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Tag: डॉ पंकजवासिनी

भीगे नयन विदा
कविता

भीगे नयन विदा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** मांँ भारती के वीर सपूत ! सब की गई है हिम्मत टूट !! विधि का बड़ा निर्मम घात है ! दिन में ही हो गई रात है !! राष्ट्र ने हिम्मत खोई है ! हा, हर आँख आज रोई है !! वीर प्रसु धरा है सिसक रही ! हाय, चिंता पास खिसक रही !! सिंह सा तू दहाड़ता रहा ... अरि को सदा ही पछाड़ता रहा ... ऊंँचाई पर जंग तुम लड़े ... जंग विशेषज्ञ अव्वल बड़े !! सर्जिकल स्ट्राइक का कहर ढा... आतंकी शिविर करके ध्वस्त !! उरी पुलवामा शहीदों का ! बदला विपिन ने लिया समस्त !! जवाबी कार्रवाई विशेषज्ञ ! दुश्मन बढ़ा न पाए निज पग !! वीर सैनिक परम देशभक्त ! स्वाॅर्ड ऑफ ऑनर अलंकृत !! की देश सुरक्षा की सेवा ... मिला विशिष्ट पदकों का मेवा !! राष्ट्रहित को परिवार अर्पित ! कई पीढ़ी तव रही समर्पित !! लेफ्टिनेंट लक्ष्मण के सपूत ! नमन तुझे भारती के प...
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
कविता, स्मृति

डॉ. राजेंद्र प्रसाद

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सादा जीवन और थे उच्च विचार ! सत्यनिष्ठ, शांत, निर्मल व्यवहार !! निष्ठावान उच्च मूल्यों को अर्पित ! राष्ट्र सेवा हेतु जीवन समर्पित !! कर्तव्यनिष्ठ देशभक्त राजनेता ! महान व्यक्तित्व ज्यो सतयुग त्रेता!! बिहार जीरादेई सिवान जिला ! कमलेश्वरी गोद अप्रतिम कमल खिला!! सामान्य जमींदार परिवार में पले... कोलकाता लॉ कालेज स्नातक पढ़े!! वहीं उच्च न्यायालय में किया अभ्यास! फिर पटना तबादले का किया प्रयास !! गांधी के आह्वान पर होकर विकल! कानून की प्रैक्टिसे छोड़ दी सकल !! महात्मा गांधी थे उनके आदर्श ! सत्य अहिंसा का लघु जीवन विमर्श !! असहयोग, सत्याग्रह, भारत छोड़ो! मे सक्रिय रह बोले ब्रिटिश बल तोड़ो!! भोगी कारावास की यातनाएँ ! आत्मबल समक्ष नत रही विपदाएं!! राष्ट्रहित हेतु बने सक्रिय पत्रकार ! हिंदी हित आजीवन राष्...
आदिम रंग में रँगा बाजार के प्रतिकार का पर्व छठ पूजा
आलेख

आदिम रंग में रँगा बाजार के प्रतिकार का पर्व छठ पूजा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** घोर बाजारीकरण के युग में भी बाजार का प्रतिकार करते घोर आदिम और पुरातन रंग में सराबोर लोक-ठाठ एवं लोक-आस्था व गहन श्रद्धा-भक्ति का परम पावन पर्व है छठ पूजा! यह शुद्धता, सात्विकता, स्वच्छता, सामूहिकता, सरलता और पवित्रता का महापर्व है! छठ पूजा प्रकृति और मनुष्य के बीच तथा प्रकृति एवं पुरुष के बीच आत्मिक संबंध, गहन जुड़ाव एवं समन्वय का पर्व है! इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह किसी भी प्रकार के कर्मकांड, मूर्ति पूजा, पाखंड-आडंबर और पंडा-पुरोहित के हस्तक्षेप से पूर्णतया मुक्त मनुष्य की विशुद्ध श्रद्धा एवं गहन आस्था का पर्व है! यह पर्व जाति, धर्म, वर्ण एवं ऊंँच-नीच तथा राजा-रंक और अमीर-गरीब के भेदभाव से बहुत ऊपर एवं बिल्कुल अछूता है!! प्रकृति के साथ मनुष्य के आत्मीयता से आप्लावित सह-अस्तित्व और लोक संवेदना का पर्व है यह! मिट्ट...
छठ पूजा
आलेख

