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अगर हमारे शिक्षक ना होते..?

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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अगर हमारे शिक्षक ना होते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

कौन सिखाता भाषा वाणी ..?
कौन बताता कथा कहानी ..?
कौन बनाता अक्षर ज्ञानी..?
कौन बतलाता गिनती गानी..?

अगर शिक्षक शिक्षा ना देते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

अगर हमारे शिक्षक ना होते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

कौन सीख देता आचार-विचार..?
कौन बतलाता वो शिष्टाचार ..?
कौन सिखाता मधुर व्यवहार..?
कौन अपनाता मर्यादा संस्कार..?

अगर शिक्षक मैला ना धोते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

अगर हमारे शिक्षक ना होते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

कौन बताता जीवन का आधार..?
कौन बताता भूखंड का विस्तार..?
कौन बताता इतिहास का सार..?
कौन गढ़ता विश्व का परिवार..?

अगर शिक्षक कर्मठ ना होते
कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

अगर हमारे शिक्षक ना होते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

जीवन के सपने अधूरे ही रहते
जगत के रहस्य उलझे ही रहते
वसुंधरा के चेहरे मुरझे ही रहते
श्रवण की सबक सुलझे ही रहते

अगर शिक्षक निष्ठावान ना होते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

अगर हमारे शिक्षक न होते
तो कहाॅं संस्कार का बीज बोते..?

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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