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हर लम्हा तन्हा
कविता

हर लम्हा तन्हा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर लम्हा तनहा है तन्हां ही गुजरेगा हर कोई आया और चला गया तनहाई को सजा गया एक एक लम्हा गुजारा, गुजारा हमने किसी के साथ जमाने को गवारा नहीं किसी का होकर रहना हर जख्म गहरा है जिंदगी का और गहरा जावेगा हर कोई बहलाकर जिंदगी से कुच कर जावेगा हर लम्हा तनहा तनहा है जिंदगी का उदासी तकतीहै हरदम। है साये साथ जरूरी जमाने से टकराने के लिए क्या करेंगे हम अकेले तनहाइयां मुंह चिढ़ाती है तन्हाइयों से घबराते नहीं ना समझे कोई हमें दीवाना घुटकर रह रह जाएंगे मगर ना दिखावेगे जमाने को दीवानगी अपनी। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ल...
मित्रता
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मित्रता

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आत्मीयता के परस्पर अंतर्वैयक्तिक बंधन से बंधी हुई मित्रता की अवधारणा उसके स्वरूप के पक्ष एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन मित्रता को लेकर किया गया है। संसार के मुक्त अध्ययनों व विवेचनों में देखा गया है कि समीपत: आंतरिक संबंध रखने वाले व्यक्ति अधिक प्रसन्न रहते हैं। हिंदी भाषा के प्रसिद्ध आलोचक रामचंद्र शुक्ल मित्रों के चुनाव को सचेत कर्म बताते हुए लिखते हैं कि:- "हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हम से अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्य- निष्ठ, जिसमें हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें, और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा। सच्ची मित्रता का ऐसा एक जीवंत उ...
हर रोज तुम
कविता

हर रोज तुम

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हर रोज तुम ख्वाबों में आया करो रोज की तरह तुम हमें सताया करो गलती से रूठ भी जाएं हम कभी रोज की तरह तुम हमें मनाया करो पल दो पल की दूरियाँ खलती हे करीब आकर, तुम सहलाया करो परेशां हो जाते हे कभी मानलो खूशबू-ए-गुलाब तुम ले आया करो बे खबर हो जाएं जिंदगी से कभी करीब आकर तुम जगाया करो तुम्हारे होने से हमारी ये सांसे रहती ओर बातों मे हमें न फंसाया करो जहां रहता हो उस चाँद का पहरा मोहन वही रात मेरे लाया करो प्यार तुम से किया हे ज़माने से नहीं ओर का ड़र बताकर डराया न करो परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ...
किस्मत के भरोसे मत बैठो
कविता

किस्मत के भरोसे मत बैठो

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन पथ पर लड़ सकते हो आगे तुम भी बढ़ सकते हो त्याग दो आलस का दामन किस्मत के भरोसे मत बैठो….!!! मिला नहीं उसे ला सकते हो श्रम कर आगे बढ़ सकते हो जो चाहो तुम पा सकते हो किस्मत के भरोसे मत बैठो…...!! रगो में साहस भर सकते हो मुसीबतों से लड़ सकते हो दौड़ नहीं तो चल सकते हो किस्मत के भरोसे मत बैठो….!! सूरज सा निकल सकते हो लक्ष्य हासिल कर सकते हो इतिहास नया तुम गड़ सकते हो किस्मत के भरोसे मत बैठो….!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
वोट का मोल
गीतिका

वोट का मोल

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** नस-नस में इसकी, बहुत झोल है- कौन कहता है दुनिया, ये गोल है। सद्भावनाएँ ढूँढे से न मिलती यहॉं केवल सिक्कों से हो रही तोल है। बेचने सपने फिर वे गली आ गए- बजता खूब उनका, फटा ढोल है। जिसे नाली से कोई, उठाता नहीं- शराबी बुधुआ की वोट का मोल है। भाई, भाई का शत्रु बना है मगर- मिलता जाति से निर्मित घोल है। आपस के हैं उन्हें क्यों छोड़ें, भले कारनामों के उनकी खुली पोल है। पीढ़ियों से जो खिचड़ी पकाते रहे- अब बहुत ही ऊँचा उनका बोल हैं। भेड़िये भी चुनेंगे, आज राजा मेरा- क्यों कि मानव का पहना खोल है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्र...
कुछ देर सही…पर
कविता