छठ पूजा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** प्रकाश और ऊष्मा की संजीवनी धारे देदीप्यमान सूर्य की करूं मैं उपासना सर्वतोभावेन कुशल हर्षित आनंदित हों सब लोक-आस्था पर्व की अशेष मंगलकामना! भारतीय समावेशी संस्कृति की साकार प्रतिमूर्ति उस छठ पूजा की अशेष मंगलकामनाएँ जहाँ उत्कर्ष ही नहीं, अपकर्ष का... उदयाचलगामी सूर्य की ही नहीं, अस्ताचलगामी सूर्य की भी पूरी श्रद्धा-भक्ति से ओतप्रोत होकर वंदना करते हैं कि बुरे/गर्दिश/पतन के दिन में भी किसी की उपेक्षा/अवमानना नहीं करो..... उसके भी सुदिन आएंगे और तब वह तुम्हारे जीवन को आलोकित करने, ऊष्मा की संजीवनी से आप्लावित करने की क्षमता रखता है.... जहाँ सभी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं कोई छोटा बड़ा, अमीर गरीब, धनी निर्धन, स्त्री पुरुष, सवर्ण अवर्ण नहीं...... बस श्रद्धा के पात्र हैं! जहाँ केला सेब नारियल ही नहीं, सुथनी शकरकंद व गगरा नीं...
वह भी दिवाली मनाएगा
कविता

वह भी दिवाली मनाएगा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** अबकी मिट्टी के दीये लाना! फिर देखना उसका मुस्कुराना!! प्यारे मोल भाव तनिक न करना! मुट्ठी उसकी खुशी से भरना!! फिर देखना उसके चेहरे को! कम होते दुख के पहरे को!!! फिर वह भी दीवाली मनाएगा! घर अपने खुशहाली ले जाएगा!! बिटिया उसकी भी इठलाएगी! मांँ के संग दीये जलाएगी!! छोड़ेगी भाई संग फुलझरियाँ! धानी संग पिरोएगा खुशी की लड़ियांँ!! इस बार बनेगा घर में घरौंदा! बिक जाए मुंँहमांँगे दाम जो सौदा!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
ख्याल
कविता

ख्याल

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** पलकों पर ठहरे तुम्हारे ख्याल रह-रहकर दस्तक दे जाते हैं ख्वाबों की दहलीज पर! और एक बारगी उफन पड़ते हैं चांँदनी रात में ज्वार भाटा की तरह...!! वर्जनाओं के सारे कूल-कगारे तोड़!!! तब कितना डरता है मन! अंतस् में पलते दिव्य प्रेम की चिंता में!! कहीं लग ना जाए इसे दुनिया की नजर!! और हर रात दबे पांँव जो सिरहाने आ कर सो जाते हैं तुम्हारे ख्याल! वो कहीं इस रौशनी की चकाचौंध में खो न जाएँ!! फिर कहांँ से लाया जाएगा जेठ की दुपहरी भरी तपिश में शीतल मृदुल बने रहने का माद्दा!?! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मांँ कुष्मांडा
स्तुति

