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ऋण
कविता

ऋण

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खड़ा हूं इस मातृभूमि पर ऋण जाने कितनों का सर है। आज बड़ा मैं अभिभूत हूं आशीष बड़ों का भर-भर है। माता-पिता-भाई-बहनों का, ऋषियों और गुरुजनों का, शेष बचे कितने प्रखर है? ऋण जाने कितनों का सर है। जात-समाज और पित्रों का, सहपाठी, बंधु-मित्रों का, जिनके कारण 'इंद्र' निडर है, ऋण जाने कितनों का सर है। जल-अग्नि-वायु-आकाश और भूमी का मुझमें वास, इनसे ही तो हम नश्वर है, ऋण जाने कितनों का सर है। आज जन्मदिन पर याद करूं, मन-बुद्धि-कर्म अर्पित करूं, ऋण जितनों का भी सर है, इस जनम चुकाने का अवसर है। इस जनम चुकाने का अवसर है। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
श्रमिक देव
कविता

श्रमिक देव

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** जिनके लघु स्वेद कणों से, मिट्टी भी सोना हो जाती है, जिनकी भुजाओं के बल से, नई ज्योत्सना खिल जाती है!... ऐसे श्रम वीरों ने सदा से, धरती का रूप सँवारा हैं, हल, हथौड़ा, हँसिया से, मोड़ी इतिहास की धारा हैं!... इन्होंने दुनिया को सदा दिया, वैभव ऐश्वर्य सुख सुविधाएं, और बदले में सदा पाया हैं, आंसू क्रंदन अभाव पीड़ाएँ!.... धनपतियो का सारा वैभव, इनके श्रम पर टिका हुआ है, धरा का सम्पूर्ण निर्माण भी, इनके ही हाथो तो हुआ है!... भौगोलिक सीमाओ से परे, ये अनवरत सृजन करते जाते हैं, परं देवतुल्य श्रमिक कहीं भी, इसका भोग नही कर पाते हैं!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
मंजिल
कविता

मंजिल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रास्ता भूल गई या मंजिल ठहर गई मेरे लिए कोई आ गया सफर में या मैं ठहर गई मंजिल के लिए वाकया यार सच है कि सफर कटता नहीं बिना हमसफर के लगता है, कोई हमसफर मिल जाएगा अगले पड़ाव के लिए। सफर में गुफ्तगू का मजा कुछ और ही होता है पराया होते हुए भी हमसफर अपना सा लगता है जिन्हें हम अपना समझे हुए हैं वह दो कदम साथ चलते हैं। बदली जो राह उनकी तेवर भी बदले-बदले लगते हैं ए दिल संभल, गुमान न कर किसी अजनबी का ये वह राहगीर जो ठहरे पानी में चांद सितारे से लगते हैं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासक...
शहरी/किसान
आंचलिक बोली

शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) भले तू बाट्या बड़ा महानु, बड़ा सा अहै तोहारु मकानु, अही हमु किञ्चौ ना हलकानु, हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।। बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा बढ़िया तोहार है खानु-पानु मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा नूनु-भातु चटनी-रोटी ई हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ ... तू ए सी मा बासि करौ ठंडाई पी-पी ऐश करौ हमतौ सेंवारी मा घूमी मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ ... तू सूटेड-बूटेड बना रहा हरु चौराहे पै अड़ा रहा हमतौ बस खेती-बारी मा चंहटा-मांटी मा सना रहा रूपिया-पैइसा से लदा अहा हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ ... तू कामु किहा रूपिया पाया मनमाना सबकछु भरि लाया हमतौ खेते म जरी-मरी तब्बौ हाथे न दिखी माया तू मालु-...
सदा विजय होती है उनकी
कविता

सदा विजय होती है उनकी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिनमें भरा स्वाबलंबन है, वे मुहताज न होते। सदा राज करते दुनिया पर, कभी ताज ना खोते। जो सागर का ह्रदय चीरते, वे मोती पाते हैं। जो गहरे जाने से डरते, बैठे रह जाते हैं। जो फैलाते पंख हवा में, अंबर में उड़ जाते। जो संकल्प करें ध्रुव जैसा, ऊँचाई हैं पाते। कर प्रयास जो सागर को भी, गागर में भरते हैं। उनकी सदा विजय होती है, जो प्रयास करते हैं। रखें इरादे जो फौलादी, सदा सफलता पाते। तूफानों से जो डर जाते, वे पीछे रह जाते। परशुराम सा तेज धारकर, जो आगे बढ़ते हैं। प्रभु की कृपा प्राप्त कर पंगु, उच्च शिखर चढ़ते हैं। वादा करें स्वयं से पक्का, रक्खें अटल इरादा। सारे काम करें दृढ़ता से, मिले भाग्य से ज्यादा। जो अपना पुरुषार्थ जगाकर, पौरुष दिखलाते हैं। पथरीली राहों पर चलते, वही शिखर पाते हैं। ...
निजी बयान है
हास्य

निजी बयान है

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** पार्टी के पदाधिकारी को बयान देने बोलता हूं तीर निशाने पर लगे तो सही है बोलता हूं कोई विवाद हो जाए तो प्लान बदल देता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक बाण हमेशा स्टॉक में रखता हूं नहले पर दहला मारने बोलता हूं बात बिगड़ गई तो यू-टर्न ले लेता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं अक्सर चुनाव के समय बयान तीर से छोड़ता हूं बयान देने वालों की चैनल बनाता हूं दांव उल्टा पड़ गया तो पलट जाता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक दांव-पेचों का खेल खूब खेलता हूं मान-सम्मान गिराने के दांव-पेच खेलता हूं उल्टा चोर कोतवाल को डांटे टेढ़ा पड़ा तो यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं मेरे धुर विरोधी विचारधारा वाले भी खेलते हैं प्री प्लानिंग से उल्टा सीधा सब बोलते हैं फायदा हुआ त...
भ्रम टूट गया
कविता

भ्रम टूट गया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हुआ दोस्त, जो भ्रम टूट गया साथ होने का तेरा वादा, जो अब छूट गया ।। तुझे बादशाही मुबारक तेरे शहर की, मुझे मेरे गांव का मुसाफिर ही रहने दे।। अच्छा हुआ चलन नहीं रहा अब किसी के विश्वास का खुद के खुदा को आखिर किसी की कोई तलाश कहा।। दोस्ती के लिए तेरा अक्सर, मेरे घर आना, जाना, हम प्याला वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ किताबी बातों की तरह छूट गया।। आज ठोकर खाई है तब जाकर कहीं आज मतलबी दुनिया की ये, दोस्ती समझ आई ।। हमने तो कोशिश की थी रंग जमाने की यारी में, तेरे विचारों की भी कहीं बहुत गहरी खाई थी शायद।। दोस्ती के लिए, कहां रहा गया वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही, मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र ल...
मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
कविता

मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे, अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे, तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया, दूर जाकर इस दिल से मेरे, बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे, जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे, तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे, अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे, लेकर आया था संदेशा घर पर, उस थाने का थानेदार मेरे, कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें, जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने, बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती, अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे, तूने एक बार अपना घर नहीं समझा, मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे, इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने, किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए, मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर, घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए, तू जीत रही है हर बार मुझसे, मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए, सामान तो उठवा ल...
आओ दिव्यांगों का सम्मान करें
कविता

आओ दिव्यांगों का सम्मान करें

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ दिव्यांगों का सम्मान करें उन्हें भी कुछ खुशियां प्रदान करें मन दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो बंजर भूमि में फूल खिलते जो‌ मिला, खुश हो स्वीकारें परिस्थितियों भी दास बनते उनके मनोबल को बढ़ाकर हम कुछ तो पुण्य करें।। एक द्वार बंद करता ईश्वर तो दूसरा अवश्य खोलता आंखों की रोशनी छीनता अन्तर्मन में रोशनी भरता।। नयन हीनों के कंठ सरस्वती मधुर गायनका सम्मानकरें।। गिरतों को जो सहारा देते सबसे बड़ी है मानव सेवा दिव्यांगों के भाव समझते सबसे बड़ी है अर्चन देवा।। दिव्यांगों की भावनाओं का तन मन से प्रणाम करें।। जहां उन्हें अंधियारा लगे हम रोशनी का जहां बनाएं जहां-जहां वे चढ़ना चाहे ऊंची-ऊंची सीढ़ी बनवाए।। नई प्रतियोगिताएं शुरू करके उनमें नव उत्साह भरेंगे। खेलकूद, पढ़ाई या संगीत सभी में पाई है अपूर्व जीत पर्वत पर चढ़ने ...
कर गुजरने की चाह रख
कविता

