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कविता

तुम अधीर ना होना
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तुम अधीर ना होना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दुख की धूप कभी भी सुत पर, जीवन में जब आती। आँचल की छाया देकर माँ, जीवन पाठ पढ़ाती। पनघट जैसी कठिन डगर है, जीवन मकड़ी जाला। नहीं उलझना मकड़जाल में, समझाती हूँ लाला। है जीवन तलवार दुधारी, इस पर कैसे चलना। हो प्रतिकूल परिस्थिति जैसी, उसमें कैसे ढ़लना। कठिन समय जब तुम्हें सताए, धीरज कभी न खोना। मन का अश्व रहे काबू में, तुम अधीर न होना। ऊँचाई पर चींटी चढ़ती, फिर फिर गिर जाती है। चढ़ती, गिरती गिरती, चढ़ती, आखिर चढ़ जाती है। बिना रुके तुम चढ़ते रहना, अगर शिखर हो पाना। सब के सहयोगी बनकर तुम, नाम अमर कर जाना। रंग चढ़ा दुनिया पर ऐसा, कोई काम न आता। मेरे प्यारे तुम बन जाना, सब के भाग्य विधाता। जीवन में पग-पग पर मिलते, हैं अपनों के ताने। फिर कैसे अपने हो सकते, जो हमसे अनजाने। अपनापन, अन...
शहर ऐक कोना सा‌‌
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शहर ऐक कोना सा‌‌

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** शहर ऐक कोना सा। खो गया मैं मंजिलों की अट्टालिका मैं, बिछड़ गया मैं भीड़ भरी जिंदगी में।‌ ना पूछे कोई खैर खबर, ना मिले सगे संबंधी। ना मिली चौपाल की बैठक।।‌‌ शहर ऐक कोना सा‌‌ कहां खो गई आम, नीम, पीपल की छांव।‌‌ नहीं दिखता दूर-दूर परिंदा, ना मुझे मिली इतराती कोयल की कुहू कुहू की आवाज।। ना मिले नीम, पीपल की छांव में लहराते झूले। शहर ऐक कोना सा। शहर की अट्टालिका में ढूंढ रहा अपनों को, न मिले सगे संबंधी।‌‌ ना मुझसे कोई पूछे खैर खबर।‌ शहर ऐक कोना सा। ना बोले प्यार से, भैया जय राम जी, जय गोपाल जी। निकला वह बाजू से, बोला हाय गुड मॉर्निंग।।‌ शहर ऐक कोना सा। ना दिखता सुबह का सूर्य उदय, ना सुनता पक्षियों का कलरव, ना मीठी कोयल की कुहू कुहू। ना मिला भोंरौ का गुंजन। शहर ऐक कौना सा। ना मिली माटी की...
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आत्म निर्भरता

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आत्म निर्भरता से हीं तेरा मनोरथ हो सफल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। विश्व में अपना पताका तुमको लहराना हीं होगा। जिंदगी की दौड़ में अव्वल तुम्हें आना हीं होगा। एक हो निर्णय तुम्हारा देश तब होगा प्रबल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। खुद बनों मालिक तु अपना कह रही माँ भारती। अपने जीवन रथ का खुद हीं बनना होगा सारथी।। सोंचने में मत बिताओ अपना सुनहरा आज-कल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। बेवजह की बात में अपना समय बर्बाद मत कर। कौन क्या कहता है इन बातों में घूंट-घूंट के न तु मर।। मेरी इन बातों को तु अपने जीवन में कर अमल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। कश्मकश जीवन में है इस कश्मकश से तु उबर। जिंदगी की राह में तुझको तो चलना है निडर।। कौन है अपना-पराया इस मुसीबत से निकल। बांध लो कस...
मेरे जीवन की आधार प्रिये
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मेरे जीवन की आधार प्रिये

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** गृहस्थी में ये वर्ष पच्चीस प्रिये, बनाये जग ने सुधामय हो | मिले जग को शतावृतसुधा, तन मन तुम्हारा निरामय हो || मेरे जीवन की आधार प्रिये, रजत वर्ष मंगलमय हो..... पंथी बन एकाकीपथ के हम, किया शिव ने प्रशस्तमय हो | रहे एकाकी दोनों साथ हम, किये सिद्धांत तो दृढमय हो ||मेरे जीवन.... नहीं स्पर्धा धनियों कोई, हैं आदर्श हमारे धनमय हो | बने रहे हैं हम परस्पर धन, इसीसे जीवन सुखमय हो ||मेरे जीवन.... सुता सुत तेरे शिवाशीष, लधूनाशीष उभयोंपर हो | देंगे हम दोनों इन्हें आशीष, लधूनाशीष हम दोनों पर हो ||मेरे जीवन..... दिखाए लधूनेश्वर वानप्रस्थ मार्ग, अब गृहस्थ मार्ग अमृतमय हो | बनी रहे महादेव लधून की अनुकम्पा, जीवन तुम्हारा शतायुमय हो || जीवन तुम्हारा शतायुमय हो, सौभाग्य तुम्हारा अखण्डमय हो | मेरे जीवन की आधार प्रिये, रजत व...
छांव मेरी मां
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छांव मेरी मां

आशीष द्विवेदी समदरिया शहडोल (मध्यप्रदेश) ******************** छांव है मेरी तू मां जान मेरी है तू मां बिन तेरे ना देख पाते सुबह हम मां मेरे ख्वाबों का परिणाम तू है मां मुझे इस दुनिया में तूने ही तो लाया है सबसे लड़ कर तू मुझे बचाती सबसे तू मेरे लिए लड़ जाती हो मां तू धूप मैं तेरा तो छांव बनना चाहूं मां इस जग में सबसे ज्यादा तो तूम प्यार करती हो मां मैं ना तेरे मन की बात जानू, लेकिन तूम तो सब जानती हो मां मां सबसे प्यारा निर्मल तेरा तो प्यार है मां हम ना जाने तेरी भावों को, छुपाते तूम रहती हो मां तूम दुःख हो सहती मगर, अपने लाल को नहीं जातती हो मां तेरे बिना ना हम है, ना ही जानेंगे इस दुनिया को मां तू ही तू पहचान है मेरी मां तेरे नाम से है मेरी ये दुनिया मां छांव है तू मेरी मां मैं कैसे भूलूंगा मां हम सभी को मां का ख्याल, प्यार देना चाहिए अपनी ‌म...
शुक्ल पक्ष की चांदनी
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शुक्ल पक्ष की चांदनी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** माॅ, शुक्ल पक्ष की चांदनी तुम हमें देती रही स्वयं कृष्ण पक्ष की चांदनी सी ढलती रही चांदनी का यूं ढलते जाना क्यों हम गवारा करें अमावस की रात, जीवन में कभी तुम्हारे पग न धरे। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 ...
माँ
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माँ

रोहिणी नन्दन मिश्र गजाधरपुर गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** नौ दस माह लिये कुक्षि में जिसने सब भोग विलास बिसारा जाकर रूप अनूप दिखा सबसे पहले जब नैन उघारा पाँव उठा पहला जिसने तब हाथ बढ़ा कर अंक पसारा होंठ हिले पहले तब 'नंदन' माँ बस माँ यह शब्द उचारा जाकर पावन गोद सुहावन शीतल पीपल छाँव सरीखा पीकर दूध सनींद शिशू सुख देख लगे अमरावति फीका 'नंदन' हूक उठे उर माँ सिर देख बुखार खरोंच तनी सा वैद बुलाकर दीठि झराकर माँ भर माथ लगावय टीका आतप झेल सहे चुपचाप कहे न कभी सब भेद छुपावे माँ उपवास करे दिन रैन परन्तु हमे भरपेट खिलावे झूर पलंग हमें पउढ़ाकर सीलन में खुद रात बितावे माँ सम 'नंदन' को जग में अपना सुख देकर दुःख बुलावे अम्बर सागर बादल माँ अरु पर्वत नागरबेल विताना माँ अमरी शबरी जसुदा गिरिजेश सुता सिय वेद पुराना दान दया ममता बलिदान सनेह तपस्या अलौकिक ना...
माँ
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माँ

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** माँ जब तुम कसके चोटियां डालती थी बचपन में मेरी, गुस्से से आग बबुला हो जाती थी ये प्यारी सी गुड़िया तेरी! माँ जब तुम भगवान को प्रशाद चढ़ाने तक खाना नहीं देती, मुहँ फुलाकर कोने मे बैठ जाती थी ये प्यारी सी गुड़िया तेरी! माँ आज बिलकुल समय नहीं मिलता के खुद के बाल जरा सँवार लू, तू जैसी चाहती है वैसी कसके चोटी आ तेरे हाथों से डाल लू! और खाना तो अब सिर्फ तेरे ही हाथ का अजीज और लज़ीज़ लगता है, जिसके लिए मै दुनिया का फाईव स्टार होटल भी छोड़ दूँ! तुम्हारी गुड़िया, संगीता परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
माँ
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माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** "माँ" के लिए क्या लिखूं, आकाश सा व्याप्त वो शब्द, जिसे वेद व्यास भी परिभाषित ना कर पाए माँ सरस्वती भी कुछ समझा ना पाई! "माँ" के समक्ष हर सागर भी दरिया लगता है हर पर्वत हर गगन छोटा लगता है इंद्रधनुष के हर रंग समाए हैं इन नैनों में "माँ" है सृष्टि की जननी "माँ" से ही है ये जग जीवन, ब्रम्हांड समाया है "माँ " में हर पूजा प्रार्थना का आशीष है "माँ", खुद में ही सम्पूर्ण है जो, वो एक शब्द है "माँ" जन्नत है इनके चरणों में प्रकृति का रूप है "माँ" शक्ति का स्वरुप है "माँ" अखंड ज्योति की लौ है "माँ" क्यूँ हो एक दिन ही मातृ दिवस? नित क्यूँ ना करें हम "नमन" इन्हें? ईश्वर का प्रतिरूप है "माँ" नित शत-शत इनको नमन करें!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म ...
मातृदिवस पर तुझे नमन
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मातृदिवस पर तुझे नमन

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** यों तो हर दिन तेरा ही मां तुझ बिन कुछ न भाया था तुझसे है अखिल सृष्टि सब पर तेरी ममता का साया था मैं जब संसार में आया तब था मां ने ही गोदी उठाया था लोट पोट कर सरकने लगा तो मां ने उठना सिखाया था लड़खड़ाकर गिरता तो मां ने ही चलना सिखाया था मिट्टी में रेखाएं खींचता तब मां ने लिखना सिखाया था मैं पहाड़े रटने लगा तब मां ने ही गिनना सिखाया था मैं बस *मां* जानता था मां तूने ही गुरु से मिलवाया था गर्भ से जन्म दिया तूने फिर ज्ञान से द्विज बनवाया था मैं राह भटक रहा था तूने धर्म का मर्म बतलाया था मां तेरा उपकार न भूलूंगा मुझे पशु से इंसान बनाया था मातृदिवस पर तुझे नमन मां सृष्टि का नमन स्वीकार रहे जब तक सृष्टि बनी रहेगी मां तू ही जगत आधार रहे। परिचय :-  डॉ. भोला दत्त जोशी निवासी : पुणे (महाराष्ट्र) शिक्षा...
माॅं की महिमा निराली है
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माॅं की महिमा निराली है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** माॅं की ममता, माॅं की क्षमता महिमा गजब निराली है । ९ माह कोख में रखकर, सकल जगत को पाली है... माॅं न्यारी है , माॅं प्यारी है । माॅं कोमल-सी महतारी है । परिवार की खुद रक्षा कर, धरम करम करनेवाली है... माॅं बहू है , माॅं ही सास है । परिवार की अटूट विश्वास है । घरेलू कारज निर्वहन कर, माॅं गृह प्रमुख घरवाली है... माॅं ही अम्मा, माॅं ही मम्मा है । माॅं ही नींव-सी खम्भा है । अमृत-सी दूग्ध-पान कराकर, वात्सल्य सिंचती माली है ... माॅं वंदनीय है, माॅं पूजनीय है । जगत दायिनी आदरणीय है । घर गृहस्थी बीड़ा उठाकर, संस्कार देकर संभाली है ... माॅं करुणामयी, माॅं ममतामयी शीतल-सी छत्र छाया है । नित्य सद्गुण अपनाकर, दया दृष्टि वृक्ष-सी डाली है... माॅं की भक्ति, माॅं की शक्ति है । सद्गुणों से सजती सॅ...
जरा मुस्कुरा दो माँ
कविता