मांँ कुष्मांडा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** भक्ति भाव ले हृदय, आए तव द्वार! शीश नत चरणों में, करो मांँ उद्धार!! सृष्टि की उत्पत्ति के पूर्व छाया था.... जग में चहुँओर गहनतम अंधकार!! था न कोई भी जीव जंतु धरा पर! तब लीं मांँ अंबे कुष्मांडा अवतार!! मंद स्मिति से रच दिया कुल ब्रह्मांड! कहलाईं आदिशक्ति चतुर्थ अवतार!! आयु यश बल ऐश्वर्य प्रदायिनी हैं! सृष्टिकर्ता माँ शुभता की आगार!! शंख चक्र गदा धनुष बाण शुभ कमल... कमंडल जपमाला अष्टभुजा धार!! अनाहत चक्र को मांँ करें नियंत्रित! गदा चिह्न है पूर्ण विजय कुल विकार!! ईश्वरीय ज्ञान धारण कर कमंडल! करतीं प्रभु ज्ञान का अन्य में प्रसार!! धनुष बाण चढ़ा ज्ञान-तीर चलाएंँ...! शुभ कलश में धर भक्त हित अमिय सार!! चक्र कराता निज शक्ति की पहचान! कमल प्रतीक कलि-दोषों का परिहार!! माला ले मांँ करें नित अजपा ज...
तीक्ष्ण प्रखर दिनकर
कविता

तीक्ष्ण प्रखर दिनकर

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सिमरिया के सरोवर में... प्रस्फुटित एक अद्भुत कमल! सौम्य तेजस्वी दिनकर!! मार्तंड सा था भास्वर! काव्य के दिव्य गगन में... दिनकर की वाणी प्रखर!! आजीवन गाते रहे मानवीय चेतना के उन्नायक: गायन अमर! कभी सिंधु गर्जन को ही दे दी चुनौती और बने युगधर्म के विकट हुंकार! रस में डुबो रसवंती रचा काव्य सरस सुंदर! उर्वशी का अद्भुत श्रृंगार!! आमजन के न्याय के हित रहे ललकारते ही सदा हारे न कोई जीवन समर। विद्रोह ओज के कवि तुम रश्मिरथी कुरुक्षेत्र में भर उठे प्रचंड हुंकार! पद्य के साथ गद्य में भी लिख डाले अध्याय चार! भारत संस्कृति के सुंदर!! राष्ट्रीय चेतना जाग्रत... कर जन-गण के अंतस में... बने राष्ट्रकवि दिनकर! रवि सम तेजोदीप्त छवि ! राग के संग आग का कवि !! विमल यश फैला संसार !!! ...
गुरु
कविता

गुरु

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गुरु! तुम हो सृजनहार धरा पर! और माटी के लोंदे हम!! रौंध-रौंध के...थाप-थाप के... सजग प्रहरी-सी संभाल से... देकर भीतर से सहारा! रचा तूने ओ सृजनहारा!! सारी खर-पतवार निकाली... जितने भी खोट के थे उगे! सारे कंकड़-पत्थर बीने... जो घट की सुंदरता छीने!! अहंकार की गांँठ कुचल के! दी विनम्रता की लुनाई!! अज्ञानता की गहन कारा से ले चला निकाल, पकड़ बाहें.. ज्ञान के आलोकमय पथ पर.. निज साँसों की ऊर्जा देकर!! प्रभु ने तो बस जन्म दिया! गुरु ने जीवन को अर्थ दिया!! आहार निद्रा भय मैथुन से उठा... धर्म कर्तव्य का पाठ पढ़ाया!! पशुता की कोटी से निकाल... मनुजता के आसन पर बिठाया!! लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ से ऊपर स्नेह सौहार्द्र त्याग परोपकार बताया!! बताया: हम हैं कुल से विखण्डित जीवात्मा! सर्वोपरि है सृष्...
कान्हा की सीख
कविता