कर गुजरने की चाह रख

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ कर गुजरने की चाह रख, राह तो मिलेंगी अवश्य तू ह्रदय में दृढ़ संकल्प रख। तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। राह मिलेंगी अनेक अवश्य किस राह पर चलना है यह निश्चय तू स्वयं ही कर क्योंकि जब हृदय में कर्म को सत्कर्म में बदलने की होती है चाह कदमों में आ जाती हैं अनेक स्वर्णिम राह कुछ कर गुजरने की चाह रख। तू हर कदम सशक्त कर और संभल-संभलकर रख जब इच्छा शक्ति होगी दृढ़ मंजिल तुझे मिलेगी अवश्य, ह्रदय में जीवनलक्ष्य साध कर, तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओ...
निकलेगा सूरज
कविता

निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये रात ही तो है कब तक रहेगी निकलेगा सूरज फिर तो ढलेगी ।। उम्मीदों से भरा है आसमान, आशाओं पर टिकी है धरती । ऐ दुनिया तू छल ले, कब तक छलेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। एक सोच पर ही तो नहीं है पहरा, ना ही कोई, रोक-टोक है। सोच ऊंची रही है, ऊंची रहेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। आते हैं दु:ख-दर्द मुझको परखने, और जाते है बनाकर मजबूत मुझे । देख लो ध्यान से ये आंखें ना बही है ना बहेंगी । ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। दीवार होंसलों की हिला नहीं पाए कोई, पर्वत सी अटल और वज्र सी प्रबल हो । जीगर आग जब जली हो, किस तरह बुझेगी। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढ...
हवाओं में बिखरने दो
कविता

हवाओं में बिखरने दो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे हवाओं में बिखरने दो मुझे हवाओं की नजाकतोंमेंं घुले विष को निगलने दो। इन गमगीन सी बयारों से नीरस अहसासों को समेटने दो, फिर सुमन का सुमधुर इत्र बनकर मुझे हवाओं मेंं महकने दो । मुझे हवाओं में बिखरने दो। तपती गर्मी के ताप से झुलसती लूओं के झोकों मेंं चंद्रमा की शीतलता बनकर मुझे चांदनी बिखरने दो। मुझे हवाओं में बिखरने दो। हाड़ चीरते शीत मेंं सूर्य की ऊष्मा बनकर मुझे (जीवन को) राहत भरी सांस लेने दो मुझे हवाओं में बिखरने दो। आसुरी प्रवृत्तियों के प्रदूषण से आत्मशुद्धीकरण हेतु पंचतत्त्व से निर्मित देह को नभ-जल-थल, पावक-पवन के हवन कुंड में मुझे आहुति बनकर बिखरने दो। मुझे हवाओं मेंं बिखरने दो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र ब...
साहित्य की देवी
कविता

साहित्य की देवी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** हे ! महादेवी हिंदी साहित्य की तपस्विनी तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। नीहार में भरी रसधार प्रेम की तुम आधुनिक मीरा हिंदी साहित्य की बनीं। दुख, संवेदनशीलता तो कभी सुख व प्रसन्नता के भावों की रचनाओं में प्रकाशित मिश्रित अभिव्यक्ति बनीं। हिंदी छायावादी युग का सशक्त स्तंभ बनीं। इतना ही नहीं तुम गद्यलेखन व रेखाचित्र की भी महान हस्ताक्षर बनीं। नवीन आयामों को स्थापित करती हिंदी छायावादी युग का एक सशक्त स्तंभ बनी नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, अग्नि रेखा, सप्तपर्णा यामा में मानो आपकी ही आत्मा हैं रची बसी। हे ! महादेवी, तपस्विनी तुम भारत माँ की स्वतन्त्रता में सहभागी बनीं। सामाजिक कल्याण, महिला उत्थान की नवल पथप्रदर्शक बनीं। तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। परिचय :-  प्रभ...
भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मांँ का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। जन -गण-मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी जन-गण-मन में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा :...
जब-जब मेरी कलम ने…
कविता

जब-जब मेरी कलम ने…

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा हैवानियत छटपटाने लगी दरिंदगी का दम घुटने लगा। ईर्ष्या स्वयं से जलने लगी नफरतों का नाश होने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रुढियाँ रोने लगी घृणा स्वयं से घृणित होने लगी पाखंड पांव पीटने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रूहें सिसकियाँ भरने लगीं आंसुओं की बारिश होने लगी हर पत्थरदिल पिघलने लगा जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा वैमनस्य की कालिमा छंँटने लगी मानो गंदगियाँ दिलों की धुलने लगी अंधकार अमावस्या की रात्रि का लुप्त होने लगा नभ-जल-थल में सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होने लगा हर हृदय पटल पर प्रेम और विश्वास का आह्लाद होने लगा। जब-जब मैंने दर्द ए इंसानियत लिखा। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शि...
बारिश की बूँदें
कविता

बारिश की बूँदें

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखो धरा अम्बर से, मिलन की गुहार लगाये, थाल भर मोती माणिक अम्बर ने खूब सजाये, मन के आँगन बरस रही है मीठी मीठी सी फुहार, प्यासी धरा भी आँखें मींचे आशा की झोली फैलाये।। खुशियों भरी काग़ज़ की नाव ग़मों को बहा ले जाए देखो न बाल मन का कोना-कोना कैसे खिलखिलाये, छपाक छप, छपाक छप बारिश का कंचन जल कहे, भर लो अमृत चुल्लू में ज़िन्दगी तो हरदम ही ज़हर पिलाये।। खिली है हर कली कली, पत्ता पत्ता भी मुस्काये, नवल धवल हुए खेत खलियानशशि चन्द देख कृषक गदगद हो जाये, सौंधी सौंधी माटी, श्वास-श्वास मातृभूमि के रक्षकों की महकाये, बुलंद हौसलों की बारिश के बीच, शान से तिरंगा लहराये।। धानी चुनर ओढ़, अधरों पर धर लाज का घूँघट, सजनी चली साजन घर, जब मन भावन सावन आये प्रीतम ने अमियाँ की डाल पे प्रेम पुष्पों का झूला डाला, कृष्ण राधिका स...
जिंदगी की डगर
कविता

जिंदगी की डगर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जिंदगी की हर डगर तू रख हर कदम फूँक-फूँक कर। नहीं आसान जिंदगी की कोई डगर मिलेंगी चुनौतियाँ कदम-कदम, करना है तुझे संघर्ष जिंदगी की हर डगर । कभी होगी छोटी डगर तो कभी काटे न कटने वाली बड़ी लंबी नीरस सी होगी जिंदगी की डगर। राह ऐसी है कौन सी जहाँ न हों शूल और पत्थर जब-तक नहीं दर्द का अनुभव कड़वी है सुकून की हर डगर। तू तनिक भी न डर साथ तेरा साया भी न दे अगर हौंसले अपने बुलंद रख तू राह में अकेला ही चल पीना भी पड़े पानी खुद कुआँ खोदकर। तू चले जा अकेला ही निरंतर, न रुक कभी जिंदगी के पथरीले पड़ावों पर भी मंजिल मिल नहीं जाती जब तक तू चले जा फिर से जिंदगी में नई डगर बनाकर। कहते हैं मन के हारे हार है तो फिर मन के जीते जीत भी लेकर दृढ़ संकल्प हो निडर तू सबके मन को जीत जीवन लक्ष्य अंगीकृत कर हर पल होकर सजग अपने...
सुविधा पाबो
आंचलिक बोली

सुविधा पाबो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जुरिस गाँ ह सड़ग ले भईया, अउ मन कस सुविधा पाबो चिखला चांदो के दिना ल, हमन अब तो भुलाबो बारी बखरी के साग भाजी, अब सहर मं बेचाही लेबो कमा जीये के पूरती, नी डउकी लइका ललाही धराय हे गहना खेत खार ह, ओला मुक्ता के लाबो चिखला.. बड़े इस्कूल मं लइकन पड़ही, अउ कालेज घलो जाही साहेब, सिपाही जम्मो बनके, जिनगी भर सुख पाही दुनो परानी हमन देखत, भाग ल सँहराबो चिखला.. रई आय पहिली कहूँ ल त ओ, बिन गोली के मरे कतको घोर्री घसन तभो, डॉक्टर ह नी हबरे एक सौ आठ ल बलवाके, निरोग काया ल बनाबो चिखला.. परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय...
ज़ुल्म और दर्द
कविता

ज़ुल्म और दर्द

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होती जब-जब अस्मिता की हानि, उठती ज़ुल्म और दर्द की आंधी, पौरुष तो रहता जन्मजात अंधा, स्त्रियाँ भी नेत्रों पर पट्टियां बांध लेती हैं।। भीष्म प्रतिज्ञा लेने वाले गंगा पुत्र भी भरी सभा बीच मौन हो पछताते हैं.., गुरुजन और नीति श्रेष्ठ विदुर भी,, हाथ पे हाथ धरे फफकते रह जाते हैं।। झूठी दुनिया के संगी साथी देव पुत्र, हर कर अपना सब कुछ हाय कैसे, ये दांव अपनी ही स्त्री को लगाते हैं, बाजुओं के बल पर धिक्कारे जातें हैं।। खींचता है जब साड़ी दुर्शासन., झूठे रिश्तों से भीख मांग हरती अस्मिता, तब कृष्णा को फिर कृष्ण ही याद आते हैं, और अम्बर से चीर बढ़ा वो..., रेशम के एक धागे का मोल चुकाते हैं..।। कटी थी जब ऊंगली केशव की.., कृष्णा ने अपने आंचल का चीर फाड़, कृष्ण की ऊंगली पर बांधा था..., कृष्ण एक भाई का फर्ज निभाने आते हैं...
नेता वफादार चाहिए
कविता

नेता वफादार चाहिए

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मंदिर में पंडित का मस्जिद में मौलवी का बहकावा नहीं सच्ची पूजा चाहिए। भारत का नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए । चर्च में पॉप का गुरुद्वारे में ग्रंथियों का बहकावा नहीं सत्उपदेश चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मत पथ भ्रमित हो मेरे भारत के युवान अंतर्मन का करो जागरण- तुम ही में छिपा है राम का चरित्र ही तुम ही में छिपी है शक्ति हनुमान की तुम ही में छिपा है सतीत्व सीता का ही बस ह्रदय में लो यह संकल्प ठान- तुम्हें तो आधुनिक रावणों का वध करना चाहिए, आधुनिक रावणों का वध ही नहीं वर्तमान कंसों का अंतिम संस्कार करना चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। भारत को भगतसिंह सा देशभक्त, लक्ष्मीबाई सी वीरांगना, टैगोर सा विश्वकवि सुभाष बोस सा नेता चा...
तब ही भारत बन पाता है
कविता

तब ही भारत बन पाता है

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव उदय नव युवानों का नव कर्म प्रवीण महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है दिग् दिगंत दिवाकर बनकर दौड़ रहे दिक्पाल ये तनकर नव संप्रेरक इन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है प्रचंड ज्वाल आँखों में पुरुषार्थ प्रबल हाथों में पाषाण लौह मिश्रित पुष्ट रक्त महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है तिलक लगाकर तत्पर बनकर तुणीर थामे तेजस रणवर तापस संघ महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है अरि के संमुख अडिग अचल अस्त्र-शस्त्र प्रहार प्रबल आयुध-वीर महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है नहीं भ्रमित नहीं व्यथित उपहासों से नहीं श्रमित निःशंक तल्लीन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता ...
हमारी संस्कृति हमारी विरासत
कविता

