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पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

संजय जैन मुंबई ******************** मेरे भी दिल मे अभी, उम्मीदे बहुत बाकी है। बस सभी का साथ चाहिए। पर्यावरण को बचाने के लिए। इंसानों का साथ चाहिए। जो हर मोड़ पर साथ दे, इसे बचने के लिए।। तप्ती हुई इस धूप में, शीतल सी छाया चाहिए। जो हाल गर्मी से हो रहा है । उसे शीतल करने एक, ठंडी सी लहर चाहिए।। बिना वृक्षो के कारण ही, यह हाल है गर्मी का। उससे बचने के लिए, वृक्षारोपन करना चाहिए। तभी इन गर्म हवाओं को, शीतल हम कर पाएंगे। और अपने देश का, पर्यवरण को बचा पाएंगे।। इस लक्ष्य को पाने के लिए। पर्यवरणको बचाने के लिए। एक जूनून हर देशवासियो के, दिलमें बस भरपूर चाहिए। और सभी का साथ चाहिए।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय है...
प्रकृति का कहर
गीत

प्रकृति का कहर

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देख प्रकृति का कहर.. देख प्रकृति का कहर .. फल दिया और फूल दिया, १० पीढ़ी तक कुल दिया, इस अराजकता के दौर में, तुझको प्रभुत्व सम्पूर्ण दिया।। पर तेरा जी न भरा मानव, करता खिलवाड़ प्रकृति के साथ।। तूने क्या सोच के किया था, प्रकृति का नीरव दोहन, देख तेरे इस भूल का फल भोग रहा जग आज है, प्रकृति का बदला लेने आया आज यमराज है।। जीवों की हत्या कर तूने प्रकृति को किया कुरूप, देख आज कोरोना आया प्रकृति प्रतिघात स्वरूप, आज पर्यावरण दिवस पर मान ले अब तू मेरी बात, कर प्रकृति का सम्मान, जंगल को न कर वीरान, जीवों की रक्षा तू कर, पेड़ लगा बढ़ा प्रकृति का मान, वरना कोई नहीं बचा पाएगा तुझे, प्रकृति का कहर है आज। देख प्रकृति का कहर ... देख प्रकृति का कहर..।। आज गर्मी के दिनों में सुबह चलती भाप है, शाम को पानी गिराकर देती प्रकृति श्राप है, बरसात मे...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) मीत हो तुम मन के मेरे ना कोई और दिल में सिवा तेरे कुछ बोल सुनना चाहें दीप तुम्हारे माझी बन कर चलू संग तिहारे री सजनी ले चल नदियां किनारे पोर पोर में  रहो बसी हमारे रच बस जाऊ संग तिहारे वादी हो हरी भरी या कांटो भरी लड़खड़ा कर भी चलू संग   तिहारे री सजनी लिख दी प्रीत की पाती नाम तुम्हारे परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
विमान का सफर
कविता

विमान का सफर

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** कोरोना जैसे संकट में। जब गरीब था विकट में। पड़ा था खाने पीने के झंझट में। तब उड़ रहा था नीलाबंर में, आ रहें थें अर्थशास्त्री भारत में, शायद अर्थव्यवस्था संभालने, मजदूर गरीब की मदद को। जब वे चल रहें थें, भूखे नंगे पैर। उन्होंने देखी हवाई जहाज, खुश होकर, एक आशा के साथ। उनके बच्चें ताली पिटने लगें थे। उन्हें साफ दिखाई दे रहे थे, कई हाथ हवा में टाटा करते हुए, अंगुलियों से V दिखाते हुए। अब विश्वास हो गया उन्हें, शायद सुचारू होगा यातायात। सरकार हमारी भी सुनेगी बात। इसी आशा से चलतें रहे, धूप घाम में जलते रहे। ऊपर से विमान गुजरते रहें। बिचारे मर गए ट्रेनों के चक्कर में। मरते भी जो चलने लगे थे, विमान के टक्कर में। होठ सूख गयें थें प्यास से। चल रहे थें जिंदा लाश-से। फिर भी बता रहे थें अपने बेटे को, आरामदायक यात्रा है विमान की, होता सफर मिनटों...
वंशीधर
कविता

