Monday, May 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

मर्यादा कहने-सुनने की (ताटंक)

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
********************

कहने सुनने वाली भाषा,
शान मर्यादा रखती है।
केवल कहने सुनने से जो,
दुख भी आधा करती है।
बातचीत ऐसा मसला जो,
विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,
अनुचित चाल चल पड़ती।

कहा सुनी से सीधा आशय,
विध्वंस को इंगित करना।
कानाफूसी अंदाज रोग,
आधार अलग ही रहना।
उसी मोड़ दोराहे जानो,
विघटन कारण बन सकता।
कहना सुनना पृथक रहकर,
बातचीत धारण करता।
स्वस्थ वार्तालाप बताता,
सम्मान से दुनिया चलती।
बातचीत ऐसा मसला जो,
विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,
अनुचित चाल चल पड़ती।

तंज प्रहार बातचीत में,
सुबह-सुबह की राधे-राधे।
जो वाचाल मौन हो जाए,
टीस चुभन से आधे आधे।
शुभ घड़ी में मूक परिभाषा,
गलत समझना परंपरा।
हारे स्वस्थ कुशाग्र मनुज,
विचलित जो था हरा भरा।
दो पाटन बिच साबुत कैसे,
पिसने की चाकी चलती।
बातचीत ऐसा मसला जो,
विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,
अनुचित चाल चल पड़ती।

आधी अनमनी वार्ता बीच,
प्रफुल्ल मन रहे शामिल।
बात बिगड़ने के पूर्व ही,
ठीक नीति में यदि काबिल।
अटल’ काव्य पे गौर करते,
छोटे मन से बड़ा नहीं।
बिगाड़े हर घटना में स्तर,
टूटे मन से खड़ा नहीं।
कविता धारा संदेशों को,
हृदय में ध्यान नहीं धरती।
बातचीत ऐसा मसला जो,
विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,
अनुचित चाल चल पड़ती।

छोटी बात का बड़ा महत्व,
हमने जीवन में माना।
दैनिक जीवन सहेजने में,
अच्छे रिश्तों को महकाना।
आपके इर्द-गिर्द बैठकर,
समझो उनका बहकाना।
बड़ी बात का हल तोड़ यही,
चक्र-व्यूह तोड़ा जाना।
कहा-सुनी भी तोड़ो ऐसे,
तो पलक पांवड़े बिछती।
बातचीत ऐसा मसला जो,
विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,
अनुचित चाल चल पड़ती।

घर समाज की बातचीत में,
अनबन विरोध टूट वजह।
लघु रूप सूत्र सिद्धांत से,
मिलती राहत भरी सुलह।
हरेक कार्य में टोक-टाक,
क्यों रहती बहुत जरूरी।
अपनों की सहनशीलता में,
जब बन जाते मगरूरी।
ये कह सुनकर ’मुन्ना’ संदेश,
अपनों की नैय्या चलती।
बातचीत ऐसा मसला जो,
विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,
अनुचित चाल चल पड़ती।

कहने सुनने वाली भाषा,
शान मर्यादा रखती है।
केवल कहने सुनने से जो,
दुख भी आधा करती है।
बातचीत ऐसा मसला है,
खुशियों भरा किला गढ़ती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,
अनुचित चाल चल पड़ती।
कहने सुनने वाली भाषा,
शान मर्यादा रखती है।
केवल कहने सुनने से जो,
दुख भी आधा करती है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *