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कविता

फूलों का हाल
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फूलों का हाल

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गये थे आज मंडी में लेने को कुछ फूल। वहां जाकर देखा तो एकदम दंग रह गए। की जो फूल लेने को हम यहाँ आये है। वो फूल पहले से ही पैरों में पड़े हुए है। अब मैं कैसे उन्हें लू प्रभु चरणों के लिये।। लगता है हमें आजकल किसी की भी कीमत नहीं। हर चीज को लोगों ने व्यापार जो बना लिया। तभी फूल जैसा नाजुक पड़ा है लोगों के पैरों में। जब प्रभु को भी नहीं बख्शा, तो हम सब की औकात हैं क्या।। इसलिए इस कलयुग में नहीं दिखते है प्रभु। क्योंकि मंदिरों को भी लोगों ने व्यापार बन लिया। अब रहेगी कैसे आस्था प्रभु में लोगों की। क्योंकि पूजा की सूचीयाँ लगा दी है जो मंदिरों में।। गए थे फूल लेने को, पर खाली हाथ आ गये। नहीं चढ़ाना अब प्रभुको, फूल पैसे आदि। जो करते थे खर्च हम, इन सब चीजों में। अब उन पैसों से, हम बच्चों को पढ़ायेंगे। और उन्ह...
मेरे हमसफर
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मेरे हमसफर

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** तुम संग बंधी जिंदगी की डोर है हम हैं साथ तो हर दिन एक नई भोर है नदियों जैसा हो संगम अपना संग एक दूजे के रहना ऐसा अटूट बंधन बनाएंगे ऐ मेरे हमसफ़र बस यूं ही साथ निभाएंगे... जीवन की इस कठिन डगर को हंस खेलकर बिताएंगे कभी उदासी में मुस्कुराएंगे तो कभी मुस्कुरा कर उदास हो जाएंगे इसी विश्वास से जीवन की नैया को पार लगाएंगे ऐ मेरे हमसफर बस यूं ही साथ निभाएंगे.... 'मैं' 'तुम 'से ऊपर उठकर 'हम'का सम्मान बढ़ाएंगे आए घड़ी कोई अग्नि परीक्षा की तो कदम से कदम मिलाएंगे सात फेरों के अनमोल वचनों को कभी नहीं भुलाएंगे ऐ मेरे हमसफ़र बस यूं ही साथ निभाएंगे.... परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कव...
पाँव आगे धरने से पहले
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पाँव आगे धरने से पहले

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** पाँव आगे धरने से पहले संभलना चाहिए पाँव आगे धरने से पहले संभलना चाहिए बोलने से पहले वाणी को परखना चाहिए है कर्म ही आधार जब सारे सृजन का विश्व में भाग्यवादी व्यूह से बाहर निकलना चाहिए चलके मंज़िल ख़ुद तुम्हारे पाँव तक आ जाएगी लक्ष्य की ख़ातिर मगर अरमा मचलना चाहिए शासकों में गर समाहित सोच हो धृतराष्ट्र की स्वर बग़ावत का ज़माने में उबलना चाहिए सिर उठा पाए न दुश्मन सीख लो इतिहास से साँप के सपोले का भी फन कुचलना चाहिए ज़िंदगी संघर्ष है इस सत्य को स्वीकार कर मुश्किलों से जूझ कंचन सा निखरना चाहिए आपसी सहयोग सामंजस्य को साहिल बना दौर दुष्कर हो तो मिल करके उबरना चाहिए परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू व...
आखिर क्यों…?
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आखिर क्यों…?

