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पिता का साया
कविता

पिता का साया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन मे पिता का साया होती है सुकून भरी छाया। पिता से है जो प्यार पाया जीवन में आनन्द समाया। पिता हैं बच्चों का साया जो बुरी नजरों से बचाया। जिसने प्यार सदा लुटाया तभी पिता वो कहलाया। पिता ने गिरने से बचाया अपने को बैसाखी बनाया। पिता ने चलना सिखाया गिरते हुए हृदय से लगाया। पिता ने मुझे खड़ा कराया मंजिल का राह दिखाया। पिता ने कष्टों को भगाया मेरे बोझ कंधों से उठाया। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
बूढ़ी अम्मा
लघुकथा

बूढ़ी अम्मा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  शीतला सप्तमी होने से सास बहू नहा धोकर रात में ही रसोई में जुट जाती हैं। पूड़ी सब्ज़ी, दही बड़े, गुलगुले आदि भोग के लिए अलग रख दिए हैं। नौकरी पेशा बहू भलीभांति सासू माँ के आदेशों का पालन करती है। पिछली बार चुन्नू को चेचक के प्रकोप से देवी माँ ने ही बचाया, ऐसा माजी का कहना है। बहू पूजा की थाल सजाकर तैयारियाँ कर लेती है ताकी बच्चे भी प्रसाद लेकर स्कूल जा सके। आदतानुसार सासू माँ याद दिलाना नहीं भूलती हैं, "चना दाल भिगोना व दही ज़माना मत भूल जाना। दीया ठंडा ही रखना है। याद है चिकित्सक भी चेचक होने पर कमरा ठंडा रखने को कहते हैं। और हम माता जी के आने पर दरवाजे पर नीम की पत्तियां लटकाते हैं।" "हाँ माँ ! आप हर साल दुहराती हैं, अब मैं पक्की हो गई हूँ।" बहू आश्वस्त करती है। सुबह सवेरे बहू लाल चूनर ओढे, पूजा की थाल लिए तैयार खड़ी है। सासू माँ ब...
उन क्रूरों ने निर्ममता से
कविता

उन क्रूरों ने निर्ममता से

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** https://youtu.be/RiMP3GcPej8 रस-रौद्र, करुण उन क्रूरों ने निर्ममता से बांट दिया जब घाटी को.. आरी बींचो-बीच धरी और काट दिया जब बेटी को? तब भी धधके नहीं क्रोध के हृदय तुम्हारे क्यों शोले? मौन रहे या टाल दिया, तब एक सहिष्णु ना बोले? नन्हे-नन्हे बच्चों को जब वो गोली से भूंज रहे थे? सत्ता लोलुप चतुर लड़इये तब विदेश क्यों घूम रहे थे? 'सर्वानंद या गिरिजा टिक्कू' की ख़ातिर मोम नहीं क्यों पिघली? भारत में रहकर डरने वालों! तब जीभ तुम्हारी विष ना उगली? आज दर्द पर उनके कुछ कुर्सी के दम्भी मुस्काते हैं हँसते नहीं, दरअसल दैत्यवंशी हैं! जात दिखाते हैं। आखिर क्यों? चीखें उनकी कान के पर्दे तुम्हारे फाड़ नहीं देतीं? किसलिए तुम्हारी आँखे उन संग हुई त्रासदी पर ना रोतीं? सहमा नहीं कलेजा बोलो आख़िर क्यों चीत्कारों से.. जले नहीं...
आ गई है
कविता

