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मेरी माँ … प्यारी माँ …

प्रभा लोढ़ा
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मेरी प्यारी माँ …
दिल में हमेशा तुम रहती हो,
बता न पाती,
तुम्हें कितना चाहती मैं
यादें बचपन की अक्सर
आ आ कर
गुदगुदी कर जाती जीवन में।।
वो हँसना-हँसाना खेलना
और व्यंजनों का स्वाद
तुम्हीं हो जो हर पल
रखती सबका ध्यान
मुझे साथ रखती,
हर काम में निपुण बनाती
मेरी हर इच्छा पुरी करती
छत पर धनिया पोदीना सुखाती
गोभी व मौसमी सब्ज़ी बनाती
मैं काम न करती तो रुठ जाती
घर का कोई काम न आता
मेरी बहन भतीजी
हर काम में निपुण
पापा से जा कर
मेरी शिकायत करती
मैं भी तुम्हें
मनाना जानती
हंस कर इधर-उधर
भाग जाती
तुम भी हँस कर
चुप्पी साध लेती
आज भी उम्र के
इस पड़ाव पर पहुँच कर
कितना ध्यान
रखती हो हम सबका
अस्वस्थ किसी का
सुन कर परेशान हो जाती
घरेलू इलाज का पिटारा खोल देती
कितने नुस्ख़े सुना जाती
कहती अपना ध्यान रखो
खाने की शौक़ीन
पाक प्रणाली की किताब
रोज़ पढ़तीं जैसे हो गीता
खाना ख़ज़ाना आज भी
देखती पर अब बना न पाती
माँ तुम्हें कहती हूँ अब मैं
खाने पर जरा कॉन्ट्रोल किया करो
अपने पर भी थोड़ा ध्यान दिया करो
रोज़ कसरत व सुबह सैर किया करो
धर्म ध्यान में मन लगाओ
हमेशा तैयार होकर रहा करो
तुम्हें प्यार बहुत करती हूँ
मेरी प्यारी प्यारी माँ
बिसरा ना पाउंगी तुम्हे
मिले चाहे सारा जहां
मेरी माँ …
प्यारी माँ …

परिचय :- प्रभा लोढ़ा
निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र)
आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफी की परीक्षा पास की। आप गृहणी की भुमिका निभाते हुए कई संस्थाओं में सक्रिय है। आपकी समाज सेवा, धार्मिक कार्य, असहाय बच्चे व महिला शिक्षा में विशेष रुचि है। आपकी जीवन यात्रा, उड़ान, उमंग ये तीन स्वरचित काव्य संकलन प्रकाशित हुईं। कॉफ़ी-टेबल बुक माँ, और हेपी ६५वां बर्थडे दो किताबें प्रकाशित हुई। शिक्षा घर घर पहुँचे यह आपका स्वप्न है।
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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