कुछ लोग दूसरो को मिटाते मिटाते खुद ही मिट जाते है
***********
जीतेन्द्र कानपुरी
जिसमे कुछ करने का साहस नही होता
वो लोग दूसरों पर उगलियॉ उठाते है ।।
धूल मे उड़ जाती है सारी जिन्दगी ।
फिर भी अपनी पीठ थपथपाते है ।।
याद रखना जिन्दगी बहुत कीमती है
जो नही समझते , वही मात खाते है ।।
जिन्हें खबर नहीं होती सूरज निकलने की
वो दिन को भी रात बताते है ।।
रोशनी मे रहकर भी ,अधेरा खाते है ।
इनका भरोसा नहीं ,किसी से भी उलझ जाते है
कुछ लोग होते ही है ,,,,,,ऐसे बेपरवाह ।
दूसरों को मिटाते मिटाते ही खुद मिट जाते है ।।
लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ।
बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही ...