कान्हा की सीख

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** छूटने का दर्द जानते हो??? कितना पीड़ा दायक! कितनी टीस भरी !! कितना टभकता हुआ!!! क्या जीवन में कुछ छूटने के बाद भी मुस्कुरा सकते हो??? एक बार देखो कान्हा को! सबसे पहले गर्भ छूटा माँ का! (जन्म से पहले ही) फिर माँ बाप!! फिर छूटे पालक माता-पिता! बचपन का आंगन छूटा!! संगी साथी छूटे!!! छूट गए सब ग्वाल-बाल ! छूटा पास-पड़ोस सारा !! छूटी यमुना अति प्यारी !!! और छूटे सरस सघन लता-कुंज सारे ! भरी जिनमें जीवन की प्याली!! छूट गईं... गोकुल की भोरी गोपियां! गोकुल का मिश्री-माखन!! और छूटी.... आत्मा की संगी! प्रिय राधा रानी!! आह! "चिर बिछोह"!!! क्रीड़ा भूमि गोकुल छूटा! कर्म भूमि मथुरा छूटी!! सबको आह्लाद की सरिता में अंतरात्मा तक डुबोती! जीवनदायी मुरली!! भी छूट गई हाय!!! कान्हा! जाने कितनी पीड़ा ...
लिए संग-संग आपको जीती… मैं आपका ही अंश
स्मृति

लिए संग-संग आपको जीती… मैं आपका ही अंश

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** बड़ा अभिमान होता है मुझे कि मैं मानवता के पैरोकार, ४८ पुस्तकों के रचनाकार प्रोफेसर श्यामनंदन शास्त्री जी की बेटी हूंँ! जिन्होंने आज से आधी सदी पूर्व ईश्वर से विकल प्रार्थना में मुझे मांँगा और मेरे जन्मोत्सव में विवाह जैसा भव्य आयोजन कर रिश्तेदारों में १०,००० के कपड़े मारे खुशी के बाँट दिए....... ये सब उस देश, प्रदेश और समाज में जहांँ बेटियों के जन्म की खबर पाकर मांँ-बाप और रिश्तेदारों की छाती सूख जाती है! चेहरे पर मुर्दनी छा जाती है!! तथा मन और घर में मातम पसर जाता है!!!.... जहांँ आज के इस इकीसवीं सदी में भी कन्या भ्रुण-हत्या जैसा क्रूर, घिनौना और अमानवीय कृत्य बेखटके चलन में है!! फिर बड़े नेह से, छोह से, जतन से पाला मुझे.... रेशा-रेशा गढ़ा मुझे ... भाइयों से जायदा दुलारा मुझे... पढ़ाया मुझे... डबल एम.ए., पीएच. डी. नेट. स्लेट क...
रक्षाबंधन
लघुकथा

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** मेघा बड़ी जतन से रेशम के धागे लिए ब्रश से झाड़ रही थी! उसके पास ही तरह-तरह के छोटे-छोटे रंगीन नग-स्टोन, गोंद-कैंची रखे हुए थे! लक्ष्य परेशान था कि मांँ क्या कर रही हैं? कहीं यह राखी तो नहीं बना रहीं... !?! पर उसने स्वयं ही मांँ के दोनों भाइयों को बाजार से राखी खरीदकर पोस्ट कर दिया था। तो अब भला मांँ राखी किसके लिए बना रही हैं!?! उसकी प्रश्न सूचक हैरान दृष्टि देख मेघा ने कहा... जितेंद्र के लिए राखी बना रही हूंँ। बिल्कुल विस्मित होकर लक्ष्य बोला अरे! वह तो मुझसे भी छोटा बच्चा है मांँ! फिर उसके लिए राखी आप क्यों बना रही हैं? मेघा ने कहा- हांँ, उम्र में वह मेरे बच्चों से भी छोटा है। पर जब मेरा पूरा परिवार कोरोना महामारी की चपेट में आया मौत से जूझ रहा था और बिस्तर से उठने की स्थिति में भी नहीं था तब इसी शहर में रहने के बावजूद कोई भी ...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** रक्षाबंधन है आज! कई बार कह देते हैं लोग "दो और लो" का पर्व इसे! लेकिन नहीं, मैं नहीं मानती यह!! आज तो "बहना" ने अपने हृदय की अनंत शुभेच्छाएंँ... उज्ज्वलतम स्नेहिल भावनाएँ... अनंत आशीष... दिव्य प्रार्थनाएँ... "भाई" के प्रति रेशम की पावन डोर में पिरो कर बांँध डाली है उसकी कलाई पर!! अपने उत्कट स्नेह की अभिव्यक्ति की है उसने!! "परीक्षा" भी लेती है वह अपने "स्नेह" की!! जब पीहर सूना हो जाता है बाबुल की समर्थ दुलार से... और माँ की विकल प्रतीक्षा से...!! भाई का भी प्रण कुछ उपहारों के रूप में आया है बहना के समक्ष! उसकी हर परिस्थिति में रक्षा की... बरगदी छत्रछाया देने का आश्वासन बनकर! वह रक्षा करेगा उसकी तमाम विपदाओं और प्रतिकूलताओं से... उबारेगा उसे तमाम दुर्बलताओं से... भरेगा अकूत विश्वास उसके मन में ब...
धन्य किया भारत को नीरज
कविता

