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सुघ्घर माघ के महिना

रामसाय श्रीवास “राम”
किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़)

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छत्तीसगढ़ी लोकगीत

बड़ नीक महिना माघ के,
आगे वसंत बहार।
खुशी मनावव संगवारी,
करके खूब श्रृंगार।

सुघ्घर मऊरे हे आमा हर,
महर महर ममहावय।
अमरइया मं बइठे कोइली,
सुघ्घर गीत सुनावय।।
आज खुशी ले झूमत हावय,
ये सारा संसार
बड़ नीक महिना माघ के
आगे वसंत बहार

हरियर हरियर खेत खार हे,
सुघ्घर हे फुलवारी।
बड़ नीक लागे रूख छाँव हर,
जइसे हे महतारी।।
धरती दाई के कोरा मा,
सब सुख हावय अपार
बड़ नीक महिना माघ के
आगे वसंत बहार

किसिंम किसिंम के फूल फूले हे,
देख के मन हरषावय।
लाली लाली परसा फूल गे,
आगी घलव लजावय।।
सुरूर सुरूर पुरवाही सुघ्घर,
गावय राग मल्हार
बड़ नीक महिना माघ के
आगे वसंत बहार

चार दिन के जिनगानी हे,
जादा झन इतरावव।
ये वसंत के बेर मा संगी,
जुर मिल खुशी मनावव।।
राम कहे झन भूलव मन मा,
करलव येला विचार
बड़ नीक महिना माघ के
आगे वसंत बहार

परिचय :- रामसाय श्रीवास “राम”
निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)
रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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