वंशीधर

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** माना मान लिया कि आज वंशीधर का पैदा होना मुश्किल है पर असंभव तो नहीं कठिनाइयाँ हो सकती हैं हो सकती हैं क्या हैं पर इससे वंशीधर का पैदा होना तो नहीं रुक सकता सारा संसार पंडित अलोपीदीन के चरणों में तो नहीं झुक सकता कहीं-न-कहीं पंडित को हारना ही है अंत में उसे स्नेह से वंशीधर को गले लगाना ही है और 'नमक का दारोगा' के पिता के मन से ग्लानि का भाव भगाना ही है 'सच का सूरज' उगता है पर उसके उगने के पहले वंशीधरों की इतनी परीक्षा हो जाती है कि कई वंशीधर वंशीधर रह ही नहीं पाते हैं झूठ के अंधेरे में वे इस तरह खो जाते हैं कि कभी वे वंशीधर थे कहना वंशीधर का अपमान है उस वंशीधर का जिसका अपना स्वाभिमान है और जिसके सामने दुनिया की सारी दौलत व्यर्थ है क्योंकि वंशीधर अपने स्वाभिमान की कीमत चाहे वह कितनी ही क्यों न हो चुकाने में समर्थ है समर्थ है। . ...
संयममय जीवन
कविता

संयममय जीवन

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संयममय जीवन सुरक्षित वतन करोना तो हैं, बिन बुलाया मेहमान। बड़ा जिद्दी और जानलेवा इसका तूफान।। यमराज का कार्य हैं इसने बढ़ाया। बिन यात्रा दसवे-तेरहवे पहुंच जाता इंसान, सीधे वैकुण्ठधाम।। सम्पूर्ण जगत को चूभ रहा इसका आंतरिक शूल। अच्छे-अच्छे को चटा दी इसने प्राणांतिक धूल।। बिना ढोलबाजे डीजे और बिना पंगत। आ रही लाड़ी घर में लेकर नई रंगत।। जीवन जीने का इसने, बदल दिया दृष्टिकोण। मास्क ग्लव्ज़ सह दूर से ही करो सबका नमन।। जून का खुशनुमा पवन लॉकडाउन का थोड़ा परिवर्तन नित सेनिटाइजेशन, हस्तप्रक्षालन संयमित जीवन सुरक्षित वतन।। .परिचय :- माधवी तारे निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
आत्महत्या
कविता

आत्महत्या

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घने जंगलों कलकल कर बहते झरनों पक्षियों का कलरव शेर की दहाड़ इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं सोचता था अपने खेतों के लिए खलियानों के लिए अपने मकानों के लिए मुझे गर्व था अपनी शक्ति पर बुद्धि पर अपने सामर्थ्य पर। धराशाई किये गगनचुंबी वृक्ष अगणित घोंसले टूटे होंगे , मेरा मकान बनाने के लिए, इसके बारे में मैंने कभी सोचा न था। सुनहरी गेंहू की बालियों के लिए मोती से मक्के के लिए लहकती सरसो के लिए कितने पीपल, पलाश कितने बरगद, अमलताश खो दिए इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं इठलाया हाथी दांत का कंगन पहन मैं इठलाया कस्तूरी की सुगंध से मैं इठलाया बघनखा देख मेरे इठलाने की क़ीमत कितने प्राणों ने चुकाई इसके बारे में मैंने सोचा न था। सूखती नदिया जंगलों के नाम पर कुछ कटीली झाड़ियां चूहे ,मच्छर, विषाणुओं की फौज और धूल भरी आँधिया इनके बारे में मैंने स...
पर्यावरण सुरक्षा
कविता

