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श्रमिक देव
कविता

श्रमिक देव

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** जिनके लघु स्वेद कणों से, मिट्टी भी सोना हो जाती है, जिनकी भुजाओं के बल से, नई ज्योत्सना खिल जाती है!... ऐसे श्रम वीरों ने सदा से, धरती का रूप सँवारा हैं, हल, हथौड़ा, हँसिया से, मोड़ी इतिहास की धारा हैं!... इन्होंने दुनिया को सदा दिया, वैभव ऐश्वर्य सुख सुविधाएं, और बदले में सदा पाया हैं, आंसू क्रंदन अभाव पीड़ाएँ!.... धनपतियो का सारा वैभव, इनके श्रम पर टिका हुआ है, धरा का सम्पूर्ण निर्माण भी, इनके ही हाथो तो हुआ है!... भौगोलिक सीमाओ से परे, ये अनवरत सृजन करते जाते हैं, परं देवतुल्य श्रमिक कहीं भी, इसका भोग नही कर पाते हैं!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
मंजिल
कविता

मंजिल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रास्ता भूल गई या मंजिल ठहर गई मेरे लिए कोई आ गया सफर में या मैं ठहर गई मंजिल के लिए वाकया यार सच है कि सफर कटता नहीं बिना हमसफर के लगता है, कोई हमसफर मिल जाएगा अगले पड़ाव के लिए। सफर में गुफ्तगू का मजा कुछ और ही होता है पराया होते हुए भी हमसफर अपना सा लगता है जिन्हें हम अपना समझे हुए हैं वह दो कदम साथ चलते हैं। बदली जो राह उनकी तेवर भी बदले-बदले लगते हैं ए दिल संभल, गुमान न कर किसी अजनबी का ये वह राहगीर जो ठहरे पानी में चांद सितारे से लगते हैं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासक...
शहरी/किसान
आंचलिक बोली

शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) भले तू बाट्या बड़ा महानु, बड़ा सा अहै तोहारु मकानु, अही हमु किञ्चौ ना हलकानु, हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।। बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा बढ़िया तोहार है खानु-पानु मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा नूनु-भातु चटनी-रोटी ई हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ ... तू ए सी मा बासि करौ ठंडाई पी-पी ऐश करौ हमतौ सेंवारी मा घूमी मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ ... तू सूटेड-बूटेड बना रहा हरु चौराहे पै अड़ा रहा हमतौ बस खेती-बारी मा चंहटा-मांटी मा सना रहा रूपिया-पैइसा से लदा अहा हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ ... तू कामु किहा रूपिया पाया मनमाना सबकछु भरि लाया हमतौ खेते म जरी-मरी तब्बौ हाथे न दिखी माया तू मालु-...
सदा विजय होती है उनकी
कविता

सदा विजय होती है उनकी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिनमें भरा स्वाबलंबन है, वे मुहताज न होते। सदा राज करते दुनिया पर, कभी ताज ना खोते। जो सागर का ह्रदय चीरते, वे मोती पाते हैं। जो गहरे जाने से डरते, बैठे रह जाते हैं। जो फैलाते पंख हवा में, अंबर में उड़ जाते। जो संकल्प करें ध्रुव जैसा, ऊँचाई हैं पाते। कर प्रयास जो सागर को भी, गागर में भरते हैं। उनकी सदा विजय होती है, जो प्रयास करते हैं। रखें इरादे जो फौलादी, सदा सफलता पाते। तूफानों से जो डर जाते, वे पीछे रह जाते। परशुराम सा तेज धारकर, जो आगे बढ़ते हैं। प्रभु की कृपा प्राप्त कर पंगु, उच्च शिखर चढ़ते हैं। वादा करें स्वयं से पक्का, रक्खें अटल इरादा। सारे काम करें दृढ़ता से, मिले भाग्य से ज्यादा। जो अपना पुरुषार्थ जगाकर, पौरुष दिखलाते हैं। पथरीली राहों पर चलते, वही शिखर पाते हैं। ...
निजी बयान है
हास्य

निजी बयान है

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** पार्टी के पदाधिकारी को बयान देने बोलता हूं तीर निशाने पर लगे तो सही है बोलता हूं कोई विवाद हो जाए तो प्लान बदल देता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक बाण हमेशा स्टॉक में रखता हूं नहले पर दहला मारने बोलता हूं बात बिगड़ गई तो यू-टर्न ले लेता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं अक्सर चुनाव के समय बयान तीर से छोड़ता हूं बयान देने वालों की चैनल बनाता हूं दांव उल्टा पड़ गया तो पलट जाता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक दांव-पेचों का खेल खूब खेलता हूं मान-सम्मान गिराने के दांव-पेच खेलता हूं उल्टा चोर कोतवाल को डांटे टेढ़ा पड़ा तो यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं मेरे धुर विरोधी विचारधारा वाले भी खेलते हैं प्री प्लानिंग से उल्टा सीधा सब बोलते हैं फायदा हुआ त...
भ्रम टूट गया
कविता

भ्रम टूट गया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हुआ दोस्त, जो भ्रम टूट गया साथ होने का तेरा वादा, जो अब छूट गया ।। तुझे बादशाही मुबारक तेरे शहर की, मुझे मेरे गांव का मुसाफिर ही रहने दे।। अच्छा हुआ चलन नहीं रहा अब किसी के विश्वास का खुद के खुदा को आखिर किसी की कोई तलाश कहा।। दोस्ती के लिए तेरा अक्सर, मेरे घर आना, जाना, हम प्याला वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ किताबी बातों की तरह छूट गया।। आज ठोकर खाई है तब जाकर कहीं आज मतलबी दुनिया की ये, दोस्ती समझ आई ।। हमने तो कोशिश की थी रंग जमाने की यारी में, तेरे विचारों की भी कहीं बहुत गहरी खाई थी शायद।। दोस्ती के लिए, कहां रहा गया वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही, मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र ल...
मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
कविता

मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे, अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे, तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया, दूर जाकर इस दिल से मेरे, बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे, जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे, तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे, अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे, लेकर आया था संदेशा घर पर, उस थाने का थानेदार मेरे, कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें, जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने, बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती, अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे, तूने एक बार अपना घर नहीं समझा, मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे, इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने, किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए, मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर, घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए, तू जीत रही है हर बार मुझसे, मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए, सामान तो उठवा ल...
शीत ऋतु
कविता

शीत ऋतु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जुताई खेती किसानी की जाती हैं। पूस की रात में कैसे नील गायें, हलकु की फसल चट कर जाती हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? फसलों को ठंडी रातों में सींचते हैं। आशाओं पर तुहिन पाला पड़ कर, खेतों में लहलहाते सपने सूखते है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? वादी के ठिकानों में अडिग खड़े है। मां भारती की सरहद पर खदानों में, वीर हिम शिखरों पर मौत से अडे़ है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जो राणा के रणवीर लौहा पीटते हैं। स्वच्छंद गगन के नीचे श्रम स्वेद से, भूखे शरद के पेट में घन ठोकते हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जिस श्रमिक की हड्डियां अकड़ती है। ईंट पत्थरों से भरी तगारि लेकर, आसन्न प्रसव मजदूरिन सीढ़ी चढ़ती है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? चौराहे पगडंडी पर ...
सुरक्षा के संग करो सफ़र
कविता

सुरक्षा के संग करो सफ़र

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सुरक्षा के संग करो सफ़र, ये कर्तव्य सबका हो, सड़क सुरक्षा ही अपनी सुरक्षा का ध्येय सबका हो, छोटे- छोटे बच्चों को ना देना साधन अपने चलाने को, कुछ सब्र करो ए इन्सान, उम्र उसकी बढ़ जाने को, शराब पीकर ना कभी बाईक, कार, ट्रक चलाना तुम, हो जायेगी अनहोनी, उससे बचकर रहना तुम, अपनी सावधानी में ही अपना व दूसरों का बचाव है, नियम कायदों के साथ चलो, कहता ये संविधान है, बिन मौत ही मर जाते दुर्घटना में, हजारों-लाखों लोग यहां, सबक लेकर घर से निकलो, ए मेरे देश के लोग यहां, सिर पर हैल्मेट बाईक पर, सीट बैल्ट का गाड़ी में रखो ध्यान, मुसीबत पड़ने पर आएंगी, ये सब चीजें तेरे काम, रफ़्तार देख कर रखो, कुछ निकला नहीं जाता है, बेसब्री से जायेगी जान, हाथ फिर कुछ नहीं आता है, यदि रूकना रास्ते पर साईड में साधन लगाओ तुम, अपना ...
आओ दिव्यांगों का सम्मान करें
कविता

आओ दिव्यांगों का सम्मान करें

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ दिव्यांगों का सम्मान करें उन्हें भी कुछ खुशियां प्रदान करें मन दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो बंजर भूमि में फूल खिलते जो‌ मिला, खुश हो स्वीकारें परिस्थितियों भी दास बनते उनके मनोबल को बढ़ाकर हम कुछ तो पुण्य करें।। एक द्वार बंद करता ईश्वर तो दूसरा अवश्य खोलता आंखों की रोशनी छीनता अन्तर्मन में रोशनी भरता।। नयन हीनों के कंठ सरस्वती मधुर गायनका सम्मानकरें।। गिरतों को जो सहारा देते सबसे बड़ी है मानव सेवा दिव्यांगों के भाव समझते सबसे बड़ी है अर्चन देवा।। दिव्यांगों की भावनाओं का तन मन से प्रणाम करें।। जहां उन्हें अंधियारा लगे हम रोशनी का जहां बनाएं जहां-जहां वे चढ़ना चाहे ऊंची-ऊंची सीढ़ी बनवाए।। नई प्रतियोगिताएं शुरू करके उनमें नव उत्साह भरेंगे। खेलकूद, पढ़ाई या संगीत सभी में पाई है अपूर्व जीत पर्वत पर चढ़ने ...
क्या हो गया ज़माने को
कविता

क्या हो गया ज़माने को

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** क्या हो गया है इस ज़माने को, होड़ लगी है ज़्यादा पाने को, क्या हो गया .... भूल गये हैं अपने पराये को यहाँ, ज़िद्द लगी है अब दूर जाने को, क्या हो गया .... खो गया है आदमी अपनी ही चाल में, समा कर खुद में, भूल गया है ज़माने को, क्या हो गया .... लालच में पड़कर, लालच की बात करता है यहांँ, अब भूल गया है आदमी साथ रहने के तरानों को, क्या हो गया .... धर्म के नाम पर बंटता ही जा रहा हैैं यहांँ, खून तो एक ही है, लगा दिया है पैमाने को, क्या हो गया .... परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
पहला कदम
कविता

पहला कदम

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** विजय के लिए लक्ष्य पर ध्यान हो, नित्य कर्म में हो लगन खा कसम। एक ठौर रख सोच और समझ कर, जीवन जंग जीत का पहला कदम।। सही दिशा में पतवार को घुमाते चल, नदी की धारा तीव्र हो रही है प्रवाहित। मत छोड़ पालों को हवाओं के भरोसे, नाव डूबाने बैठा जल भंवर सन्निहित।। पर्वत शिखर दुर्गम, अटल, विकराल, आगे बढ़ तू फहराने जीत का झण्डा। चढ़ेगा,गिरेगा कई-कई बार फिसलेगा, ध्येय पाने अपना अनेक हथकण्डा।। जीवन कुरुक्षेत्र युद्ध का खुला मैदान, चक्रव्यूह भेदने धनुर्धारी अर्जुन बन। रख पास सदा गीता ज्ञान दाता कृष्ण, फिर लगा दे अपने कर्म में तन-मन।। जंग लड़ने के लिए खुद को तैयार कर, ध्यान से लगा एक तीर से एक निशाना। दृढ़ संकल्पित हो वैमनस्य को कर ढेर, जयन में शामिल होगा सारा जमाना।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसग...
बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी
कविता

बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** प्यारी-प्यारी बिटिया प्यारी, तुम हो जग में न्यारी-न्यारी, हंसती खेलती दुनिया तेरी, सबकी हो तुम दुलारी, मम्मी-मम्मी रखती हो तुम, पापा की हो सबसे प्यारी, तुम बिटिया मेरी आंखों की दुनिया हो, जग में मेरे लिए हो न्यारी-न्यारी, पढ़ना-लिखना जाकर स्कूल, बन कर रहना होशियार है तुम, एक दिन अफ़सर बन जाओगी, अपना नाम फिर कमाओगी, हमारा सीना चौड़ा होगा जायेगा, बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
बात नहीं बन रही
कविता

बात नहीं बन रही

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** देख लिया मेहनत करके, मैं अभी भी खड़ा हूं वहीं। अब क्या करूं तू ही बता? मेरी बात नहीं बन रही।। दावानल सदृश भ्रष्टाचार, निगल गया करके खाक। मृदु मांस के लोथे के लिए, चील, कौए रहे थे ताक।। बिखर गया चिता, भस्म धरा, आत्मा उड़ गयी नील गगन। चला गया एक प्रतिद्वंदी कह, भेड़िए नाच रहे थे हो मगन।। देख रहा था बनकर भूत-प्रेत, लेन-देन का था झोलम-झोल। नौकरी के नाम पर लुटाते जन, मची थी चहूं ओर हल्ला बोल।। यहां फले-फूले प्रभुत्व वनराज, निरीह प्राणी हो गए घर से बेघर। अंधी दौड़ में भाग रहे हैं कर्मवीर, सब डर से कांप रहे हैं थर-थर।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
कर गुजरने की चाह रख
कविता

कर गुजरने की चाह रख

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ कर गुजरने की चाह रख, राह तो मिलेंगी अवश्य तू ह्रदय में दृढ़ संकल्प रख। तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। राह मिलेंगी अनेक अवश्य किस राह पर चलना है यह निश्चय तू स्वयं ही कर क्योंकि जब हृदय में कर्म को सत्कर्म में बदलने की होती है चाह कदमों में आ जाती हैं अनेक स्वर्णिम राह कुछ कर गुजरने की चाह रख। तू हर कदम सशक्त कर और संभल-संभलकर रख जब इच्छा शक्ति होगी दृढ़ मंजिल तुझे मिलेगी अवश्य, ह्रदय में जीवनलक्ष्य साध कर, तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओ...
दिल से प्यार क्या करते
कविता

दिल से प्यार क्या करते

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** दिल भला बेकरार क्या करते, हम तेरा इंतजार क्या करते, तुम तो उड़नेे वाला परिंदा हो, हम भला तेरा ऐतबार क्या करते, यादों से परे हो गये जब तुम मेरी, हम फिर तेरा इज़हार क्या करते, हो बेवफा तुम ये मालूम था हमें, हम ये दिल तलबगार क्या करते, दुनियाँ की भीड़ में खो गये हो तुम, हम तुम्हें दिल से प्यार क्या करते, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
ए चांद! जरा जल्दी आना
कविता

ए चांद! जरा जल्दी आना

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना हाथों में देख मेहंदी लगाई है तेरे नाम की मेहंदी रचाई है माथे पर बिंदिया लगाई है मैंने पूजा की थाल सजाई है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना हाथों में चूड़ी और कंगना है कानों में झुमका पहना है सजना ही मेरा गहना है सजना के लिए ही सजना है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना करवा चौथ में चांद का इंतजार रहता है चांद के साथ में सजना का दीदार होता है उसके हाथ से पानी पीकर व्रत मेरा टूटता है हमारा प्यारा रिश्ता और परवान चढ़ता है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना।। परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
मेरा नाज़ुक सा दिल है
कविता

मेरा नाज़ुक सा दिल है

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, चोट इतनी ना दे मुझे, कि टुकड़ों में बिखर जाऊं, ना बना मुझको अनजान पहेली, कि फिर मैं कभी सुलझ ना पाऊं, धीरे-धीरे से दर्द दे मुझको, एक साथ सहने की हिम्मत तो नहीं, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, वक्त क्या था जब साथ थे तुम मेरे, अब घेरे रहते हैं मुझको ये अंधेरे, कुछ रहम खा कुछ तरस रख मुझ पर, प्यार ही तो किया था कोई दगा तो नहीं, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, गम देते हो क्यों मुझको रूलाकर, क्या मिलता है मेरा दिल दुखाकर, क्यों दिया था भरोसा साथ रहने का मुझको, अब मैं कहां जाऊं ये बता तो सही, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
निकलेगा सूरज
कविता

निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये रात ही तो है कब तक रहेगी निकलेगा सूरज फिर तो ढलेगी ।। उम्मीदों से भरा है आसमान, आशाओं पर टिकी है धरती । ऐ दुनिया तू छल ले, कब तक छलेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। एक सोच पर ही तो नहीं है पहरा, ना ही कोई, रोक-टोक है। सोच ऊंची रही है, ऊंची रहेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। आते हैं दु:ख-दर्द मुझको परखने, और जाते है बनाकर मजबूत मुझे । देख लो ध्यान से ये आंखें ना बही है ना बहेंगी । ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। दीवार होंसलों की हिला नहीं पाए कोई, पर्वत सी अटल और वज्र सी प्रबल हो । जीगर आग जब जली हो, किस तरह बुझेगी। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढ...
अमर रहेंगे सरदार पटेल
कविता

अमर रहेंगे सरदार पटेल

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** धन्य हुई धरा गर्वित हुआ नभ, ३१ अक्टूबर पटेल अवतरित हुए जब। माँ भारती के लाल ने किया वो कमाल, आजादी का आंदोलन, बढ़कर लिया सम्हाल। खेड़ा सत्याग्रह या असहयोग आंदोलन, सरदार उपाधि पायी, बारदोली अगुवा बन। फौलादों से मजबूत इरादे, लौहपुरूष कहाये, बापू जी का साथ दिया, देश आजाद कराये। स्वतंत्र भारत में गृहमंत्री का पद पाया, सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। बांधा देश को एकता की डोर से, अमर रहेंगे पटेल आवाज आती है चहुँओर से। सबसे ऊँची मूरत आपकी देश का मान बढ़ाती है, हर भारतवासी का आपके प्रति सम्मान दर्शाती है। जन्मदिन आपका, एकता दिवस के रूप में मनाएँ, हम कृतज्ञ देशवासी आपको श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान
कविता

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा प्रणाम है सादर प्रणाम, इन्दौर नगरी को मेरा प्रणाम। मेरा प्रणाम...।। हिन्दी रक्षक डॉट कॉम, हिन्दी रक्षक मंच निर्माण। हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान, समीक्षा समिति का परिणाम। मेरा प्रणाम...।। दिव्यांग का सर्वांगीण उन्नयन, वेलफेयर सोसायटी दिव्योत्थान। साहित्यकार श्रेणी में सम्मेलन, राष्ट्रीय स्तर का वृहद आयोजन। मेरा प्रणाम...।। साहित्य जगत है एक वरदान, साहित्यकार है सदा ऊर्जावान। श्रेष्ठ भारत है श्रेष्ठ संविधान, हिन्दी रक्षक मंच सबसे महान। मेरा प्रणाम...।। परिचय :-  हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" निवासी : गंजबासौदा, जिला- विदिशा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
एक धनुष एक बाण
कविता

एक धनुष एक बाण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन युद्ध में लड़ अकेला, लेकर हथेली में अपनी प्राण। एक मौका मिलेगी जीत की, पास है एक धनुष एक बाण।। देर ना कर अब जाग जा वीर, निरंतर करता चल तू अभ्यास। मन को एकाग्र कर ध्यान लगा, रखना सीख खुद पर विश्वास।। तम गुफा में बंदी बनकर बैठा, घिर गया आतताईयों के बीच। मुझे दे रहे थे बिजली के झटके, रुकने का नाम नहीं लेते नीच।। कहा,क्यों नहीं पढ़ता ज्ञान ग्रंथ? समय को बर्बाद करता है व्यर्थ। झूठी शान और शौकत है तेरी, तुम्हारे जीवन का नहीं है अर्थ।। छोड़ दिए मुझे बोध बाण देकर, धनुष पोथी से करो लक्ष्य भेदन। मैं कर्म करूंगा अब तन्मयता से, जीत होगी आनंद का आस्वादन‌।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित...
दोहे
दोहा

दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दीपक बाती तेल मिल, करते तम का नाश। अपना जीवन वार कर, जग में करें प्रकाश।। सीता लांघी देहरी, टूटी घर की रीत। रावण के पाखंड में, साधू वाली प्रीत।। मां के आंचल में मिलें, ममता भरा सुकून। कदमों में जन्नत सदा, बरसे नेह प्रसून।। आज धर्म के नाम पर, होते कितने क्लेश। मानवता को भूलकर, शत्रु बन गये देश।। जय माला शोभित भाल, सूरवीर के संग। रण में झलके वीरता, रुधिर सने हो अंग।। ईश आस्था रखें सदा, सुख दुख में हर बार। जीवन में सहायक है, जग का तारणहार।। आंख शयन की प्रेयसी,नित करती अनुराग। नेह पलक पर सींचती, नयन निंद से जाग।। सात जन्म का साथ था, प्रीत रही अनमोल। नेह लिप्त मीरा रही, रस जीवन में घोल।। लगन लगी जब श्याम से, कहां रहा कुल भान। मीरा माधव प्रेम में, विष का कर ली पान।। सखा श्याम से भेंट कर, नैन ब...
चैन से जीने की वो …
कविता

चैन से जीने की वो …

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** दौलत-शौहरत पास से सब, अब जाती रही, थी उम्मीद जिससे, वो उम्मीद भी अब जाती रही, गमगीन माहौल बना दिया, वक्त ने अब तो चारों और, तबीयत खराब रहने से, जीने की रोशनी भी अब जाती रही, दूर हो गये हैं सभी अपने,हालात देखकर अब यहांँ, आकर मिलने की उम्मीद, उनसे अब जाती रही, बनाई थी जो पहचान उम्र भर, ज़माने में यहाँ, वो पहचान भी पास से, दूर अब जाती रही, कभी हौंसला होता था, देखकर उनको भान, हालात देख उनके, मेरी हवा भी अब जाती रही, गम मुझे भी है ये सब हो गया, नज़रों के सामने, मेरे दिल की भी वो उमंग, अब जाती रही, ना कर्जदार बनाना, ए ख़ुदा ज़माने का कभी, चैन से जीने की वो फितरत भी, अब जाती रही, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न
साहित्य समाचार

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न

इंदौर म.प्र.। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच एवं दिव्योत्थान एजुकेशन एंड वेलफ़ेयर सोसायटी के सँयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पोर्टल hindirakshak.com की एक करोड़ पाठक संख्या का महोत्सव के तहत एवं दिव्यांग भाई बहनों के सहायतार्थ "हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२" कार्यक्रम मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर, पुस्तकालय के सभागृह में आयोजित किया गया। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्मान समारोह में मुख्य रूप से प.पू. गो. १०८ दिव्येशकुमारजी महाराज श्री इंदौर (नाथद्वारा), मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं देवपुत्र पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री कृष्णकुमारजी अष्ठाना, कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकासजी दवे, विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति महोदय प्रो.डॉ. मानसिंहजी परमार एवं रेनेसां विश्वविद्यालय सांवेर रो...