कुछ देर सही…पर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। जब सब करने के बाद भी, खुद पे इलजाम होता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। आँख सूखी भी रहे, पर दिल जार-जार रोता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। शब्द दिल-दर्द चीर जाता है, और कहने वाले को...कहाँ थोड़ा-सा भी अहसास होता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। हमारा कसूर तो बतायें। बात बिगडे नही, खामोशी की सजा, हमारे ही हिस्से आयें। हम सह...क्यों रहे है। यह जबाब मिल भी न पायेें। सवालों की वो झड़ी, जवाब में डर कर रब भी सामने ना आयें। अपना समझा पर, किसी को अपना बना नहीं पायें। रिश्तों के नाम बहुत थे। पर हकीकत जान ना पायें। करें कोई फिर भला ...क्या??? जब कोई अपना ही पहचान न पायें। जिंदगी निकल गई हर हालात से, जिंदगी जीने की हर कोशिश पर, जब-जब जी...
धूप
दोहा

धूप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुआ देह का धूप से, मनभावन सत्संग। खिलें कुमुदिनी की तरह, शीतल सिकुड़े अंग।।१ भोर अगहनी दे गई, भू पर छटा अनूप। आँगन में आ खेलती, कोमलांग सी धूप।।२ बालकनी में भोर से, ठिठक खड़ी है धूप। सेंक रही है पीठ को, बचा-बचाकर रूप।।३ गिरफ्तार कर धूप को, ठोक रहे घन ताल। उजड़ गई जो आजकल, सूरज की चौपाल।।४ मतदाता के नैन पर, पट्टी बाँधे भूप। बाँट रहा है छीनकर, मुट्ठी-मुट्ठी धूप।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...
प्यार
कविता

प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने की आईने से दोस्ती संवारता खुद को जाने क्यों लगता मुझे प्यार हो गया। नयन कह जाते बिन बोले आँखों की नींद जाने कौन उड़ा गया निहारते रहते सूनी राहों को। प्रेम के शब्दों को गढ़ता बन शिल्पकार किंतु दिल के अंदर प्रेम के ढाई अक्षर की बात कहने को डरता मन। अंगुलियां बनी मोबाइल की दीवानी किंतु शब्दों को जाने क्यों लगता कर्फ्यू अटक जाते शब्द उन तक पहुँचने में। नजदीकियां धड़कन की चाल बढ़ा देती लगता फूलों की सुगंध हवा में समा गई हो तब लगने लगता उनको मुझसे प्यार होगया। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और...
आजीवन
कविता

आजीवन

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जीवन के पथ पर यहां से वहां जा रहा हूं, समझ नहीं आता क्या कर रहा हूं और क्या नहीं कर रहा हूं। जीवन की डगमग करती नाव में बैठकर ज़िंदगी का सफर तय कर रहा हूं। कभी तूफानों का मंजर देख रहा हूं तो कभी बदलती हवाओं का रुख महसूस कर रहा हूं। कभी शिखर पर चढ़कर क्षितिज को ढूंढ रहा हूं, तो कभी क्षितिज के पार जाकर आसमा को छू रहा हूं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
राणा के प्रताप
कविता

राणा के प्रताप

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** सदियों पहले लिखी कहानी आज भी गायी जाती हैं, हर बेटे को माँ के मुख से ये बात सुनाई जाती हैं। मुग़लों की सेना में डर था और दिल्ली भय से दहक उठी, मेवाड़ में उजले नए सूरज से कुंभलगढ़ में महक उठी।। झुका नहीं था मुकुटमणि वह लौहस्तम्भ सा खड़ा रहा, मुग़लों की सेना के सम्मुख चेतक के संग अड़ा रहा। एक हिदायत दी राणा को दुरशा का संदेशा था, कहीं मार दे राणा मुझको ये अकबर को अंदेशा था।। काल से काँपे अकबर ने फिर एक छोटी सी चाल चली, प्रथम भेजा बहलोल को राणा को तूँ मार बली। अकबर ने वह मंजर देखा तब स्वयं को पीछे मोड़ दिया, जब राणा ने एक वार से महाबली को तोड़ दिया।। इससे पूर्व दिल्ली का शासक दूतों को भिजवाता हैं, सारे अनुबंधों को राणा तब जूते से ठुकराता हैं। वनवास को रह लूँगा और घास की रोटी खा लूँगा, मगर मेरे ...
हमर गांव सुघ्घर गांव
आलेख