जरा मुस्कुरा दो माँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जरा मुस्कुरा दो माँ तेरा आँचल मेरे चेहरे पर डाल जब आँचल खींच बोलती "ता" खिलखिलाहट से गूंज उठता घर। गोदी में झूला सा अहसास मीठी लोरी माथे पर थपकी अपलक निहारने नींद को बुलाने आ जाने पर नरम स्पर्श से माथे को चूमना। आँगन में तुलसी सी मां मेरी तोतली जुबान पर मुस्कुराती माँ क्योकि मैने तुतलाती जुबान से पहला शब्द बोला "माँ" जैसे बछड़ा बिना सीखाये रम्भाता "माँ" दुआओं का अनुराग लिए रिश्ते-नातों का पाठ सिखाती माँ खाना खाने की पुकार लगाना जैसे माँ का रोज का कार्य हो। वर्तमान भले बदला माँ की जिम्मेदारी नहीं बदली अब भी मेरे लिए सदा खुश रहने की मांगती रहती ऊपर वाले से दुआ। रात हो गई अभी तक नहीं आया की माँ करती रहती फिक्र ऐसी पावन होती है माँ। खुद चुपके से रो कर हमें हँसाने वाली माँ पिता के डाटने पर मे...
तेरे चरणों मे माँ तीरथ द्वार है
कविता

तेरे चरणों मे माँ तीरथ द्वार है

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** माँ मैं कहाँ जाऊँ, कहाँ भटकूँ तेरे चरणों मे ही तीरथ द्वार है, सारे देवता हैं माँ तेरे चरणों मे नमन करूँ तुझको बारम्बार है। करूँ स्तुति मैं, करूँ आराधना करूँगा मैं तेरा, नित गुणगान है, जग में है माँ तेरी पावन महिमा माँ तू ही इस जगत में महान है। तुम ही हो जग की जन्मधात्री तुम ही तो हो पहिली गुरुमाता, तुम हो शक्ति माँ देवी स्वरूपा तुम ही तो हो माँ सृजन-कर्ता। तुम ही तो हो माँ वात्सल्यमयी तुम ही माँ ममता की खान हो, तुमसे बढ़कर जग में कोई नही तुम ही देती सबको वरदान हो। माँ तुम हो सबकी पालनहारी और तुम ही हो दया की मूर्ति, तेरे बिना सब यह जग है सुना तुझसे यह धरा-धाम सँवरती। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे
कविता

अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे

कमलेश मिश्रा बांसडीह बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे शब्द भी कंठों से निकल रोने लगे ये आसियाँ सा दिखता जहाँ धूल सा अंधियो मे मिलने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। जब जागते अंगड़ाईयो मे तब खोह खड्डे खाइयो मे चिड़ियों के भी घोशले कुछ चिड़ियों सा उड़ने लगे फिर नीड़ के निर्माण मे घायल भी खग उड़ने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। कुछ नीति नाते मोड़कर कुछ रूढ़ियों को तोड़कर चार कंधो पर उठाकर अपने हीं समशान मे हीं छोड़कर मुह मोड़कर चलने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। अब शाम हो चली हैं चल लौट जाते हैं घर इस जिंदगी कि राह मे हैं जिंदगी का हीं डर इस ख्वाब कि ऊंचाइयों मे हम ख्वाब सा होने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। परिचय :- कमलेश मिश्रा पिता : आदित्य मिश्रा जन्म : ०२-०८-२००६ निवासी : बांसडीह बलिया (उत्तर प्र...
गौ माता
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गौ माता

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** गौ माता धन्य हो तुम। अन्नपूर्णा माता कहलाती हो। गृह लक्ष्मी गौ माता दुग्ध। दुह कर परिवार जन। दुग्ध पय करावे नित। पर देखो कैसी विडम्बना। गौ माता दुग्ध पान वंचित। गौ माता निज संतान। जबकि सर्वोपरी अधिकार। प्रथम दुग्धपान गौ माता। निज संतान बछड़ा हो। या बछड़ी। किंतु मानव स्व हित। गौमाता स्व संतान। मां दुग्ध ना पा सके। इक खूँटे बँधी अल्प। घास उदर पोषण हेतु मजबूर। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
विलक रही है आत्मा मेरी
कविता

विलक रही है आत्मा मेरी

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** विलक रही है आत्मा मेरी, वो खिसक रहे हैं हाथों से। दिन का चैन गया सब मेरा, और नींद गयी सब रातो से।। तडप रहे हैं वो भी कितना, है लगता उनकी आंखों से। सूख रहा प्रेम वृक्ष नित दिन, मानो पत्ते चले गए शाखो से।। अब मुड़ना भूल गयी है बाहें, मिली नहीं है सांस ही सांसों से । लाल बर्फ बना लिए हैं अश्रू, क्या डरना अर्थी के बांसो से।। शायद बढना होगा आगे अब, गुजरते हुए ही लाशों से। लड़ना होगा मिलकर हमको, राक्षसमयी सामाजिक दासों से।। परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रे...
जमीं पर नहीं पैर मेरे!
कविता

जमीं पर नहीं पैर मेरे!

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जाने क्यों आज, जमी़ पर नहीं पैर मेरे ! मैं होंसलों के पंख लगा, एक नई उडा़न भरना चाहती हूँ नील गगन में। मैं पंछी बन स्वच्छंद, ऊँचाइयाँ चूमना चाहती हूँ नील गगन में। मीलों दूर चली जाऊंँ अनंत आकाश में, खिसक न जाए जमीं पैरों से मेरे, मैंआना चाहती हूँ पुनः घरोंदों में, पैर सदा रहें जमी पर मेरे। जाने क्यों आज जमी पर नहीं पैर मेरे! सागर में गहराई जितनी हृदय में इतनी थाह ले, जीवन का हर संघर्ष मैं जीतना चाहती हूँ जिंदगी के बाद भी अस्तित्व मेरा बना रहे, पैर सदा रहें जमीं पर मेरे। जाने क्यों आज ज़मीं पर नहीं पैर मेरे! मैं अतीत, मैं वर्तमान हूँ, मैं जननी भविष्य की हूँ, मेरी संतति, मेरी संस्कृति मेरेअस्तित्व की जड़ें सागर की गहराई सी. जमी रहें हर काल में, उपस्थिति सदा रहे मेरी, नीलाम्बर की ऊँचाइयो...
सच्चे पित्र भक्त
कविता

सच्चे पित्र भक्त

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** भीष्म पितामह गुरु द्रोण और कर्ण को धनुर्विद्या के गुर सिखलाए हैं। अन्याय पाप कर्म जब धरती पर दुराचारी राजाओं ने बढ़ाए है। ऐसे दुराचारीयो को श्री परशुराम ने ही इस धरती से मिटाएं है। परशुराम अवतार भगवान विष्णु का छठा अवतार कहलाता है ऋषि जमदग्नि रेणुका जैसे माता-पिता की संतान का कहलाए हैं। भगवान परशुराम सच्चे पित्र भक्त तीनों लोकों में माने जाते है। पिता की आज्ञा से माता की गर्दन काट आज्ञा का पालन कर पाए है। पिताजी ही से वरदान पाकर फिर अपनी जननी के प्राण लौटाए हैं क्षत्रिय वंश का नहीं इन्होंने हैहय वंश का इक्कीस बार संघार किया। भीष्मपितामह गुरुद्रोण और कर्ण को भी धनुर्विद्या के गुर सिखलाए हैं परशुराम के पिता से जब सहसरार्जुन ने बलपूर्वक कामधेनु छीनी थी। सहस्त्रार्जुन जैसे योद्धाओं को अपने इस फर...
बेवफ़ा मैं हूं नहीं
कविता

