ऋण
महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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खड़ा हूं इस मातृभूमि पर
ऋण जाने कितनों का सर है।
आज बड़ा मैं अभिभूत हूं
आशीष बड़ों का भर-भर है।
माता-पिता-भाई-बहनों का,
ऋषियों और गुरुजनों का,
शेष बचे कितने प्रखर है?
ऋण जाने कितनों का सर है।
जात-समाज और पित्रों का,
सहपाठी, बंधु-मित्रों का,
जिनके कारण 'इंद्र' निडर है,
ऋण जाने कितनों का सर है।
जल-अग्नि-वायु-आकाश
और भूमी का मुझमें वास,
इनसे ही तो हम नश्वर है,
ऋण जाने कितनों का सर है।
आज जन्मदिन पर याद करूं,
मन-बुद्धि-कर्म अर्पित करूं,
ऋण जितनों का भी सर है,
इस जनम चुकाने का अवसर है।
इस जनम चुकाने का अवसर है।
परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
आयु : ४१ बसंत
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...