पर्यावरण सुरक्षा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** असमय मरण नहीं हो,अ समय क्षरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! पर्वत हो अथवा समतल सब जल ज़मीन जंगल रखने हैं नित्य निर्मल करने हैं यत्न अविरल भू पर कहीं भी बोझिल वातावरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! विषहीन हों हवाएं नकली न हों दवाएं जन चेतना अधिक हो आए न आपदाएं हो जो भी जन विरोधी उसका वरण नही हो!! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! शोभित सभी हों उपवन उजड़े न कोई कानन पथ-पथ हो वृक्षारोपण वंचित रहें नआँगन सौन्दर्य पर धरा के कोई ग्रहण नही हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! सर सरित् अथवा सागर पावन रहें निरन्तर मानक हो इनके स्तर पीड़ित नहीं हों जलचर जल में अशुद्धियों को कोई शरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! हो शोर पर नियंत्रण सीमित हों सभी भाषण हो क्षीण नाद विसरण ...
अनसुलझे प्रश्न पर समीक्षा : अरुण कुमार जैन
साहित्य

अनसुलझे प्रश्न पर समीक्षा : अरुण कुमार जैन

अरुण कुमार जैन वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध साहित्यकार की लेखनी द्वारा की गयी 'अनसुलझे प्रश्न' लेखिका शरद सिंह पर समीक्षा कृति : अनसुलझे प्रश्न लेखिका : सुश्री शरद सिंह प्रकाशक : प्रतिष्ठा फिल्म एन्ड मीडिया , लखनऊ पृष्ठ : ९६ पेपर बैक संस्करण प्रथम संस्करण २०१९ "अनसुलझे प्रश्न" सुश्री शरद सिंह का उपन्यास व कुछ लोक कथाओं का संकलन है। ९६ पृष्ठों की इस कृति मे भावना, संवेदना, आशा, निराशा, हताशा विश्वास, मैत्री, निश्छल प्रेम, उमंग व सुन्दर भाषाभिब्यक्ति का संसार समाया है। कृति की मुख्य रचना अनसुलझे प्रश्न है। यह एक ऐसी नारी की कहानी है जो सक्षम होते हुए भीकदम कदम पर ठोकरे खाती है व अन्त मे मृत्यु का वरण कर लेती है। कृति दुखान्त है। इसमे झाकती पीडा़ बेबसी, संकोच बहुत कुछ ब्यक्त करता है। विद्यालय जाती छोटी बेटी, किशोर अवस्था का प्रेम, मार्मिक संवेदनाऐ फिर यथार्थ के धरातल पर विपन्नता के कारण बेमेल विवाह स...
जीवन अनमोल
कविता

जीवन अनमोल

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश ******************** सर्वभवन्तु सुखिन:सर्व सन्तु निरामया: काम काज को अब शुरू करना है, हम सबको घर से निकालना है। सबको ये वादा निभाना है, कोरोना को दूर भागना है। ये आपदा को मिलकर हारना है, पूरे भारत को निरोग रखना है। जन जन को राष्ट्रीय धर्म निभाना है, देश के विकास में आगे आना है। घर-घर ये अलख जगाना है, पूरे भारत को विश्व गुरु बनाना है। वायरस ये बड़ा दुशमन है हमारा, गोली बारूद से नही मरने वाला। समाजिक दुरी से इसको भगाना है, संक्रमण की चेन बनने नही देना है। अफवाहो को नहीं फेलाना है, पूरे भारत को स्वस्थ रखना है। जीवन बड़ा अनमोल हमारा है, जान बूझ कर ना सबको गवाना है। अंध विश्वासों से सबको बचना है, महामारी से देश को उबरना है। मास्क पहनकर बाहर निकलना है, गाईड लाईन का पालन करना है। सबको विजय को प्राप्त करना है, मानवता को अब साथ लेना है। . परि...
डमरू के स्वर
कविता

