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कविता

मिले जो प्यार तुम्हारा
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मिले जो प्यार तुम्हारा

रचयिता : मुनव्वर अली ताज =========================================== मिले जो प्यार तुम्हारा मिले जो प्यार तुम्हारा तो मैं भी काश करूँ सुखों को अपना बनाऊँ दुखों का नाश करूँ हमेशा  साथ  निभाने  की तुम क़सम खाओ तो मैं  तुम्हारी  क़सम  मौत   को हताश करूँ जो तुम अदाओं की बिजली गिराने आ जाओ तो  मेरे  वश  में  नहीं  है  तुम्हें    निराश   करूँ अगर  समाज  को समझा  बुझा  के आओ तुम लगाऊँ   तुम   को  कलेजे  से   बाहुपाश   करूँ रुका   हुआ    हूँ   इसी  आस  में   दो  राहे   पर जो   आओ  तुम  तो  नई  ज़िन्दगी  तलाश करूँ घटाऊँ   जितनी  ये  उतनी   ही  बढ़ती   जाए  है तुम्हारी   याद  का  मैं  किस  तरह   विनाश  करूँ तुम्हारी   चाह   में   काँटे  अगर     मिलें   मुझ को तो  मैं   जुदाई   के   छालों   का   सर्वनाश    करूँ लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
वो लम्हें
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वो लम्हें

रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे ====================================== वो लम्हें कल की ही तो बात है! माँ की ऊंगली थामें एक बसती हुई नई बस्ती में आयी थी खुशी होती थी ईंट,टीन चद्दर से नई इमारतों बंगलों के बीच की खालीजगह पर बनी हमारी टापरी और रंगीन फट्टे से बनाई छत देख रेत के ढेर पर सखियों संग लोट लगाती घर बना सुन्दर सीप शंख पत्थर चुन सजाती खोदे ट्यूबवेल का पानी काॅच की चमक सी निकली पहली फुहार में खूब मजे से नहाती चुल्हा जलाने झाडियों से सूखी लकडियां लाने माँ के पीछे पीछे कुदते फुदकते हो लेती खाली जमीन मे उग आयी कटीली झाडियों मे लगे जंगली फूलों को तोड गुल्दस्ता बना इतराती फिरती सामने के बंगले से स्कूल जाते बच्चे को चुपक चुपकेे तकती और न जाने की जिद्द पर उसे रोते देख खुश होती माता पिता द्वारा मुझे स्कूल न भेजने पर अपने आप में सुकून पाती आज, कई बरस बाद भी ...
मानव ही मानव का शत्रु
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मानव ही मानव का शत्रु

रचयिता : रीतु देवी =============================================== मानव ही मानव का शत्रु मानव ही मानव के शत्रु है, कुदृष्टि डालकर तृप्त करते तन अनेक चक्षु हैं। मानवता का यहाँ कोई मोल नहीं, भाईचारा का बंधन अब दिखता नहीं कहीं, आनंदित होते धन-दौलत की अंधी गलियों में ही फंसकर मोह जाल मिल जाते मिट्टी में ही न जाने क्यों वहशी बन शैतानी करते है? लालची निगाहें अनगिनत जिन्दगानी लेते हैं। जागो, जागो इंसान मानवता का मूल्य पहचानों, वसुंधरा है सबकी न नष्ट करो अरमानों। लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे...
छोड़ चली
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छोड़ चली

