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अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?

आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश
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फिल्म अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला अब हमारे बीच नही हैं। ऐसा लिखने और कह सकने के लिए दिल अब भी गवाही नही दे रहा, पर लिखना तो पड़ेगा ही मानना तो पड़ेगा ही..!
व्यस्तता के बीच जैसे ही मैने मोबाइल ऑन किया एक प्रतिभाशाली सुंदर, सुडौल, उम्मीदों से भरे एक दमकते-चमकते सितारे के असमय चले जाने की खबरों से मन दहल गया। आंखे सजल हो उठीं। मन मे न जाने कितनी तरह की बातें उमड़-घुमड़ कर चल रही हैं। गत वर्ष सुशांत सिंह राजपूत के असमय काल के गाल में समाहित हो जाने की खबरों ने हम सबको झकझोर के रख दिया और अब सिद्धार्थ के इस तरह से काल कंलवित हो जाना बेहद निराशा जनक है। हमने सुना था और शायद सच भी है कि फिल्म उद्योग के लिए वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना कर रखने वाली मुंबई मायानगरी सच मे मायावी होती जा रही है। यहां अब प्रतिभावान कलाकारों की मौत एक रहस्य बनती जा रही है।

सालों साल मुंबई में धक्के खाने वाले लोग अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर जब सफलता को प्राप्त करते हैं किसी मुकाम पर पहुंच जाते हैं तो पहले से नाग की तरह कुंडली मारकर बैठे कुछ नशेड़ी तथाकथित, स्वघोषित एक्टर, डायरेक्ट को यह बेहद खल जाता है। पहले तो वह खुद ऐसे प्रतिभावान कलाकारों को प्रसिध्दि तक न पहुंच पाने के लिए ऐंड़ी चोंटी का जोर लगाते हैं पर जब सफल नही होते तो सफल हो चुके कलाकार की हत्या करवाकर या करके उसे आत्म हत्या या हृदयगति का जामा पहना देते हैं। बॉलीवुड में जबसे परिवारवाद का चलन बढ़ा है तभी से खुद के दम पर बिना किसी सिफारिश बिना किसी पहुंच की अपना नाम और मुकाम बनाने वाले कलाकारों, अभिनेताओं गीतकारों के साथ अप्रत्याशित घटनाओं का सिलसिला बढ़ा है। गुलशन कुमार से लेकर श्री देवी, सुशांत सिंह, सिद्धार्थ शुक्ला और न जाने कितने ही ऐसे प्रतिभावान कलाकार उदाहरण थे और हैं न जाने कितने और आने वाले समय पर शिकार बनेंगे। दिल और दिमाग अब तक यह बात मानने से इंकार कर रहा है कि सुशांत सिंह जैसे इंसान ने आत्म हत्या की होगी या सिद्धार्थ शुक्ला जैसे फिट इंसान को हार्ट अटैक आ सकता है….?? मायानगरी मुंबई पर इस तरह के सफल लोगों के साथ हो रही घटनाओं, दुर्घटनाओं का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। जिसे सुधारा जाना अति आवश्यक हो रहा है। प्रतिभाओं का गला घोटने वाले तथाकथित “सेेलेब्रिटीज़” पर शिकंजा कसना बहुत जरूरी है, और मौजूदा सरकार को इस ओर भी काम करना चाहिए। सुशांत और सिद्धार्थ के यूं चले जाने से हमको और आपको ज्यादा फ़र्क नही पड़ रहा है या पड़ भी रहा होगा तो महज़ कुछ समय के लिए। लेकिन यह दर्द अब उन माता-पिता को ताउम्र टीस देता रहेगा जिन ने अपने बेटों को खोया है। यादें सालती रहेंगी आखिरी वक्त तक उनको। जीवन किसी का भी हो चले जाने पर यह संदेश ज़रूर दे जाता है कि ज़िंदगी तो बेवफ़ा है आज नही तो कल ठुकरायेगी। सच मानिये आप। आपके आस-पास कितने लोग हैं कितनों की भींड़ का कारवाँ आपके साथ है यह मायने नही रखता, अपितु कितने लोग आपके बर्ताव से खुश हैं। आपके कर्म कैसे थे? आपकी छवि कैसी थी? यह आपके चले जाने के बाद भी लोगों के ज़हन मे रहता है। एक होनहार अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला को नमन करते हुए उस विधाता के विधान से यही विनती की ज़िंदगी ऐसी जी सकूँ जो सकारात्मक और प्रेरणास्पद हो संतुष्टिप्रद हो।
सजल नयनों ने नमन। अलविदा सिद्धार्थ।

परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन-आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। इस आलेख में व्यक्त किये गए विचार मरे स्वयं के हैं। 


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