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बाकी है

जयश्री सिंह बैसवारा
सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश)

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अभी तो कदमों को
राहों पर लाया है
उड़ान अभी बाकी है,
इम्तिहान कहाँ
खत्म हुआ है मेरा
मंज़िल-ए-मुकाम
अभी नहीं हासिल है,

वक्त बेवक्त चल
पड़ती हूँ उस ओर
अभी तो सारा
नजारा बाकी है,
जिंदगी जो रूकी हुई
थी मेरी कल तक
उसे आगे बढ़ना बाकी है,

पल भर की रौनक
नहीं अब यहाँ
माथे पर मेरे
निशान बाकी है,
रूकना अभी कहाँ
मयस्सर है मेरे लिए
अभी काफिलों का मेरे
पिछे चलना बाकी है,

रौनक तो है अभी
भी महफ़िलो में
मगर महफ़िल का
मेरे नाम होना बाकी है,
तुम्हारा इतराता भी ठीक है
मगर मेरे गूरूर की आंधी
का आना अभी बाकी है,

शहर भले ही
तुम्हारा क्यूँ न हो
मगर भीड़ मेरे
नाम की हो,
ये नजारा भी बाकी है,
चल देखते हैं कब तक
खत्म नहीं होती ये जंग
अभी वक्त का मेरी
तरफ होना भी बाकी है….।।

परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा
निवासी : सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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