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महिला पंडितो ने कराया विवाह … इंदौर में पहली बार अनूठा प्रयास

विदेशी मेहमान भी हुए शामिल …
विवाह विधि में पढ़े गए मंत्रों का अर्थ हिंदी व अंग्रेजी भाषा में भी समझाया …

इंदौर : आज पुरुष प्रधान समाज में स्त्री सशक्तिकरण के कार्य पूर्णत: प्रगति पर है वहीं दूसरी ओर रूढ़िवादी परंपराओं का इस्तेमाल जारी हैं। सकारात्मक तौर पर इस बात का ज्वलंत उदाहरण इंदौर में एक अनोखी एवं प्रेरणादाई विवाह समारोह में देखने को मिला यह अवसर था वर अंकुर लोकरे व वधु सुरभि बकोरे के विवाह समारोह का…. जहां विवाह संपन्न कराने वाली पुरोहिताएं डॉ. मनीषा शेटे व चित्रा चंद्रचूड़ स्वयं महिलाएं थीं। एवं वर व वधु पक्ष की और से पधारे मेहमान इस विवाह समारोह के साक्षी थे।आज जहां कुछ रूढ़िवादी परंपराए स्त्री विकास के मध्यस्थी एक रुकावट बनी हुई है वहीं वर पक्ष एवं वधू पक्ष की प्रगतिशील विचारधारा के चलते वर की माता को यह सौभाग्य उसके पुत्र ने दिया। जहां उसके पिता न होने की वजह से उसकी माता को यह अधिकार नहीं था की वह उसका विवाह संपन्न करा सके। परन्तु इस दकियानूसी परंपरा का खंडन करते हुए वर ने अपनी माता को यह अनुभव भी कराया।

इस अनोखे विवाह की प्रेरणा पुणे में स्थित एक संस्था ज्ञान प्रबोधिनी से मिली जो रूढ़िवादी परंपराओं का खंडन करते हुए स्त्री एवं पुरुष को समानता के अधिकार के तर्ज पर हिन्दू समाज के सभी संस्करों का अनुभव कराती है। कम से कम व्यय एवं समय में विकासशील परंपराओं के साथ अतिसरल विधि से प्रत्येक मंत्र एवं विधियों का सविस्तार हिंदी एवं अंग्रेजी में समझाया ताकि सभी भारतीय एवं विदेशी अतिथि इस विवाह का अर्थ एवं महत्व समझ सके।
आज एक तरफ जहां समाज विवाह के अधिक व्यय एवं विवाह की लंबी विधियों को लेकर बड़ी दुविधा में रहता है जिसमें कई तरह की फिजूलखर्ची होती है वहीं यह विवाह समारोह भी पूर्णत: वैदिक पद्धति में था। जो स्त्री एवं पुरुष को समानता का बोध कराता है।
वर की शैक्षणिक पात्रता समाजिक कार्य में उच्च स्नातक हैं एवं वधू ग्राफिक डिजाइनर हैं।
आज समाज में भौतिकवादी विचारो के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपना विवाह धूम धाम से करने एवं कराने की होड़ में हैं। यह सिर्फ एक दिखावा है परन्तु व्यय कैसे एव कितना होना चाहिए इस बात को अकसर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

इस विवाह में न तो कोई बारात थी न ही किसी तरह का दिखावा था जिससे समाज या प्रकृति का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शोषण हो। पशु प्रेमी होने से घोड़ी का प्रयोग भी नहीं किया गया। हिन्दू समाज में जहां वधू का नाम बदलने की भी प्रथा हैं वहीं इस प्रथा का खंडन करते हुए वर एवं वधू ने वधू का नाम न बदलने का निर्णय लिया। वधू के विवाह पश्चात उसे नए नाम के साथ नया परिवार मिलता हैं परन्तु प्रगतिशील विचारधारा के कारण वर ने वधू की पुरानी पहचान को आगे बढ़ाते हुए वधू का पुराना नाम जाहिर किया।

“जब समाज में प्रगतिशील विचारधारा का प्रवाह होगा तब समानता का भाव भी समाज में उत्पन्न होगा।”

 


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