बेवफ़ा मैं हूं नहीं

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम न समझो या न समझो, बेवफ़ा मैं हूं नहीं दूर हूं तुमसे मगर, तुमसे खफा मैं हूं नहीं मयकदे में मय की चर्चा खूब करता हूं मगर साथ यादें हैं तुम्हारी, ग़मजदा मैं हूं नहीं सात जन्मों की कसम है साथ तेरा है मेरा इस जहां की भीड़ में भी गुमशुदा मैं हूं नहीं मैं हवा के साथ हूं लेकर चले मुझको जहां क्या गरम ठंडी भी क्या वाद ए सबा मैं हूं नहीं गलतियां तो सब से कुछ ना कुछ हुआ करती यहां मैं भी उनमें एक हूं अब देवता मैं हूं नहीं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ...
देखा नहीं
कविता

देखा नहीं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी कोई पास है या दूर सोचा नहीं कभी मेरे उदास लम्हों में दरख़्त ही साथ थे खोया हुआ बचपन बुलाया नहीं कभी। रस्मों रिवाजों की जंजीरों में जकड़े रहे हरदम अलकों सा तन्हाई को बिखेरा नहीं कभी क्या खाक रहे हम जमाने के बहाव में जमाने ने हमें समझा यही समझा ही नहीं करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी गमे जिंदगी के यारों साथ ही जाएंगे ता जिंदगी ले पाया है कोई खुशी कभी फक्र है कि हम तनहाई में भी जी लेते हैं कौन चाहता है घुट कर मर ना कभी करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी। जमाने की निगाह ने हमें बेहाल कर दिया। वरना काबिल थे हम तो सहने के लिए सभी। सोचा था जिंदगी में चलेंगे बनाकर कारवां। मिले बिछड़े ले जाना नहीं हाले दिल कभी। करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी। न जानते थे तन्हाई ना जानते थे कारवां दरख्तों क...
कविता

ये जनम-जनम का नाता है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** इतना भी दूर नहीं है माँ, क्यों लाल मेरे चिल्लाता है। तेरे और मेरे बीच सुनो, ये जनम-जनम का नाता है।। तुझको हर वो कुछ देती हूँ, जो तेरे मन को भा जाये। कोई भी वस्तु नहीं जग में, जो तेरे जी को ललचाये।। तु मेरा राजा बेटा है, ये बात गवारा मत समझो। अब तुझे बताना होगा हमें, क्या तेरा नेक इरादा है।। इतना भी दूर नहीं है माँ, क्यों लाल मेरे चिल्लाता है। तेरे और मेरे बीच सुनो, ये जनम-जनम का नाता है।। है मेरे आँख का तारा तु, जीवन का एक सहारा तु। है अरमानों की बगिया का, इक अदभूत सुमन हमारा तु।। अपनी माँ की इस ममता पर, कभी प्रश्न खड़ा न कर देना। मेरे जीवन को लाल मेरे, आनंद ज्योति से भर देना।। जीवन की हर कठिनाई को, तुझे कोसो दूर भगाना है। हंसते-हंसते हीं जीना है, हंसते-हंसते मर जाना है।। इतना भी दूर ...
दुनिया है तलवार दुधारी
कविता

दुनिया है तलवार दुधारी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सीख ले दुनियादारी निर्मल जंग पड़ी है सारी निर्मल। दुनिया वालों से क्या बतलाना अपनी हर लाचारी निर्मल। संभल के रहना पल-प्रतिपल दुनिया है तलवार दुधारी निर्मल। मन में है विश्वास तो इक दिन जीतेगा तू बाजी हारी निर्मल । नोच खाने को सब आतुर हैं मत रख सबसे यारी निर्मल। खा जाएगी तुझको इक दिन सच बोलने की बीमारी निर्मल। बहकावे में आ के पागल मत बन खुद में रख थोड़ी होशियारी निर्मल। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कव...
हम अपने अंदर को झांकें
कविता

