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कविता

विजय मार्ग
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विजय मार्ग

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** धर विजय मार्ग पर पग, कर्मवीरों का यह जग! रख धीर औ मन मे आस, बस कर पुनः पुनः प्रयास देख सदा स्वप्न चरम के, औ रच अम्बर में नव मग, धर विजय मार्ग पर पग!.... छू चलते हुए सितारों को, ले आगोश में सब तारो को, हो जोश तुझमे इतना कि मचले बिजली तेरे हर रग! धर विजय मार्ग पर पग! .... प्रारब्ध ने तो इतना जाना, बुन कर्मो का ताना बाना, अर्जुन सा तू कर संधान रखकर मीन के दृग पर दृग, धर विजय मार्ग पर पग!..... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी ...
वो याद आये इतना
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वो याद आये इतना

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घटाए छाने लगी शाम होने लगी हवा के संगीत पर फूलों की शाखें झूमने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। दीदार हो उनका गुंचो ने आँखे खोली निकल आया आफताब फ़िज़ाये महकने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। खिजा आती है इसलिए टूट कर गिराने को पत्ते रूठ जाएगा मेरा महबूब गर उसके पैरों में धूल लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। उसे डर किस बात का वो खुद ही खुर्शीद है आने के आसार है उसके सितारों की रौशनी कम होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। फलक हो या हो जमीन तू है कहा नही सुर्खी है तू फूलों की रोशनी है सितारों की कायनात तेरे दम पर इठलाने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। तू वो शायरा जिसने लिखी ये रूमानी ग़ज़ल तेरे नक्शेकदम पर चल मेरी शायरी जवां होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी शबनम बरसने लगी। परिचय :- धैर्यशील य...
रहती हूँ खोई-खोई
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रहती हूँ खोई-खोई

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** क्यों बढ़ाते हो दूरियाँ जब तुम मे रहती हूँ खोई-खोई अपना बनाकर अपने को क्या ऐसे तड़पाता है कोई। जब तुम कभी समझना ही नही चाहते जज्बातों को तुम्ही बताओ फिर भला कैसे तुमको समझाए कोई। बार-बार तुम्हे मनाने वाला मुझसा नही मिलेगा कोई इसका एहसास तुम्हे तब होगा जब तुमसे रुठेगा कोई। थोड़ा सा वक्त दिया करो अपने रिश्ते को कभी-कभी फासले यदि बढ़ ही जायें उसकी नही फिर दवा कोई। दर्द सहते रहने की अब हो चुकी है अपनी आदत अब दर्द ना मिले तो दर्द होता है तुझे बताए कोई। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी ...
बस इतनी सी बात
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बस इतनी सी बात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान किसी को लगे रूचिकर या लगे किसी को नागवार पर मेरे स्वविचार रखने के अधिकार की रक्षा से नहीं करोगे अंगीकार सब के समक्ष रख लोगे थोड़ा मेरी बात का भी मान तो मन, वचन, कर्म से दूँगी तुम्हें सम्मान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान व्यस्त रहो चाहे तुम करने में सबकी सेवा-काज पर कभी एक पल के लिए सुन लेना मेरे भीे मन की आवाज़ चाहे किसी से भी करो अपने सुख-दुख का आदान-प्रदान पर पहले हक से मुझे कहो, अजनबी समझ के न रहो कोशिश कर निकालेंगे समस्या का निदान, समाधान अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी, नहीं हूँ मैं कोई अंजान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान स्वयं के घर में मिटने न दोगे कभी मेरा अस्तित्व जीवन सफर में कम न समझोगे मेरा महत्व तो रहेगा मेरे दिल पर हमेशा हमेशा तुम्हारा स्वामित्व बनोगे अगर मेरे लबों की मुस्कान तो हर जन्म में ...
आईना
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आईना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** सबने मुझे दिखाया आईना, और, खुद न देखा उनने आईना। पर, रूप मेरा निखार दिया, दिखा, दिखा कर सबने आईना।। जब मन में होता कोई चोर, तब न भाता तनिक आईना। पर, जब मन हो जाता निर्मल, तब मन ही अपना होता आईना।। सब कुछ भरा है मन के अंदर, नित होता भले बुरे का सामना। पर अगर मांज ले मन अपना, तब, खिल जाए मन का आईना।। देखो काँच का टुकड़ा दर्पण, हमको सिखलाता यह भावना। यह चूर-चूर हो जाये फिर भी रूप दिखाता हमें आईना।। आओ इससे हम यह सीखें अपनी पीड़ा को पी लेना। और, औरों को देने खुशियाँ, निर्मल कर लें मन का आइना।। विशेष :- आईना टूट कर बिखर जाता है पर अक्स दिखाना नही छोड़ता जो इसका गुण है। इसी तरह मनुष्य को चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने गुणों को नही छोड़े। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्...
भगोरिया का रंग है
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भगोरिया का रंग है

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* नाक सुआसी शोभती, खिलते लाल कपोल। आंखन अंजन आंझके, नैना बने अमोल।। हंस उड़ा बागन चला, ले मोतिन की आस। नगनथ देखो नाकको, मन मे होत उदास।। नदी नाव संजोग से, बहती पानी धार। नाविक नदिया एकसे, म्यान फँसी तलवार।। तोता मैना बोलते, चिड़ियां करती चींव। कोयल मीठा गा रही, सखी संग है पीव।। कामदेव सेना चली, करती चुनचुन वार। भगोरिया का रंग है, करता है इजहार।। मदन धनुष को धारके, तकतक मारे बाण। फूलकली बरषा करे, घायल होते प्राण। केरी रस से भर गई, मिठू मारे चोंच। रस बरसे रस आत है, मैना कर संकोच।। कमल पांखुड़ी खिलगई, भंवरों की ले आस। चम्पा चटकी पीतसी, सरिता सरवर पास।। कपोत कसके रातभर, मुरगा बोले भोर। मोर मोरनी छुप गये, नैना होते चोर।। पलाश भी अब दहकते, बिछुड़ी करें तलाश। चूड़ियां भी खनक उठी, मंगल मोती आस।। क्वारों की टोली चली, ले कं...
मित्र और मित्रता
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मित्र और मित्रता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मित्रता का अपना-अपना उसूल होता है, मित्रता के अनुभव भी बहुत खट्टे-मीठे होते हैं। सच तो यह है कि मित्र बनाये नहीं जाते बन जाते हैं, हम चाहें या न चाहें बस दिल में उतर जाता है। न जाति धर्म मजहब न ही स्त्री या पुरुष का भाव बस वो अपना सिर्फ अपना ही नजर आता है। उसका हर कदम,हर भाव उसकी सोच, उसकी चिंता अपनेपन का बोध कराता है। उसके हर विचार रूठना, मनाना, डाँटना, समझाना, और तो और अधिकार समझना गुस्से में लाल तक हो जाना भी, तो कभी-कभी आँसू बहाना हमारे दुर्व्यवहार को भी शिव बन पी जाना, माँ, बाप, बहन, भाई, मित्र जैसे रिश्ते निभाना, हमारी खुशी के लिए सब कुछ सहकर भी हँसकर टाल जाना, पूर्व जन्म के रिश्तों का अहसास दे जाना सच्चे मित्र की पहचान है। उम्र का अंतर मायने नहीं रखता क्योंकि हमें खुद बखुद उसके कदमों में झुक जाने का मन भी करत...
सास बहू का रिश्ता
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सास बहू का रिश्ता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बहू सास का रिश्ता मैं तुम को समझता हूँ। हर घर की कहानी तुम को मैं सुनाता हूँ। सुनकर कुछ सोचना, और कुछ समझना। सही बात यदि मैंने कही हो तो बता देना।। सास बहू का रिश्ता बड़ा अजीब होता है। बहू सास को माँ कहे तो रिश्ता प्यारा होता है। सास अगर बहू को बेटी कहके पुकारे तो। ये रिश्ता मां और बेटी जैसा बन जाता है। सास बहू का रिश्ता बड़ा अजीब होता है। सास बहू को बहू ही समझे तो खटा होता है। बहू सास को सास माने तो झगड़ा होना है। न तुम न हम कम फिर घर अशांत होना है।। इन दोनो के तकरार में बाप बेटा पिसते है। बहुत दिनों तक दोनों मौनी बाबा बने रहते हैं। पर जिस दिन भी ये सब्र का घड़ा फूटता है। और उसी दिन से दो चुहलें घर में हो जाते है।। घर का माहौल सास बहू पर निर्भर करता है। सास को माँ और बहू को बेटी जैसा मानती है। वो घर द्वारा स्वर्ग जैसे स्वंय ही बन जाते है।...
सब ठीक है
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सब ठीक है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** सब ठीक है, सब अच्छा है थकी हुई हूं पर हारी नहीं हो अभी तक, "थकान" का अर्थ आज जा के समझ आया मीलों चले हैं, मगर थकान" अब जा के हुई है शायद जिंदगी की परिभाषा में ये नया शब्द उभर कर आया है कोई पूछे, थकान क्यूं है? कैसे परिभाषित करूं इस शब्द को!!! कभी कठोर शब्दों की बारिश भी तो थका देती है। बारिश की बूंदें जितना सुकून देती हैं, "थकान" की बूंदें उतनी ही विरक्ति भर देती हैं तपती धूप में कोसों चलता है ये जीवन दर बदर की भटकन को साथ लिए। मगर तब भी न जाने क्यूं "थकान" महसूस नही होती जिंदगी की परिभाषा भी अजीब उलझने पैदा करती है, कभी जन्नत तो कभी थका सा महसूस करती हैं कभी तमाशा बन जाती है तो कभी तमाशबीन की तरह दूर खड़े हो कर खिलखिलाती है उम्र, हालात, समय, बदल जाते हैं, अच्छाइयां इंसान की कमजोरी बन ज...
होली गीत
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होली गीत

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे, झूमेगे-गायेगे गाल पर गुलाल सस्नेह व प्यार से लगायेगे। इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे, भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान भी बनवायेगे। मित्रों के गाल पर रंग व गुलाल स्नेह व प्यार का लगायेगे, इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे। फूलों वाली होली मनाने राधे-कृष्ण के बरसाने हम जायेगे, इस साल की होली के त्यौहार को नये अंदाज में मनायेगे। झुमेगे-गायेगे, गोझिया-गुलगुला खायेगे और मित्रों को खिलायेगे, सभी मिल खुशी-खुशी होली को यादगार हम सब बनायेगे। इस साल की होली के त्यौहार को हम नये अंदाज में मनायेगे, झुमेगे-गायेगे रंग-गुलाल गोरे गाल पर प्यार से लगायेगे। इस बार की होली हम नये अंदाज में मनायेगे, इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी...
सफल जन्म
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सफल जन्म

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सफल जन्म मेरो भायो मानव जीवन पाकर। धन्य हुआ मानव जीवन माँ बाप के संग रहकर। कितना कुछ वो किये मुझे पाने के लिए। अब हमारा भी फर्ज बनता है उनकी सेवा आदि करने का।। सफल जन्म मेरो भायो मानव जीवन पाकर।। सब कुछ समर्पित किये वो लायक मुझे बनाने के लिए। कैसे अब में छोड़ दूँ उनको उनके हाल पर। नहीं उतार सकता मैं कर्ज उनका मरते दम तक। पर कुछ ऋण चुका सकता उन की औलाद बनकर।। सफल जन्म मेरा हो जायेगा पुत्र धर्म को निभाकर।। जब तू भी माँ बाप बनेगा पुन: यही दोहराया जायेगा। तेरे किये अच्छे कर्मो का तुझे फल यही मिल जायेगा। मात पिता से बड़कर इस जग में और कुछ हैं नहीं। ये बातें औलाद समझ जायेगी फिर ईश्वर की तरह तुझे पूजेगी।। सफल जन्म हमारा तब ये मानव जीवन हो जायेगा। ये मानव जीवन हो जायेगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई मे...
प्रथम पूज्य नारी
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प्रथम पूज्य नारी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** प्रथम पूज्य नारी कहलाई आदि अनंत तुम शक्ति कहलाई थी कायनात की रचयिता वो शिव गामीनी कहलाई नही अबला थी नहीं आज की नारी पूज्य बन कर नारी शक्ति कहलाई बडे बडे दैत्यों का कर संहार वो वैश्व पालन वो शक्ति कहलाई बन सरस्वती ब्रह्मणी, रूप लक्ष्मी मै नारायणी ओर शिव वरदाई कहलाई यश गाऊ मै नारी का, गा नहीं पाऊगा माॅ बनी है बहन बनी, वाम अंग समाई जन कल्याण मे त्रिशूल उठा कर महिषासुर मर्दिनी कहलाई कष्ट निवारणी दया की देवी आज तू अन्तः मन से शिवकल्याणी कहलाई कैलाश वासिनी पूछता हूॅ तुझसे मै तेरा ही ये रूप ले माॅ दुर्गे कहलाई मनमोहन अब बतादो इन सबको तूम नारी जग मे रूप मेरा कहलाई परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ह...
जुनून
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जुनून

रश्मि नेगी पौड़ी (उत्तराखंड) ******************** जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया रास्ते में मेरे आई कई रुकावटें मेरे जुनून ने उनका डटकर सामना किया लाखों लोगों ने कोशिश की मेरे हौसलों को दबाने की मेरे जुनून ने मेरे हौसलों को दबने न दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया हुई कभी हताश, हुई कभी परेशान मेरे जुनून ने मुझे व्यर्थ की चिंता त्यागने को कहा लाख चाहा कुछ लोगों ने मुझे गिराना, मेरे जूनून ने मुझे गिरने न दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया हुई जब भी मैं निर्बल, मेरा जुनून साथी बनकर मेरे साथ रहा न होने दिया निराश, न होने दिया उदास हमेशा मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया कैसे करूं मैं धन्यवाद उस जुनून का, जिसने हर कदम पर मेरा साथ दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया परिचय : रश्मि नेगी निवासी : पौड़ी उत्तराखंड शिक्षा : ए...
अपने हिस्से की भूख
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अपने हिस्से की भूख

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** परहित में जीना है बड़ा, हित में जाता गला सूख, दूसरे को नहीं दे सकता अपने हिस्से आई भूख। भूख सभी को लगती है, जिसने जन्म यहां लिया, पर भूख खत्म हो जाये, भलाई नामक रस पिया। कैसी विडंबना इस जग, शांत नहीं हो जन भूख, हड़प लेते हैं निर्धन का, उल्टे सीधे रखता रसूख। निज भूख जो कम माने, दूसरे की भूख माने अति, पुण्य कर्म में जीवन बीते, जग में हो उसकी सद्गति। गरीब को भूख लगती है, कोई पूछता नहीं है हाल, कितने निर्धन चले गये हैं, जग से काल के ही गाल। खाने की भूख नहीं लगे, धन दौलत पर यूं मरते हैं, अमीर लोग बात अजब, भोजन खाने से डरते हैं। भूख के रूप अनेकों होते, बिन भूख के मिलते कम, भूख देखते गरीब जन की, आँखें खुद हो जाती नम। नहीं मिट सकती इस जहां, भूख अजब निराली होती, कुछ को रोटी भूख सताये, कुछ को भूख हो हीरे मोती। नहीं बाट सकता कोई यहां...
माँ तारा
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माँ तारा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तू हो समर्पिता, अर्पिता तू हो सृष्टि की मूल बिंदु तुम्ही हो। माँ तू हो अनय की सृंखला बनी तू हो भोग की ग्रहिका बनी। तू हो धरा पर अर्चिता, गर्विता अनादि अनन्त तू विभु सम्पन हो। प्रचंड मार्तण्ड की सुप्त किरणों से तू शशि सम्पन्न धरा करती हो। माँ तू मनु की सतरूपा अनादि अभिन हो जब भी धारा पर गहन अंध छाता है मां तू महा ज्योति प्रभा बनकर आती मां तारा तू अनादि अनन्त हो मातेश्वरी तू प्रीति संपन्न हो पुरुरवा की मेनका रमभा तुम्हीं हो साहचर्य सहगामनी सत्य सनातनी हो महाभोगनी फिर भी योगिनी हो कुंडलिनी सर्पनी तू महआभैरवी हो धधकती चिताय महाश्मशान में जीवन की नश्वरता चिंता की रेखाएं। जीवन की कोलाहल में मृत्यु की निरव शांति में मातेश्वरी तारा तुम्ही छुपी हो। इस जीवन की संध्या में मां तू अपूर्व लालिमा हो। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...
ऋतुराज बसंत में
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ऋतुराज बसंत में

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** बसंत में शब्द भी रंग जाते हैं, बाँसती रंग में, दिन चढते चढते आ जाते तरंग में महक उठते हैं, मौलसिरी की गंध से, साँसों में बस जाते हैंं छंदों के अनुराग से एक एक अक्षर बदल जाता मधुमास में, टेसू के फूल बन बिखर जाते पी के संदेश में मन के भाव उमड़ जाते, कोयल की तान में, छलक जाते आँसू बन विहरणी के दर्द में, कानों में रस घोलते संवेगो के आवेग से, बिखर बिखर पत्तो से रचते स्वर्णिम विहान रह रह मचल जाते, करते कविता का अभिसार परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
भारत माँ का वंदन
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भारत माँ का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अंधकार में हम साहस के, दीप जलाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है राणाओं की शौर्यभूमि यह, पोरस का सम्मान है संविधान है मान हमारा, जन-जन का अरमान है भारत माँ का वंदन है यह, जन-गण-मन का गान है वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। शीश कटा,क़ुर्बानी देकर, जिनने फर्ज़ निभाया अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया अंग्रेज़ों से लोहा लेने, जिनने त्याग दिखाया अधरों पर माता की जय थी, नित जयगान सुनाया हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए जिनका वंदन, अभिनंदन है, जो अवतारी थे सच में थे जो आग...
उठो नारी तुम्हें अब उठाना होगा
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उठो नारी तुम्हें अब उठाना होगा

सपना दिल्ली ************* उठो नारी तुम्हें अब उठाना होगा नारी क्यों तू हारी तोड़ चुप्पी अपनी आवाज़ उठानी होगी बहुत सह लिया तुमने अब नहीं सहेगी बहुत जिया अपनों के लिए तुम्हें अब अपने लिए भी जीना होगा.... देखा जाएगा जो भी होगा यह ख़ुद को सिखा री ख़ुद को न समझ तू कमज़ोर बिना तेरे सृष्टि का अस्तित्व मिट्टी में मिल जाएगा ज़ोर से कह, मचा शोर दुर्गा भी तू चंडी भी तू ममता की मूरत भी तुझसे री ... इस धोखे में न रहना तू तेरी लाज़ बचाने को कृष्ण बन कोई आएगा तुझे बचाएगा बन काली  अपनी लाज़ ख़ुद ही बचानी होगी विश्वास कर तू सब कुछ करने जोगी और न बन बावरी.... रुकना नहीं, झुकना नहीं तोड़ विवशताओं के बंधन सारे बस आगे ही बढ़ते जाना है अपनी मंज़िल को पाना है कर  ख़ुद पर  यकीन अपने सपनों को कर नवीन अपना सम्मान तुम्हें पाना होगा अपना गीत गाना होगा दूसरों के लिए ही तो जीती रही हो अब तक ख़ुद के लिए अब जीना होगा देखा जाएगा...
काहे का अभिमान रे मानव
कविता

काहे का अभिमान रे मानव

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** काहे का अभिमान रे मानव, काहे का अभिमान। जल्दी ही है होने वाला इस माया का अवसान, रे मानव, इस माया का अवसान।। क्या अभिमान करे है तू, इस तन, मन और यौवन का। पर तुझको कैसे ज्ञान नही, नश्वरता मय इस जीवन का।। कितने आये राजा महाराजा, कितने आये साधू सन्त। क्या कभी बचा वे पाये खुद को क्या नही हुआ है उनका अंत।। या दौलत की बात करे तू यह भी तो है कितनी चंचल। कितनी भी अकूत सम्पदा, पर कभी रहे न स्थिर, अचल।। केवल तेरे कर्म हैं सच्चे, और सभी के प्रति अपनापन। इससे ही तू करले प्रेम, यही है तेरा जीवन धन।। अतः बचा ले इनको तू, और इन्हीं का रख तू ध्यान। और अपने तन और अपने धन का, कभी न करना तू अभिमान।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सु...
भगवान शिव
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भगवान शिव

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जहाँ सारा दुनिया जिसकी शरण मे, नमन है उस भगवान शिव के चरण मे, हम बने उस महाकाल के चरणों की धूल, आओ हम-सब मिल कर चढ़ाये उनके चरणों में श्रद्धा के फूल! महाकाल की हमेशा बनी रहे मुझ पर छाया, पलट दे मेरी किस्मत की काया, मिले मुझको सब कुछ इस दुनिया में हमेशा, जो कभी किसी को न मिल पाया इस जीवन में! महाकाल जब आएंगे मेरे द्वार, मेरे जीवन के गोद में भर देंगे सारी खुशियां, कभी रहे न जीवन में मेरे दुखः-दर्द, मेरे चारों तरफ हमेशा हो जाए सुख ही सुख! प्रभु शिव का नारा लगा कर हम, सारी दुनिया में हो गए हैं प्यारे-न्यारे, मेरे दुश्मन भी मुझसे बार-बार बोले, मेरे प्यारे भगवान महाकाल के भक्त हो गए हो तुम सबसे न्यारे! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यू...
छत्रपति  श्री शिवराया
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छत्रपति श्री शिवराया

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गतिहीन राष्ट्र को जो दे गति वो शिवराया है वो छत्रपति।। जीजा माता के संस्कार से दूर रहा जो सदा विकार से स्वामी समर्थ का रहा आशीर्वाद कोंडोबा की शिक्षा निर्विवाद लिए स्वराज का स्वप्न वो भगवा है जिसकी संस्कृति वो शिवराय है वो छत्रपति।। हिंदवी का जो सागरमाथा है पराक्रम शौर्य की महागाथा है सुरक्षित रखा जिसने हिंदुत्व राष्ट्र निर्माण का किया कर्तुत्व माँ तुलजा के आशीर्वाद से भवानी में रही धार और गति वो शिवराया है वो छत्रपति।। नर केसरी तानाजी की आन बाजी प्रभु के प्राणों की शान विधर्मी को घर मे घुस मारा डूबते सनातन को उसने तारा आगरा के परकोटे रोक न पाये जिसके व्यक्तित्व में वो गति वो शिवराया है वो छत्रपति।। शत-शत नमन हे पितृपुरुष निर्भय हो घूम रहे स्त्रीपुरुष अगर न होता आपका पराक्रम नष्ट हो जाता सनातन धर्म समरसता के महायज्ञ में जिसने दी ...
रश्मियां भोर की।
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रश्मियां भोर की।

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुबह की लाली धरा पर उतर रही बसंत की उमंग भर रही रश्मियां भोर की। पीले पीले सरसों के खेत महक रहे ओस की बूंद चमक रहीं पत्ता-पत्ता सौंदर्यमय हो रहा उन्मुक्त हवा बह रही चारों ओर फागुन के गीत गुनगुनाने लगी रश्मियां भोर की। गुदगुदाने लगी सताने लगी याद प्रियतम की भ्रमर को बुलाने लगी रश्मियां भोर की। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आप...
मेरी बेटी
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मेरी बेटी

आनंद यादव पुर्णिया (बिहार) ******************** यूंही छुप-छुप के जो आंसू बहाए, उनसा मत बनना, मेरी बेटी... जमाने के डगर पे तुम नहीं चलना ! जमाना ये डराएगा, जमाना रंग दिखाएगा, हां करना सामना, इस छली दुनिया से नही डरना ! जमाने में मिलेंगे कई तुमको रोकने वाले, जमाने में, मिलेंगे कई तुमको टोकने वाले, नहीं रुकना नही थमना नहीं तुम कभी भी झुकना मेरी बेटी... तुम अंतिम सांस तक, उस गगन तक बढ़ना ! मेरी बेटी, क्या कहते हैं सभी सोचा नहीं करते, मेरी बेटी, फरिश्तों पर, भरोसा नहीं करते, जमाने में यही वो लोग है, जो पीठ सहलाते, मगर तुम याद रखना वक्त पर धोखा यही करते ! प्रखर जो रवि सा हो, तेज खुद में वैसा तुम भरना जिसका नाम ले हो चौड़ा सीना, काम वो करना ; मेरी बेटी, जमाना बुरा है, बस युक्ति से चलना मेरी बेटी.. जो आंचल साफ है, मत मैला तुम करना ! मेरी बेटी जमाने के डगर पे तुम नहीं चलना, जमाना ये डराएगा, मगर...
जंग इसी को कहते हैं
कविता

जंग इसी को कहते हैं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मेरी बात पर गौर देकर कहना कुछ लोगों का है कहना मीडिया भी यही कहता और दिखाता है की सेना ने कई सालों से जंग नहीं देखी है। कोई इनकों लेकर आये और जम्मू कश्मीर तथा सीमांत का दौरा कराये जहां पर हजारों की गिनती मे सैनिक घायल होते है जो आंतकवादियो और देश द्रोहियों से लड़ते हैं। इनके परिवार गम के आसूं पीते है मुसीबत और तंगी की जिंदगी जीते हैं और दोस्तों आप कहां रहते हैं शायद जंग इसी को कहते हैं। आइये आपको सियाचिन की सैर कराये बर्फ से ढके हुए पर्वत व नदियाँ दिखाये जहाँ का तापमान माइनस ४० डिग्री सेल्सियस है क्या आप जानते हैं ? लेकिन हमारा सैनिक यहां पर निरंतर रहता है और दुश्मन की गोलियों को अपने सीने पर सहता है इनमें से आधे तो सर्दी का शिकार हो जाते है सीमा से अंदर न आ जाये दुश्मन इसलिए कई तो अपने हाथ या पैर गंवाते है शायद जं...
नाजुक उम्र है तुम्हारी
कविता

नाजुक उम्र है तुम्हारी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सूरत मनमोहक प्यारी, आगे बढऩे की तैयारी, देवजन की राजदुलारी, नाजुक उम्र है तुम्हारी। सदा आगे यूं ही बढऩा, अच्छे से तुम यूं पढऩा, बस यही दुआ हमारी, नाजुक उम्र है तुम्हारी। पढ़ लिख आगे बढऩा, परहित के करना काम, आएगा एक दिन ऐसा, होगा पूरे जगत में नाम। मां बाप का करो नाम, जन कीमत एक छदाम, आनंद से घर में रहना, घर होता है सुंदर धाम। सुख दुख आए जीवन, डगमग जब करे नैया, उस प्रभु का रख याद, वो ही है जगत खेवैया। बिछुड़ जाए सारे साथी, यादें बन आती बाराती, बस आगे यूं ही बढऩा, चाहे ना हो घोड़े हाथी। सच की है राह कठिन, सुख नहीं दुख ही गिन, बनेगी तब जग पहचान, यूं बनना है तुम्हें महान। देंगे दगा जगत के लोग, पाप कर्म लगते हैं भोग, चुगली चाटा बुरे कहाते, कैंसर भांति होते ये रोग। जाना हो धरती से कभी, रो रोकर आंसू बहे सभी, ऐसा दिन जब भी आये, मान...