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर ========================================== छोड़ चली मित्रो, आज में जो रचना सुना रहा हूँ। वह कभी रचना का सत्य हुआ करता था। ...जीवन में जो सोचते है वो होता नहीं।...कुछ लोग दुख देने के लिये ही आते हैै।। देखें विरह घड़ी ...आँख से रिसते आंसू कागज पर उकेरने की कोशिश।।...रागिनी को समर्पित।। मेरे मन की हरियाली पर पतझड़ छोड़ चली। अधखिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली ।।.... हम जिधर गए तुमको वहीं पर याद किया । जाने कितनों से मैंने प्रिय विवाद लिया । फिर क्यों तू ताजमहल चाहत का फोड चली ।।.. अध खिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली ।।... हमने ना गौरव माना अपनी हस्ती का। माँझी तुम्हें बनाया अपनी कश्ती का । फिर क्यों तू बीच भंवर में मुख को मोड़ चली ।।.. अध खिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली ।।... तुम जो कहते जीवन अर्पण कर देता मैं । तेरी खुशियों का स्वयं वरण कर लेता में ।...
साहित्य और सरकार
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साहित्य और सरकार

रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव ======================================================= साहित्य और सरकार किस प्रकार की है तेरी सियासत है कैसा इसका आकार, प्यार मोहब्बत आग को गए फिर कैसे है तेरा शाषन साकार। यहाँ न शिक्षा है , न रोजगार है बस जुमलों की बौछाड, बस पैसों के हि कान सही है नही तो बहरी है सरकार। मुँह चिढ़ाए देखो कैसे हंसता है ये अदना सा भृष्टाचार, शिल्प सुत सब महंगे हो गए बस सस्ता है ईमान। देखो कलम भी खो रही है अपनी ताकत हो रहा स्याही बेकार, ईमानदारी का चोला पहने होता है पत्रकारों का व्यपार। है जिसकी जैसी जमीर की किमत है मिलता वैसा साहूकार, फिरता नही बिका जमीर है साहुकार आज संसद का पहरेदार। देकर अपने मातृभूमि को गाली दिखाता है वो अपना राष्ट्रवाद, बहाकर कतरा-कतरा लहु का सिपाही है बचाता हमारा स्वराज। यहाँ मजबुरी और गरीबी की लगता है हर पल एक बाजार, मुर्दों ...
शब्दाँजली
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शब्दाँजली

रचयिता : मुनव्वर अली ताज =================================== शब्दाँजली   शब्द को शर्मसार मत करना शब्द को गुनहगार मत करना शब्द हो जाए न विमुख तुम से शब्द का तिरस्कार मत करना शब्द को संगसार मत करना शब्द पे अत्याचार मत  करना शब्द संवाद की सदाक़त है शब्द से व्याभिचार मत करना शब्द से झूटा प्यार मत करना शब्द से धोका यार मत करना शब्द सद्भावन का हामी   है शब्द को दाग़दार मत करना शब्द को मनमुटाव मत देना शब्द को भेद-भाव मत देना राम अपना है रब पराया है शब्द को ये सुझाव मत देना शब्द को तन से प्यार कर  लेना शब्द को मन से प्यार कर  लेना शब्द देगा तुम्हें अमर जीवन शब्द को धन से प्यार कर लेना शब्द का धर्म भी नहीं होता शब्द का कर्म भी नहीं होता सच है लेकिन ये सच नहीं प्यारे शब्द का मर्म भी नहीं होता शब्द पे दिल निसार कर देना शब्द पे जाँ निसार कर   देना शब्द को...
धरा तू महान है
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धरा तू महान है

रचयिता : मनोरमा जोशी =============================================== धरा तू महान है है घरती माँ ,तुझे प्रणाम , तू कितनी हैं महान । तेरे आँचल में पले जग सारा , हर प्राणी की तू हैं जान , तू बड़ी महान । सम भाव से सबको हांके चहुँ और रखती हैं ध्यान, हर समस्या का समाधान , तू बड़ी हैं महान । कभी बहाती तीव्र धारा, कभी रूखा रेगिस्तान, हर कृषक की पालनहार, तू हैं अमिट निशान , तू बड़ी हैं महान । तुझ पर अडिंग थमे हूए है महल कचहरी और मकान , कितने बोझ सहन कर तुमनें किया जन जन पर उपकार , तेरी महिमा अपरंपार , तुझमें उर्वरक शक्ति महान तुझ से रोशन सारा जहाँन तू माँ बड़ी महान । शत शत करु प्रणाम । लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और स...
धैर्य परीक्षा न लें
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धैर्य परीक्षा न लें

