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गुरु

डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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गुरु!
तुम हो सृजनहार धरा पर!
और माटी के लोंदे हम!!
रौंध-रौंध के…थाप-थाप के…
सजग प्रहरी-सी संभाल से…
देकर भीतर से सहारा!
रचा तूने ओ सृजनहारा!!

सारी खर-पतवार निकाली…
जितने भी खोट के थे उगे!
सारे कंकड़-पत्थर बीने…
जो घट की सुंदरता छीने!!
अहंकार की गांँठ कुचल के!
दी विनम्रता की लुनाई!!

अज्ञानता की गहन कारा से
ले चला निकाल, पकड़ बाहें..
ज्ञान के आलोकमय पथ पर..
निज साँसों की ऊर्जा देकर!!

प्रभु ने तो बस जन्म दिया!
गुरु ने जीवन को अर्थ दिया!!
आहार निद्रा भय मैथुन से उठा…
धर्म कर्तव्य का पाठ पढ़ाया!!
पशुता की कोटी से निकाल…
मनुजता के आसन पर बिठाया!!

लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ से ऊपर
स्नेह सौहार्द्र त्याग परोपकार बताया!!
बताया: हम हैं कुल से विखण्डित जीवात्मा!
सर्वोपरि है सृष्टि कर्ता गोविंद परमात्मा!!

गुरु तुम हो पारस से बढ़कर!
पारस लोहे को सोना बनाता!!
पर तुम अपने दिव्य स्पर्श से..
स्वयं से श्रेष्ठ कृति रच जाता!!

परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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