डमरू के स्वर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। कर फिर से तू नव नर्तन संघार करो तू दानवता की। फिर से तू रच नव सृस्टि को। मानवता की धर्म ध्वज को अडिग करो हे नागेश्वर। डमरू के स्वर बूंदो में भर पावस फुहार बन फिर बरसो। मुरझाई इस बसुधा में फिर से हरियाली आयी। सुखी नदिया ताल तलैया नव उमंग की लहर हिलोरे। ले रही सब अंगराई रूखी बसुधा फिर नवसिंगार कर नव दुल्हन बन कर मुस्काई । डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। आज अडिग यह भारत भू हो फिर सरहद पर है संकट आई । खोलो त्रिनेत्र है प्रलयंकर भस्म करो तुम सत्रु दल को। डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक...
पर्यावरण रक्षक कोरोना
कविता

पर्यावरण रक्षक कोरोना

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानव पर्यावरण संरक्षण के नारे लगाता था । हर साल ५ जून को पर्यावरण दिवस मनाता था। जल प्रदूषण, गाड़ियों का, फैक्ट्रियों का धुआं कम करें। घटते वन्य जीवन और जैवीय दुष्प्रभावों का कुछ मनन करें। जनसंख्या विश्व की अगर इसी तरह बढ़ेगी । विश्व वृद्धि से पर्यावरण की गति घटेगी। मानव बस नाटकीय सोपान पर चिल्लाता रहा । पर्यावरण का गला घोट जीव-जंतुओं को खाता रहा। अधिनियम बनाता रहा। प्रदूषण के नाम पर पर्यावरण सरंक्षण को भक्षक बन खााता रहा। कोरोना रक्षक बनकर आया।पर्यावरण को दूषित मुक्त बनाया। सारे प्रदूषण साफ कर दिए।मानव को घर में कैद कराया। कोरोना तो सचमुच पर्यावरण का रक्षक बनकर आया। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
सुबह के उजले प्यार से
कविता

सुबह के उजले प्यार से

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सुबह के इन्तज़ार में तारे भी गिनना सीख गया और रात के अंधियारे में गुनता रहा आवाज़, जो पुकारती सी आयी थी नदिया के उस पार से। हर कदम, हर राह पर कर्तव्य का निर्वाह कर, बस मौन से दो बात कर मैं इन्तज़ार करता रहा मेरी भी आँखें खुल जायें सुबह के उजले प्यार से। चटखी थी जूही की कली वही नरगिसी ख्वाब बनी, आस लिये, नयी चाह लिये फिर पुरवाई की राह तकी मन उपवन अब महक उठे शेफाली से,चंदन बयार से। सुबह के उजले प्यार से ........ . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समब...
बदल रहे रिश्तों के माने
गीत

बदल रहे रिश्तों के माने

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** बदल रहे रिश्तों के माने आज यहाँ प्रतिपल समझ नही पाता है कोई क्या हो जाए कल गुणा भाग की इस दुनिया में लाभ की बस बातें अपना सगा और सम्बंधी भी करता है छल कौआ भागा कान नोच कर बातें लगती सच्ची बुद्धि टांग देते खूँटी पर अक़्ल है कितनी कच्ची श्वेत वसन यद्यपि शरीर पे मन में भस्मासुर गिरगिट जैसे रंग बदलते बातों में निर्बल जाति पाँति मज़हब की रोटी रोज़ सेकते भैया ऐसे साहिल हैं तो साहिल पर डूबेगी नैया मज़हब की घुट्टी पीकर हम भँवर जाल में हैं मंदिर मस्जिद के झगड़े में गई उमरिया ढल धन वैभव सब पास हमारे मन है मगर अशांत हंसी ख़ुशी संतोष है ग़ायब दिल है सूखा प्रांत तिल तिल कर जल रहीं ज़िंदगी जीवन जैसे बोझ लव पर तो मुस्कान दिख रही मन में दावानल ईर्ष्या द्वेष जलन पर क़ाबू पा ले यदि इंसान बच जाएगी ये दुनिया फिर बनने से शमशान पर हित हो...
जीवन का खेला बहुत ही अलबेला है
कविता