रचयिता : श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' ========================================================== धैर्य परीक्षा न लें 'अवनि' की धैर्य परीक्षा न लें न अस्मिता धरा की लुटने दें ला सकती है भूचाल 'अति' जो उसका है, उसको लौटा दें आओ मां की लाज बचा कर मातृभूमि का कर्ज़ लौटा दें दोहन कर न उसे निचोड़ें नहीं पर्यावरण प्रदूषण छेडें मूक पीड़ा से हम उसे उबारें वृक्ष लगा धानी चूनर ओढा दें आओ मां की लाज बचा कर मातृभूमि का कर्ज चुका दें मानव से दानव बन चुके इंसानों का भार हटा दें जो रक्त से उसको रंग दें उनका नामोनिशान मिटा दें आओ मां की लाज बचा कर मातृभूमि का कर्ज चुका दे पर्वत नदियां बाग बगीचे सिंचित फूलें फलें गोद में पाला जिसने सब कुछ खोकर उसको शोषण मुक्त करा दें आओ मां की लाज बचा कर मातृभूमि का कर्ज चुका दे नहीं कृतघ्नी बनकर लुटे न बंजर हो सूखी धरती न ज्वालामुखी भूमि ...
 आशियाना तिनका का 
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 आशियाना तिनका का 

रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव =================================================================== मालुम है ये शाख हि जमीन है मेरी और एक दिन काट दि जाएगी, मरने से पहले मरना और हारने से पहले हारना फितरत नही हमारी, जा रहा हुँ उस तूफ़ान से आंख में आंख मिलाने को, मैं तिनका - तिनका जोड़ूँ एक आशियाना बनाने को। भरोसा अपने पंखों पर बनता और बिगड़ता रहता है, मगर ये तमाशा जिंदगी भर यूँही चलता रहता है, जितनी अंबर बक्शी है तुने काफी है उड़ान भरने को, मैं तिनका - तिनका जोड़ूँ एक आशियाना बनाने को। ये जो पतझड़ है मौसम हि तो है ऐसे हि बदलते रहेंगे, इन्तेजार क्यों बसन्त और बहार का बदलना तो तेरे मिजाज से सिख लिया, तु कुछ कहे या मैं कुछ कहुँ अब दौड़ नही कुछ भी आजमाने को, मैं तिनका - तिनका जोडूं एक आशियाना बनाने को। चाँद थोड़ा धुंधला गया है अब केह- कहे युहीं लगते रहेंगें, अहम कि बातें थी ये सब वख्त...
मां भारती की पीड़ा
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मां भारती की पीड़ा

रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  ===================================================================== मां भारती की पीड़ा मैं हैरान थी, परेशान थी मुझे लूटा था, जकड़ा था उन धूर्त फिरंगीयों ने, मुझे आजाद कराया मेरे वीर सपूतों ने, तब मैं खुलकर हंसी चहकी थी, मेरी उन्मुक्त खिलखिलाहट चारों ओर फैली थी, मुझे गर्व होता था मेरे गांधी, जवाहर, सुभाष, चंद्रशेखर, भगत सिंह जैसे वीर सपूतों पर, मेरी लक्ष्मी जैसी वीरांगना बेटियों पर तब मैंने देखे थे ख्वाब, अब सब कुछ मेरा अपना होगा, अब ना होगा कोई बेसहारा, ना कोई भूखा सोएगा, अब मेरे बच्चे कामयाब होंगे अपना भविष्य बनाने में, अब मेरी बेटियां फिर से मान-सम्मान पाएगी l पर अब मैं हैरान हूं परेशान हूं, अपने टूटते सपनों को देखकर क्यों, क्योंकि अब मेरे अपने ही मुझे लूट रहे हैं मेरी बेटियों की आबरू से खेल रहे हैं मेरे बेटे एक दूसरे के खून के...
तूने देखा नजर लगी
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तूने देखा नजर लगी

