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तुम भी ठाकुर बन सकते हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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बेशक तुम को क्षत्राणी की, कोख नहीं मिल पाई होगी।
हर ठाकुर की शान देखकर, तन में जलन समाई होगी।।

दुख भी दुखी हुआ करता है, तुम जिसको सुख समझ रहे हो।
क्षत्रिय धर्म यही है जिसको, अपना सपना समझ रहे हो।।

इनके दुख लेकर जीवन में, क्या तुम सुख से सो सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर हो सकते हो।।१।।

कद-काठी रँग-रूप एक सा, एक धरा का अन्न पचाते।
पानी-हवा धूप-छाया में, एक सरीखा स्वाँग रचाते।।

बहस किया करते हो अक्सर, इनसे हम कैसे कमतर हैं?
खून एक रँग का हम सब में, फिर कैसे इतने अन्तर हैं??

चलो आज इस पर क्या मेरी, कुछ बातें तुम सुन सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।२।।

तो मैं इतना बतलाता हूँ, ऐसी सीखें नहीं मिलेंगी।
किसी पेड़ की दो पत्ती भी, एक सरीखी नहीं मिलेंगी।।

दोनों आम दशहरी लँगड़ा, दोनों एक बाग के फल हैं।
खुशबू बनक मिठास कसावट, अलग-अलग दोनों में जल हैं।।

क्या तुम स्वाद एक सी खुशबू, इन दोनों में भर सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।३।।

ये वे हैं जो युद्ध भूमि में, प्राणों की परवाह न करते।
सिर पर कफन बाँध कर चलते, सुख की किंचित चाह न करते।।

जलती हुई चिताओं पर क्या, खुशी-खुशी तुम कूद सकोगे?
दुश्मन से नाखूनों को क्या, सण्डासी से खिंचा सकोगे??

मौत सामने हो छाती पर, सीधा वार झेल सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।४।।

तुम बोलोगे अपने को क्या, होता है सो होने देना।
बेमतलब कीचड़ में फँसना, अपने को क्या लेना-देना।।

लेकिन क्षत्रिय धर्म नहीं है, किसी तरह आफत से बचना।।
अपनों की क्या कहें शौक है, अनजानों के संकट हरना।।

करना तो है दूर देखने-सुनने में ही डर सकते हो।
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।५।।

बचपन से ही हर ठाकुर की, साँसें दूनी हो जाती हैं।
निरपराध की पीड़ा सुनकर, आँखें खूनी हो जाती हैं।।

दुश्मन सुख से बैठ न पाए, कूटनीति के दाँव भरे हैं।
माताओं ने इनके भीतर, कूट-कूट कर भाव भरे हैं।।

प्राण हथेली पर रखकर क्या, त्याग समर्पण कर सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।६।।

क्या जीवन की चाह छोड़ कर, बलि बेदी पर शीष धरोगे?
राजपूत की तरह मौत से, पहले क्या बेमौत मरोगे??

मातृभूमि के लिए हर समय, सिर पर कफन बाँध सकते हो?
तुम क्या शत्रु समक्ष मारने-मरने का प्रण कर सकते हो??

दृढ़ता कहांँ विनय अनुशासन, धनुष समान लचक सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।७।।

दीन-दुखी ज्ञानी-ध्यानी की, नारी रक्षा कर पाओगे?
शरणागत के लिए दुश्मनों, से क्या लोहा ले पाओगे?

भूखे मरते हुए बिलखते, बेटे-बेटी देख सकोगे?
बूढ़े माता-पिता तड़पते, हुए पलँग पर छोड़ सकोगे?

माता-पिता बहिन-बेटी को, बेटे दुखी देख सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो, तो तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।८।।

रक्षा और प्रबन्धित शासन, करना जिन्हें स्वत: आता है।
प्रेम-क्षमा धनदान-दया का, धर्म-कर्म करना भाता है।।

माना शौर्य सुधा यश रस की, बूँद पिलाना गरल नहीं है।
फिर से सुन लो बहुत कठिन है, ठाकुर होना सरल नहीं है।।

क्या तुम मोह त्याग बलिदानी, वीर भाव को वर सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।९।।

अगर तुम्हारे गली गाँव में, सच के लिए लड़ाई होगी।
मरियल से‌ मरियल ठाकुर की, हिम्मत अलग दिखाई देगी।।

हार-जीत की फ़िक्र छोड़ कर, आन-बान पर मिटने वाला।
संविधान की रीति-नीति पर, सिंह सरीखा चलने वाला।।

हिन्दू हिन्द राष्ट्र के हित में निर्भय आग उगल सकते हो?
यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।१०।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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