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घर

संजय जैन
मुंबई

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न गम का अब साया है,
न खुशी का माहौल है।
चारो तरफ बस एक,
घना सा सन्नाटा है।
जो न कुछ कहता है,
और न कुछ सुनता है।
बस दूर रहने का,
इशारा सबको करता है।।

हुआ परिवर्तन जीवन में,
इस कोरोना काल में।
बदल दिए विचारों को,
उन रूड़ी वादियों के।
जो घरकी महिलाओं को,
काम की मशीन समझते थे।
और घरके कामो से सदा,
अपना मुँह मोड़ते थे।।

घर में इतने दिन रहकर,
समझ आ गये घरके काम।
घर की महिलाओं को
कितना होता है काम।
जो समयानुसार करती है,
और सबको खुश रखती है।
पुरुषवर्ग एकही काम करते है,
और उसी पर अकड़ते है।।

देखकर पत्नी की हालत,
खुद शर्मिदा होने लगा।
और बटाकर कामों में हाथ,
पतिधर्म निभाना शुरू किया।
और पत्नी का मुरझाया चेहरा,
कमल जैसा खिल उठा।
और मुझे सच्चे अर्थों में,
घरगृहस्थी समझ आ गया।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ – साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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