आ गई है

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी गया, (बिहार) ******************** वो लड़की घर पे कैसे आ गई है शिकन बिस्तर पे कैसे आ गई है कभी जो चाहती थी बस मोहब्बत वो अब जेवर पे कैसे आ गई है कभी कुछ बात हो जाती है घर में ये तूं खंजर पे कैसे आ गई है हर इक कतरा इसी से है परेशां नदी पत्थर पे कैसे आ गई है कोई देखे अगर बदनाम कर दे वो फिर छप्पर पे कैसे आ गई है गजल पनघट पे शरमाती थी कल तक वो अब शॉवर पर कैसे आ गई है परिचय :-  डॉ. जियाउर रहमान जाफरी निवासी : गया, (बिहार) वर्तमान में : सहायक प्रोफेसर हिन्दी- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार सम्प्रति : हिन्दी से पीएचडी, नेट और पत्रकारिता, आलोचना, बाल कविता और ग़ज़ल की कुल आठ किताबें प्रकाशित, हिन्दी ग़ज़ल के जाने माने आलोचक, देश भर से सम्मान। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
आया वसंत
कविता

आया वसंत

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** आया वसंत, आया वसंत हो गया शीत का पुनः अंत सरसों हैं फूल रहे सर्वत्र धरा ने पहना पिला वस्त्र घर से सब निकले धीर संत आया वसंत, आया वसंत हँस रहे बाग में कई फूल अठखेली करते झूल-झूल हो गए सुवासित दिक्दिगन्त् आया वसन्त, आया वसंत भर रही कोकिला मधुर तान भंवरे का भी है मधुर गान भर रहा दिलों में ख़ुशी अनंत परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
होली की पिचकारी से
कविता

होली की पिचकारी से

संगीता श्रीवास्तव शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) ******************** होली की पिचकारी से जीवन की हर क्यारी मे, भर लो रंग प्यार के गहरे, सपने सारे सच होंगे होली तो है होली। सबके सिर चढ़ा रंग गुलाल, मस्ती में झूमे सब आज बच्चे बूढ़े और जवान सबके चेहरे पीले लाल, होली तो है होली। हर चेहरा अपने को ढ़ूढ़े, हुए ऐसे रंग बिरंगे मुखड़े, उम्र का बन्धन तोड़ के झूमे, होली आज उमंग मे झूमे। होली तो होली। सबकी अपनी अपनी टोली, सबकी अपने ढंग की होली, भींग रही साजन संग सजनी, पिय मेरे मैं पिय की होली, होली तो है होली। सखी सहेली से एक बोली, पिय न आए आया होली, आ जाएंगे पिया तुम्हारे, पहले हम संग खेलो होली। होली तो है होली। परिचय :- संगीता श्रीवास्तव निवासी : शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं ...
होलिका दहन
कविता

होलिका दहन

प्रभात राजपूत ''राज'' गोंण्डवी गोंडा (उत्तर प्रदेश) ******************** होलिका दहन की कहानी पुरानी है, यह असुर राज की बहन से शुरू हुई कहानी है।। होलिका दहन का पर्व हमें संदेश देता है, भक्तों पर अत्याचार होने पर भगवान स्वयं अवतार लेता है।। होलिका दहन का राज हमें आकर्षित करता है, जो दुष्ट होता है, वह स्वयं की अग्नि में ही जलता है।। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाते हैं, सब लोग मिलकर होली का जलाते हैं।। इस त्यौहार के अनेक नाम हैं, धुलेंडी, धुलडी, धूलि विख्यात नाम है।। होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, यह दुष्ट और असहन थी।। भगवान खुद को हिरण्यकश्यप समझता था, वह मनुष्य को जानवर समझता था।। होलिका को न जलने का वरदान प्राप्त था, इसीलिए होलिका को अभिमान व्याप्त था।। भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ गई, भक्त बाहर आ गया होलिका जल गई।। अनेकों ...
होलिका और भक्त प्रहलाद
आलेख

होलिका और भक्त प्रहलाद

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** राक्षस राज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु प्रहलाद के जन्म से बहुत खुश थे। परन्तु प्रहलाद की भक्ति देख हिरण्यकश्यप बहुत परेशान रहने लगा। भक्त पहलाद के जन्म लेते ही वह भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा और जब यह बात उसके पिता राक्षस राज हिरणयकश्यप को पता लगी। तो उसने अपने पुत्र को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया। कि वह भगवान विष्णु की भक्ति करना छोड़ दें, क्योंकि हिरण कश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। और बदले की भावना में जलता रहता था।क्योंकि भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। लाख प्रयास करने के बाद भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना करना नहीं छोड़ा। अंततः हिरण्यकश्यप ने हार मान कर भक्त पहलाद को मारने का निश्चय कर लिया। और उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली।ज्ञहिरणयकश्यप की बहन होलिका एक दुष्...
अनेकता में एकता की नगर चौरासी
कविता

अनेकता में एकता की नगर चौरासी

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** हम सुनाते है एक ये प्यारी बात, ये है हमारी नगर चौरासी की बात। ये बात है हमारे राजगढ़ (धार) की जहां दिखती है रोनक त्यौहारो की, परंपरा है निभती मेरे राजगढ़ (धार) में एक प्यारा सा भारत जैसे बसता है हर एक की निगाहों में सुना है हमने राजगढ़ (धार) की मिट्टी की है एक खास बात सबको अपनो से जोड़े रखती है ये ना करती कोई भेदभाव। नगर चौरासी देती सन्देशा यही हम सब एक है इसकी बात यही एक पंगत बैठ भोजन प्रसाद करे सभी धर्म और जाति एक समान हक से रहे। सबकी जुबान अलग ही सही, पर हर कदम एकसाथ चले, अनेकता में एकता की आओ हम कायम मिसाल करें। पंगत में बैठकर अच्छी संगत के साथ आओ कुछ इस मिट्टी की बात करें हमारा नगर चौरासी है सबसे निराला ये बात को हम आज साकार करें दुनिया को देती यही प्रेरणा। नगर चौरासी ओर देती है एक संदेश, प्यार से रह...
बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है
ग़ज़ल

बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है। जो नज़ारा सराब जैसा है। भाव चेहरे के बूझने वालों, क़ायदा ये क़िताब जैसा है। नाम उसका बड़ा नहीं लेक़िन, काम उसका नवाब जैसा है। शर्म से हाथ मुँह पे रख लेना, ये तरीक़ा नक़ाब जैसा है । दूर होकर भी हमको भाता है, शख़्श वो माहताब जैसा है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
सुन कान्हा फागुन आयो
गीत, भजन, स्तुति

सुन कान्हा फागुन आयो

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सुन कान्हा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू होरी पै मोय लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगो। हां! राधा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू भी होरी पै मो पै लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगी। मैं और तू होरी रंगन। तै संग खेलेंगे, एक-दूजे के। नयन देखेंगे मैं तोरे नैनन में। तू मोरे नैनन में प्रेम रंग देखेगो। होरी ऐसी खेलेंगे ज्यो जल। मध्य उछरे त्यों हमारो। हिय प्रेम रंग होरी से गदगद। होय जात उमंग संग हर्षित हो। उर मयूर सौ नाचत अरू हम। द्वौ ऐसी प्रेम रंग होरी खेले। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
मीरा तो थीं प्रेमदिवानी
कविता, भजन

मीरा तो थीं प्रेमदिवानी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। कान्हा की थीं वे अनुरागी, माना उनको ही नित स्वामी। महलों का सुख रास न आया, प्रेम डगर की थीं अनुगामी। बहुत मनाया नित्य उन्हें पर, राणा जी की एक न मानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो धीं प्रेम दिवानी। राणा भेजे एक पिटारा, मंशा थी मीरा डर जाएँ। खोलें जब तत्काल उसे तो, नाग डसे उनको, मर जाएँ। नाग बना माला सुमनों की, विस्मित थे राणा अभिमानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। राणा ने फिर विष भिजवाया, कह प्रसाद है यह मोहन का। राणा थे भारी अचरज में, पी मीरा ने शीश झुकाया। श्याम भजन गाकर मंदिर में, जोगन बन बैठी वह रानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थी प्रेमदिवानी। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/...
ज़िन्दगी के नाटक मे
कविता

ज़िन्दगी के नाटक मे

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** ज़िन्दगी के नाटक मे... हर कोई इस तरह रम गया है, मानो उसे भी ना पता कि वो कौन है। बस दिखावे के चक्कर मे, दिखावटीपन की ज़िन्दगी जी रहा है। असल ज़िन्दगी से वो खफा है, क्योकि अभी वो ज़िन्दगी के नाटक मे रमा है। यहा किसी को नही पता की, कौन अपना है कौन पराया है। हर कोई यहां अपनी मंजिल को पाने मे लगा है, असल ज़िन्दगी का तो उसे पता ही नही। ज़िन्दगी के नाटक मे... सभी ने झूठ का मुखौटा बेखुभी पहना है। हर कोई अपनी ज़िन्दगी से बेख़बर है, इस ज़िन्दगी के नाटक मे। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
जागो हे भोले…
भजन, स्तुति

जागो हे भोले…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** "ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है, सत्यम शिवम् सुंदरम...। सत्यम शिवम् सुंदरम..., सुंदरम..., सुंदरम..., सत्यम शिवम् सुंदरम...।। जागो हे भोले..., जागो..., जागो..., जागो..., जागो हे भोले, जागो प्यारे, मेरे भोले कि सूरत, है निराली। जागो हे भोले...।। गणेश-कार्तिक पूत तुम्हारे, आदिगौरी मां संगिनी तुम्हारी। मन पावन करो, कामना पूर्ण करो, सदा नमन करूं, ओमकार प्यारे। जागो हे भोले...।। हाथो में त्रिशूल डमरूं बाजे, माथे पर त्रिनेत्र चंद्र सांजे, जटा में रहे गंग, डाले गले में भुजंग, नीलकंठेश्वर, महाकाल प्यारे। जागो हे भोले...।। ज्योर्तिलिंग में शक्ति तुम्हारी, करे पूजन ऐ धरती सारी, भक्तों के भगवन्, करूं चरणों में सुमिरन, शिवशक्ति का रूप, भोलेनाथ प्यारे। जागो हे भोले...
जीवन है रंगों का त्यौहार
कविता

जीवन है रंगों का त्यौहार

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** जीवन है, रंगों का त्यौहार आयी हैं, खुशियाँ अपार लाल पीले रंगों से खेलों आया है, होली का त्यौहार॥ रंग बिरंगी पिचकारी हैं बच्चों की किलकारी हैं, गली-गली धूम मचाई हैं बच्चों की टोली आई है॥ फागुन में होली आयी हैं रंगों की बरसात लायी हैं, हर चेहरे में खुशियाँ छायी हैं अपनों की सौगात हैं, लायी हैं॥ कान्हा को रंग लगाऊँ मैं ये सपना रोज सजाऊँ मैं, रंगों के इस त्यौहार में अपनों को गले लगाऊँ मैं॥ गुजिया की मिठास हों सबके दिल में प्यार हों, अपनों का साथ हो, तो हर दिन त्यौहार हो॥ परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है।। दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द्ध रात अज्ञारी जैसी, सुबह शाम अखबारों सी।। सिगड़ी जैसा दहक रहा घर, देहरी धू-धू जलती है। गरमी फैंक रही है गरमी, तपती सड़क पिघलती है।। सीना सिकुड़ गया नदियों का, नहरें नंगीं खड़ीं दिखीं। कुए बावड़ी हुए बावरे, झीलें बेसुध पड़ीं दिखीं।। तपन घुटन में हौकन ज्वाला, बाग-बाग में लगी हुई। बदली बनकर बरस रही है, आग-आग में लगी हुई।। जीभ निकाले श्वान हाँफते, बेबस व्याकुल लगते हैं। जीव जन्तु प्यासे पशु पक्षी, जग के आकुल लगते हैं।। हरे खेत हो गए मरुस्थल, पर्वत रेगिस्तान हुए। सारे विटप बिना छाया के, जलते हुए मकान हुए।। एसी, कूलर, अंखे, पंखे, डुलें वीजने नरमी से। बिगड़ रहे...
झूठों का  शहर
कविता

झूठों का शहर

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** झूठों के शहर में सच कौन बोलेगा जो बोलेगा वह मारा जाएगा। न कोर्ट होगी ना ही तारीखें होंगी सीधे सजा सुनाया जायगा। अंधे-बहरो के बीच वह चीखेंगा, चिल्लायेगा बार बार इन्साफ़ की गुहार लगाएगा। अंततः वह आरोपी कहलायेगा। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डा...
होली राम रंग संग खेलो
कविता

होली राम रंग संग खेलो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** होली राम रंग संग खेलो, हनुमत झूम के नाचेंगे। लगेगा भक्तों का दरबार, नाम महिमा वे बांचेगे। होली ..... बहाओ र से रंग फुहार, म में है माँ सीता का प्यार, चढ़ेगा जिन पर हनुमत रंग, वो माँ के चरण पखारेंगे। होली....... नहीं हुड़दंग का ये त्योहार, लुटा दो सब पर अपना प्यार, बढ़ी कटुता जिनसे इस साल, मिटाकर गले लगालेंगे। होली....... न डूबो दारू में या भांग, यही है सात्विकता की मांग। आओ बैठो हनुमत दरबार, "नाम" का नशा चढ़ा देंगे।होली....... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
सुख संदेश
गीत

सुख संदेश

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का दीपक जलता हूँ। और जीने की कला लोगों को सिखाता हूँ। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ।। दिलों में पल रही कड़वाहट और नफरतो के बीजो को। अपने दिलों से तुम निकालो और प्यार मोहब्बत को अपनाओ। तेरे दिल की दशा और काया निश्चित ही बदल जायेगी। तेरे जीवन में खुशीयों की फिर बहार आ जायेगी।। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का दीपक जलता हूँ।। रखा क्या है नफरत और कड़वाहटो को दिल में रखकर। तू इसी में उलझा रहता है और इसी को जीवन कहता है। और दफन कर रहा है अपनी नई नई उमंगो को। बस नफरतो में जीता और उसी में मरता रहता है।। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का द...
सब गुलजार हुआ होगा
कविता, छंद

सब गुलजार हुआ होगा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ताटंक छंद त्योहार मनाने का उत्साह, इंतजार में पलता है राग द्वेष को तजते इसमें, अपनेपन से चलता है। होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। दुनिया रंगबिरंगी होती, चालों में रंग सिमटता रंगों पर हक नहीं किसी का, घटना घेरों में पलता आशा विश्वास सहयोग दया, रंगो का पहरा रहता रहमत रंग की पात्रता से, अमन चैन खजाना होगा सच्चे पक्के जब रंग समाए, दांवपेंच गुजरा होगा होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। बिना कर्म और समर्पण से, अंक गणित का शून्य है रंग तुम्हारे कितने चोखे, साहस मार्ग अनन्य है अमल खलल रूप सच्चाई से, रंग गाथा भी धन्य है जहमत रंग प्रतिपालन में, काया कल्प हुआ होगा रंग लगाकर रंग बदलना, आपा भी खोया होगा होली होली क...
विस्मृत चित्र श्रम का
गीत, छंद

विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीत, आधार छंद - लावणी भाग्य मिटाया मजदूरों का, धन के मदिर बयारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।। गमक स्वेद की समा न पायी, कभी कागजी फूलों में। अमिट वेदना श्रम सीकर की, फँसती गई उसूलों में।। वार सहे पागल लहरों के, युग-युग विवश किनारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।१ कौर रहे हाथों से रूठे, वस्त्र बदन की व्यथा कहे। बिन बारिश ही पर्णकुटी के, विकल नैन से अश्रु बहे।। लूटी है सपनों की डोली, खादिम बने कहारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।२ दूध पिलाया पुचकारा है, आस्तीनों के व्यालों को। भूख छेड़ देती है पल-पल, घायल पग के छालों को।। देह निचोड़ी श्रमजीवी की, लालच के बाजारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने...
कोई फर्क नहीं
कविता

कोई फर्क नहीं

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं कब हारा मैं कब जीता मुझे इससे कोई फर्क नहीं। कौन अपना कौन पराया मुझे इससे कोई फर्क नहीं। मैं क्यों रोया मैं क्यों हंसा मुझे इससे कोई फर्क नहीं। कौन मेरा कौन तेरा मुझे इससे कोई फर्क नहीं। क्या खोया क्या पाया मुझे इससे कोई फर्क नहीं परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपन...
रंगलो तन-मन रंग से
कविता

रंगलो तन-मन रंग से

वीरेंद्र दसौंधी खरगोन (मध्य प्रदेश) ******************** रंगलो तन-मन रंग से, देखो होली आई। रंग-बिरंगे रंग लिए, हँसी ठिठोली आई।। ढोल, मृदंग की थाप पर, नाचे गाये सारे। पिचकारीयो  से  बरसे,  रंगो की बौछारे।। लिए रंग हुरियारो की, देखो  टोली  आई। रंगलो तन-मन रंग से, देखो होली आई।। तेरे प्यार का हर रंग, रंगे मेरा तन-मन। प्रीत रंग ना छुटे कभी, चाहे करे सब जतन। सहेलियों को संग लिए, लो हमजोली आई। रंगलो  तन-मन  रंग से, देखो होली आई। बिसराकर मन राग-द्वेष, सबको गले लगाए। जाति, धर्म के भेद मिटा, एक रंग हो जाए। चंदन, गुलाल, कुमकुम की, देखों रोली आई। रंग लो तन-मन रंग से, देखो होली आई। कौना-कौना धरती का, लगता है सतरंगी। भक्ति के रंग में रंगा, झूम  रहा सतसंगी।। वीर लिए संग श्याम को, राधा भोली आई। रंग लो तन-मन रंग से, देखो होली आई।। परिचय :- वीरेंद्र दसौंधी निवासी : खरगोन (म...
हरी धरै मुकुट खेले होली
भजन, स्तुति

हरी धरै मुकुट खेले होली

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हरी धरै मुकुट खेले होली, हरि धरै मुकुट खेले होरी || मोर मुकुट पीतांबर पहने, हाथ पकड़ राधा गोरी || हरि धरे मुकुट खेले होरी कितने बरस के कुंवर कन्हैया, कितने बरस राधा गोरी || हरि धरेमुकुट खेले होरी दसहि बरष के कुंवर कन्हैया, सात बरष राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कहा पैरी कृष्णा होरी खेले, कहां पैरि राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी मुकुट पैरि कृष्णा होली खैलै, चीर पैरि राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी काहिन के दो खंभ बने हैं, काहिन लागि रहे डोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी अगर चन्दन के दो खंभ बने हैं, रेशम लागि रहे डोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कौन वरण के कृष्ण कन्हैया, कौन अवरण राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेले होरी श्याम वर्ण के कृष्ण कन्हैया, गौर वरण अ राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले हो...
मन पलाश बन गया
कविता

मन पलाश बन गया

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया रंग तुमने डाला ऐसा, मन पलाश बन गया अबीर, गुलाल या रंग हो हरा सारे रंगों ने रंगी कर दिया जिया मेरा रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया सामने बैठ कर तुमने लालिमा बना दिया सुर्ख लब किए और रुखसार भी रंग दिया रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया होली है या नज़र की पिचकारी तुम्हारी छिन-छिन, पल-पल हो रही बावरी तुम्हारी रंग गिरते रहे और छा गई खुमारी इंद्रधनुष सा तुम्हारा मन, जीवन सतरंगी कर गया तन मन तो क्या तुमने, वजूद भी रंग दिया रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...