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** बने अगर विश्वस्तरीय मोहल्ला क्लीनिक तो विद्यालयों में टीकाकरण होता क्यों? बने अगर उत्कृष्ट चिकित्सालय तो निजी चिकित्सालय में जाते परिवार आपके क्यों ? प्रारूप शिक्षा का आप सराहते रहते तो नकल विधि-निदेशक सिखाते क्यों? सराहा कहते प्रारूप शिक्षा का विश्व ने तो निजी विद्यालयों में निज बच्चे पढ़ाते क्यों ? व्यवस्था स्वास्थ्य की उत्कृष्ट आपकी तो केंद्र से सहायता मांगते हो क्यों ? स्वयं न कर पाए प्राणवायु व्यवस्था तो विधायक आपके छुपाए पकड़े जाते क्यों ? कर्मठता अगर थी आप मैं तो न्यायालय द्वारा शुतुर मुर्ग कहलाए क्यों ? दिया आदेश उच्चतम न्यायालय ने तो जांच (औडिट) होगी तो घबराते आप ही क्यों ? जाते नहीं हो क्षेत्रों में अपने तो मात्र प्रेस वार्ता ही करते हो क्यों ? बने हो स्वयं अकर्मण्य अति तो दूसरों पर र...
सत्य कहूँ तो जग छूटे
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सत्य कहूँ तो जग छूटे

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य कहूँ तो जग छूटे, अपने अपनों से रूठे। सीख न पाए हम, मीठे झूठ का हुनर। कड़वे सत्य बोलूं, तो अपने हमसे रूठे। सत्य कहूँ… सांच पड़ गया भारी, छीना बहुत से रिश्ते। जो मेरे अजीज थे, दिल हमसे उनके टूटे। सत्य कहूँ… हुआ बन्द बटुए में, जो बोला था सच। एकटक स्वयं को देखूं, नेत्र भरे दम भी घूटे। सत्य कहूँ… कहूँ साँच अकेले ही, नहीं दे पाता प्रमाण। बाहुल्यता जिसकी रही, उसमें बने हम झूठे। सत्य कहूँ… जो आंखों ने देखा, पर नहीं देखा किसी ने। उस जघन्य को कैसे कहूँ, सोच अन्तः अश्रु फूटे। सत्य कहूँ … मैंने सोचा चौबीस कैरट, होता है एकदम खरा। पर समाज में चल रहा, मिलावट के बलबूते। सत्य कहूँ… सत्य विजय पाता है, इतिहास इसका गवाह। अंत समय तक सत्य कहूँगा, चाहे दुनिया हमको लूटे। सत्य कहूँ … परिचय :- अशोक...
मां
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मां

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** मां की शुरुवात कहां से करु समझ ही नहीं आ रहा मुझे मां क्यों वो तो मुझे दुनिया में लेने से पहले ही जानती है... सबको लेकर चलना पड़ता है। इस जीवन के सफर में, पापा, दादी, दादा, बुआ, बड़ी मां, बड़े पापा बेटा, बेटी सबकी सुनती है। मां कभी गलती को छुपाती तो कभी बिना गलती के ही चिल्लाती। मां कभी दोस्त बन जाती है तो कभी बहन बन जाती है मां... एक दिन भी अपने बच्चों को न देखे तो बैचेन हो जाती है तू मां इतनी चिंता क्यों करती है तू अपने बच्चों की तू मां खुद के लिए भी तो समय ले मां खुद की इच्छा का भी तो कभी कुछ बना ले मां... तू मां बस अपने बच्चों के लिए जीती है खुद के लिए भी एक बार जी ले। मां तेरे भी तो होगें कुछ सपने मां एक बार बता दें मां... एक दिन तेरी बेटी भी चले जायेगी मां जैसे तू एक घर छोड़ कर दूस...
मन की पीड़ा
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मन की पीड़ा

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जब मन की पीड़ा आंसू बन कर गालों पर आती है यही सिसकी कहलाती है सिसकते है हम बिछड़े प्रियतम की यादों में खो जाते हैं हम याद कर उनकी बातों में आंसू सिसकी की शान बढ़ाते हैं बिना रुके गिरते जाते हैं कुदरत के आगे नही चलती किसकी दुखी आत्मा की आवाज होती है सिसकी कौन याद करता है ये हिचकियां बयां करती है और हमारे दिल का दर्द ये सिसकियां बयां करती है जीभर के रोओ मत सिसका करो किसी बेवफा की याद में यूं न तड़पा करो सिसकियों में हम अपने ग़म पीते हैं मन मारकर जीते हैं परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
अच्छा होता
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अच्छा होता