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर =========================================================================================================== तूने देखा नजर लगी तूने देखा नजर लगी, पिया खिला बदन मुरझाया।।... मैं नाजुक सी कली चमन की, तू भंवरा दीवाना।-२ मुझे भरमाने भ्रमर करे, क्यों छेड़े राग तराना ।। तूने देखा नजर लगी, पिया कोमल तन कुम्हलाया।।... तूने देखा नजर लगी, पिया खिला बदन मुरझाया।।... नीम-हकीम सभी आए, वैरन ना नजर हटे है ।-२ सांसों की गति तेज हुई, मन ही मन क्या-क्या रटे है।। तूने देखा नजर लगी, पिया अंग-अंग झुलसाया।।... तूने देखा नजर लगी, पिया खिला बदन मुरझाया।।... दिन में तारे दिखते हैं, और रातें किरणों वाली। घरके जन सब कहें बावरी, सखियां देतीं गाली।। तूने देखा नजर लगी पिया, कहें प्रेत का साया ।।... तूने देखा नजर लगी, पिया खिला बदन मुरझाया।। परिचय :-   विनोद सिंह ग...
बजरंगी हो कमाल..
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बजरंगी हो कमाल..

रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" =========================================================================================================== बजरंगी हो कमाल..                                                       माता अंजनी के लाल,बजरंगी हो कमाल, महावीर महाभक्त रामजी के आज्ञाकारी हो, तीनों लोकों में तुम पूज्य,तुम सम न कोऊ दूज, थामें हाथ वज्र,ध्वजा श्रीराम के पुजारी हो, माता सीता के दुलार सारा जग करे प्यार, जय हो पवनकुमार तुम विशाल ह्रदयकारी हो, शत्रुओं के तुम काल,दुख हरते हर हाल, हर के धरा का तम करते जग में उजियारी हो, तुम्हारी महिमा का बखान खुद करते श्रीराम, सारे रोगों को हो हरते तुम महान उपचारी हो, बल,विद्या,बुद्धि,धैर्य का सभी को दो स्थैर्य, कलियुग के मुख्य देवता तुम जग के अधिकारी हो, लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि,लेखक एवं प्रेरक सतना (म....
तकता रहा मैं  अपलक अम्बर
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तकता रहा मैं अपलक अम्बर

रचयिता : भारत भूषण पाठक =========================================================================================================== तकता रहा मैं अपलक अम्बर तकता रहा मैं  अपलक अम्बर। सहस्त्र रश्मियों की कान्ति  दिवालोक में पड़ चुकी धूमिल।। विछोह की वेदना से हृदय  था व्यथित । क्या वो आएगी? शायद आ जाए! ऐसी थी आशा। न जाने क्यों  मुझको प्रतीत  हो रही थी निराशा ।। फिर भी  मन में लिया आस तकता रहा आकाश । शायद वो आए! मेरे  मन के बुझे दीप जलाए।। भयमिश्रित हृदय कर रहा था अबतक यह प्रश्न। क्या वो आएगी?शायद आ जाए। सुबह की बेला थी होने को शाम में परिणत। प्रतीत हो रहा था मानो वो भी हो मेरे संताप में रत।। कोलाहल से दूर मन अब भी  तकता था राह। थी जिसमें  पुष्पित- पल्लवित प्रेम अथाह ।। शायद वो आए!फिर भी .....वो न आई। मन में लिए जिज्ञासा आशा के दीप  जलाए। सहस्त्रों बार बूझे मन की...
शहादत
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शहादत

