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स्त्री

मधु अरोड़ा
शाहदरा (दिल्ली)
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हां मैं स्त्री हूं,
युगों-युगों से
तुम्हारी सहचरी हूं,
सृष्टि की निर्माता मैं,
लालन-पालन करती हूं।
अपने शरीर से,
नव शरीर की संरचना करती।
मुझे नाज है अपने पर
मैं शक्ति स्वरूपा दुर्गा भी
नर हो तुम तो नारायणी में,
मेरे बिन जीवन तुम्हारा अपूर्ण।

हां मैं स्त्री हूं,
धरा बन जग को जीवन देती,
पालित, पुष्पित भी करती,
मेरी गोद में पलते सब
पुष्पित, पल्लवित होते सब।

हां मैं स्त्री हूं
जीवनदायिनी में गंगा
कल-कल-कल-कल करके बहती,
प्यास बुझाती अमृत बन में
शीतलता से मन को भर देती
मैं ज्ञानदायिनी,
न्याय कारिणी, शारदा बन
बुद्धि का विकास करती।
अग्नि बन दुखों को हरती
सहनशीलता गुण है मेरा,
हर किसी का
सम्मान हूं करती।
मुझको ना सताओ
तरसाओ तुम,
ना काली बनने पर
मजबूर करो
संस्कारों में बंधी हूं,
मैं एक नाजुक सी डोर हूं मैं,
कंधे से कंधा
मिलाकर चलती हूं,
हरदम मेहनत मैं करती।
ना मैं बेचारी ना मैं अबला हूं,
मैं सुंदर शांत स्वरूपा।
ना कहो कमजोर हूं
मैं सहना मेरी कमजोरी है ।
पर प्यार तुम्हीं से करती हूं
प्यार पर तेरे मरती हूं
घर गृहस्थी संवारने को
सब कुछ सह जाती हूं,
संस्कारों से बंधी हूं,
कोमल हूं कमजोर नहीं।
सम्मान की हकदार हूं मैं,
कभी काली कभी दुर्गा।
अन्नदानी अन्नपूर्णा हूं,
सीता दुर्गा अनसूया सी
नवनिर्माण देश का करती।
किसी ना किसी रूप में छाया बन
जन्म से मृत्यु तक साथ निभाती।

परिचय :– मधु अरोड़ा
पति : स्वर्गीय पंकज अरोरा
निवासी : शाहदरा (दिल्ली)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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