बदल नहीं पा रहा हूं
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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अछूत हूं साब,
गंगाजल से भी नहाता हूं,
नित्यप्रति प्रार्थना करने
मंदिर भी जाता हूं,
ये अलग बात है कि
वहां लतियाया जाता हूं,
वहां से घर आकर घरवालों को
सुनी कथा सुनाता हूं,
चमत्कारियों का
हूनर बताता हूं,
साल में कई बार
कराता हूं पूजापाठ,
ये परंपरा नहीं भूलता
चाहे गरीबी रहे या ठाठ,
पूण्य कमाने की
चाहत रखता हूं,
प्रवचनों का
स्वाद चखता हूं,
अपने पूर्वज का
सर कटाने के बाद भी
नित्य मंत्र जपता हूं,
लोग खाने को मेरे घर में
नहीं आते तो क्या हुआ
मंदिर में भंडारे कराता हूं,
ब्रह्मदेवों को जिमाता हूं,
इतना सब कुछ
करने के बाद भी
पता नहीं क्यों अभी भी
बना हुआ हूं अछूत,
पता नहीं देवों को
क्यों नहीं आ रही दया
जस का तस ही हूं
नहीं हो पा रहा सछूत,
तो बताओ किसको दोष दूं?
अपनी जात को?
उनके खयालात को?
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