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** कितना अच्छा होता जब सब अच्छा होता जो हम अपनी नजरों से देखते हैं वो सब सच्चा होता ख्वाबों को सच मान लेते हैं हम मगर ख्वाब हकीकत होते तो कितना अच्छा होता किसी मिट्टी की खुशबू की तरह काश इंसान का चरित्र भी होता जो हर वक़्त महकता होता तो कितना अच्छा होता पर्दे के पीछे की दुनिया भी काश उतनी ही खुबसूरत होती जो सामने पर्दे के है नजारा न छिपता किसी से कोई तो कितना अच्छा होता जो मन में है वो जुबां भी बोले जो जुबां से निकले वो मन का हो बेमुरव्वत न हो कुछ भी किसी के लिए तो हृदय से हृदय तक का तार कितना अच्छा होता नजरें कुछ और जेहन कुछ और कहे इरादा कुछ नजारा कुछ और कहे कैसी है ये कहानी जहां कि बातों में संशय न होता तो कितना अच्छा होता परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) घोषण...
मेरा वादा
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मेरा वादा

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** मन की बात को, दिल में सजाऊँगा। हर रोज तुम्हें देखने, तेरे गली आऊँगा। देना मेरा साथ प्रिय, तुझे अपना बनाऊंँगा। पहली मुलाकात के वक्त, फिर से याद दिलाऊंगा। जो वादा किया हूँ, निकाह कर ले जाऊँगा। चाहे कुछ भी हो सनम, तुझे छोड़ नही पाऊंगा। तुम मेरी हो मैं तेरा हूँ, ये बंधन छूटने नही दूँगा। कोई भी आफ़त आये, जीवन भर साथ निभाऊँगा। तू पानी है, मैं प्यासा हूँ, सबको ये बात बताऊँगा। प्रेम एक पवित्र रिश्ता हैं, जन-जन को समझाऊँगा। परिचय :-डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...
अलमारी में रखे पुराने खत
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अलमारी में रखे पुराने खत

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** घिर आई तनहाई, मन को मैं कुछ इस कदर बहलाई अलमारी में रखे पुराने खतों से नज़रें मेरी टकराई याद आया गुज़रा ज़माना, समेट लाया यादों का ख़ज़ाना क्या दौर था मीठी यादों का, सिलसिला खतों का आना जाना सगाई के बाद पिया जी की आती, प्रीत भरी पाती हुई शर्म से लाल, मन की हर कली कली खिल जाती आज बांचन बैठी प्रीत भरे खत, मन फिर गुलज़ार हुआ रोम-रोम हो उठा रोमांचित, खत ने दिल का तार छुआ शादी के बाद पिता का पहला खत, खत में आशीष बसा मां बाबा के घर आंगन को भूल, बेटी पिया का आंगन सजा सास ससुर है मां बाबा तेरे, बाबा ने खत में लिखा दो ड्योढ़ीयों से बंधी, दो घर की लाज मै, ये बाबा से सीखा मां का खत पढ़ते ही, मैं आंसुओं से सराबोर हुई कलेजा निकाल रख दिया मां ने खत में, मै हर अक्षर को छुई मां के खत में हर अक्षर पर थी आंसुओं की स्याह...
झरोखे के नज़दीक
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झरोखे के नज़दीक

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो झरोखे के नज़दीक बैठी रही बारिश की बूँदों के इंतज़ार में, प्रीतम के दीदार में। उम्मीद कि जब बौछारें आएँगी तो उसका मुरझा चुका प्रेम, उन बारिश की बूँदों से फिर पनप जाएगा, लहलहा उठेगा उसका मन प्रीतम के आगमन पर। पर बूँदों ने भिगोया सिर्फ़ उसके आँचल को धोया उसकी आँखों के काजल को। मन पर बेरहम एक बूँद भी न पड़ी, और उसका मुरझाया हुआ प्रेम सूखता रहा। फिर भी झरोख़े के नज़दीक बैठी रही वो, बारिश की बूँदों के इंतज़ार में, प्रीतम के दीदार में।। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रका...
क्यूं नहीं आए सपने में
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क्यूं नहीं आए सपने में

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मेरे लाड़ले भगवान, कल क्यूं नहीं आए मेरे सपने में... आते तो जीवन खिल जाता, मेरा सखा मुझको मिल जाता, मैं तरस गई तेरे दरशन को। बडा सुरम्य दृश्य था..., पवन थी ठंडी ठंडी सी, और मोगरे की गंध भी, चमक रही थी चांदनी, और रातरानी की सुगंध भी, केसर की कई क्यारीयां थी, शोभा भी वहां की न्यारी थी, झूला था, बगिया सलोनी थी, वहां बस बिटिया मैं तुम्हारी थी। आते ही तुमको झुला देती, मां बनकर लोरी सुना देती, चिंताए तुम्हारी हर लेती, खुद को भी धन्य मैं कर लेती। भटका इंसान जा रहा कहीं, कोई चिंता तुझको हैं कि नहीं, लेकिन तुझको अब भी है विश्वास, मानवता रहेगी जिंदा इसीलिए तेरे होठों पर शरारती मुस्कान है, ले रहा है परीक्षा अपने भक्तों की, पर हरदम उनके साथ हैं। क्यों नहीं आए कल सपने में... आते तो जीवन महक जाता, मेरे सखा, सपना मेरा ...
पूछती हूँ रब से
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पूछती हूँ रब से

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पूछती हूँ रब से अकसर, मेरे ही साथ क्यों??? जब भी किसी को दिल से चाहा, उसी को मुझ से जुदा कर दिया। जब भी किसी का भरोसा किया, उसी में मुझसे छल किया। जब भी किसी का भला किया, बदले में सिर्फ अपयश ही मिला। जितना दूसरों को पास लाये, अपने से उतनी ही दूर हो गए। इतनी बड़ी इस दुनिया में, आखिर ये सब मेरे ही साथ क्यों? रब ने भी क्या खूब कहा, तूने जो भी सब किया, उसमें बस एक ही गुनाह किया,, क्यों बदले में दूसरों से उम्मीद करि? यहाँ कोई किसी का नही है रुचि!! तू कुछ भी कर, पर किसी से कुछ उम्मीद न कर। चाहे बदले में तुझे कुछ भी मिले, तू बस निःस्वार्थ कर्म कर, और उसी के पथ पर चल। मत सोच कभी की मेरे ही साथ क्यों? क्योंकि तेरे साथ ईश्वर है रुचि! तेरे साथ ईश्वर है परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप...
तूफान है…..!!
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तूफान है…..!!

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** काँप रही प्रकृति और 'वो' बिना काँपे, लगे है जुगत में, 'जीवन' की..... क्योंकि दोनो पर है जिम्मेदारी, कुटुम्ब' की किन्तु..... उसके लिए 'भविष्य' उजला है क्योंकि, वो पेड़ नहीं.... वो काँपता नहीं बल्कि देख रहा है अपने कुटुम्ब रूपी पेड़ के हरे पत्तों को उसके मासूम बच्चों को परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अभियक्ति गौरव सम्मान तथा शब्दप्रवाह उज्जैन द्वारा प्राप्त लेखनी का उद्देश्य : जानकारी से ज्ञान प्राप्त करना। घोषणा पत्र : मैं...
आजादी का मतलब क्या है
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आजादी का मतलब क्या है

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** आओ ऐसा पर्व मनाए सरहद के सब भेद मिटाएं चाहत रहे न कोई बाकी उत्सव ऐसा आज मनाएं आओ ऐसा...... भाईचारे की गुहार लगाएं प्यार लुटाए हिंसा मिटाएं होगी शांति वैश्विक रूप से स्नेह का ऐसा ध्वज बनाएं आओ ऐसा................ उलझे रिश्तों के सुलझाएं पर्व ऐसा कुछ कर जाएं बैर भाव सब पीछे छूटे बीता सतयुग फिर आ जाएं आओ ऐसा पर्व मनाए आजादी के अर्थ बताए अहसास की तरंग लुटाए प्रेम प्रीत से तिरंगा लहराए ताना बाना इसका है पावन मिलकर इसका मान बढ़ाए आओ ऐसा............ नन्हा कलियों को महकाए बेटियों को है आगे बढ़ाए आजादी के अर्थ यही है अपना अपना धर्म निभाए आओ ऐसा पर्व............ नेक रास्ता सबको दिखाए अंधियारे मे दीपक बन जाए भटके राही को अपनाकर मार्ग दर्शक बन मुसकाए आओ ऐसा पर्व............ मिलकर आज शपथ उठाए कभी किसी ...
महाभोज
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महाभोज

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** संगम के तट सूने है अब! कितनी माँऐ रोती!! भूख से बच्चे बिलख रहे अब! क्यो प्रकृति मां सोती!! लाशें सडती है रेतो मे ! श्वनो का महाभोज चलता है!! आह नही मिलती अग्नि अब! भू अम्बर रोता है!! इस धरती को पावन करने! गंगा माँ आयी थी! पापियों का पाप मिटाने! निर्मल जल लायी थी!! जिनके तट पर ऋषी मुनियों ने! खुद को पावन कर डाला!! आज उसी गंगा माँ के तट का! नजारा है, विभत्स करने वाला!! भूखे बच्चे रास्ता देखें! एक निवाला रोटी का!! महामारी ने जीवन छीना! कितने ही परिवारों का!! न घर मे आग बची है! न तावे पर रोटी है!! कितनी लाशें दबी हुई! वसुंधरा अब रोती है!! ये कैसा दुर्भाग्य हुआ है! ये कैसी महामारी है! ! जिसके जबडे मे फंसकर! सारी दुनिया हारी है!! समय बडा दुर्भाग्य पूर्ण है! प्रकृति भी क्यूँ निष्ठुर है!! शवसैय्या...
प्रेम
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प्रेम

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम का एक कठिन इतिहास रचा रचना कारों ने आज मनुज के जीवन का इतिहास बन गया कल्पित प्रेम प्रकाश किया है भाषा का श्रिंगार और काव्यों का जटिल विकास समर्पित कर डाला माधूर्य कवि ने कविता मे चुप चाप प्रेम का दे जीवन्त प्रमाण प्रकृति की बृहद छटा का राग इसी मे हरि ने ले अवतार दिया जन जन को प्रीति पराग भूमि की मूर्त कल्पना कर दिया जब माता का सम्मान तभी से राष्ट्र प्रेम का आज अभी तक गूँज रहा स्वरगान कहीं पर देश कहीं पर प्रिया कहीं माता की स्नेह प्रतीति कहीं पर वेद कहीं कूरान सभी सद्गग्रंथो मे ये गीत प्रेम है वह अनंत सी भेट दिया विधिने है जिसे समान मृत्यु से अमर लोक के बीच बना डाला इसने सोपान प्रेम है सर्व व्यापी कर्तार यही है मूर्त रूप साकार यही पाषाण सदृश्य कठोर यही निर्झरिणी निर्मल रूप ...
मीठी वाणी
कविता

मीठी वाणी

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** मीठी वाणी मीत मिलते, तीखी वाणी शत्रु पनपते। मीठी मीठी वाणी बोलिए जगत में मधुरता घोलिए। मीठी वाणी देव की जानी तीखी वाणी दैत्य निशानी। मीठी वाणी दिल मिलाए तीखी वाणी कहर बरपाए। मीठी वाणी औषधि बनती तीखी वाणी जहर उगलती। मीठी वाणी सबको भाती, जगत में सम्मान दिलाती। मीठी वाणी उपजे सुविचार, तीखी वाणी कुत्सित विचार। प्यारे तुम भी मीठा ही बोलो, पहले तोलो फिर मुख खोलो। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, र...
ये चमन में देखूँ
कविता

ये चमन में देखूँ

असमा सबा ख़्वाज लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** फिर से तारी है सितम अपने वतन में देखूँ इस वबा को तू मिटा दे, ये चमन में देखूँ ढेर लाशों का बना रूह लरज़ जाती है ज़िन्दगानी है फ़ना, मौत जिसे आती है ख़ून के अश्क हैं ग़मगीन बयाँबानी है फ़िक्र उसको है कहाँ जिसकी ये सुल्तानी है वो निगहबान है लेकिन वो हयादार नहीं जान लेवा है मगर वो तो वफ़ादार नहीं मेरे अल्लाह सबा, की ये दुआ है सुन ले ज़ालिमों को तू बना नेक, सदा है सुन ले परिचय :- असमा सबा ख़्वाज निवासी : लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
सुनाइ नहीं देता अब
कविता

सुनाइ नहीं देता अब

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "सुनाइ नहीं देता अब, कहीं सगीत का आलाप, लोगों की प्रतिभा भी, न दिखाती, कोई प्रताप, खुलते नहीं रोज की तरह, आज घरों के दरवाजे, जनमानस के चेहरों से, झांक रहा है, शोक संताप, नगर के रास्तों पर हंसती, खेलती थी, जो जिंदगी, बागानों में पेडो की छाव तले होता था प्रेमालाप, दीमक की तेरह खोखली, हो गईं जब, सब आशायें, मूक दर्शक बन गये हम, दूर से सुनते, रुदन, प्रलाप, जब अच्छा समय न रहा, तो ये समय भी न रहेगा, परमेश्वर की असीम कृपा से दूर होगा ये अभिशाप" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
चिंगारी
कविता

चिंगारी

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** आग से उठने वाली चिंगारी-- कुछ पल में बुझ जाती है-- कौन जानता है चिंगारी कहां और कैसे लगती है--- चिंगारियां से उभर कर आने वाला इंसान बहुत मजबूत होता है-- हर बार कोशिश की जिंदगी की चिंगारी देर तक ना जले इन रास्तों पर चलना नहीं सकता था फिर भी भी मत बोल मुझे चिंगारियां में धकेला जाता था-- जिंदगी काहे बर्बाद कर रही थी-- सोचा था वह आएंगे जरूर-- जिन्हें हर वक्त सहयोग देता रहा सोचता रहा वह कहां है -- क्यों नहीं आते आज इंसान दोमुंहा क्यों हो गया है यहां कुछ वहां कुछ ---- कभी खुदा को धोखा देता है कभी खुद को धोखा देने में लगेरहता है गरीबी क्या है-- कैसे आती हैं यह स्वार्थ लोगों की उपज है जो सिर्फ अपने लिए सोचते हैं-- गरीबी का मजाक उड़ाते हैं हर वक्त अपने सम्मान -- दिखावे के लिए तो हर पल दान देना चाहते हैं हर वक...
इश्क को
कविता

इश्क को

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हरीफ़ इश्क को कुचलने मे लगे है वो मस्ती में मचलने में लगे है ** ख़्वाब हमारे सभी पलने लगे है क्यों हमें पिछे से छलने लगे है ** कामयाबी की ओर धीरे-धीरे बढे दिल ही दिल अपने जलने लगे है ** हर पल साथ रहने के वादे करते थे वो भी आज हमसे दूर रहने लगे है ** शिकायत नहीं की अब तक कहीं नजर बचा कर वो निकलने लगे है ** किस पर यकीं करूं किस पे नहीं सोच - सोच वो बुदबुदाने लगे है ** माफी भी शायद दे सकू या नही मै क्योंकि सरेआम वो कुचलने लगे है ** लाख बन जाएं भले वो गुलाब पर मेरी ऑखो मे वो अब चुभने लगै है ** जब बूलंदीयो को हम छुने लगे है मोहन हरिफ़ो के सुर बदलने लगे हे ** परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घ...
तम्बाकू: एक भूरा जहर
कविता

तम्बाकू: एक भूरा जहर

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** आया प्रचलन अमेरिका से, दुनिया में बोया जाता है। आर्यावर्त में नंबर दूसरे पर, यह पाया जाता है। हो जाती है सुगंध की कमी, जब यज्ञ पूजा में, तंबाकू ताजगी खातिर, तब सुलगाया जाता है।। मगर देखो कैसा रूप, धारण कर लिया इसने। तम्बाकू सुर्ती खैनी का बिजनेस, कर लिया जिसने। धरा पर रूप धारण करके, चूरन बनकर आया। मुखों में हम सबके घाव, कैंसर कर दिया इसने।। बीड़ी सिगरेट जैसा उपयोग, इसका धूम्रपानों में। धुँआ बन जहर भरता है, यह तो आसमानों में। तम्बाकू हुक्का चिलम की, आदत बनकर देखो। लगाता आग सीने में, श्वशन के कारमानों में।। लिखा हर पैक पर होता, तम्बाकू जानलेवा है। फिर भी हम खाते हैं इसको, जैसे सुंदर सा मेवा है। समझ आता नहीं हमको, मेधा चकरा सी जाती है। जानलेवा बिके थैली में, तो यह कैसी सेवा है।। धारा बर्बादी की ब...
सेवा
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सेवा

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** रख लो सेवा भाव, मन तेरा खुश रहेगा मन तेरा खुश रहेगा । बनेंगे बिगड़े काम रख लो सेवा भाव मन तेरा खुश रहेगा। दया धर्म हृदय में रख लो दीन दुखी की सेवा कर लो कर लो कुछ उपकार मन तेरा खुश रहेगा । जैसी सेवा बने तुम कर दो तन से मन से या फिर धन से दुआ मिले भरपूर मन तेरा खुश रहेगा । संतों की करना सेवकाई गरीब से ना करना बेवफाई मिल बांट कर के तू खा ले सब मेरी जान है भाई मन तेरा खुश रहेगा। मन तेरा खुश रहेगा। अगर तेरे पास है ज्यादा उसमें से तू बात दे थोड़ा एक चेहरे पर मुस्कान तू लेआ मन तेरा खुश रहेगा मन तेरा खुश रहेगा । ना मैं मंदिर में रहता हूं ना मैं मस्जिद में रहता हूं किसी दुखियारे की कर लो सेवा मैं तो वही रहता हूं मन तेरा खुश रहेगा।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा ...
सतरंगी आसमान
कविता

सतरंगी आसमान

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुशनुमा जादुई रंग बिखर कर एक इन्द्रधनु बना रहे हैं | मेरे शहर की एक बहुत खूबसूरत तस्वीर सजा रहे है | सफेद रंग कण मानवता के कैनवास पर बिखर कर मसीहा बन कर अनगिनत ज़िन्दगानी बचा रहे हैं | नीले पराग अपने हाथों में असीम कर्त्तव्यता भर कर तन और मन से इंसानियत की सेवा किए जा रहे हैं | परिश्रम की आग में तपते झुलसते कुंदनी खाकी रंग अमन और चैन के फौलादी स्तंभ बनाए जा रहे हैं | नेतृत्व की काबिलियत की शक्ति से भरे अद्भुत रंग शहर को फिर एक बार से जीने काबिल बना रहे हैं | स्निग्ध स्नेह और अपनत्व के खुदरंग घुल मिल कर निस्वार्थ भाव से सेवाएँ और महादान लुटाए जा रहे हैं | सकारात्मकता के चटकीले रंग से सजे कई लाख मन हर पल हर एक के लिए जीवनी दुआएँ किए जा रहे हैं | खुशनुमा जादुई रंग बिखर कर एक इन्द्रधनु बना रहे हैं |...