हम अपने अंदर को झांकें

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हो सके तो हम, अपने अंदर को झाँकें यहॉं-वहाँ हम, दूसरे को बाहर न ताकें। हम गौर करें अपना, करें स्वआँकलन स्वआत्मा के, आवाज का करें पालन। हम स्वयं है अपना, कुशल मार्गदर्शक यहॉं-वहाँ की बातें, करना है निरर्थक। हम स्वयं हैं स्वप्रेरक, बने अपनी प्रेरणा हम प्रकाशवान बने, न करें अवहेलना। हम अपने कर्म-फल, को बनाएँ महान इसी से मिलेगा, जगत में मान-सम्मान। बनाले ले कुछ, अलग अपनी पहचान बन जाएँ स्वच्छ छबि, का भला इंसान। अपने कर्मों का रहे, हमे हरदम ध्यान बने हम सभ्य मानव, इसका रहे ज्ञान। हमारे व्यवहारों का, सभी करे गुणगान हमसे भूल से न हो, किसी का अपमान। हम अपने को ही सुधारें, जग बने महान हम सुधरें जग सुधरेगा, यही है बड़ा ज्ञान। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्य...
ब्राह्मण
कविता

ब्राह्मण

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ब्राम्हण होकर ब्राम्हण का, आप सभी सम्मान करो! सभी ब्राम्हण एक हमारे, मत उसका नुकसान करो! चाहे ब्राम्हण कोई भी हो, मत उसका अपमान करो! जो ग़रीब हो, अपना ब्राम्हण धन देकर धनवान करो! हो गरीब ब्राम्हण की बेटी, मिलकर कन्या दान करो! अगर लड़े चुनाव ब्राम्हण, शत प्रतिशत मतदान करो! हो बीमार कोई भी ब्राम्हण, उसे रक्त का दान करो! बिन घर के कोई मिले ब्राम्हण, उसका खड़ा मकान करो! अगर ब्राम्हण दिखे भूखा, भोजन का इंतजाम करो! अगर ब्राम्हण की हो फाईल, शीघ्र काम श्रीमान करो! ब्राम्हण की लटकी हो राशि, शीघ्र आप भुगतान करो! ब्राम्हण को अगर कोई सताये, उसकी आप पहचान करो! अगर जरूरत हो ब्राम्हण को, घर जाकर श्रमदान करो! अगर मुसीबत में हो ब्राम्हण, फौरन मदद का काम करो! अगर ब्राम्हण दिखे वस्त्र बिन, उसे अंग वस्त्र का दान करो! ...
बिन शिक्षा बेकार
कविता

बिन शिक्षा बेकार

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** बिन शिक्षा बेकार, होय नाकारा जैसा। नही मिले सम्मान, पास हो बहु धन पैसा।। पढ़ा-लिखा जो खूब, मान उसका बढ़ जाता। पद कद ऊंचा होय, सभा में वो चर्चाता।। है शिक्षा में सार, बाल उसके सब पढ़ते। सब करते तारीफ, पैर निज मंजिल चढ़ते।। काम बने आसान, मिटे सारी दुविधाएं। सुख भोगे संसार, पाय सारी सुविधाएं ।। पढ़ता वेद पुराण, कुरान बाइबिल गीता। पाये ज्ञान अपार, आधुनिक और अतीता।। बन महान विद्वान, नाम जग में चमकाये। ये सकल करामात, पढा है वो कर पाये।। है बाघिन का दूध, पीये वो दहाड़ेगा। वो ही भाषणवीर, बात कहे लताड़ेगा।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवासी : रानीवाड़ा, जिला-जालोर, (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. बीएड सम्प्रति : वरिष्ठ अध्यापक कवि, लेखक, समीक्षक। ...