रचयिता : संगीता केस्वानी =========================================================================================================== शहादत हूं तिरंगे में लिपटा हुआ, मां की गोद में मीठी नींद सोया हुआ, गम जदा मां को बादल ने सहलाया है, पश्मिनी याख - बस्ता मर्म आंचल मुझपे ओडाया है, लहू बहा अंगारा जो देहकाया है, मस्त पवन ने खूब उसे बड़काया है, ना शोक मना, ना अश्क बहा, गाज बन गिरेगा वो, अभी विशाल तेरा सर्माया है। सुनहरी - धानी फसल बन इन खेतों में लेहराऊंगा, हरियाली की चादर ओढ़े तुझसे लिपट ही जाऊंगा, हूं तुझसे जन्मा ,तुझमें ही समाऊंगा, में रख बन तुझमें ही वीलीन होजाऊंगा, ना तुझसे जुदा हो पाऊंगा, आज जिसने खून से नहलाया है, उसे अंगारों से देहकाऊंगा, तेरे हर कतरा - ए - अश्क को बदल सुनामी में प्रलय - ताड़व मचाऊंगा।। की अपनी शौर्य शहादत से, हौसला - ऐ - इरादों से, दुश्मन...
कितनी प्रतिलिपियाँ
कविता

कितनी प्रतिलिपियाँ

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' =========================================================================================================== कितनी प्रतिलिपियाँ इस जिंदगी में बहुत     घटनाएँ घटी हैं मेरे यार  कितनी और सत्य   प्रतिलिपियाँ    भेजूँ तुम्हें मेरे यार   जिंदगी की जंग में अकेला लङता रहा हूँ         खुद से क्योंकि समस्या मेरी थी तुम्हें साथ कैसे ले      सकता था मेरे यार  कुछ यादों से भरी हैं कुछ घटनाओं से बनीं हैं ये जिंदगी की प्रतिलिपियाँ        हैं इन्हें कैसे जला दूँ     मेरे यार लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्...
हमारी वसुंधरा
कविता

हमारी वसुंधरा

रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर =========================================================================================== हमारी वसुंधरा सम्मान करो,तुम वसुंधरा का। जिसने हमको जीवन दान दिया है। मत भूलो तुम उसके ऋण को। जिसने वायु प्राण दिया है। सम्मान करो.....। जल रही अंगारो से यह। अब इसे बचाना हैं। अपनी सुन्दर वसुंधरा को। फिर से हरा बनाना है। सम्मान करो.....। इसी पावन वसुंधरा पर। नानक,गौतम, राम हुए हैं। लाखो वीर कुर्बान हुए है। युगों,युगों के इतिहासों के। बलिदानो को इसने देखा है। ना जाने कितनों सपूतो को।  अपने आँचल में समेटा हैं। सम्मान करो......। वसुन्धरा के कण-कण में।  उपजे हीरे-मोती हैं। धन-धान्य के भंडारो से लहलहाती खेती है। अपनी इसी वंसुधरा को। मिलकर हमे बचाना है। सम्मान करो.......। दिन-प्रतिदिन सूख रही। वसुंधरा मानव अत्याचारों से। जाग उठो अब दुनियॉ वालो। अ...
करके आजाद हमको वतन दे गये
कविता

करके आजाद हमको वतन दे गये

रचयिता : किशनू झा "तूफान" =========================================================================================== करके आजाद हमको वतन दे गये तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। उनके भी शौंक थे दिल जवानी भी थी, उनके भाई भी बहनें भी मां बाप थे। सोचा न एक पल दे दी कुर्बानियां, देशभक्ति के उनमें भी क्या जाप थे। देश के बाग में सींचकर  के लहू, फूलते फलते हमको  सुमन दे गये। तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। क्या हुआ नींद आयी जो वो सो गये, नींद दुश्मन के घर की उड़ाकर गये। गर जरुरत पड़ी सिर कटाने की भी, शान से शीश अपने कटाकर गये। जान को अपनी देकर वतन के लिए, वो बचाकर वतन को वतन दे गये। तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। मैं सदा उन शहीदों को करता नमन, जिनके कारण वतन मेरा आजाद है। हिन्दू मुस्लिम मिट...
हनुमान जी
कविता, धार्मिक

