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प्राइवेट नौकरी

रीना सिंह गहरवार
रीवा (म.प्र.)

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नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी
जरूरतों ने गुलाम बनाया साहब का,
जरूरतों ने नवाब बनाया साहब को।
नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी।
हम भी थे कभी बंदे नवाब, पर…..

जरूरतों ने गुलाम बनाया साहब का।
यहां टैक्स पड़ता है देना गुफ्तगू का भी,
न दिखने वाला पट्टा बांधा साहब ने गले में,
नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी।
पूछो न, की कितनी मशक्कत बनने को गुलाम,
गुजारी सारी उमर स्कूलों और कालेजों में,
बनने को गुलाम।
की हासिल डिग्रीयां तमाम, बनने को गुलाम।
सोचा था कर हासिल डिग्रियां तमाम,
हम भी बनेंगे कभी बंदे नवाब,
पर जरूरतों ने बनाया गुलाम साहब का।
नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी…..

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परिचय :- नाम – रीना सिंह गहरवार
पिता – अभयराज सिंह
माता – निशा सिंह
निवासी – नेहरू नगर रीवा
शिक्षा – डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत


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