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एक श्वान की आत्मकथा “जीवित हूँ जीना चाहता हूँ”
कविता

एक श्वान की आत्मकथा “जीवित हूँ जीना चाहता हूँ”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** है अधिकार तुम पर मेरा भी मुझे दो स्वत्व धड़कन बन जीवित रहना चाहता हूँ तुम्हारे दिल में थोड़ा सा पनाह चाहता हूँ मन और आत्मा में तुम्हारे बसना चाहता हूँ मैं जीवित रहना चाहता हूँ!!!! सुख दुःख महसूस करता हूँ अकेलापन तुम्हारा बांटना चाहता हूँ अपने साथ रहने की अनुमति दो मुझे तुम्हारी घुटन, नाराजगी, शिकायतें मिटाना चाहता हूँ मैं जीवन जीना चाहता हूँ !! मैं भी पथिक हूँ उसी राह का संग संग तुम्हारे चलना चाहता हूँ वेदनाओं से सामना हो जब तुम्हारा, शीतल चाँदनी बनकर प्यार लुटाना चाहता हूँ अश्रु पूरित नेत्रों से मैं भी छुटकारा चाहता हूँ जीवन हूँ जीना चाहता हूँ!! बंधन से जकड़ा स्वप्न सा जीता हूं मैं ठिठुरन, अकड़न, सड़न, भूख से तरबतर रहता हूँ मैं घर में तुम्हारे थोड़ी सी पनाह चाहता हूँ स्वयं के...
वचनों को भी जानो भाई
कविता

वचनों को भी जानो भाई

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* जब भाषा में संंख्या पाते। तब वचनों की महिमा गाते।। जयजयजय वचन महाराजा। कम ज्यादा का बजता बाजा।। एक बहु अरू द्वि कहलाते। पर हिन्दी में दो ही आते।। दो प्रकार के होते वचना, हिन्दी में इनकी है रचना। एकवचन अरु बहु कहाते। भाषा में संख्या बतलाते।। एक वचन तो एक बताता। जैसे लड़का रोटी खाता।। बहूवचन तो बहुत बताते। जैसे लडकें रोटी खाते।। खेल खेलते कविता गाते नचते गाते खुशी मनाते।। शाला में दीदी समझाया। संख्या बोध तुरत कराया।। बच्चे ज्यादा दीदी एका। वचनों को हम गाकर सीखा।। हंसा बहिना ने बतलाया। हॅंसी-हॅंसी में हमें सिखाया।। परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है।...
जग नियंता की शक्ति
भजन, स्तुति

जग नियंता की शक्ति

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जग नियंता की शक्ति को पहचान तू, सारी सृष्टि है प्रभु की बनाई हुई। लेखनी बस चलाते हैं हम जैसे कवि, हर इक कविता है ईश्वर की गाई हुई। जग नियंता...... मत अहम पाल की तू सृजन कर रहा, जिसपे करता कृपा प्रभु, भजन कररहा। अपनी शक्ति से जीवित नहीं है कोई, सबकी सांसे हैं प्रभु की चलाई हुई। जग नियंता....... जो करेगा भजन वो रहेगा मगन, डूब पाया अगर तो छुएगा गगन। गया सके राम महिमा को तुलसी तभी, ये थी हनुमत की सरिता बहाई हुई। जग नियंता.......... तू लगा इसमें डुबकी और हो धन्य जा, वो लुटाता है प्रतिपल, तू जो लूट पा। जन्म के साथ माँ तन से अमृत मिला, सारी औषधियाँ प्रभु की उगाई हुई । जग नियंता........ परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित...
जागो
कविता

जागो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जागो एक बार अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के लिए। जागो एक बार अपने हृदय में पनपत्ति अभिलाषाओं के लिए। जागो एक बार अपने अंतर्मन में छिपी सत्यनिष्ठा के लिए। जागो एक बार अपनी स्वतंत्रता की मर्यादा को कायम रखने के लिए। जागो एक बार स्वयं के अंतर्मन में छिपी अंतरात्मा को जगाने के लिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
विश्व के प्रमुख फैशन हाउसों में
कविता