हनुमान जी

रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" ************************************************************************************************************************************************************ हनुमान जी सर्वप्रथम  प्रणाम  करुं राम  दूत  हनुमान  को । कलम से लिपिबद्ध करुं पवनपुत्र यशगान को ।। खेल में समन्दर लांघा समर के आव्हान को । सीता का पता लगाया बढ़ाया प्रभु मुस्कान को ।। ज्ञानियों में अग्रगण्य तुम बढ़ाओ मेरे ज्ञान को । अध्यात्मपथ का गामी हूं आतुर अमृत पान को ।। अतुल बल के धाम तुम मारो षडरिपु शैतान को । पाऊं  मैं राम  दरबार में भक्त  सम  सम्मान  को ।। लेखक परिचय : -  लेखक परिचय : -  नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन क...
दुनिया
कविता

दुनिया

रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" =========================================================================================================== दुनिया अजीब-अजीब हालात दिखाती है दुनिया । डर गये तो जीवनभर डराती है दुनिया  । जीवन में हमेशा मुस्कुराते रहो , गर रो दिये तो फिर रुलाती है दुनिया । जिंदो के हालात कोई न पूछे , मुर्दो को कंधे पर उठाती है दुनिया । गरीबों को रोटी भी सूखी मिल रही , पत्थरों को घी- दूध से नहलाती है दुनिया । कहने को तो शिक्षा का प्रसार हो गया , फिर भी अंधविश्वासों में खो जाती है दुनिया । जीवनभर जलें दुश्मनों की आहों से , फिर भी मरने के बाद जलाती है दुनिया । पत्थरों पर भी रस्सी के निशान हो गये , 'परिंदा' की बातें समझ न पाती है दुनिया । लेखक परिचय : -  नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा...
मैं जला हूँ दीप बन कर
कविता

मैं जला हूँ दीप बन कर

रचयिता : रामनारायण सोनी =========================================================================================== मैं जला हूँ दीप बन कर मैं तमिस्रा में जला हूँ दीप बन कर तैल की इक बूँद भी ना शेष होगी गंध बुझती बातियों की जब लगे प्रिय तुम्हारी प्रीत ही अवशेष होगीअंक में ज्वाला समेटे उम्र भर से जो तिरोहित हो रही नित रश्मियाँ पन्थ में तेरे बिछी है आस बन कर प्रस्तरों के भार सहती संधियाँ सांझ से ही चिर प्रतीक्षा जागती है हर निशा तो व्यंजना लेकर खड़ी है भोर तक है साध में यह लौ अकंपित भग्न अधरों पर पिपासा हर घड़ी है प्राण में हर पल निरे निःश्वास ही है जिन्दगी कण-कण तिमिर में घुल रही बंधनाएँ वर्जनाएँ बस प्राण की है थाम कर इन धड़कनों को चल रहीं परिचय :- नाम - रामनारायण सोनी निवासी :-  इन्दौर शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल प्रकाशित पुस्तकें :- "जीवन संजीवनी" "पिंजर प्रेम प्रका...
मेरा साया
कविता

मेरा साया

रचयिता : रुचिता नीमा ===========================================================================================मेरा साया आज जब आईने में खुद को देखा तो यकीन ही नही हुआ,,, गाड़ी , बंगला सबकुछ था , पर जिसे होना था पास मेरे।।। वो न जाने कहा खो गया था, घिरा हुआ था दूसरों के साये से खुद मेरा साया ही नही था।।। बहुत खोजा उसे लेकिन वो अंत तक नहीं मिला, इस दुनिया की दौड़ में मेने खुद को ही खो दिया।।। अब पाना है बस खुद को छोड़कर बाहर की जंग जीतना है खुद से ही करकर खुद को बुलंद लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म 2 जुलाई 1982 आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपन...
मैं करूँ तुझसे क्या गिला
कविता

मैं करूँ तुझसे क्या गिला

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर =========================================================================================================== मैं करूँ तुझसे क्या गिला मैं करूँ तुझसे क्या गिला, तौबा । तुझसा कोई नही मिला, तौबा ।।... मैंने सोचा कि तू अब हां कर देगी, ढा दिया तूने मुहब्बत का किला तौबा ।। तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... मैंने सोचा पर तू नहीं आई, किससे करूँ में गिला, तौबा ।। तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... पहले वो साईकिल से आते थे, अब विमानों का काफिला तौबा ॥ तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... ना दिन को चैन ना रात में सुकूँ, तू ही दे कुछ मशविरा, तौवा।। तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... वो कहीं जाते है तो बताते हैं, मेरी सल्तनत का ये जिला तौबा ।।... तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा सा...
कलम कारवाँ
कविता

कलम कारवाँ

 रचयिता : डॉ सुनीता श्रीवास्तव ============================================= कलम कारवाँ रूके ना कभी कलम मुझसे बढ़ता रहे विचारों का कारवां, एक बार चली जो कलम, रच दे कागज पर इबारत जहां तक फैला हो नीला आसमां। थके ना हम, पथ पर चलते रहे बना दे चहकते हुये विचारों का घरौंदा, उड़े सप्न-पाखी पंख पसारे नील आसमा में , उड़े कोई परिंदा। खत्म ना होकलम की काली स्याही चित्रित करे तूलिका से, रंग बिरंगे जीवन की कहानी, मिटे ना जो सदियों तक पृष्ठों से चढ़े रंग जैसी अमावस रजनी। लिखे एक सुनहरा ऐसा इतिहास प्रवाह उसकी बहे निरंतर चिरंतन, पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़े वह गाथा अमर हो जाए 'मेरा चिंतन'।   परिचय :-  नाम :- डॉ सुनीता श्रीवास्तव शेक्षणिक योग्यता - एम. एस .सी .,बी. एड.,पत्रकारिता डिप्लोमा ,साहित्य रत्न जन्म दिनांक - 3।7।59 जन्म स्थान - राजगढ़ (ब्यावरा)म.प्र. कार्य अनुभव - सांझ लोकस...
युगों के बाद कोई महावीर होता है!
कविता

युगों के बाद कोई महावीर होता है!

रचयिता : रशीद अहमद शेख =========================================================================================================== युगों के बाद कोई महावीर होता है! हर एक देश में हर युग में वीर होता है! युगों के बाद कोई महावीर होता है! जगत में छाती है जब-जब अधर्म की बदली! ज़मीं पे गिरती है रह-रह के ज़ुल्म की बिजली! जब आदमी को सताती है गुनाहों की उमस, अंधेरे दौर में आती है रोशनी उजली! जब आसमान की आंखों में नीर होता है! युगों के बाद ••••••••••••• महापुरुष तो ज़माने में आते-जाते हैं! भटकने वालों को रस्ता सही दिखाते हैं! प्रयत्न करते हैं कल्याण हेतु आजीवन, महान कर्म से इतिहास वे बनाते हैं! कभी-कभी ही कोई बेनज़ीर होता है! युगों के बाद •••••••••••••••• बस एक अवधि तक ही भूमि पाप ढोती है! फिर इसके बाद सिसकती है खूब रोती है! दशों दिशाओं में मचता है हाहाकार बहुत, मनुज को देख दुख...
लाचार हैं
कविता

लाचार हैं

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ============================ लाचार हैं खूब हैं लपटे जलाती  हम साधारण लोगों को  रिश्वत की अंधेरी रात में,    कब बीत जाती हैं  सारी उम्रे समझ ही     नहीं पाते ... बस खुद्दारी की तलाश में,   दिल तो तब रो उठता है  जब घर में बेटी पूछती है        पापा से ... कब तक जिएँगें जिंदा  लाश बनकर इस दुनियाँ में  न आने वाले अच्छे दिन       की तलाश में ... लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ...