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माँ को मै पलको पे रख लूँ

किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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माँ को मै पलको पे रख लूँ,
उनकी बाते सर पर रख लू,
गुढ रहस्य की बाते माँ मै,
इतिहास के पन्ने हे माँ में,
जीवन के सब सपने माँ में,
खाने का भण्डार है (अन्नपूर्णा) माँ में,
बीते दिनो की याद है माँ में,
संस्कृति और संस्कार है माँ में,
मान और सम्मान है माँ में,
दुनिया के हर अनुभव माँ में।
घर मै एक वर्चस्व ही माँ है,
घर की एक रौनक ही तो माँ है,
बच्चो का तो सब कुछ माँ है,
जीवन का एक पथ ही माँ है,
भले बुरे की पहचान है माँ में,
मन के भाव की पहचान है माँ में,
गम को पीना खुशी से रहना,
सबको लेकर साथ है चलना,
यही भाव तो माँ रहता,
घर मै सदा सजग है रहना,
चौकन्ना सदा ही रहना,
यह सब तो माँ मै ही रहता,
मेरा तो यह अनुभव दिल का,
बिन माँ के हम (बच्चा)
पथ विहीन है रहता,
जीवन का पथ माँ से मिलता,
शिखर को छूने का साहस
देखो तो सब माँ से मिलता।
मेरी तो सब कुछ ही माँ है,
याद के आँसु मै भी माँ है,
माँ से दिन और रात है माँ से,
माँ के बिन सूना जग सारा,
ऐसी माँ मै कहाँ से लाऊ,
ये ही अफसोस जीवन मै रहता।

परिचय : किरण विजय पोरवाल
पति : विजय पोरवाल
निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स
व्यवसाय : बिजनेस वूमेन
विशिष्ट उपलब्धियां :
१. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित
२. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित
३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४” से सम्मानित
४. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना
रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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