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मायका केवल एक घर नहीं होता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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मायका केवल एक घर नहीं होता
वो एक ऐसी जगह होती है,
ऐसा ठिकाना जहाँ एक बेटी
खुद को ‘बस बेटी’ समझ सके।”

मायका वो अहसास होता है
जहां बेटियाँ खुद से जुड़ सकें,
जिन सपनों को उनकी आँखों ने
देखा था उसको पूरा कर सकें!

जहाँ वो बिना किसी संकोच
या औपचारिकता के, मनचाहे
आरामदायक कपड़े पहन सकें…

जहाँ दिन की शुरुआत घड़ी के
अलार्म से नहीं, बल्कि
माँ-पिता की मीठी
शुभ प्रभात से हो…
जहाँ नींद अधूरी नहीं रहती,
और सुबह की कोई
आपाधापी नहीं होती,
चाय की गर्म प्याली
उसका इंतजार करती!

मायके का दरवाज़ा
उनके लिए दुनिया का
सबसे सुरक्षित कोना होता है
जहाँ वो सूकून से अपने
भविष्य के सपने बुन सकती हैं!

जहाँ न उन्हें कोई
किरदार निभाना होता है,
न किसी की उम्मीद पर
खरा उतरना होता है।

वहाँ वो रिश्तों में बंधी नहीं होती
वहां वो सिर्फ लाडली बेटी होती है!

एक ऐसी बेटी जो बिना
किसी जिम्मेदारी के बोझ के
खुलकर हँस सकती है,
सपनों की ऊँची उड़ान
भर सकती है, बिना किसी
झिझक के अपने
दिल की बात कह सकती है!

जहां वो फिर से एक
बार बच्ची बन जाए
ज़िद करने वाली,
रूठने-मनाने वाली
खिलखिलाती सबका
मन मोहने वाली!

सम्मान, प्यार, रिश्ते
और एक नई पहचान उसे
मायका ही लौटाता है !

जो समय के साथ
थोड़ा पीछे छूट जाता है:
उसकी मासूमियत,
उसकी व्यक्तित्व,
और उसका पहचान!

इसलिए मायका,
हर बेटी के लिए महज़
एक “घर” नहीं…होता
बल्कि एक ऐसा
आसमान होता है जहां
उसके सपने इन्द्रधनुषी
रंगों में सजते साकार रूप लेते हैं !
जहाँ वो बिना किसी भूमिका के,
बस “मैं” “हूँ” कह सके।

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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