कमाल की दवाई
अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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"कमरे से बाहर जाओ ... !!" सुहानी ने बच्चों को डांटते हुए कहा।
"नहीं हम बाहर नहीं जायेंगे। हम होस्टल से घर हमारी दादी से मिलने आये हैं। पूरा समय उनके साथ रहेंगे।
सुहानी नर्स थी। परेशान हो गई। बच्चों को डांटने लगी।
आवाज सुनते ही दादी ने आंखें खोली। और सुहानी को कहा, बच्चे मेरी ताकत है। तुम्हें मेरी देखभाल के लिए नियुक्त किया है। इन्हें डांटने के लिए नहीं।
दादी मैं तो आपकी भलाई के लिए कह रही हूं, रूआंसी हुई सुहानी कमरे को संवारने लगी, कनखियों से दादी को देखते हुए आश्चर्य चकित थी। अस्पताल से डाक्टर ने यूं कहकर घर भेज दिया था कि ये कुछ दिनों की मेहमान है। उसने सुना बच्चे कह रहे थे, दादी, मम्मी पापा तो आफिस गये हैं आप ही हमें आपने हाथ से खिला दो ना। दादी का चेहरा चमक रहा था। सुहानी को आवाज लगाई। मुझे रसोई में ले चल। बच्चों को मैं अपने ह...