Monday, May 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

इतिहास अपने आप को दोहराता है

अनुराधा बक्शी “अनु”
दुर्ग, छत्तीसगढ़

********************

श्यामल वर्ण, गुलाबी उभरे गाल, आकर्षित करती बड़ी-बड़ी कटीली आंखों के ऊपर लंबी-लंबी ऊपर को उठी पलकें, धनुष के समान गाढ़ी भौहों के ऊपर बीच की लंबी मांग और मांग के दोनों तरफ घने काले बाल और सजी हुई स्वेदन पंक्तियां। मानो ईश्वर ने उसे अलग से गढ़ा था। मेरे घर से मुख्य मार्ग तक जाने का बस वही एक छोटा रास्ता था जो उसके आंगन से होकर गुजरता था। मैं जब भी उस रास्ते का उपयोग मुख्य मार्ग पर जाने के लिए करती, हमेशा सोचती वह एक बार दिख जाए। मेरे लिए भी उसके मन में शायद यही भाव थे, क्योंकि जब भी मैं उसकी आंगन से गुजरती वह लंबे-लंबे कदमों से अपने दालान में आकर खड़ी हो जाती और मुझे ओझल होते तक निहारती। उसे देखकर अनायास ही मन सोचता ईश्वर की बनाई आकृति इतनी मोहक तो स्वयं कितना सुंदर होगा।
इस बार काफी समय बाद वहां से गुजरना हुआ। वह लगभग दौड़ते हुए दालान में आकर खड़ी हो गई। उसके चेहरे की मुस्कुराहट की जीवंतता जा चुकी थी। शरीर भी शिथिल देख रहा था मानो शरीर की कांति को जैसे जंगल गया हो। उसके मुरझाए चेहरे के पीछे का कारण जानने पर उसके पति अन्नी का उसके प्रति अमानवीय व्यवहार का होना पता चला। मोहल्ले की औरतों में कानाफूसी थी- “ज्यादा सुंदरता उसका काल बन गई है”। जिस अन्न्नी की किस्मत पर मैं खुश हो रही थी आज स्त्री शरीर पर उसकी क्रूरता देखकर मेरा उसके प्रति घृणा से भर गया। वक़्त आगे बढ़ चला था।
मोहल्ले में थोड़ी सी सुगबुगाहट थी। अजीब सी बू आ रही थी। काला धुआं वातावरण में फैला हुआ था। उत्सुकता शांत करने पर पता चला वह श्यामल वर्ण स्टोव की आहुति चढ़ चुकी है। मेरे मन में प्रश्न था- “उसके यहां खाना तो चूल्हे में बनता था” किसी की आंखों में ना कोई सवाल उठा ना होठों पर बवाल। यह औरतों के प्रति सामान्य बात व्यवहार को दर्शित कर रहा था। आंखों के आंसू सिसकते एक बुजुर्ग महिला के मुंह से बस इतना सुना- “गरीब की बेटी वह भी सुंदर और ऐसा जानवर आदमी भगवान किसी को भी ना दें।”
आज मोहल्ले में बैंड बाजे की गूंज थी। अन्नी नाम के उस विदुर की धूमधाम से शादी हो रही थी। मैं घर के झरोखे में खड़ी सोच रही थी – “ऐसे लोगों को लड़की कौन दे देता है ? “उसका उत्तर भी एक ही मिला “गरीबी और बगैर दहेज के शादी।” तो लोग लड़कियां पैदा ही क्यों करते हैं ? उत्तर मिला “कोख में क्या है किसको पता?” मतलब पता चलता तो जन्म देने वाली कोख से धरती आज बंजर हो चुकी होती।
एक दिन उसके आंगन से मुख्य सड़क पर जाते वक्त उसकी नई दुल्हन की मुंह दिखाई हो गई। जूही की तरह खिली-खिली। तितलियों की सी चंचलता थी उसकी व्यक्तित्व में। मैं फिर अनायास ही सोचने लगी- “अन्नी को इतनी सुंदर लड़कियां कहां से मिल जाती हैं ?” अक्सर उस आंगन से गुजरते वक़ अन्नी की क्रूरता की निशानियां उसकी सुस्त चाल, शरीर की शिथिलता और निढाल काया पर कभी गौर वर्ण गौर वर्ण में उभरी नीले नीले धब्बों से दिखाई दे जाती। असीम पहरे के बावजूद भी उसकी खिलखिला हट जीवंत थी। वह जब भी दिखती जैसे बुलबुल चेहक रही हो। उसकी इसी इच्छा शक्ति ने उसे सहनशील बना दिया। आगे बढ़ते वक्त के साथ-साथ लोगों की जागरूकता, स्त्री शिक्षा और पुलिस हस्तक्षेप ने स्त्रियों को धीरे-धीरे संरक्षण प्रदान कर दिया था। समाज ने भी अन्नी के प्रति अपना कड़ा रुख कर लिया था। करीब डेढ़ साल बाद आंगन से गुजरते वक्त मैंने देखा वह अपने ही तरह प्यारी सी बेटी को सुबह की गुनगुनी धूप में आंगन में बैठकर दुग्धपान करा रही थी। मुझे देखकर तनिक संकुचित हो गई। फिर खिलखिला उठी बेटी। आगे बढ़ते वक़्त के साथ रानी के बड़े होते-होते अन्नी की क्रूर प्रवृति में कमी आ गई थी। जवान बेटी का प्यार पिता को पुरुष से एक इंसान बनाने में कुछ हद तक सफल हुआ था। उसका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था। एक दिन वह चिर निद्रा में सो गई।
रानी अब जवान हो चुकी थी उसके लिए योग्य वर की तलाश की जा रही थी। रिश्तेदारी से एक युवक रानी पर मोहित हो गया और ब्याह कर ले गया। रानी की शादी के कुछ माह पश्चात अन्नी की रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो चुकी थी। उस आंगन से मेरा गुजरना कम हो चुका था। जब कभी रानी मायके आती तो उसे देख कर उसकी मां की खिलखिलाहट और अन्नी की दोनों पत्नियों के प्रति पुरुषत्व की क्रूरता याद आ जाती।
कुछ साल गुजर चुके थे रानी दो बच्चों की मां बन चुकी थी। एक दिन खबर मिली खाना बनाते वक्त सिलेंडर की आग से रानी बुरी तरह झुलस गई है। पुलिस बयान लेने के लिए मुस्तैद दिख रही थी। रानी की जेठानी उसके पास से हट नहीं रही थी। जब भी रानी को होश आता पुलिस से पहले जेठानी पहुंच जाती और बच्चों के भविष्य को लेकर आनी को डराती। रानी सहम गई और पुलिस के सामने मुंह ना खोल पाई। दूसरे ही दिन रानी ने जैसे मन ही मन पुलिस को हकीकत बयां करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। सुबह हॉस्पिटल के उस वार्निंग सेंटर में पुलिस और जज के पहुंचने से पहले रानी जिंदगी की जंग एकतरफा हार चुकी थी।उसका आक्सीजन मास्क उल्टा पड़ा था पूछताछ में पुलिस को बस इतना ही पता चला कि तकलीफ सहन ना कर पाने के कारण स्वयं रानी ने मास्क हटा दिया था। पुलिस के पास कोई सबूत ना थे। चूल्हे से स्टोव, स्टोव से गैस तथा अनपढ़ से लेकर पढ़ी-लिखी तक का स्त्री का सफर स्त्री के प्रति थोड़ा बदलाव तो लाया। परंतु स्त्री को सिर्फ स्त्री की तरह देखने का नजरिया बदलना अभी बाकी है। उसे इंसान की तरह देखा जाना अभी बाकी है। रानी की मृत्यु के साथ अनायास वह श्यामल वर्ण याद आ गई। ऐसा लगा मानो इतिहास अपने आप को दोहरा रहा था।

.

परिचय :- अनुराधा बक्शी “अनु”
निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़
सम्प्रति : अभिभाषक
मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak manch 👈🏻 हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *