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बेचना है जल्द

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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आस, उम्मीद, आकांक्षा
सबको अपने से
दूर हटाना चाहता हूं,
क्योंकि ये पूरे होते नहीं,
या फिर दिल में दबी रह जाती है,
कहने को तो लोग कहते हैं
इसे खूबसूरत और खांटी,
पर सबसे ज्यादा तकलीफ
देने का ठेका इन्ही के पास होता है,
थोड़ा सा मोह देकर
लूट लेते हैं सब रिश्तेदार,
मन में बसी हुई एक उम्मीद,
और बिखेर देते हैं सारे सपने,
बने हुए सारे लालची अपने,
जो कुछ भी हासिल
किया जा सकता है
वो सब सिर्फ अपने दम पर,
क्योंकि टांग खींचेंगे सारे अपने
ईर्ष्या और घमंड लेकर,
खड़ा हूं बीच राह स्वच्छंद,
दिखता हुआ निरीह,
पर मुझे अब आवश्यकता नहीं
नोचने को तैयार बैठे
किसी रिश्तेदार की,
आज वक्त ने सीखा दिया
किसी पर भरोसा न करना,
अब बेचना है जल्द
भरोसे को और रिश्ते को भी।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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