हमारी संस्कृति हमारी विरासत

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा से अम्बर तलक विस्तृत है, हमारी "भारतीय संस्कृति", देती है जो हर जड़ चेतना को, सारगर्भित जीवन की स्वीकृति।। है संगम यहाँ विविधता का, पर लेष मात्र भी नहीं है कोई विकृति, संविधान ने दिए हैं कई अधिकार, जन जन में एकता ही एक मात्र संतुष्टि।। यहाँ बच्चा बच्चा राम है, और हर एक नारी में माँ सीता है, यहाँ हर प्राणी को मिलती माँ के आँचल में प्रेम की गीता है।। बहती नदियों की धारा में आस्था और विश्वास के दीपक जलते हैं, कि मल मल धोये कितना ही तन को, मगर श्रेष्ठ कर्मों से ही पाप धुलते हैं।। इतिहास बड़ा पुराना है शिलालेखों में कई राज़ हमराज से मिलते हैं, मार्ग मिले चार ईश वंदन के, मगर एक ही मंजिल पर जाकर रुकते हैं।। रक्त-रक्त में मिलता एक दिन, यहाँ ना कोई जात धर्म का ज्ञाता है, "रहीमन धागा प्रेम का है", दिलों से रिश्...
हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम
कविता

हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम माँ भारती तव पुत्र-सेवक हम हिन्दी विश्व भाल पर चन्दन प्रथम करते हम मातृ वन्दन राष्ट्र-धरा के हैं उपासक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम अनाहद नाद ने संस्कृत रची माँ शारदा आकर उसमें बसी संस्कृत से हिन्दी को पाते हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम भाषा जिसमें विज्ञान आधार स्वर-व्यंजन-संयोजन विस्तार मानव भाषा के आराधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम संस्कृत से जीवन में संस्कार सर्व जगत ने किया स्वीकार जीवन विकास के साधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक...
ऐ जिंदगी….
कविता

ऐ जिंदगी….

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझ पर विश्वास तो कर ऐ जिंदगी, मैं तुझ से खफा नहीं। लोग समझते हैं तू बेवफा हो गई, मगर तेरी रजा है ही निराली, जिसने जैसे तुझे अपनाया, तू उसके लिए वैसी ही बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए स्वप्न तो किसी के लिए रंंगमच बन गई जिंदगी। तू किसी के लिए गमों का खारा सागर तो किसी के लिए प्यार का गीत बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए संघर्ष तो किसी के लिए पुष्पों की सेज बन गई जिंदगी। इंसान का असली चेहरा दिखाने के लिए आईना बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए अभिशाप तो किसी के लिए वरदान बन गई जिंदगी। सच कहूँ तो हमने तुझे जीना सीखा ही नहीं ऐ जिंदगी। जीने का जज्बा ग़र दिलों में जगा हो, संघर्षों और मुफलिसी के अंधकार को आशाओं की किरणो से प्रकाशित कर, बुलंद हौसलों की उड़ानों से नित नए मार्ग प्रशस्त करती है जिंदगी। हस...
जमाने का चलन देखा
कविता

जमाने का चलन देखा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मायूस देखा, कभी हँसते हुए देखा। खुद के बनाये जालों में कभी, फँसते हुए देखा।। कभी ना नजरें मिलाते जो, सलाम आज करते हैं। मतलब बिना जमाने को, ना कभी,झुकते हुए देखा।। उनको मिली है जिंदगी जीने की तहज़ीब फिर भी। बर्बादी की राह पर आदमी को आगे, बढ़ते हुए देखा।। ना मिला सुकून ना चैनो-अमन खुद से जिन्हे। दूसरों की जिन्दगी में खलल, करते हुए देखा।। ढेरों लोग हैं छोड़ी नहीं जाती जिनसे आदतें बुरी। भरी महफ़िल में उनको नसीहतें, पढ़ते हुए देखा।। सिधा सा रास्ता है दिल में उतर जाने का 'इंद्र' जान ले। तुझे प्यार से गले इंसान के, ना कभी, मिलते हुए देखा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र...