साहस भर लो अंतर्मन में
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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साहस भर लो अंतर्मन में, श्रम के पथ जाओ।
करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।।
साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा।
जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा।
काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं।
जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं।।
मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो।
ज़िद पर आकर, हाथ बढ़ाओ, बढ़ते ही जाओ।
करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।।
असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है।
सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है।।
असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है।
रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है।।
चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियारा लाओ।
करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।।
भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है।
एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है।।
हार मिलेगी, तभी जीत की...