे आपका ही दस्ते शफ़क़त है करूँ फिर क्यों भला मैं ग़ैर से फ़रियाद बाबूजी परिचय :-  प्रिया सिंह निवासी : लखनऊ, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहा...
सिसकियां
कविता

सिसकियां

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** हर तरफ अंतहीन तबाहियों का दौर है, लेकिन यहां चारों ओर अजीब शोर है, परमात्मा को टुकड़ों-टुकड़ों में बांट कर, धर्म के ठेकेदार एक दूसरे को बताते चोर हैं, इंसानियत से जिनका कोई नहीं वास्ता, ऐसे ही सिरफिरों का हर जगह जोर है, मजहब की दीवारें खड़ी कर दी जिन लोगों ने, वही बताते रहे, कौन चौकीदार और कौन चोर है... तुम्हारी ताकत से हमें कोई शिकवा नहीं, हमारी मोहब्बत में फिर जहर क्यों घोलते हो, कुर्सी की लड़ाई में तुम सिरफिरे बनकर, खतरे में हमारा धर्म, क्या खूब बोलते हो, फिरंगियों की दास्तां से ज्यादा दर्द अब होता है, राजा रहते महलों में, आम इंसान भूखा सोता है, तकलीफ हमारी दूर करने का वादा खूब होता है, बाबा पर उठती अंगुली, बापू नोटों में छप रोता है, परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार...
बरखा का स्वागत
कविता

बरखा का स्वागत

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** सांवर-सांवर रहे हैं मेघ सज धज के खड़े हैं, नव के आंगन में ढेर। समीर अब नाच रही है लेकर बयार की बारात, गली-गली थिरकने लगी, धरा के आंगन की, खड़कने लगे खिड़कियों के द्वार, कपाट। सांवर-सांवर रहे हैं मेघ... तरु इठलाने लगे, शाखाओं के झंडे लहराने लगे, सौंधी बयार के साथ। मेघ उमड़-घुमड़ रहे हैं, धरा का जल अभिषेक करने को, आंधी चल रही है जैसे अल्हड़ चंचल जवानी। तपीश अब भाग रही है, सरपट सिर पर पैर रख। नदी की लहरें अब घूंघट उठा रही हैं, इशारों इशारों में बरखा को बुला रही है। दूर क्षितिज किनारे दामिनी कर रही है तड़िता का नाच देखो प्रकृति सुंदर गीत गा रही उज्जवल सी बरखा आ गई। परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थे एवं कवियो...
बजरंगबली का गुणगान
कविता

बजरंगबली का गुणगान

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** हमारे वीर महाबली बजरंगबली की है यही पहिचान, लाय संजीवनी बचाये श्री राम के प्यारे लखन की जान। ये इस दुनियाँ में है बुद्धिमान, बलवान और महान, मेरे इस महाबली बजरंगबली को पूजे सारा जहाँन। हिमालय पर जाकर जिसको संहारे वह था माल्यवान, नदी में मगरमच्छ का करके संहार उसे गये जान। हमारे हिंदु, हिंदी और हिंदुस्तान की है ये शान, इनको पूजे सदा हिन्दुस्तान की सारी नर-नारी, ये बजरंगी संकट में हमेशा रक्षा करे हमारी। बजरंगबली सीता जी की खोज करके श्रीराम को बतलाये, प्रभु श्री राम ने हनुमंत को अपने सह्रदय गले लगाये। ये बजरंगली सीता जी लंका से लाने की कसम खाये, बानरी सेना हनुमान जी व श्रीराम का जयकारा लगाये। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह ...
प्यारी मां
कविता

प्यारी मां

सपना दिल्ली ************* आपके होने से ही वजूद है मेरा नौ महीने कोख में रख मेरे लिए ही तो हर दर्द सहा आपने... आपके हाथों में ही पाया मैंने पहला स्पर्श आपकी ऊंगली पकड़ कर चलना मैंने सीखा हर बुरी नज़र से बचाकर आपने आंचल में छिपाया .. हालात से नहीं डरना मुकाबला करो डटकर आपने  मुझे सिखाया.... गलती करने पर मुझे डांटा कभी प्यार से गले लगाया कभी मां बनकर कभी दोस्त बनकर परेशानियों  को आपने सुलझाया... आगे चलकर ठोकर न खाऊँ बिना सहारा लिए मुझे बढ़ना सिखाया इसलिए... हिम्मत जब हारने लगी कभी हौंसला बढ़ाकर साहस दिया.. मंजिल छू लूं मुझे उस काबिल बनाया । परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्...
प्रेम
कविता

प्रेम

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** प्रेम की न कोई भाषा है न कोई होता संवाद, यह है केवल अनुपम, सुखद एहसास, न होता कोई अनुबंधन न होता कोई इकरार , यह तो है बस अनुभूतियों का पावन ज्वार, मौन का है यह अद्भुत संसार, वात्सल्य का है अनुपम संचार, प्रेम जीवन सागर में लहरों सा उमड़ा है, प्रकृति के अणु अणु में रचा बसा है सब में अन्तर्हित रह, यह भाव चरम है परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
कवच समान है पिता
कविता

कवच समान है पिता

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बच्चे की माता गर है प्रथम शिक्षिका तो कवच समान है पिता भी उसी का तभी तो नाम के आगे उसके जुड़ा ही रहता है नाम पिता का ll१ll माता होती गर धरती उसकी पिता होता आकाश उसी का संस्कार यद्यपि देती माता संघर्ष उसे पिता सिखाता ll२ll कभी आग का गोला बनता श्रीफल-सा कभी कोमल लगता संवेदनाओं के बंधन बांधे होता रिश्ता पिता-पुत्र का ll३ll उंगली पकड़कर उसे पिता बाहरी दुनिया परिचित कराता प्रसंग विशेषी सख्त और कठोर बनने की सीख ही देता ll४ll तपा-तपा कर कुंदन जैसा पिता स्वयं प्रकाशी उसे बनाता अपने से भी आगे निकलता पुत्र देखने की ख्वाहिश रखता ll५ll परिचय :- माधवी तारे निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
योग और जीवन
कविता

योग और जीवन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** संत विकसित ध्यान की एक पारंपरिक पद्धति! योग नियंत्रित करने का साधन तन मन गतिविधि!! पतंजलि ऋषि ने किया शुभ योग का आविष्कार! स्वस्थ रखे तन को योग, मन को दे शुभ्र विचार!! योग है तन मन चेतना आत्मा का संतुलन! करे मानसिक भावनात्मक व्याधियों का शमन!! इडा पिंगला सुषुम्ना शक्तिशाली ऊर्जा स्रोत! ये नाड़ी जो साधा, हुआ परमात्मा- संयोग!! ऋषि-मुनियों ने किया बहुत सदा जीवन में योग! कलि-युग में उपयोगी बड़ी, प्राणायाम सुभोग!! तन मन को यह जोड़ता परमात्मा से संयोग! तन मन को देता ताजगी और भगाता रोग!! नित समय पर कर इसे, सुंदर स्वास्थ्य पाएंँ! नित योग अति लाभकारी, सभी इसे अपनाएँ!! प्राणायाम और आसन योग के प्रमुख अंग! इन्हें अपनाकर जीतेंगे जीवन की हर जंग!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमरा...
योग गीत
कविता

योग गीत

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** योगासन अपने जीवन में लाएँगे, जीवन अब सबका सुखमय बनाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। पतंजलि के योग से हो रोग की मुक्ति, सूर्य नमस्कार से हो चित्त की शुद्धि। सर्वेभवन्तु सुखिनः का गीत गाएँगे, धरती को देखने गगन के देव आएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। कपल भाँति, भ्रामरी, अनुलोम और विलोम, बहिर-अंग योग आसन के ये यम नियम। प्रत्याहार-ध्यान से आरोग्य पाएँगे, स्वस्थ तन-मन पुष्ट काया पाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। मुनियों ने भारत में योग सिखाया, योग से प्रथम सुख निरोगी काया। स्वस्थ योगी शांति-दूत जग जगाएँगे। कल्याणकारी विश्व धरोहर बनाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर ...