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कविता

संदेश
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अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन के चमकते प्रकाश में स्वच्छ नील हँसता नभ गंगा पर छाई रवि किरणे अविरल बहता यह जल तटो से सटी बंधी ये नावो से देख आर -पार दृश्य मनोरम स्फटिक सा गंगा जल में चपल पवन होता स्पन्दित हिलोरे लेता शान्त ह्रदय में तन मन से हो अल्हादित विहंगो की जल क्रीडा में जानव्ही रूप मस्त मनोरम प्रकृति के सुन्दर नीड में मानस होता व्यथा मुक्त उर को स्नेहासिक्त करते जीवन नैय्या करते सुगम इस धूप छाँव की छटा में कलरव करते पक्षी अनेक प्राणीमात्र को अंक में समाये गंगा देती अनुपम संदेश   परिचय :- ८ अगस्त १९४७ को जन्मी इंदौर निवासी श्रीमती अमिता अनिल मराठे को लिखने का शौक है आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। नई दिशा एवं जीवन मूल्यो के प्रेरक प्रसंग नाम से आपकी दो किताबे भी प्रकाशित हुई है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिं...
तुम फिर एक दिन मिलने आना
कविता

तुम फिर एक दिन मिलने आना

मुकेश सिंह राँची (झारखंड) ******************** चाँद का चमकीला उजास, जगा रहा इस दिल की प्यास, फैला है ऐसा प्रकाश, जैसे मोती जड़े हों टिमटिमाते तारों पर, मन आज फिर खड़ा है़ यादों के चौराहे पर। मुझे न ये चाँद चाहिए न ये फलक चाहिए, मुझे तो बस तेरी एक झलक चाहिए, आज भींगी है पलकें फिर तुम्हारी याद में, काश! कुछ ऐसा होता की हम तुम होते साथ में। याद है जब आँखों में सजा के सपने, हम तुमसे मिलने आए थे, याद है क्या वो पल जब देख तुम्हें मुस्कुराए थे, वो पहली बार छुअन से मेरी तुम छुईमुई से शरमाए थे, धड़कनों में तुम्हारी बस हम ही हम समाए थे । याद है़ वो हाथों में हाथ लेकर, हम साथ-साथ थे टहले, पर अब तो ये कमबख्त दिल ए बहलाने से न बहले, तेरी लहराती जुल्फों ने मेरे मन को भरमाया था, पाया था सर्वस्व प्रेम का जब तुमने गले लगाया था। तुम्हारे बदन की खुशबू मेरी सांसों मैं समाई है, सपनों में तो जाने कित...
भारत भावना
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भारत भावना

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** हम दधीचि के वंशज है अरि के अरमान मिटा देंग़े बेजोड़ है जज़्बा भारत का दुश्मन को धूल चटा देंग़े राणा सांगा का जज़्बा है घावों की फ़िक्र नहीं करते भारत का अक्षुण मान रहे हम अपना शीश कटा देंगे भारत की जनता बेमिसाल हर मोर्चे पर डट जाती है दुश्मन को शौर्य एकता से दिन में तारे दिखला देंगे मर्यादा राम से सीखी है कृष्णा से है रणनीति लिया भयभीत नहीं असुरों से हम हम उनके नाम मिटा देंग़े अश्फ़ाक भगत आज़ाद विस्मिल का साहस पाया है जीतेंगे हम हारेगा अरि हम तोप का मुँह ही घुमा देंगे लड़ने को करोना से हमको संसाधन जो भी चाहेगा बन भामा शाह आज के हम पूरा धन धान्य लुटा देंगे गांधी भूखे रह करके भी अंग्रेजो से लोहा लेते थे बन साहिल एक दूसरे का कोविड उन्नीस हरा देंग़े . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर ...
मातृभाषा हिंदी
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मातृभाषा हिंदी

हिमांशु कलन्त्री इंदौर (म.प्र.) ******************** बिछड़ते वक्त तू गुजर जाएगा... मगर मेरी जड़ तू ना उखाड़ पायेगा... निष्ठायुक्त चरित्र है हिंदी... पुरातन प्रतिष्ठा है हिंदी... सतयुगी प्रतिज्ञा है हिंदी... भारतियों का सौभाग्य है हिंदी... हिमांशु का गौरव है मातृभाषा हिंदी... भाषाओं में चमकता तारा है हिंदी... भारत माता का मस्तक अभिमान है हिंदी... संस्कारो का स्वागत-संस्कार है हिंदी... शब्दार्थों की अनन्त पराकाष्ठा है हिंदी... संस्कृति का मूल आधार है हिंदी... बुजुर्गों को किये प्रणाम का आशीष है हिंदी... हिमांशु की आजीवन प्रतिष्ठा है हिंदी... शिव-वंदन जैसा है गुणगान-हिंदी... . परिचय :- हिमांशु कलन्त्री जन्म दिनांक - २६-०५-७४ निवासी - इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अ...
तब ही महका संसार मिला
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तब ही महका संसार मिला

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** मन के नन्हें पंछी को मैंने, कैद से यूँ आज़ाद किया। जीभर उसकी बात सुनी, फिर सपनों को आकाश दिया। रीति रिवाज़ों ने रोका था, बहुत रूढ़ियों ने टोका था। पर मुझको मंज़िल पाने का, सौ फीसदी भरोसा था। खूब लड़ा हूँ सच की खातिर, लोग कहा करते थे क़ाफिर। भटकाते थे गलत राह में, मगर ना भटका कभी मुसाफिर। बहुत शूल थे राहों में पर फूलों का भी प्यार मिला। सीख लिया जब साथ निभाना, तब ही महका संसार मिला। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कवित...
सम्हल जाइये
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सम्हल जाइये

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** वक्त बड़ा नाजुक है यार, सम्हल जाइये, बेदाग दामन को बचाके, निकल जाइये! कदम-कदम पर ठगी मिलेंगे दुनिया में उनकी मोहक अदा पे ना फिसल जाइये! जो खेला करते हैं किसी के जज्बातों से उनके लिए यूँ मोम सा ना, पिघल जाइये! ना जाने किस घड़ी बुझे जीवन का दीप छोटी-छोटी बातों पर ही ना उबल जाइये! सच्चाई का वजूद मिटता नही मिटाने से इसलिए झूठ के प्यालो में ना ढल जाइये दम घुटने लगा है गीत, ग़ज़लों का दोस्तों यूँ चुटकुले सुन-सुनाकर ना बहल जाइये!!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीय...
स्वप्न सुनहरे
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स्वप्न सुनहरे

कु. हर्षिता राव चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. ******************** हर ढाल बनकर जो खड़े हैं अपनें-परायों से लड़े हैं। विश्वास बनूंगी मैं उनका इतिहास रचूंगी इस युग का।। इक तड़ित सा तेज़ बनकर माता पिता का ओज बनकर। पर्वतों के जैसे तनकर, उनके जैसे ही मैं थमकर।। जाग जाऊं सुबह बनकर शांत हो जाऊं निखरकर। क्रांति लाऊंगी जो अब मैं अपने जीवन के सफ़र में।। रोशन हो जाऊं कहर में जीत जाऊं हर लहर में। रोशन होकर जगमगाऊ, इक नई सुबहो जगाऊं।। . परिचय : कु. हर्षिता राव पिता - श्री रमेश राव पेंटर (प्रेरणा स्त्रोत) निवासी - चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. शिक्षा - एम.ए.हिंदी साहित्य में अध्ययनरत, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस) की स्वयं सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
बचपन
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बचपन

डॉ. प्रभा जैन "श्री" देहरादून ******************** क्या बचपन का जमाना था ना अपना, ना पता क्या सुहाना था भागते कभी तितली के पीछे कभी उड़ाते, छत पर पतंग। कभी झूलते सावन के झूले कभी रिमझिम वर्षा में नहाते, बना कागज की नाव बहाते रख पैर रेत में घर बनाते। कोई तोड़ता कट्टी क़र जाते मन था निर्मल गंगा समान, फिर से हप्पा क़र जाते था तनाव रहित जीवन। बदला समय, जीने का ढंग जन्म लेता आज बच्चा, समय बाद ए बी सी डी करने लगता, लाद भारी बस्ता स्कूल जाता दादी-नानी से कहानी सुनता बचपन। देख जिन्हें दिल खिल जाता भंवरों की तरह मचल जाता, बड़ों की तरह बात करता बचपन कुछ का बचपन सड़क पर सोता स्कूल का सपना चाँद का सपना हर चीज में दो समय की रोटी दिखती कहीं छोटी-छोटी टोकरी में नींबू धनिया बेचता बचपन। क्यूँ होता अपहरण क्यों चौराहे पर फैला हथेली खड़ा बचपन। कहाँ खो गया वो मासूम सहज सरल बचपन, कहाँ खो गया देखते-देखते वो गु...
कोरोना वियोग
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कोरोना वियोग

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** हम इधर है और वो उधर है, कोरोना के कारण मिलन दूभर है ....!! करे तो करे भी क्या इस लॉक डाउन में, वियोग इधर है तो इंतजार उधर है ...!! दोनों और पलता है प्रेम, इस घोर विकट घड़ी में अथाह ... ...!! मन मे मिलन की है पराकाष्ठा, पर संक्रमण काल मेअधूरी है चाह . .!! लॉक डाउन बाद खुलेगी शायद, मिलन की कोइ न कोई राह .. ....!! होगी नजरे इनायत भी और, उमड़ेगा पारावार प्रेम का अथाह . ...!! होंगें फिर प्यासे दिलो के, गिले-शिकवा भी दूर सभी ........!! खाएंगे कसमे की, विकट हालातों में, फिर रहेंगे न दूर कभी .............!!! हाँ मितवा रहेंगे न दूर कभी .....!!! . परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच ...
नव भोर की ओर
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नव भोर की ओर

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चमक रहा वो, देख! शीर्ष, हैं ज्योत्सना मुसकाई, महक रहा हैं धीर मेघपुष्प, चल वैतरणी पार लगाई... मचल उठा मन मयूर सा, नयन निहारें, विहंगम दृश्य, वारिधर भी रहे मचल हैं, थिरके अर्श, अंशु अदृश्य... मस्ती में झुमें हैं, तरुध्वज, जल-थल चर, विहंग सारे झुम रही सँग, मंद समीरण, तृण, टीप "निर्मल" पे वारे ... बिखर रही, रौशनी राहों में, नई उमंगें सँग भर बाहों में, तज तिमिर, बन नई चमक, जा निकल सँग नई राहो में उपमाएँ : शीर्ष-आसमा/ज्योत्सना-चाँदनी/धीर-शांत/मेघपुष्प-जीवन,जल/वैतरणी-ब्रह्म नदी/वारिधर-मेघ/अर्श-नभ/अंशु-किरण/तरुध्वज-ताड़,वृक्ष/चर-प्राणी विहंग -पँछी/समीरण-वायु/तृण,टीप-घास से शाख तक परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौ...
महँगाई की मार
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महँगाई की मार

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** महँगाई की मार है, पैसा है तो कार हैं। करते सब इनकार हैं, महँगाई की मार है।। आलू हूआ बीमार गोभी को आया बूखार। पालक ने सीना ताना, तोरी ने रूख अपनाया सख्त। बोलो महँगाई की------------।। शक्कर बोली दाल से बहिन क्या हैं, हाल! दाल बोली आज-कल तो दाल ही दाल, ऐसा मेरा हाल।। बोलो महँगाई की ----------।। क्योंकि तेल चढा पहाड़ है, चावल का बंटाधार। गेहूँ थोड़ा उदास हैं, देखो ऐसा वार है।। बोलो महँगाई की --------।। गाँव-गल्ली और नुक्कड़ में, शहरों के चोराहो में। भरे हुए बाजारो में, आज के ये हाल हैं।। बोलो महँगाई की --------।। न चाल हैं, न ढाल हैं, लोग बिचारे बेहाल हैं। अंगूरों की देखभाल है, चीकू- संतर 'आम 'हैं।। बोलो महँगाई की -------।। क्योंकि 'घी' आपे के बाहर हैं, कोने में बैठा अनार हैं। देखो ऐसा वार है। बोलो महँगाई की ---------।।...
शौर्य गाथा
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शौर्य गाथा

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वीर रस भगवा रक्त बहे इस तन में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। वीर शिवाजी सा रणकौशल राणा सा वो भाल दो। चेतक सा बल शौर्य मुझे दो गुरु गोविंद सिंह: कृपाण दो श्री रामकृष्ण जी परमहँस सा मुझको हृदय विशाल दो। रौद्र रुप धर सँकु युद्ध में वह देह मुझे विक्राल दो।। मंगल पाण्डे सा बल दो माँ डटा रहूँ रणभूमी में। भगत सिह: सा साहस दो माँ हँस कर झूलुं सूली में।। दो शक्ति आज़ाद सी मुझको मात्र भूमी पर मिट जाऊँ। संत विवेकानंद बनु तन भूमि माथ लिपट जाऊँ।। मर - कर फ़िर जनमु भारत में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजि...
तूने गजब कर डाला
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तूने गजब कर डाला

जसवंत लाल खटीक देवगढ़ (राजस्थान) ******************** वाह रे, कोरोना ! तूने तो गजब कर डाला, छोटी सोच और अहंकार को, तूने चूर-चूर कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... पैसो से खरीदने चले थे दुनिया, ऐसे नामचीन पड़े है होम आईसोलोशन में, तूने तो पैसो को भी, धूल-धूल कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... धुँ-धुँ कर चलते दिन रात साधन, लोगों की चलती भागमभाग वाली जिंदगी, तूने एक झटके में सारा जहां, सुनसान कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... दिहाड़ी करने वाले मजदूर, खेत पर काम करते गरीब किसान, तूने तो इनको बिल्कुल, कंगाल कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... अमीरी मौज कर रही बंद कमरों में, गरीबों को अपने घर आने के खातिर, कोसों पैदल चलने को, मजबूर कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... लोग कहते थे सौ-सौ रुपये लेती है पुलिस, देखो ! सुने चौराहों पर खड़ी हमारी सुरक्षा खातिर, हम सब लोगों का, विचार बदल डाला।। वाह ...
गृहणि
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गृहणि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बढ़ गया है बोझ उस पर देहरी पर जो खींच दी है लक्ष्मण रेखा। घर के भीतर कोई नही आता घर के भीतर कोई नही जाता उसे ही रखना है सारे काम का लेखा जोखा। घर का फर्श, फर्नीचर जब चमक उठते है। आवाज़ देते है किचन में रखे बर्तन। बर्तनों की चीख पुकार बंद होते ही। वाशिंग मशीन में कैद कपड़े फुसफुसाने लगते है। कर उनकी धुलाई टंग जाते है वे रस्सियों पर करते है हवा से अठखेलियाँ एक गहरी सांस खींच भी पाती है की। गमले में उगा मोगरा, गुलाब, निशिगन्ध उसे याचक की नज़रों से देखते है। दे कर पानी गमलों में जैसे ही पोछती है वो स्वेद कण जो दव बिंदुओं के समान उसके माथे पर मोतियों से उभर आए है। तभी उसके कानों में पड़ती है मेरी आवाज कुछ तो काम किया करो मुझे अभी तक चाय नही मिली। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म...
दीवाना दिल
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दीवाना दिल

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ये दीवाना दिल अब मेरी सुनता कहां है, मेरी धड़कनों में जो धड़क रहा है। तनहा सफर मेरा अब गुजरता कहां है, यादों में तेरी अब तड़प रहा है। जिस्म से जान निकल जाएगी कहां है, बता इसमें मेरी खता कहां है। चांद आज पूर्णिमा का निकला है शायद, या छत पर किसी की उतर गया है। तेरे बिना अब वक्त कटता कहां है, दर्दे ए दिल अब बढ़ता जा रहा है। मचलते सागर में उफान आ गया है, जो लहरों की दीवानगी बढ़ा रहा है। हर शाम पर अब चांद ढलता नहीं है, ये दीवाना दिल अब मेरी सुनता कहां है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, ...
मजदूरिन
कविता

मजदूरिन

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** जिधर देखो उधर नववर्ष की धूम है, फिर भी कुछ लोग उदास व गुमसुम हैं। पुराने वर्श को विदा करने की नहीं आतुरता, केवल कुछ रूपए पाने की है उत्सुकता। हम ठंड से ठिठुर रहे थे जहाँ, वहीं वह श्रम बिंदुओं से रत थी। उसे नए-पुराने वर्ष का गम न हर्ष था, वह तो अधिकाधिक ईंटें ढोने में व्यस्त थी। दो जून की रोटी की चिंता जितनी कल थी, उतनी ही उसे आज और शायद कल भी होगी। पर उसके मैले आँचल में कभी तुम, कुछ रूपए यूँ ही रख मत देना। उसकी आँखों में असीम दुख के अश्रु देख, कहीं तुम भी संग उसके भावुक हो रो मत देना। न ही उसकी गरीबी पर तरस खाकर, तुम भिक्षा देने की भूल ही करना। वह जीवन से लड़ना जानती है, उसको कभी निर्बल न समझना। वह नन्हें शिशु को नौ माह पेट में, और डेढ़ साल पीठ पर रखती है। वह भरी दोपहरी में सूर्य की ताप, और सदिर्यों में शीत लहर को झेलती है। जब उसका प...
कुछ ऐसा करो न
कविता

कुछ ऐसा करो न

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** जहाँ करोना फैल रहा, क्षेत्र वहाँ का सील करो। हटकर नई योजना हो...और नहीं अधीर करो। खोल दुकानें दो सारी, दूरी ज़्यादा से ज्यादा हो चालू हों उद्योग, कमसे कम आधा तो फ़ायदा हो। चंद रईशो की संपत्ति से देश नहीं चल पायेगा। बंद हुए व्यापार सभी, तोकैसे हल मिल पायेगा? वेतन, बिजली, टैक्स आदि, बहुत ज़रूरी होते हैं। कुछ लोग आपदा में भी तो बहुत गरूरी होते हैं। खण्ड-खण्ड भागों में, अब कर्फ़्यू सख़्त लगा दो। जहाँ न फैले कोरोना.....उस जगह छूट दिला दो। मजदूरों से कहो की, वो सब कार्य करें कारखानों में। घर नहीं जायें तीन महीने, रहें वो उन्हीं ठिकानों में। दो मीटर की दूरी हो, अनुशासन कड़ा दिखाना है। बीमारी भी दूर रहे, और मिलकर हाथ बटाना है। जामाती की जेल बनाओ, नित्य पिटाई होती हो। जो-जो अकड़ दिखाए उसकी खूब सुताई होती हो। खुली छूट सेना को दे दो, सील इलाके...
जनता जनार्दन
कविता

जनता जनार्दन

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** झूठ के पीठ लदे "सत्यमेव जयते" की लाशें आंखों पर पट्टी बंधी कानून के लाशघर के फ्रीजर में बंद है जरूरत के मुताबिक जिसका किया जाता है पंचनामा, कभी-कभी चीरघर में उसका पोस्टमार्टम होता है इसके बाद मरघट में शुरू होता है लाशों का धर्मिय बहस की इसे जलाया या दफनाया जाय, इधर इंसानियत ओढने की नुमाइशे जोरो पर चलती है इस ताक में बैठे कुछ जन विरोधी प्यादे भी बहती गंगा में धो लेते हैं हाथ इस मौके की ताक में बैठे कुछ लोग अपने को इश्वर होने की घोषणा कर देते हैं, हर तरफ इस अवसरवादी कानफोड़ू शोरगुल में अंदर की सच्चाई कब दफ्न हो जाती है उसका अहसास भी नहीं कर पाती जनता जनार्दन। . परिचय :-गोविंद पाल शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन। लेखन : १९७९ से जन्म तिथि : २८ अक्तूबर १९६३ पिता : स्व. नगेन्द्र नाथ पाल, माता : स्...
उदर
कविता

उदर

राम शर्मा "परिंदा" मनावर (धार) ******************** मनुष्य यूं दर-बदर नहीं होता तन संग अगर उदर नहीं होता मछली को भी पानी ना मिलता अगर खारा, समंदर नहीं होता बांट देती है सबको चार-दीवारी दीवार बिन कोई अंदर नहीं होता गर कोई लिखता नहीं इतिहास याद कोई, सिकन्दर नहीं होता नशा न होता दौलत का जग में विद्वानों का अनादर नहीं होता छोटे-बड़े कर लेना पैर 'परिंदा' पैर के अनुसार चादर नहीं होता परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कवि सम्मेलन में संचालन भी करते हैं। आपके साहित्य चुनने...
जुदा कौन करेगा
कविता

जुदा कौन करेगा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हकदार बहुत हैं तेरे पर सच्चा हक अदा कौन करेगा महफ़िलो में खोए होंगे सब, तब याद सदा कौन करेगा! जान-जान कहने वाले, बेजान मिलेंगे आशिक बहुतेरे, जरूरत पड़ने पर सोचो, तुमपे जान फिदा कौन करेगा! साथ तुम्हारे गुजर रहे जो वो पल अनमोल ख़ज़ाने मेरे हम दोनों एक बनेंगे तब फिर बोलो जुदा कौन करेगा! जो भी हों मसले बड़े सब बेहिचक कहा करो मुझसे, यदि तुम ही खामोश रही तब सोचो निदा कौन करेगा! तेरे हुस्न की हरारत से ही, मेरी धड़कनें हरकत में हैं, इतने प्यारे महबूब को बताओ, अलबिदा कौन करेगा!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आक...
मीरा
कविता

मीरा

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** वो छोटी सी मीरा, वो न्यारी सी मीरा जग की दुलारी, माँ की प्यारी सी मीरा! वंशीधर के प्रीत में उलझी सी मीरा जीवन के रहस्यों से सुलझी सी मीरा! सत्य पथ से कभी ना भागी थी मीरा विघ्नों में भी धैर्य ना त्यागी थी मीरा! बेरहम वक़्त की ठेस, सहती थी मीरा रोती भले पर ना कुछ कहती थी मीरा! ना मिले मोहन तो स्वयं छल गई मीरा कृष्ण भक्ति में ही देखो ढल गई मीरा! हंसकर हलाहल विषों का, पी गई मीरा राणा ने ढाए जुल्म फिर भी जी गई मीरा! निज उर की वेदना भी छिपाती थी मीरा आठो पहर कान्हा-कान्हा गाती थी मीरा! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
दर्द ही जीत की जननी
कविता

दर्द ही जीत की जननी

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** दर्द एक दुआ है दर्द एक ऐलान है दर्द दिल की छ्वी दर्द से ही दुनिया पनपती है जब दुनिया में एक बच्चा जन्म लेता है वो रोता है कराहता है चिल्लात्ता है दर्द का अनुभव उसे महसूसता है आहिस्ता-आहिस्ता वो चैन का सास भी अपनाता है माँ के दर्द की दुआ है वो कटपुतली सौ गुना ऊर्जा जो उसे खुदा ने दी थी वो देकर, सहकर दर्द के साथ वो अपने लाडले को जन्म देती है बेहद खुशी से उसे टटोलता है॥ आदमी की शुरुवात भी दर्द से आदमी की पहचान भी दर्द से साया जैसे उनके साथ चलते-चलते दर्द के साथ उन्हें मिट्टी से मिला देती हैं काश दुनिया में दर्द न होते तो कितना सूना लगेगा हमारी ज़िन्दगी दर्द से खुशी का मतलब हम समझते दर्द से ही किसी की राहें बनती है दर्द से ललकारें बनते है दर्द से ही आज़ादी का मंत्र निकालता है दर्द से ही कोई आशिक बनता है इसी से ही दुनिया में आशिकी पनप...
चौखट पर बैठी मेरी माँ
कविता

चौखट पर बैठी मेरी माँ

कृष्ण शर्मा सीहोर म.प्र. ******************** चौखट पर बैठी मेरी माँ कर रही है इंतजार मेरा, बॉर्डर से आये उसका बेटा, यही सोच के रास्ते निहार रही माँ। कॉटन की साड़ी लाऊंगा तेरे लिए माँ यही कहकर निकला था घर से, सब लोगो से यही बोल बोल कर, खुश हो रही है मेरी माँ। चौखट पर बैठी मेरी माँ। लायेगा इमारती, जलेबी मीठे में, खिलायेगा वो अपनों हाथो से, उसी मीठे की आश में, चौखट पर बैठी ही मेरी माँ। रातो में बार-बार उठ बैठ जाती है, किबाड़ की आहट सुनते ही, खोलकर देखती हे किबाड़ फिर से, दुःख में जाकर फिर लेट जाती है माँ। चौखट पर बैठी मेरी माँ। एक बहु भी लायेगा केहता था वो, बहु की नज़र उतरने के लिए, आश में आज भी बैठी है मेरी माँ। बापू से कहता था जीत लाऊंगा मैडल सारे सजा लेना छाती पर तुम, गर्व से करना मेरी बातें, हर सपना पूरा कर जाऊंगा। इन सपनो के सपने लिए आज भी चौखट पर बैठी है मेरी माँ। . ...
बाँटो विश्व प्रेम
कविता

बाँटो विश्व प्रेम

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** इतना बाँटो प्यार, प्यार मे सारा जीवन लय हो। आज घृणा की नहीं देश मे विश्व प्रेम की जय हो। बिना प्यार प्यासा हर पनघट, नयन नयन मे आज उदासी। आंगन आंगन मे सूनापन प्यार हुआ जब से सन्यासी। रुठ गया सुख चैन दिलो का, यह दुनिया शमशान हो गई। एक प्यार की वर्षा के बिन, सब धरती वीरान हो गई। कटुता रहे न शेष कहीं भी इतना तो निश्चय हो। आज घृणा की .... जाने क्या तूफान आ गया आज सभी मे स्वार्थ समाया। कुछ ऐसा ठहराव आ गया, अपना ही हो गया पराया। दुखियों की सेवा में तेरा, दया भाव अक्षय हो। विश्व प्रेम की जय हो। मानव का कल्याण करों यदि मानव का जन्म पाया। मानवता का मान घटाया, उसनें जीवन व्यर्थ गँवाया अभी भूल मान कर बंदे, आज हर्द्रय मे पीर जगाओं। जितना जग पीड़ित है उससे बढ़कर प्यार लुटाओं। हर दिल प्यार भरा हो, अब तो हर दिल ममता मय हो। आज घृणा की नहीं देश में विश्व...
परिंदा हूँ मैं
कविता

परिंदा हूँ मैं

विजय पाण्डेय महूँ जिला इंदौर ******************** रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नही। वक्त का मारा, परिंदा हूँ मैं। उड़ना भी चाहूँ मैं , उड़ पाता नहीं। जिंदगी के रन्ज गम, सह पाता नहीं। रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। गैरों के घर मेरा, आशियाना बना हैं। कब टूट जाए ये, मैं जताता नहीं। जो खुद ही तपन में, जलता रहा हैं। वो और का आशिया जलाता नहीं रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नहीं। धर्म भी कोई मैं, निभाता नहीं। मैं आरति बंदन, गाता नही। मैं मन्दिर,मस्जिद, बताता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नहीं। . परिचय :- विजय पाण्डेय पिता- श्री रामलखन पाण्डेय माता- मानवती पाण्डेय जन्म तारीख : १६/०६/१९८४ जन्म स्थान : लदबद बाणसागर शहडोल, मध्यप्रदेश वर्तमान निवास : महूगाँव महू जिला इंदौर शिक्षा : बी.ए व्यवसाय : नौकरी लयुगांग इंडिया पीथमपुर आप भी अपनी कविताए...