जीवन का खेला बहुत ही अलबेला है

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** प्यारे-प्यारे लोगों का लगता इस जग में मेला है, देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। शदियों की बात पुरानी है, ना मानो तो ये कहानी है । मिला है जो कुछ भी हमकों, सब अपनो की मेहरबानी है। पहन मुखवटा धर्म का, सबने किया झमेला है, देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। दोष नहीं है वेद पुराण की, जब कमी हुई गुणगान की। ये गजब लीला भगवान की, क्यों कद्र नहीं इंसान की। दूर होगा अब अंधियारा कैसे, इस जग का दीपक अकेला हैं। देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। अपनी कीमत खुद से पूछो, पानी की कीमत प्यासे से। बन जाओगे शिकार कभी, बच के रहना झूठी झांसे से। कंकड़, पत्थर रास्ते में आये, मंजिल तक आते ढेला है। देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। &nbs...
आईना ऐसा बना दे
कविता

आईना ऐसा बना दे

वीणा वैष्णव "रागिनी"  कांकरोली ******************** हे प्रभु,एक आइना, अब तू कुछ ऐसा बना दे। उसमें सूरत नहीं, सिर्फ उनकी सीरत दिखा दे। लोगों को पहचानना, थोड़ा आसान बना दे। या पहचानू उनको, ऐसा हुनर मुझे सीखा दे। मुंह राम बगल में छुरी, लिए घूम रहे हैं सब। कैसे करूं परख, पारखी नजर मुझको दे दे। बहुत मुश्किल है, किसी पर विश्वास करना। उनको बेनकाब कर, हकीकत अब दिखा दे। ना कोई राग द्वेष हो, तू सिर्फ इंसान बना दे। हैवानियत का पर्दा हटा, प्रेम रहना सिखा दे। भूला हुआ चेहरा, उन्हें आईने में तू दिखा दे। हो जाए कभी गुनाह, तो नेक राह तू ला दे। आईना देख, अपने चेहरे नकाब खुद हटा दे। ज्यादा नहीं, बस थोड़ा मन विश्वास जगा दे। कहती वीणा, हे प्रभु अब कोई राह दिखा दे। अपनी बनाई दुनिया फिर से, जन्नत बना दे। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव "रागिनी" वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा मे...
जुर्म
लघुकथा

जुर्म

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) अदालत लगी थी...कटघरे में खडी थी माँ, आरोप था कि 'उसने ले ली है अपने दो बच्चों की जान'। करती भी क्या ? काम न मिलने पर घर में ही फाँसी का फंदा लगा अबोध बच्चों के साथ कष्टों से मुक्ति पा जाना चाहती थी। यहाँ भी दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा, जाने कैसे बच गई। आत्महत्या और हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी गई। घर, अदालत और जेल सभी की दीवारें मौन थी। सजा पूरी होने पर बाहर आई भी तो वहाँ भी मौन बाँह पसारे खड़ा था.. बदला कुछ भी नहीं बल्कि पहले से और अधिक भयानक हो गया था। मन में भय और सवालिया निशान लिये वो बोझिल कदमों से चली जा रही थी कि कहीं कोई फिर से जुर्म न कर बैठे। . परिचय :- किरण बाला पिता - श्री हेम राज पति - ठाकुर अशोक कुमार सिंह निवासी - ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) शिक्षा - बी. एफ. ए., एम. ए. (पेंटिं...
इतिहास अपने आप को दोहराता है
स्मृति

इतिहास अपने आप को दोहराता है

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ******************** श्यामल वर्ण, गुलाबी उभरे गाल, आकर्षित करती बड़ी-बड़ी कटीली आंखों के ऊपर लंबी-लंबी ऊपर को उठी पलकें, धनुष के समान गाढ़ी भौहों के ऊपर बीच की लंबी मांग और मांग के दोनों तरफ घने काले बाल और सजी हुई स्वेदन पंक्तियां। मानो ईश्वर ने उसे अलग से गढ़ा था। मेरे घर से मुख्य मार्ग तक जाने का बस वही एक छोटा रास्ता था जो उसके आंगन से होकर गुजरता था। मैं जब भी उस रास्ते का उपयोग मुख्य मार्ग पर जाने के लिए करती, हमेशा सोचती वह एक बार दिख जाए। मेरे लिए भी उसके मन में शायद यही भाव थे, क्योंकि जब भी मैं उसकी आंगन से गुजरती वह लंबे-लंबे कदमों से अपने दालान में आकर खड़ी हो जाती और मुझे ओझल होते तक निहारती। उसे देखकर अनायास ही मन सोचता ईश्वर की बनाई आकृति इतनी मोहक तो स्वयं कितना सुंदर होगा। इस बार काफी समय बाद वहां से गुजरना हुआ। वह लगभग दौड़ते हुए दाला...
मेरी साइकिल, मेरा भविष्य
संस्मरण

मेरी साइकिल, मेरा भविष्य

डॉ.आभा माथुर उन्नाव (कानपुर) ******************** मैंने जिस शहर में बचपन व्यतीत किया वहाँ पर उन दिनों इण्टरमीडिएट तक ही विद्यालय थे। आगे की शिक्षा के लिये या तो प्राइवेट विद्यार्थी के तौर पर परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती थी या छात्रावास में रह कर अध्ययन करना होता था। मेरी बड़ी बहनों ने प्राइवेट बी.ए. किया था, शायद मैं भी वही करती परन्तु हाई स्कूल और इण्टरमीडियेट में मेरे अंक बहुत अच्छे होने के कारण यह निश्चय किया गया कि मुझे किसी संस्था से बी.ए. करवाया जाये। लखनऊ में मेरी एक बहन रहती थीं अत: लखनऊ में मेरी शिक्षा जारी रखने का निश्चय हुआ। लखनऊ जा कर वि.वि. में प्रवेश तो ले लिया पर बहन के घर से वि.वि. बहुत दूर था। पहले दो किलोमीटर तक रिक्शा से दूरी तय करने के बाद दो बसें बदलनी पड़ती थीं तब जा कर वि.वि. पहुँचा जा सकता था। इस सब में बहुत समय नष्ट होता था अतः साइकिल लेने का निश्चय किया गया। सा...
कागज की नाव
कविता

कागज की नाव

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बारिश में पानी भरे गड्ढों में कागज की नाव चलाने को मन बहुत करता हम बड़े जरूर हुए ख्यालात तो वो ही है हुजूर रिश्तों के पेचीदा गणित में उलझ जाकर पहचान भूल जाते घर आंगन जो बुहारे गए धूल भरी आंधी सूखे पत्तो संग कागज के टुकड़ों को बिखेर जाती तूफानी हवा सूने आंगन में सोचता हूं कागज की नाव बना लू. गढढो में पानी को ढूंढता हूं किंतु पानी तो बोतलों में बंद बरसात की राह ताकते नजरें थक सी गई जल की कमी से नाव भी अनशन पर जा बैठी जल का महत्व केवट और किसान ज्यादा जानते बचपन में कागज की नाव चलाते और लोग बाग कागजों पर ही नाव चला देते ख़ैर, जल बचाएंगे तभी सब की नाव सही तरीके से चलेगी आने वाली पीढ़ी जल की उपलब्ता से नाव बनाना और चलाना सीख ही जाएगी। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :-...
चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना
आलेख

चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                     कभी यह गाना हमारे बहुत ही अजीज अच्छू बाबू (श्री अच्छेलाल राजभर) प्रायः गुनगुनाया करते थे। आज सुबह-सुबह अच्छू बाबू की याद आयी और यह गीत अनायास ही मेरी जुबान पर आ गया। मन बड़ा बोझिल हुआ। आज इस कोरोना वायरस से उत्पन्न हुई महामारी के कारण जो पूरे देश में भारतीय गरीब मजदूरों का देश के कोने-कोने से पलायन हो रहा है यह काफी दर्द भरा एवं खौफनाक मंज़र है। यह मंजर कभी हमारे पुरनियों ने १९४७ में भारत विभाजन के दौर में अपने आंखों से देखा था। उसमें से श्री लालकृष्ण आडवाणी जी जैसे महानुभाव भी अभी हैं, जो विभाजन में यहां आ गए थे। उस खौफनाक मंज़र को हमलोगों ने तो फिल्मों में ही देखा या सुना है। वह मंज़र देख कर दिल दहल जाता है। आज वही मंज़र जब भारत स्वतंत्र है तब देखने को मिल रहा है। बस अंतर यही है कि...
हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव
आलेख

हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** हिंदू साम्राज्य दिनोत्सवम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी का यह दिन कोई सामान्य दिन नहीं था। मुगलों अफगान तुर्कों के अत्याचार भरे शासन के कई दशक बीत जाने के बाद एक हिंदू सम्राट के राज्याभिषेक का स्वर्णिम अवसर है ऐसा समय जब तुर्कों से युद्ध का विचार भी करना, देश में अपराध माना जाता था। राज्य धन संपदा को समाप्त करने वाला माना जाता था। राज्य के वैभव और यश व कीर्ति से समझौता करना माना जाता था। ऐसे प्रतिकूल समय में छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक, मुगलों व तुर्कों के शासन के कब्र में अंतिम कील ठोकने के समान था। देश में यह दिन अनन्य उत्साह से मनाया जा रहा था, कई दशकों बाद एक हिंदू राजा अपने स्वाभिमान से एक बड़े भूभाग पर राज्य कर रहा था, उसका क्षेत्र तो महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश तक सीमित था किंतु शिवाजी राजे की नजरें दिल्ली पर टिकी थी, कई मर...
कमाल कर दिया
कविता

कमाल कर दिया

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** बिखरे परिवार को तुने एकता की माला से पिरो कर घर की मर्यादा को तुने पल भर में ज्ञात करा दिया समाजिक दुरी की महत्ता हम सबको बता दिया वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर दिया... युवा पीढ़ी को मंदिरापान से दूर कर निशा मुक्त समाज का मार्ग प्रशस्त कर दिया... वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर दिया... मानव की बेवजह ईच्छाओ में पाबंद कर जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक रोटी , कपड़ा और मकान की महत्ता हम सबको बता दिया वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर दिया... अंधविश्वास भेदभाव घटा कर विज्ञान चिकित्सा के प्रति विश्र्वाश कायम कर दिया धैर्यवान आपसी तालमेल संतोष पूर्वक जीवन जीने की नई राह दिखा दिया वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर... किसान, सैनिक, चिकित्सकों के प्रति सम्मान का भाव जगा दिया पडौ़स संगा संबंधी आमजन में आपसी भाईचारे की भावना बढ़ा दिया दानवीरता की भावना बढ़ा ...
सत्य बानी
कविता

सत्य बानी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा मन अटका जा किली से, ते बच गया दो पाटन झमेले से, जब रँग लिया खुद तेरे निर्मल रँग, ते क्यो कर भागें मन रँगरेज से... *** क्या सँग तेरे आया इस जग में, ते ले जायेगा क्या सँग इस जग से, बिन पट आया तू किया रुदन बहुत, ते काहे मोह राखे तू इस मलमल से... *** ये चंद लम्हों की ही कहानी हैं, ते पढ़ ले मन भर फिर रवानी हैं, जब मसि घुल जायेगी दृगजल से, ते बन्द पौथी अपनो ने सजानी हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
अन्तर्मन
कविता

अन्तर्मन

जितेन्द्र गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संभल जाती है वो जब भी आती है कोई चिट्ठी, या आता है कोई फोन। सिमट जाती है वो जब भी..... हंसते सब हैं घर में... या बनते हैं पकवान.…. समझ जाती है वो फिर कोई आयेगा..... सपना दिखाया जायेगा.. नये जीवन का.. उम्मीद का संवारी जाती है वो.. सजायी जाती है वो... बेजान पुतलों सी... फिर होगी नापतौल.. मोल तोल...। सहम जाती है वो... सिहर जाती है वो... अगले पल को सोच फिर.... फिर.... फिर... होती है नापसंद और बिखर जाती है वो... और फिर शुरू हो जाता है.. इंतजार....... इंतजार... बस इंतजार..!!!!!! . परिचय :- जितेन्द्र गुप्ता निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...