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क्या मैं इतना बुरा हूंँ

रामेश्वर दास भांन
करनाल (हरियाणा)
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क्या मैं आज इतना बुरा लगने लगा हूंँ,
जो आज सत्ता मुझे कभी दीवार
बनाकर तो कभी शामियानों के कपड़ों
की दीवार बनाकर छिपाने
का भरसक काम करती है,
क्योंकि उन्हें मेरी मुफ़लिसी पसंद नहीं,
मेरा चेहरा उन्हें भाता ना हो,
उनकी चकाचौंध के लिए तो
मेरा शरीर सदैव सेवा में तैयार रहता है,
कभी मुझे सड़क किनारे अपनी
फटी पुरानी चादर या मेरी
टूटी-फूटी रेहड़ी पर कुछ रखकर
बेचने से रोका जाता है तो लाठी-डंडों
से और ना सुनने वाली गालियां
देकर पिटवाया जाता है,
कभी मेरी घास-फूंस की झोपड़ियों को
तहस-नहस कर भगाया जाता है,
आखिर क्यों ये राजसत्ता मुझे
अपनाने को तैयार क्यों नहीं ?
हाँ मुझे एक जगह बहुत खुश
करने का बहुत काम होता है
और वो है राजनेताओं का मेरी ग़रीबी
और मुफ़लिसी को दूर करने का भाषण,
चुनाव के समय सब मेरे इर्द-गिर्द
गिद्धों की तरह घात लगाए बैठे रहते हैं,
उन्हें ये अहसास है कि इस शिकार के
बिना हमारा पेट खाली रह जाएगा,
तब कुछ पल के लिए मुझे भी लगता है
अब मेरे लिए काम होगा और मुझे दीवारों
और पर्दों के पीछे नहीं छुपाया जाएगा,
क्या इस अमृत काल में भी
मुझे यों ही ढका जाता रहेगा,
या मुझे भाषणों से निकलकर
असल में देखने का काम भी होगा ?

परिचय : रामेश्वर दास भांन
निवासी : करनाल (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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