धन्य किया भारत को नीरज

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हरियाणा का छोरा नीरज! किया सतत् घन तप, धर धीरज...!! तपस्या हुई है फलीभूत! ओलंपिक खिला स्वर्ण- पंकज!! कर के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन! किया है हर्षित देश का मन!! स्वर्णिम उपलब्धि भारत की! बधाईयांँ दे रहा जन- जन...!! भाला फेंक में स्वर्ण जीता! देश खुशी का मय है पीता...!! बजा टोक्यो देश का गान...! ओलंपिक- स्वर्ण खेल-गीता!! पूरा आर्यावर्त हर्षित ...! उम्र तइस -तरुण स्वर्ण- अर्जित!! शत वर्ष बाद एथलेटिक्स...! इतिहास रच किया है गर्वित ... !! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
आर्यावर्त के सूर्य
कविता, संस्मरण, स्मृति

आर्यावर्त के सूर्य

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे आर्यावर्त के सूर्य! तुम्हें क्या दीया दिखाऊँ!! हे मानवता के दिव्य उज्ज्वल रूप! बलिहारी जाऊँ। दीन-हीन-पीड़ितों के हित लहराय तुझ हिय में प्रखर कैसी अप्रतिम उत्कट सहानुभूति का अगाध सागर! सादा जीवन जीया औ सदा ही रखे उच्च विचार! अपनी कथनी करनी से दिखाय सदा उच्च संस्कार!! साहस, संघर्ष, पौरुष के साकार रूप रहे सदा तुम! सदा ही किये चुनौतियों मुश्किलों का सामना तुम!! जीवन के पथ पर अनवरत चलते अनथक राही तुम! सतत् प्रेरणा के शुभ स्रोत बने परम उत्साही तुम!! बालकाल से ही जीया अभावों का दूभर जीवन! खेलने-खाने की उम्र से ही करन लगे चिंतन-मनन!! मांँ की ममता से भी वंचित, हा महज आठ की वय में! झेला विमाता का दुर्व्यवहार औ पिता का धिक्कार!! कैशोर वय में ही आ पड़ा तेरे कोमल कंधों पर : पूरे परिवार-पाल-पोस क...
कारगिल के शूरों की वाणी
कविता

कारगिल के शूरों की वाणी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सिंह हम दहाड़ कर! शत्रु को पछाड़ कर!! सबक दिया पाक को झंडा अपना गाड़ कर!! कर उठे जो सिंहनाद! अरि कहाँ फिर आबाद!! राष्ट्र हवन कुंड में आहुति का आह्लाद!! करके वज्र हुंकार! शत्रु को चीर - फाड़!! कर भस्म समर में पहने हम विजयहार!! राष्ट्र कोई मेष नहीं! पाक सिंह-वेश नहीं जो ले दबोच अंक में हिंद कोई दरवेश नहीं!! अरि के हर घात का सौ सौ प्रतिघात का दिया मुँहतोड़ जवाब हर विश्वासघात का! हम नहीं हैं डरने वाले! मातृभूमि पर मरने वाले!! पग तले कुचलके मसलके अरि का गर्व हरने वाले!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं,...
योग और जीवन
कविता

योग और जीवन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** संत विकसित ध्यान की एक पारंपरिक पद्धति! योग नियंत्रित करने का साधन तन मन गतिविधि!! पतंजलि ऋषि ने किया शुभ योग का आविष्कार! स्वस्थ रखे तन को योग, मन को दे शुभ्र विचार!! योग है तन मन चेतना आत्मा का संतुलन! करे मानसिक भावनात्मक व्याधियों का शमन!! इडा पिंगला सुषुम्ना शक्तिशाली ऊर्जा स्रोत! ये नाड़ी जो साधा, हुआ परमात्मा- संयोग!! ऋषि-मुनियों ने किया बहुत सदा जीवन में योग! कलि-युग में उपयोगी बड़ी, प्राणायाम सुभोग!! तन मन को यह जोड़ता परमात्मा से संयोग! तन मन को देता ताजगी और भगाता रोग!! नित समय पर कर इसे, सुंदर स्वास्थ्य पाएंँ! नित योग अति लाभकारी, सभी इसे अपनाएँ!! प्राणायाम और आसन योग के प्रमुख अंग! इन्हें अपनाकर जीतेंगे जीवन की हर जंग!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रो...
अमर सपूत महाराणा प्रताप
कविता, संस्मरण

अमर सपूत महाराणा प्रताप

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** राजपूती शान हैं राणा! देश का अभिमान हैं राणा!! मुगलों के समक्ष नग सम अटल! चित्तौड़-आन रक्षक थे राणा!! राणा भरे जब-जब हुंकार! समर में गूंँज उठे टंकार!! भयभीत मुगल कांँप उठे थे! राणा के शौर्य कि जयकार!! हल्दीघाटी विकट संग्राम! टकराया असि सँ असि का जाम!! अरिदल शीघ्र हुए भू-लुंठित! पर चेतक पहुंँचा परमधाम!! गिरि-सा साहस था राणा का! चेतक भी अद्भुत राणा का!! इतिहास- अमर जिसका उत्सर्ग! स्वामी -भक्त अश्व राणा का!! जंगलों की खाक थी छानी! घास की रोटी पड़ी खानी!! पर गुलामी नहीं स्वीकार! यशोगाथा जग की जुबानी!! मरुभूमि हो गई रे निहाल! पाकर राणा-सा वीर लाल!! स्वाभिमानी औ पराक्रमी! गौरव तिलक भारत के भाल!! आज स्वार्थ का ऐसा चलन! राष्ट्र हित नित हो रहा दहन!! दिव्य चरित स्मरण कर भारत! राणा का देश-हित-स्व-हवन!...
क्रांतिकारी कवि राम प्रसाद बिस्मिल
कविता

क्रांतिकारी कवि राम प्रसाद बिस्मिल

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** मूलमती-मुरलीधर की बगिया खिला फूल इक राम! आजादी इतिहास में तरुण क्रांतिकारी सरनाम!! बिस्मिल तेजस्वी कवि, शायर औ क्रांतिकारी प्रखर! हा अमर बलिदानी विस्मृत! कृतज्ञ बनो राष्ट्र दो स्वर!! जन्म शाहजहांपुर, गोरखपुर जेल में अंत जीवन! जर्जर संरक्षित बिस्मिल कक्ष! करो धरोहर संरक्षण!! आर्य समाज से जुड़े सत्यार्थ प्रकाश का किया मनन! स्वाध्याय नियमित व्यायाम संग सुबह शाम हवन!! बिस्मिल की थी इकहि चाह हर जन्म भारत में पाऊंँ! प्रेम हिंदी से हो अतुल! ओढूँ हिंदी औ बिछाऊँ...!! उर में नहीं भड़कते थे सिर्फ आजादी के शोले! कविता और शायरी की भाषा कलम उनकी बोले!! चौरा-चौरी कांड बाद कांँग्रेस ली वापस असहयोग आंदोलन! तो जुड़े राम हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन!! चंद्रशेखर आजाद नेतृत्व यहांँ सशस्त्र क्रांति! हुआ बिस्मिल का मोह भं...
नारी की व्यथा
कविता

नारी की व्यथा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे पुरुष...! तेरी चौखट पे खड़ी सदियों से प्रतीक्षारत स्त्री हूंँ मैं...!!! खुद में रेशा रेशा पिरोती तुझे...! सांँस-सांँस में महसूसती तुम्हें...! धड़कन-धड़कन में समाती तुझे... ! खुद को कतरा-कतरा पिघलाती तुझमें... ! रोम-रोम से समर्पित तुझ पर! खुद को तेरी हर चाह पर न्योछावर करती...! रही न मैं! बन कर रह गई परछाई भर तेरी!! बस एक नन्हीं-सी चाह मार न सकी! और ताक रही तुझे एकटक... !! कब झरेगा झरने सा झर झर झर झर... तेरी दृष्टि से अनुराग सिर्फ मेरे लिए!!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
आओ पर्यावरण बचाएँ
कविता

आओ पर्यावरण बचाएँ

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** देखो धरती हो रही है बंजर आओ हम सब पेड़ लगाएँ हमने उतारें इसके सीने में खंजर नहीं करेंगे ऐसा चलो संकल्प दोहराएँ अंधाधुंध पेड़-कटाई से बिगड़ा मौसम चक्र आओ नये नये पौधों की दुनिया बसाएँ जंगलों के नाश से कम हो रहा भूजल स्तर आओ रोकें भू अपरदन इन पेड़ों को बचाएँ है वृक्ष रोपण का काम अति पावन सुंदर आओ ये कर धरा को प्रदूषण मुक्त बनाएँ लगा आँवला नीम बेल पीपल आम बड़ आओ मिलकर पर्यावरण दिवस मनाएँ प्रकृति से नाता मनुज का नित जर्जर आओ पेड़-पौधों से नेह-संवाद बनाएँ कितना किया नुकसान प्लास्टिक थैली लाकर छोड़ इसे जूट, कागज, कपड़े की थैली बनाएँ थोड़ा चलें पैदल भी, रोकें मशीनों की घर-घर वातावरण में धुएँ का जहर तो न घुलाएँ ग्रीन हाउस उत्सर्जन को जतन से कम कर आओ कीमती जीवन रक्षक ओजोन परत बचाएँ पारिस्थितिकी तंत...
पत्रकार
कविता

पत्रकार

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** वाचिक पत्रकारिता के नारद प्रथम सूत्रधार! राजा राममोहन राय दे दिए इसको तेज धार!! पत्रकार कहलाते लोकतंत्र के चौथे स्तंभ! इसी महत्वपूर्ण स्थान का आज इन्हें है दंभ!! विरुदावली गाकर पहुंँचाते हैं ये किसी को अर्श! खोज खोज अवगुण किसी का ला पटकते हैं ये फर्श!! खोज खोज के गड़े मुर्दे भी लेते हैं ये उखाड़! गुप्त सत्य उजागर कर जग को बताते हैं दहाड़!! सम्मानित रहे ये समाज में अरु आदर के पात्र! पर आज के युग उगते यहाँ कुकुरमुत्ते से कुपात्र!! यूँ तो पत्रकार होते राष्ट्र के सच्चे प्रहरी! देश दुनिया के घटित पर दृष्टि रखते हैं ये गहरी!! इनकी लेखनी में समाहित है असि की प्रखर धार! स्वार्थी युग में भला फिर कौन ठाने इनसे रार!?! देश समाज का सच सामने लाना ही इनका काज! पर निष्ठा-क्रय-विक्रय युग में कौन सुनाय सच आज!! आह! ...
अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस
कविता

अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** महान स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस! कर देश सेवा माँ-कोख को दिया गरिमामय तोष!! बोस! जन्म तेरा वर्धमान जिला पश्चिम बंगाल! जापान के टोक्यो में हा! आंँखें मूंँद लीं लाल!! तुम देश की कई राष्ट्रीय भाषाओं के ज्ञाता! अमर क्रांतिकारी हो तुम मांँ भारती के त्राता!! सशस्त्र क्रांति से राष्ट्रभक्ति की जलाई जोत! प्रख्यात वकील महान शिक्षाविद पर गौरव होत!! गवर्नर जनरल की हत्या-योजना बनाए बोस! असफल हो पहुंँचे जापान ले पूर्ण क्रांति जोश!! अज्ञातवास में किया जापानी तोशिका से विवाह! ब्रेकरीसुता थी छिपे बोस को खिलाया कई माह!! आजाद हिंद फौज के तुम श्रेष्ठ संगठनकर्ता! इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के स्थापनाकर्ता!! देश तज जर्मनी पहुंँचे नेताजी को योग्य जान! सौंपी लीग, इंडियन नेशनल आर्मी की कमान!! और स्वयं को सीमित किया सिर्फ...
माँ
कविता

माँ

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विधाता तुमने छोड़ दिया है धरा पर जन्म देकर! माँ ही है जो जन्म देती है पालन भी करती है!! तुमसे बढ़कर प्रभु! नवजीवन की रचना करती है!! बन प्रथम शिक्षिका सुत को सतत् संस्कारित करती है!! रह-रह बलिहारी हो मुख-गात चुंबन से भरती है! बच्चों के हित में निज सुख मांँ न्योछावर करती है!! कर कोटि जतन माँ जीवन उपवन को सुरभित करती है! दुख की गागर करके रीती सुखों से भर देती है!! भवन को अपनी ममता से घर अलंकरण देती है! अपनी ममता की छांँव में स्वर्ग सुख भर देती है!! निज आँचल से निस्सीम नभ को छोटा कर देती है! रख दे जहांँ निज चरण! माँ तीर्थ का सृजन करती है!! माँ की छत्रछाया दिव्य कल्प वृक्ष का सृजन करती है! माँ नित नित कर कल्याण भू पर प्रभु मूरत गढ़ती है!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी :...
जल ही है जीवन
कविता

जल ही है जीवन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जल ही है जीवन, जल है अनमोल बन्धु जीवनदायी जल दिए प्रभु कृपासिंधु अहो मानव! इसे बूँद बूँद बचाइए पृथ्वी का हिस्सा तीन है जल से भरा उसमें दो भाग बर्फ ग्लेशियर है धरा बचे एक हिस्से को जतन से सँभालिए पेयजल संकट से त्राहि-त्राहि हैं लोग चरणामृत सा कर इसका कृपण उपयोग कर जल का दुरुपयोग संकट न बढा़इए जल के जो हैं विविध स्रोत प्रकृति प्रदत्त तृप्त होंगे धरा के जीव-जंतु समस्त पयस्विनी सलिला में उच्छिष्ट न बहाइए बरसे है जो अमृत आसमा से धरा पर स्वच्छ गुणवत्तापूर्ण वर्षा जल छतों पर तत्क्षण ही गढ्ढे में उस पय को जुगाइए नीचे भूजल के स्तर को भी सुधारिए हिमगिरि-संजीवनी लिय सुरसरि बचाइए जल बिन जीवन नहीं, हर मूल्य बचाइए परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प...