बाबा साहब का कुर्ता
अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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बाबा ने फूल का गट्ठर रखते हुए कहा, "बाईजी, जरा एक गिलास पानी दे दो। पानी लेकर, रेखा भी पुराने कपड़े गिनाने लगी।" बाबा साहब का कुर्ता नजर नहीं आ रहा है। बाईजी, "बहू से पूछकर बताती हूं।"
देखिये, उसकी हेराफेरी इतनी बड़ी कीमती है, जो होनी नहीं चाहिए। साहब का पसंदीदा पहरावा है।
हां बाईजी, "ध्यान रखने को कहा हूं। मेरा तो बस इतना ही काम है आस-पास के लोगों के कपड़े पहनना। भला अब मेरी उम्र भी क्या हो गई है, एक पैर कब्र में ले जाया जा रहा हूं, कभी भी बुलावा आ जाए।"
बाबा ऐसे तैयार रहो रहने वालों की उम्र और बड़ी होती है बाबा
बाबा ने रेखा को ऊपर से नीचे तक देखकर बोला, "जिंदगी भर ठाट से रह रही है, बाईजी, बड़े से बड़े लोगों के काम में। कभी-कभी झटकाकर नहीं चलता। जमाना पलट गया है, बेटों का राज आया, फ़टे हाल से भी फ़टा सामान बना है। फटी धोती दिखाते...