विश्व के प्रमुख फैशन हाउसों में

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** विश्व के प्रमुख फैशन हाउसों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहिए अपने शिल्प और फैशन सामग्री को वैश्विक पटल पर आगे बढ़ाना चाहिए भारत को विश्व की फ़ैशन राजधानी बनना चाहिए भारत को अपने उत्पादों को विश्व के प्रमुख फ़ैशन हाउसों के साथ प्रदर्शन करना चाहिए प्रदर्शन में विश्व स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना चाहिए बिना किसी पूर्वाग्रह के राष्ट्र की प्रगति में सहयोग करना चाहिए परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान
कविता

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा प्रणाम है सादर प्रणाम, इन्दौर नगरी को मेरा प्रणाम। मेरा प्रणाम...।। हिन्दी रक्षक डॉट कॉम, हिन्दी रक्षक मंच निर्माण। हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान, समीक्षा समिति का परिणाम। मेरा प्रणाम...।। दिव्यांग का सर्वांगीण उन्नयन, वेलफेयर सोसायटी दिव्योत्थान। साहित्यकार श्रेणी में सम्मेलन, राष्ट्रीय स्तर का वृहद आयोजन। मेरा प्रणाम...।। साहित्य जगत है एक वरदान, साहित्यकार है सदा ऊर्जावान। श्रेष्ठ भारत है श्रेष्ठ संविधान, हिन्दी रक्षक मंच सबसे महान। मेरा प्रणाम...।। परिचय :-  हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" निवासी : गंजबासौदा, जिला- विदिशा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
रोके ना रुके अखियाँ
कविता

रोके ना रुके अखियाँ

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** रोके ना रुके अखियाँ बस तुमको ही देखना चाहें अखियाँ, तुमसे दूरी अखियों को काँटों की तराह चुभती हैं। तुम्हें किसी और के साथ देख के जलती हैं अखियाँ.....। मेरी आँखों मे तुम बसे हों मेरी सासो मे तुम ढले हो, मेरी आँखों को तुम्हें देखने की आदत है एक बात कहु ? क्या ईजाजत हैं ? मेसेज तुम करते नही, बात तुम करते नही , मेरे मेसेज का जवाब नही देते फिर कैसे कहते हो प्यार करता हु....। अपनी इस आदतो को सुधारों मेरी अखियों की शिकायतो को दूर करो प्यार करते हो तो प्यार को जताओ हमारे रिश्तें को अटूट बनाओ... अपनी अखियों में मुझको बसाओ बेपनाह प्यार जताओ मुझे अपने घर की लक्ष्मी बनाओ हमारा एक छोटा सा घर-संसार बसाओ मेरी खुली आँखों के सपने को पुरा करो बस यही चाहती हैं मेरी अखियाँ....। रोके ना रुके अखियाँ बस तुम...
एक धनुष एक बाण
कविता

एक धनुष एक बाण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन युद्ध में लड़ अकेला, लेकर हथेली में अपनी प्राण। एक मौका मिलेगी जीत की, पास है एक धनुष एक बाण।। देर ना कर अब जाग जा वीर, निरंतर करता चल तू अभ्यास। मन को एकाग्र कर ध्यान लगा, रखना सीख खुद पर विश्वास।। तम गुफा में बंदी बनकर बैठा, घिर गया आतताईयों के बीच। मुझे दे रहे थे बिजली के झटके, रुकने का नाम नहीं लेते नीच।। कहा,क्यों नहीं पढ़ता ज्ञान ग्रंथ? समय को बर्बाद करता है व्यर्थ। झूठी शान और शौकत है तेरी, तुम्हारे जीवन का नहीं है अर्थ।। छोड़ दिए मुझे बोध बाण देकर, धनुष पोथी से करो लक्ष्य भेदन। मैं कर्म करूंगा अब तन्मयता से, जीत होगी आनंद का आस्वादन‌।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित...
शक्ति
कविता

शक्ति

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दुःख सुख के संग वो तुम्हारा मर्म जानती मगर कह नहीं पाती। विचारों से करती संघर्ष जैसे स्त्री ससुराल की उत्पीड़न की बात नहीं बताती बाबुल को। झूठी हंसी लिए खुश रहती उत्पीड़न का दर्द किस्से छिपाए। उत्पीड़न में मिलते सिर्फ वेदना के स्वर जो बाटें जाते एक कहानी के तरह। उत्पीड़न की पीड़ा को नए जमाने में ना छिपाओ। बताओं दुनिया को क्योकिं स्त्री सशक्तिकरण की शक्ति तुम्हारे अब जो साथ है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अ...
घर के दीप संभाल जरा…
कविता

घर के दीप संभाल जरा…

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। मन्द ताप, बाटी बनती, भट्टी में सेके, जल जाये, यात्रा, उडान, श्रम की थकान, अपने घर में ही उतरे, घर आंगन की तरुणाई ही, उर अन्तर की प्यास भरे, हाथी पागल हो जायें, पर पिल्लै साथ निभायेंगे, सांपों को दूध पिलाने वाले, सर्पदंश ही पायेंगे, देख भीड को बहको मत, कहीं खुद का बच्चा खो जाये, घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। भाई हो कमजोर कोई, यदि उनका भार उठायेंगे, वक्त पडे, किसी कठिन दौर में, वे ही साथ निभायेंगे, मेड का कूँचा ऊँचा हो तो, साख फसल सुख पाता है, वही श्मशान में खुद जलता, औरों की चिता जगाता है, कुश्ती है, कंधे टेको मत, कोई बाजी कब अपनी ले जाये, घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। रंगा सियार बन चहको मत, चेहरा कब असली दिख जाये, झूठे क...
गोवर्धन
कविता

गोवर्धन

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आज आया गोवर्धन पर्व। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष एकम तिथि। हम सबके उर आनंद उपजाया। संग अपने हर्ष अपार लाया। चहुंओर उल्लास छाया। हे!कृष्ण मुरारी तुम हो। गोकुल, मथुरा, ब्रज जन उद्धारी। तुमरो जो सुमिरन करे। वाके संकट इक क्षण में दूर करें। हे! कृष्ण मुरारी गोपाल गिरधारी। तुम्ही इंद्रदेव पूजन। जन-जन तै तजवाई। गोवर्धन पूजन शुभारंभ करवाई। इंद्रदेव अहंकार तजवाई। हे! कृष्ण मुरारी, कान्हा। एक कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा इंद्र की अतिवृष्टि से। लोगों को बचाय कै। तुम गोवर्धनधारी कहलाए। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
दोहे
दोहा

दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दीपक बाती तेल मिल, करते तम का नाश। अपना जीवन वार कर, जग में करें प्रकाश।। सीता लांघी देहरी, टूटी घर की रीत। रावण के पाखंड में, साधू वाली प्रीत।। मां के आंचल में मिलें, ममता भरा सुकून। कदमों में जन्नत सदा, बरसे नेह प्रसून।। आज धर्म के नाम पर, होते कितने क्लेश। मानवता को भूलकर, शत्रु बन गये देश।। जय माला शोभित भाल, सूरवीर के संग। रण में झलके वीरता, रुधिर सने हो अंग।। ईश आस्था रखें सदा, सुख दुख में हर बार। जीवन में सहायक है, जग का तारणहार।। आंख शयन की प्रेयसी,नित करती अनुराग। नेह पलक पर सींचती, नयन निंद से जाग।। सात जन्म का साथ था, प्रीत रही अनमोल। नेह लिप्त मीरा रही, रस जीवन में घोल।। लगन लगी जब श्याम से, कहां रहा कुल भान। मीरा माधव प्रेम में, विष का कर ली पान।। सखा श्याम से भेंट कर, नैन ब...
सोनपपड़ी सा प्यार
कविता

सोनपपड़ी सा प्यार

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा था, प्यार हमारा तब मोबाइल थे नही, खत जो लिखे पहुँचे ही नही। गए जब हम उनकी गली, मिले तब भी नही वो हमें। एक दिन फिर आया न्यौता, पता चला वो ब्याह कर चल दिए। मोहब्बत हमारी अधूरी रह गयी, क्या-क्या लिखा खत में बात अब पुरानी हो गयी। आज कल बाबू-सोना क्या-क्या खाया-पिया, घूमना -फिरना, मूवी, शॉपिंग आकर्षण के मुख्य केन्द्र है मन भर जाए तो ब्रेकअप आम है। प्यार आज कल दीवाली की सोनपपड़ी सा हो गया, जैसे अब लैला के साथ मजनूं आम हो गया। जब से मोबाइल आया प्यार का दायरा बढ़ गया अब बातो ही बातों में चांद पर घुमा लाते है, एक हम थे जो सिर्फ नजरे ही मिला पाए।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रक...
दफ़न चेहरा
कविता

दफ़न चेहरा

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** भला कैसे पढूं इन चेहरों को जिनके पिछे न जाने कितने राज दफ़न है। ये राज कहीं हक़ीक़त तो नहीं जो हर पल मेरे जेहन को टटोलती और बिना कुछ कहे हमेशा की तरह चली जाती। शायद कोई इत्तेफाक होगा आखें मूँद कर यह सोच लेता हूँ। कभी अपनों से तो कभी अपनेपन से। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें...
दिवाली वक्तव्य प्रकटीकरण
कविता

दिवाली वक्तव्य प्रकटीकरण

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। सत्ता संग खेला करते हैं नूरा कुश्ती आरोप अफवाह से भरा तमाशा है सता विपक्ष अंदर बाहर खेल कबड्डी मौका पाते ही भरपूर लगे तमाचा है काली गोरी चमड़ी सबका लोकतंत्र बेशर्म मोटी चमड़ी कुचक्र चलाती है। सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। संस्कार विकास कदमों की खातिर व्यक्तित्व प्रशिक्षण के विषय बनाए प्रभावी भाषण कला के बदले अब कुतर्क नजारा निरंतर दर्शाता जाए बड़े सफेदपोश की बोलियां सुनकर भाषण कला बेभाव जहां शर्माती है सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। खुद के निर्णय कथन का युग देखते सुनते ही रहिए बस आत्म प्रवंचना बड़बोले खुद अपना संसार हैं रचते श्रेष्ठतम मनवाने में वक्...
थाती
लघुकथा

थाती

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** दीपावली हेतु सफाइयाँ जोर-शोर से चल रही थीं। पुराना सामान हटाते-हटाते अचानक सुधा के हाथ में एक मखमली लाल थैला लग गया। मानो उसके हाथ में यादों का पुलिंदा ही आ गया हो! नन्हें-नन्हें कपड़े, छोटे-छोटे कुछ टूटे-फूटे खिलौने, कुछ छिली-अधछिली पेंसिलें, रंग बिरंगी चौक के टुकड़े, कुछ ट्रॉफियाँ और न जाने कौन-कौन-सी "थाती" सहेज कर रखी थी अपने चारों चहेते बच्चों की, सब एक चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घूम गया और वह ममता के सागर में गोते लगाने लगी! परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट...
मैं कहां हूं?
कविता

मैं कहां हूं?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** सदियों से लेकर आज तक तुम्हारी व्यवस्था में बताओ मैं कहां हूं? सिसकते, दम तोड़ते, मायाजाल काटकर आज मैं यहां तक पहुंचा हूं, तुमने तो हमें पैदा ही पैरों से करवाया, हमें नीच, अधम, शुद्र बताया, व्यवस्था की कठोर लकीर खींच पग पग हमें तड़पाया, हांडी झाड़ू बांध हमारे तन से छाया, पदचिह्न तक को अपवित्र बताया, हम तब भी समझते थे और आज भी समझ रहे हैं कि तुमने हमें तन मन धन से तड़पाया, वो तो शुक्र है हमारे महापुरुषों का, जिन्होंने अलग अलग समय से हमें समझाते, जगाते आया, फिरंगियों के नेक पहल से हमने आंखें खोल देने वाला शिक्षा पाया, संविधान बनाया, हक़ अधिकार पाया, मगर फिर भी अपनी कुटिल चालों से हमें धर्म में उलझा हर शसक्त संस्थाओं पर कब्जा जमाया, अब राग अलाप रहे हो कि देश में सब कुछ ठीक है, कहते हर काम विधान नीत है तो बताओ आ...
सार्थक करें ये दीपावली
कविता

सार्थक करें ये दीपावली

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घर की साफ़ सफाई संग करके दुर्गुणों की विदाई और मूल्यों के सतरंगों से जिंदगी की कर ले पुताई धनतेरस है धनधान्य भरे निज सेवकों का ध्यान रहे परम धरोहर सेहत अपनी इसकी कुंजी संभाल रखे रूपचतुर्दशी सँवारे जीवन नरकासुरों का संहार करें तन व मन दोनों हो सुंदर कुछ ऐसा ही प्रयास करें माटी के दीयों की जगमग अमावसी कालिमा को हरे खुशियों की फुलझड़ियाँ हो पर्यावरण का आव्हान करें गोवर्धन पूजा करते हैं हम पशुधन का परिपालन करें मीठा खाए व वैसा ही बोले बंधुता का अब श्रीगणेश करें भाईदूज पर तिलक लगे आत्मस्वरूप स्मरण करें महाभारती कलहों से परे रामायणी परंपरा शुरू करें दीप से दीप जलाएँ ऐसे मन का सब अंधकार हरे सब अच्छा, सब अच्छे हो आओ दिवाली सार्थक करें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं...
दीपावली की रंगोली
कविता

दीपावली की रंगोली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मन के भाव कला बनकर जब, रंगोली बन जाते। रंगोली के विविध रंग तब, सबके मन को भाते। रंगोली की कला निखरती, कलाकार के कर से। रंगोली की छटा देख कर, जन-जन का मन हरसे। कई रंग से मिलकर बनता, इसका रूप निराला। सारे कौशल दिखलाता है, इसे बनाने वाला। अलग-अलग हैं भाव सभी के, अलग-अलग है बोली। अपने भावों को रँग देकर, बनती है रंगोली। कइ प्रकार बनती रंगोली, अलग अलग दिखती है, कोमलांगी अपने कर से, मनोभाव लिखती है। दीपोत्सव है पर्व अनोखा, मिलकर सभी मनाते। रंग बिरंगे दीप सजाकर, मोहक कला बनाते। सधे हुए हाथों से जब भी, रंगोली बनती है। हर कोने पर दिया सजाकर, दीवाली मनती है। दीप मालिका सजा, सजा कर, रोशन करते घर को। शांति संदेशा रंगोली का, गाँवों और शहर को। कइ वृक्षों के फूल बिखर कर, रंगोली बन जाती। ...
चैन से जीने की वो …
कविता

चैन से जीने की वो …

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** दौलत-शौहरत पास से सब, अब जाती रही, थी उम्मीद जिससे, वो उम्मीद भी अब जाती रही, गमगीन माहौल बना दिया, वक्त ने अब तो चारों और, तबीयत खराब रहने से, जीने की रोशनी भी अब जाती रही, दूर हो गये हैं सभी अपने,हालात देखकर अब यहांँ, आकर मिलने की उम्मीद, उनसे अब जाती रही, बनाई थी जो पहचान उम्र भर, ज़माने में यहाँ, वो पहचान भी पास से, दूर अब जाती रही, कभी हौंसला होता था, देखकर उनको भान, हालात देख उनके, मेरी हवा भी अब जाती रही, गम मुझे भी है ये सब हो गया, नज़रों के सामने, मेरे दिल की भी वो उमंग, अब जाती रही, ना कर्जदार बनाना, ए ख़ुदा ज़माने का कभी, चैन से जीने की वो फितरत भी, अब जाती रही, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न
साहित्य समाचार

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न

इंदौर म.प्र.। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच एवं दिव्योत्थान एजुकेशन एंड वेलफ़ेयर सोसायटी के सँयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पोर्टल hindirakshak.com की एक करोड़ पाठक संख्या का महोत्सव के तहत एवं दिव्यांग भाई बहनों के सहायतार्थ "हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२" कार्यक्रम मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर, पुस्तकालय के सभागृह में आयोजित किया गया। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्मान समारोह में मुख्य रूप से प.पू. गो. १०८ दिव्येशकुमारजी महाराज श्री इंदौर (नाथद्वारा), मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं देवपुत्र पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री कृष्णकुमारजी अष्ठाना, कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकासजी दवे, विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति महोदय प्रो.डॉ. मानसिंहजी परमार एवं रेनेसां विश्वविद्यालय सांवेर रो...
मां लक्ष्मी के आठ स्वरूप
भजन, स्तुति

मां लक्ष्मी के आठ स्वरूप

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** धर्म ग्रंथों और पुराणों में मां लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपों का वर्णन है मान्यता है मां लक्ष्मी की कृपा बिना जीवन में समृद्धि संपन्नता पाना असंभव है मां के अष्ट लक्ष्मी स्वरूप अपने नाम स्वरूप के अनुसार भक्तों के दुख दूर करती हैं सुख समृद्धि देकर वैभव बढ़ाती है धन की वर्षा से जीवन सफल बनाती है आदिलक्ष्मी धन लक्ष्मी धान्य लक्ष्मी स्वरूपों सहित गज लक्ष्मी संतान लक्ष्मी वीर लक्ष्मी जय लक्ष्मी विद्या लक्ष्मी अष्ट स्वरूप है हर स्वरूप से कृपा रहमत बरसाती है लक्ष्मी मां का सशक्त अस्त्रों में मुद्रा अस्त्र है अलक्ष्मी चंद्रदेव शुक्राचार्य भाई बहन हैं मां का दिवस शुक्रवार जीवनसाथी विष्णु है सवारी गरुड़ उल्लू शेषनाग कमल है ओम श्री श्रेये नमः मूल मंत्र हैं वैंकुठ मणिद्वीप क्षीरसागर निवास स्थान है महालक्ष्मी...
कुम्हार के दीये
कविता

कुम्हार के दीये

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** पीढ़ियों से पुरुखों की विरासत बढाने। मिट्टी से बने दीये कंधों में सम्भाले।। सुख शांति की कामना लिए दीवाली में उमंग के पल। द्वार तेरे दीपों से सजाने, निकल पड़े हैं आजकल।। जगमगाती दीपों के पर्व में, उनके होंठों पे मुस्कान दे दो कुम्हार के दीये ले लो.. तामझाम रौनक बाजारों में, तुम्हें मिट्टी के दीये रास आ जाये। तुम्हारे महल की रोशनी से, उनके अंधेरे घरों में प्रकाश आ जाये।। खुशियों की आश लिए बाहों में, बैठ जाते हैं चौक-चौराहों में। आशाओं के दीप जलाकर, बैठे हैं तेरे इंतजार में। खुशियों की सौगात दे दो। कुम्हार के दीये ले लो.. परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
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भजन, स्तुति

सृजन

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** शितल-शितल चंदा की किरण है। महकी-महकी आज पशन है। तरल तरंग मन में उमडे है उमड-उमड मन गीत है गाता। सुख है, दु:ख है समझ ना पाये मन भी बडा चपल चंचल है। डाल-डाल पर भँवरा मंडराये कली-कली को फूल बनाये। दूर कही बांसुरी बजाए राधा-राधा किशन बुलाए। मनवा महके, तनवा दहके सृष्टी का कैसा सृजन है। परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके...
अनुपम आभा
गीत

अनुपम आभा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली। अंतः का तम दूर हटेगा, तब होगी दीवाली।। भेदभाव, झगड़े-झंझट जब, सारे मिट जाएँगे। फैलेगा नूतन प्रकाश तब, भोर नयी पाएँगे।। जब लेंगे संकल्प नए हम, होगी रात न काली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। अमन-चैन के फूल खिलेंगे, सतरंगी बगिया में। सबको रोटी-कपडे़ होंगे, अपनी इस दुनिया में।। मानवता की जोत जलेगी आएगी खुशहाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। सच्चाई की पूजा होगी, सत्कर्मों की माला। होंगे कृष्ण कर्मयोगी-से, राधा जैसी बाला।। रामराज्य होगा इस जग में, बिखरेगी सुख-लाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। नेह-प्यार के संबंधों से, महकेगा जग सारा। सींचेगी रसधार सुधा की, घर-घर भाईचारा।। देख प्रफुल्लित प्रीति-वाटिका, पुलकित होगा माली...