हमर गांव सुघ्घर गांव

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** जिसकी गोद में मेरा बीता है बचपन, जिसकी सेवा के लिए अर्पण है मेरा तन-मन-धन। जिसके नीर का हर एक बूंद अमृत और अन्न का हर एक कण छप्पन भोग है मेरे लिए वही मेरा बैकुंठ और वही देवलोक है। जिसका हर एक चौंक मेरा चार धाम है, मुझे गर्व है कि मेरा जन्म भूमि पावन रमतरा ग्राम है स्वच्छ , सुगंधीत व ताजी हवा गांव की ओर अनायास ही खींच लाती है। ग्राम वासियों का आपसी प्रेम और भाईचारा की भावना की तो बात ही निराली है। जिस प्रकार फूल बगीचे की शोभा पहले है और डालियों की शोभा बाद में है ठीक उसी प्रकार यहां के निवासी जाति, धर्म और ऊंच- नीच की नहीं बल्कि इंसानियत की शोभा पहले है। तीन सौ परिवारों के १६५० लोगों को अपनी गोद में आश्रय दिया हुआ हमारा गांव यहां आजीविका का मुख्य साधन कृषि है, और कुल जनसंख्या के आधे से अधिक लोग कृषि कार्य पर निर्...
नितिन राघव ने अपनी एक कविता में सम्पूर्ण रामायण का सबसे छोटा सारांश लिखकर बनाया इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड
धर्म, धर्म-आस्था, भजन, साहित्यिक, स्तुति

नितिन राघव ने अपनी एक कविता में सम्पूर्ण रामायण का सबसे छोटा सारांश लिखकर बनाया इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बुलन्दशहर। राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच के रचनाकार २१ वर्षीय नितिन राघव बी.एड प्रथम वर्ष के छात्र हैं तथा अपनी लेखनी के द्वारा साहित्य की सेवा कर रहे हैं। आपने अब तक अनेक कविताएं, कहानियां और निबंध लिखें हैं। अपने इन्हीं कार्यों के लिए समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी हो चुके हैं। और अबकी बार उन्होंने एक और महान उपलब्धि हासिल की है, जिसके पता चलते ही उनके परिवार और गांव वाले खुशी से झूम उठे। २१ वर्षीय नितिन राघव ने अपनी एक कविता में सम्पूर्ण रामायण लिखकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया और इसी के साथ उन लोगों की भी राह आसान कर दी जो रामायण को लम्बा ग्रन्थ होने के कारण पढ नहीं पाते थे क्योंकि इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास समय कम है परन्तु अब रामायण को एक ही कविता में पढा जा सकता है। इसी के साथ ...
पापा की बेटी
कविता

पापा की बेटी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** पापा मैं तुम्हारी। नन्ही सी प्यारी सी बेटी हूं। अब बताओ तुम मुझे प्यार करोगे ना। पापा में तुम्हारी। नन्ही परी मैं तुम्हारे। आंगन में रोज अपने। पंख फैला कर ऊँची उड़ान। भर उड़ूगी अब बताओ। तुम मुझे प्यार करोगे ना। पापा मैं तुम्हारी। चुन-चुन करती चिड़िया हूँ। मैं तुम्हारे आंगन में चहकूंगी। अब बताओ तुम मुझे प्यार करोगे ना। पापा मैं तुम्हारे उपवन की। आज सबसे सुगन्धित कली हूँ। कल सबसे अधिक सुगन्धित पुष्प बन अपनी महक से। मैं तुम्हारी बगिया नित। सुवासित करूंगी। अब बताओ पापा तुम मुझे प्यार करोगे ना। पापा मैं तुम्हारी सबसे प्यारी सबसे न्यारी राज दुलारी। अब बताओ पापा तुम मुझे प्यार करोगे ना। पापा मैं तुम्हारे दीपक की। बाती हूं प्रकाश फैलाने आई हूं। मैं तम दूर करने आई हूं। अब बताओ तुम ...
जरुरत है!
कविता

जरुरत है!

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बिखरे सपने सजाने की जरुरत है, नफरत जहां से मिटाने की जरुरत है। तहस- नहस किया कोरोना जिंदगी, कारोबार फिर बढ़ाने की जरुरत है। मत भूलो अपने गाँव -घर का पता, पतझड़ से उसे बचाने की जरुरत है। बहाओ न आँसू जरा- सी ठेस पर तू, हवा में समंदर उठाने की जरुरत है। सभी लोग तो हैं इसी मिट्टी से उगे, बस आईना दिखाने की जरुरत है। बड़ा बनने की भूल कभी न कर तू, कागजी-कश्ती चलाने की जरुरत है। टपकने लगी है निगाहों से मस्ती, अब वो दरिया बचाने की जरुरत है। किसान बेचारे कितना सहें तकलीफ, उनके अच्छे दिन आने की जरूरत है। पानी के परिन्दे कब तक उड़ेंगे नभ, हरियाली और बढ़ाने की जरुरत है। खुशियाँ संभाले नहीं संभल रहीं, इसे औरों पे लुटाने की जरुरत है। मरना तय है बचकर जाओगे कहाँ, पुण्य की गँठरी बढ़ाने की जरुरत है। आखिरी साँस तक महको...
रवि मेघों में छुप जायेगा
कविता

रवि मेघों में छुप जायेगा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** रवि मेघों में छुप जायेगा, बहता सागर रूक जायेगा। मेरी कर्मठता के आगे, आसमान भी झुक जायेगा खड़ा निडर हूँ सीना तान .. मैं किसान हाँ, मैं किसान।।... बहती हवा का एक झोका है। मुझको कब किसने रोका है। तूफानों का जोश है मुझमें। मेघों जैसा रोष है मुझमें।। बंजर भू पर हाथ लगा दूं। मधुवन को लाकर महका दूं ! चमके सरसों, महके धान।।... मैं किसान हाँ, मैं किसान।।... बनकर वृष हल खींचे मैंने। बीज लहू से सींचे मैंने।। इस श्रम का उपहार कहाँ? कब पाया उपकार यहाँ? बड़े दलालों ने लूटा है। सारा शासन ही झूठा है। कब पाया मैंने सम्मान ?.. मैं किसान हाँ, मैं किसान।।... बल विवेक पाया अन्नों से। मृदु व्यवहार मीठे गन्नों से। दारा से बलवान बनाये। रामानुज से ज्ञानी पाये।। श्रम का कैसे मोल करोगे? हक को गोल मटोल करोगे? राजा ...
आह्वान
कविता

आह्वान

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता विषय "हिन्दी और हम" में प्रेषित रचना। हिन्दी में ही लिखो हिन्दी में ही गुनगुनाओ रे। मातृभाषा हिन्दी, मृत भाषा न बनाओ रे।। रक्षा करो इसकी यह है माई अपने देश की। नारी शक्ति बहु-बेटी के सदृश देश की।। देसी भाषा चाहो, और विदेशी ठुकराओ रे। मातृभाषा हिन्दी मृत भाषा न बनाओ रे।। नव ग्रहों में सूर्य ऐसी भाषा अपनी हिन्दी है। पूनम का चांद, माथे बिन्दी जैसी हिन्दी है।। ऋतुओं में बसंत, संत इसे अपनाओ रे। मातृभाषा हिन्दी मृत भाषा न बनाओ रे।। मंथन करोगे तो पाओगे ज्ञान अमृत। अध्ययन करोगे मान पाओगे ही अनवरत।। यह है रत्न सिन्धु, डूबो शुद्ध मोती पाओ रे। मातृभाषा हिन्दी मृत भाषा न बनाओ रे।। सम्बन्ध हिन्दी हिन्द का, अटूट है, अभिन्न...
कलि
कविता

कलि

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो सुनता था गुफ्तगू रोज दर रोज अनुराग भरी गर्व करता था गुलमोहर अपने आप पर की मेरे साऐ में कोई अपने मन की भड़ास निकालता है पर आज अचानक गुलमोहर की कली खिली और लाल हो गई और लाल सुनकर अनुरागी का तिरस्कार चटक कर मुरझा गई लगा टूट जाएगी कुछ सांत्वना देगी धैर्य बधाएगी पर मजबूर कलिे कुछ न कर पाई वह जानती थी कि अब शाखाएं फिर से हरी-भरी नहीं होंगी और ना ही मैं फिर से झुम सकुगी परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाण...
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
गीत

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** बेटी को मत मार कोख में, जब यह घर में आती है। यह अपने संग मात पिता के, घर में खुशियाँ लाती है।। ईश्वर की वरदान है बेटी, उसकी नेमत है प्यारी। कुदरत की अनमोल कृति यह, सबसे है सुंदर न्यारी।। इसकी भोली सूरत सबके, मन को कितना भाती है यह अपने संग मात पिता के घर में खुशियाँ लाती है मात पिता की आँखो की बस, होती यही दुलारी है। घर आँगन में फिरती बनके, जैसे राजकुमारी है।। कुछ भी हो पर मात पिता को, यह ना कभी सताती है यह अपने संग मात पिता के घर में खुशियाँ लाती है शिक्षा का अधिकार इन्हें भी, अब तो पूरा देना है। इनको भी आगे बढ़ने की, अब तो मौका देना है।। नहीं किसी से पीछे रहना, अब इनको कब भाती है यह अपने संग मात पिता के घर में खुशियाँ लाती है सीमा पर बेटी रहकर अब, करती सबकी रखवाली। पर्वत...
माँ
कविता

माँ

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** माँ तुम केवल शब्द नहीं हो तुम ममता की छाया हो ऐसा कोई शक्श नहीं जो तेरे सम्मुख आया हो माँ तुम केवल शब्द नहीं हो तुम करुणा की सागर हो तेरा रोम_ रोम यूँ लगता जैसे दया का गागर हो माँ तुम केवल शब्द नहीं हो तेरी कृपा है अपरंपार कोई कैसे पा सकता है तेरी महिमा का विस्तार माँ तुम केवल शब्द नहीँ हो तेरा साहस इतना दृढ चाहे कस्ट का तूफा आये तुम रहती हो सदा सुदृढ़ माँ तुम केवल शब्द नहीं हो यह जग है तेरा परिणाम तेरे चरणों में झुक कर हम बालक करते सदा प्रणाम परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा ...
बाबा साहब
कविता

बाबा साहब

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** विपुल प्रतिभा के छात्र रहे, माता-पिता के नाम कमाये। देश का ऐसा मानव हुआ, जो आज महामानव कहलाये। विधि विधान का पालनकर, लिखित संविधान जो रचाये। नियम संयम का सृजनकर, आज बाबा पूजनीय कहलाये। जाति-पाति का भेद मिटाकर, जो ज्योति किरणें बिखराये। छुआछूत का खाई पाटकर, समाज सुधारक वे कहलाये। श्रमिक किसान मजदूर हितार्थ हक और अधिकार दिलाये। सामाजिक कुरीतियों से लड़कर बाबा आज लोकप्रिय कहलाये। मन मंदिर का दीप जलाकर, मानवता का पाठ सिखलाये। संत गुरुओं का सत्संग पाकर, भीम बौद्ध धर्म अपनाये। त्रिरत्न पंचशील संदेश गढ़कर, जीवन अपना धन्य बनाये। आष्टागिंक मार्ग में चलकर, अहिंसा के पुजारी कहलाये। बाबा के रास्ता को अपनाकर, जिंदगी को जो स्वर्ग बनाये। दुनिया में इतिहास रचकर, संविधान के जनक कहलाये। आज म...
चंद्रमा की रोशनी में
ग़ज़ल

चंद्रमा की रोशनी में

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** २१२२ २१२२ २१२२ २१२ काफिया- 'आ' स्वर वाले शब्द रदीफ़- रुक जाएगी चंद्रमा की रोशनी में हर अमा रुक जाएगी शब भी ये सब देखने को बाख़ुदा रुक जाएगी इश्क़ में रुकते नहीं आशिक़ क़यामत तक यहाँ साथ साजन का मिले तो हर क़ज़ा रुक जाएगी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा इतना ही है ये जान लो फ़ासले रिश्तों में हों तो हर दुआ रुक जाएगी ग़र करोगे बंदगी माँ चरणों की ईमान से तो यकीनन ज़िंदगी की हर बला रुक जाएगी है बहुत ही नेक यह फ़रमान इस सरकार का जो सफ़ाई से रहोगे तो वबा रुक जाएगी यदि सनातन सभ्यता की सीख पर तुम ध्यान दो फिर तो सारी पश्चिमी ये बद हवा रुक जाएगी कह रही 'रजनी' इसे तुम अब गिरह में बाँध लो ईश के आगे झुकोगे तो सज़ा रुक जाएगी परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्त...
महिमा
कविता

महिमा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच है तेरी लज्जा - मर्यादा भी, नारी तेरा हथियार है । उद्देश्य निकलने का घर से, प्रथम देहली से तू बोलना।। जब भी अवसर आये, अवगुण या आसुरी वृत्ति हो। प्रकट होता शक्ति अवतार, भीतर अपने टटोलना ।। नहीं अरी कोई तेरा, तू सबको देती प्रेम है। हृदय के विशाल महलों से, घृणा के ताले खोलना।। घर के संस्कारों का, सच्चा दर्शन होता वाणी से । स्फुटीत होने वाले शब्दों को, पहले काँटे पर तोलना ।। समर्पण संतोष भाव, दिया प्रभु ने तुझको सहज । थोड़ा मिला ज्यादा मिला, सीखा तुने स्वीकारना।। असीम गुणों का और भी, तुझमे अमित भंडार माँ। निज संतती को देना, और, कहना इसे संभालना ।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से ले...
न जाने क्यूँ
कविता

न जाने क्यूँ

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** न जाने क्यूँ लोग मुझे नहीं समझते, मेरे अल्फ़ाज़ों को नहीं पढ़ते। मेरे तजुर्बे को उँगली दिखाते उम्र का बहाना करके, क्या कमी हैं मुझमें हर वक्त यही ढूंढता रहा मैं रौशनी से जगमगाते आँगन में सारा चिराग़ बुझाकर, शाम को सुबह से मिलाने की जद्दोजहद में खुद को जैसे जला दिया, राखों के ढ़ेर पे बैठ कर न जाने कौन सा मोती मार गया। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
शरद सुहावन
कविता

शरद सुहावन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो आया शरद सुहावन मन को भाए सुन्दर मौसम ठंडी हवा के झोंके बहते मंद समीर सुहानी चलती रंग बिरंगे फूल खिले हैं धरती दुल्हन सी सजी है ऋतुओं का राजा शरद सबके मन हर्षाने आया गुनगुनी धूप सुहानी लगती कहीं बारिश की फुहार ठंडक का एहसास कराती चाय की चुस्की अच्छी लगती रिश्तों में गर्माहट लाती थोड़ी सावधानी जो बरतता बीमारियों को दूर भगाए शरद ऋतु का आनंद वो लेता खेतों में लहलहाती फसलें धरती का श्रृंगार हैं करती शरद है ऋतुराज सुहाना नाचो गाओ धूम मचाओ परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
कविता, स्मृति

डॉ. राजेंद्र प्रसाद

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सादा जीवन और थे उच्च विचार ! सत्यनिष्ठ, शांत, निर्मल व्यवहार !! निष्ठावान उच्च मूल्यों को अर्पित ! राष्ट्र सेवा हेतु जीवन समर्पित !! कर्तव्यनिष्ठ देशभक्त राजनेता ! महान व्यक्तित्व ज्यो सतयुग त्रेता!! बिहार जीरादेई सिवान जिला ! कमलेश्वरी गोद अप्रतिम कमल खिला!! सामान्य जमींदार परिवार में पले... कोलकाता लॉ कालेज स्नातक पढ़े!! वहीं उच्च न्यायालय में किया अभ्यास! फिर पटना तबादले का किया प्रयास !! गांधी के आह्वान पर होकर विकल! कानून की प्रैक्टिसे छोड़ दी सकल !! महात्मा गांधी थे उनके आदर्श ! सत्य अहिंसा का लघु जीवन विमर्श !! असहयोग, सत्याग्रह, भारत छोड़ो! मे सक्रिय रह बोले ब्रिटिश बल तोड़ो!! भोगी कारावास की यातनाएँ ! आत्मबल समक्ष नत रही विपदाएं!! राष्ट्रहित हेतु बने सक्रिय पत्रकार ! हिंदी हित आजीवन राष्...