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आंसू
कविता

आंसू

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नयनों का श्रंगार हुए हैं जब, खुशियों का संदेश सुनाते हैं। दृग कोरो का भार हुए हैं जब, व्यथा हृदय की बतलाते हैं। झरते है मोती बन कर नैनो से, जाने कितने शोक मिटाते हैं। मन की सीपी के मोती है जो, यदा कदा अखियों में लहराते है। पीड़ा की अभिव्यक्ति है आंसू, बहकर मन निर्मल कर जाते है। खुशियों का उपहार भी आंसू, अधरों की मुस्कानों संग आते हैं। पावनता का पर्याय बने है आंसू, इसीलिए गंगाजल कहलाते हैं। . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
इश्क़ की पाकीज़गी
ग़ज़ल

इश्क़ की पाकीज़गी

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** बिछड़ कर वो मुझे अभी भूले नही होंगे खतों को भी मेरे यूँ हीं जलाये नहीं होंगे इश्क़ की पाकीज़गी को न समझा कोई हीर रांझा के फिर अब किस्से नहीं होंगे ताउम्र गुजार दी है सितारों को गिनकर रात भर वो मेरी तरह जागते नहीं होंगे तस्सवुर से तेरे मुक्कदर की चादर बुनी गर्दिश में मेरे कभी यूँ सितारे नहीं होंगे दुआ रब से तुझे अब मंजिल मिल जाये तेरे कदमों के तले कभी छाले नहीं होंगे मिटा दे दिलों में जो रंजिशे मजहब की फिर कोई भी जमाने में पराये नहीं होंगे भंवरों सा तेरा हर फूल पर मचलना कैसा मोहब्बत के कभी सलीके सीखे नहीं होंगे शक के दायरे में इश्क़ पनप नही सकता बोई है नागफनी गुल वहाँ महके नहीं होंगे मुस्कुराहट वो जादू है जो दिलों को है जोड़ती सूखे दरख़्तों पे तो परिन्दे भी टिकते नहीं होंगे नदिया के सीने पर जो लहरों की है खामोशी अपने ही हिस्से के ...
दिवास्वप्न
कविता

दिवास्वप्न

सरिता देराश्री पिपलोदा, रतलाम, मध्य प्रदेश ******************** जीवन एक दिवास्वप्न सा है, खुली आंखों से देख कर भी, सब कुछ अनदेखा सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। मचलती आशाएं, बहती भावनाएं, पल-पल निश्चल झरने सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। दर्द है, तड़प है, वीरह है, फिर भी अल्हड़ बचपन सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है। सुख-दुख, सम्मान और अरमान, कुछअधूरी कुछ पूरी उम्मीद सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। कभी उतार-चढ़ाव कभी मोड़ है, कभी उलझन कभी सुलझा सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। ऊंचे पहाड़, गहरी घाटी, मैदान, सागर सा गहरा कभी चंचल सरिता सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।।   परिचय :-  सरिता देराश्री पति : मंगलेश देराश्री जन्म : ३/५/७९ शिक्षा : बी. एस . सी , एम . ए निवासी : पिपलोदा, रतलाम, मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
कर्ज प्यार का
कविता

कर्ज प्यार का

ममता रथ निवासी : रायपुर ******************** सूरज की किरणें आई तो फूलों की पंखुड़ियों को खोला धरती का रस पी फूलों ने ये बोला कर्ज तुम्हारे स्नेह का वापिस किस्तों में देंगे हम खुशबु से अपने इस गुलशन को महकाते रहेंगे हम धीरे से मुस्कुरा कर धरती बोली बेटे बहुत बड़ी बात कही तेरी इसी सोच ने कर्ज प्यार का चुका दिया सभी तेरे ही कारण तो मुझे मिलता है रंग बिरंगे लिबास सभी   परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
मुझे शर्म आती है
कविता

मुझे शर्म आती है

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कितने कितने फरेब देखे इस दुनिया के इस दुनिया के हालात पे मुझे शर्म आती है बादशाहत से जीने वाले वो बुजदिल ही होंगें उन बेदर्द बुजदिल-ए-हयात पे मुझे शर्म आती है कपड़ों से नहीं वो चमरी से चिथड़े पहने थे आलिशान महलों के सजाने पे मुझे शर्म आती है लाखों लाख बेघर जब भूखे बिलख रहे थे झूठी आस्था के उन खजाने पे मुझे शर्म आती है मंदिरों के नाले में बहा दी गई दुध की नदियाँ बेबस माँ के बिलखते लाल पे मुझे शर्म आती है सड़क पर भागती वो कार जब रोके न रुकी थी उस बेबस लड़की की बलात्कार पे मुझे शर्म आती है . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
कचरा गाड़ी
लघुकथा

कचरा गाड़ी

डॉ. स्वाति सिंह इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम क्या सोचती हो? क्या होगा? सब कुछ ठीक होगा भी या नहीं? कब तक ऐसे ही चलता रहेगा, पता नहीं। ऊपर से वह कचरा गाड़ी में करोना का संदेश। बाप रे पूरा दिन खराब हो जाता है सुनकर। श्रुति को उसकी बातों में कोरोना का खौंफ साफ-साफ नजर आ रहा था। वह फिर भी बोली अरे सब कुछ सामान्य हो जाएगा। देखो चाइना पूरा खुल चुका है। तो हमारा देश क्यों नहीं। हालांकि श्रुति जानती थी कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाला देश, जहां न सुविधाएं हैं, न साधन। वहां क्या ठीक होगा। वह अंदर से बहुत डरी हुई थी। रोज के डरावने समाचार। ऊपर से ऑफिस वालों को इतने खौंफ में देखकर उसका मन डूबा जा रहा था। वह सोचने को मजबूर हो गई कि परिस्थितियां बहुत ही गंभीर हैं। उस दिन बात करने के बाद तो वह बहुत ही डरी हुई थी। रात को भी ठीक से सो नहीं सकी। अगले दिन घबराहट में वह जल्दी उठ गई और घर का काम...
आखरी पत्ता नहीं… बचा हुआ एक पत्ता यानि और पत्तों की उम्मीद…
गुण श्रेष्ठता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

आखरी पत्ता नहीं… बचा हुआ एक पत्ता यानि और पत्तों की उम्मीद…

ज्योति जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** https://youtu.be/VRRxrIyGRX0                           यूं तो मैं आम दिनों में भी अपनी पसंद के सारे काम कर लेती हूँ पर फिलहाल लॉकडाऊन में चूंकि बाहर नहीं जाना होता, सो और अतिरिक्त कार्य भी हो जाते हैं, जिनमें बागवानी भी शामिल है। इन दिनों माली भैया नहीं आ रहे सो पुराने सीज़नल पौधों के सूखते चले गमलों में नये रोपे लगाने बैठी थी। मुझे ध्यान आया कि पिछले दिनों चौकोर गमला माली ने एक ओर रख दिया था, ये कहकर कि उसकी वॉटर लिली सूखकर खत्म हो चुकी है। वो मेरा पसंदीदा पौधा है। वॉटर लिली ज़रा से में फैलकर अपने छोटे-छोटे गोल पत्तों से गमले की सुन्दरता और बढ़ा देती है। मैंने सबसे पहले वही गमला हाथ में लिया। वॉटर लिली सूख चुकी थी। पर ये क्या...! एक बिल्कुल नन्ही सी, गोल पत्ती उस सूखी मिट्टी से झांक रही थी। मैंने फौरन उसमें पानी डाला। पिछले दस द...
अभी तो सवेरा हुआ है
कविता

अभी तो सवेरा हुआ है

दर्शन लाड बुरहानपुर (मध्य प्रदेश) ******************** हर क़दम, हर पल, मत भाग हर जगह, हर राह को मत समझ अपना, निश्चित कर, संकल्प कर, अनुमान लगा, फिर देख खुशियों की बारिश, हर क़दम, हर पल, हर जगह, अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... मत भाग हर राह पर एक साथ, हो जाएगी नफरत हर राह से एक साथ, मत बन अपनी नफरत का कारण, रुक जा...... अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... मत भाग इतना कि ज़िन्दगी थम जाए, मत सोच इतना कि समय निकल जाए, क्यों कि....... जीतता वो नही जो तेज चलता है, जीतता वो है जो लंबे समय तक चलता है, अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... हर मोड़ पर नई उम्मीद आयेगी, हर कदम पर नई राह आयेगी, हर अंधेरे में फिर एक प्रकाश होगा, हर हवा में खुशियों का पैगाम होगा, बस.... थोड़ा ठहर अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर.... अभी तो सवेरा हुआ है.... . परिचय :- दर्शन लाड निवासी : बुरहानपुर (म.प्र.) शिक्ष...
परत दर परत
लघुकथा

परत दर परत

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** किशना पूरे गांव में घूम-घूम कर अपनी माँ की सत्रहवीं में आने के लिये सबको कह आया था। कारज में देसी घी का खाना था। सफ़ेद चकाचक कपड़े पहने किशना गर्वित मुद्रा में सबका अभिवादन कर रहा था। ११ पण्डितों द्वारा पाठ पूजा व उनके भोजन करने के बाद गांव वालों ने खाना शुरु कर दिया था अभी दो ही घंटे बीते थे तभी गांव के सरपंच के पिता मेजर दरियाव सिंह जो फ़ौज में शहीद बेटे की विधवा बहु पोते पोती की देखभाल के लिय शहर में रहते थे आ गये, किशना के कंधे पर हाथ रख कर बोले अब माँ की सत्रहवीं पर इतना बड़ा आयोजन कर वाहवाही ले रहे हो, जब तुम सिर्फ ७ साल के थे, तुम्हारे पिता के रेल दुर्घटना में मरने के बाद, छोटी सी दुकान से तुम्हें पढ़ाया, काबिल बनाया। १२ साल तुम्हारी माँ कूल्हे की चोट का सही इलाज न होने के कारण घिसटती रही, यही पैसा जो आज तुम दिखावे में लुट...
कि वक्त ठहरा सा है
कविता

कि वक्त ठहरा सा है

अभिषेक खरे भोपाल (म.प्र.) ******************** कि वक्त ठहरा सा है जिंदगी फिर से मुस्कुराएगी धीरे-धीरे ही सही गाड़ी फिर पटरी पर आईगी मेहनत रंग दिखा रही है जिंदगी फिर से सबकी संभल जाएगी अभी अंधेरा बहुत घना है लेकिन सूरज को भी तो निकलना है। भरोसा रख अपने आप पर के जिंदगी फिर से दौड़ जाएगी। कि वक्त ठहरा सा है जिंदगी फिर से मुस्कुराएगी। . परिचय :- अभिषेक खरे सचिव - आरंभ शिक्षा एवं जनकल्याण समिति, भोपाल (म. प्र.) कोषाध्यक्ष - ओजस फाउंडेशन, भोपाल (म.प्र.) निवास - भोपाल (म.प्र.) शिक्षा - एम कॉम बी.यू. भोपाल पीजीडीसीए, एमसीयू भोपाल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksh...
अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा
मुक्तक

अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
लेखक की कलम
कविता

लेखक की कलम

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश ******************** बहुत खुशियाँ और गम बाटा कलम ने बहुत मित्रऔर दुशमन बनाएँ कलम ने जीना और मरना सीखाया कलम ने शिक्षा का पाठ पढाया कलम ने व्यक्तित्व बनाया कलम ने मान सम्मान दिलाया कलम ने कवि कविता से मिलया कलम ने रिश्ते बनाये और चलाये कलम ने आजादी दिलाई कलम ने रोना और हँसना सीखाया कलम ने वतन पर मिटना सीखाया कलम ने रस में रंगना सीखाया कलम ने पर्व मनाना सीखाया कलम ने छल कपट धोखा से बचाया कलम ने मीलों का सफ़र तय किया कलम ने जीवन सफर पर साथ दिया कलम ने मातृ को नमन करनासीखाया कलमने देश विदेश को मिलाया कलम ने अनपढ़ से पढ़ा लिखा बनाया कलमने संवेदना को सजोना सीखाया कलम ने शक्ति भक्ति को सीखाया कलम ने सभी कवी सम्मेलन किया कलम ने रश्मि को जीवन दिया कलम ने . परिचय :- डॉ. रश्मि शुक्ला निवासी - प्रयागराज उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
नज़रिया
कविता

नज़रिया

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** शहर में नया मकान किसका हैं पुराना तों गिरा दिया था ये नया बसेरा किसका हैं। रोशनी कों बंद दरवाजो से रोकने वालों क्या भूल गए ये नया सवेरा किसका हैं। सुना हैं घर बसानें से पहले हीं उजाड़ दिये जाते हैं तों संवरता हुआ ये परिवार किसका हैं। वो आग लगाने कि फिराक में घूमा करते हैं अकसर उन्हें पता नही बगल में तालाब किसका हैं। पौधो में कांटे कों देखकर कोसने वालों ये महकता हुआ गुलाब किसका हैं। . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, म...
चलते रहो
कविता

चलते रहो

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हैं सामने, खुला नील गगन, फिर क्यों हैं तू, थमा हुआ? खोल अपने अरमानों को, ले भर, आसमा, फैला हुआ... जब राह तन्हा, संग तेरे तो, क्यो तुझें, मंजिल की फ़िकर, हैं सूल भरी, पगडंडी तो क्या, तू चल, एकाकी, काहे का डर.. तेरे वजुद की, तुझको तलाश हैं, तेरा जमीर ही, तेरा नफ़स हैं चलते रहो, ना देख कदमों को, तेरा सफ़र, तुझ तक ही खत्म हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी मे...
कान्हा
कविता

कान्हा

शालिनी सिंह जिला गोंडा (उ.प्र.) भारत ******************** मेरे आये प्रभु नंदकिशोर धाम मधुवन में। भाद्रपदा की आधी रात अंधेरी।। घन-घन-घन-घन बादर घेरी।। बिजुरी चमके चहुँ-ओर धाम मधुवन में। मेरे आये.... वह देवकी माँ आठवे लाला। कारागार का खुल गया ताला।। माया ने अस खेला खेला। बंधन मुक्त हुए वसुदेव धाम मधुवन में।। मेरे आये.... पितु वासुदेव प्रभु गोकुल लाये। देवन सज्जन के काज संवारें।। दुष्टन के जे मारन वारे। यशुमति के प्राणाधार धाम मधुवन में। मेरे आये.... यशुमति लाला पालने पौढे़। देखि-देखि यशोदा नंद हर्षे। नारद शारद शेषहि गावै। मेरे आये घन-आनंद श्याम धाम मधुवन में।। मेरे आये.... मेरे कान्ह बकईया चलन जे लागे। मोर पंख सिर शोभन लागे।। पीताम्बर तन पहिरे मुरारी। पहिरे गले गजमुक्तन माल धाम मधुवन में। मेरे आये.... अंग आभूषण पहिरे गिरधारी। लाल विशाल अंखियां कजरारी।। धनुष भौह लाल मधुराधर। अरे घुघराल...
एक एहसास ऐसा भी
कविता

एक एहसास ऐसा भी

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** क्या देंगे साथ जीवन भर, जो पल भर में उब जाते है। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। आशा नही अब आश की, और कद्र नही विश्वास की, कीमत पानी की नही, बल्कि कीमत होती हैं प्यास की जीना मरना ये सब तो महफूज बाते हैं। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। खुशियों की दामन छोड़कर, रिश्तों का बंधन तोड़कर, अब तो बताइये, क्या मिला अपनों की संगत छोड़कर जीने मरने की कसमें तो खूब खाते हैं। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। क्या देंगे साथ जीवन भर, जो पल भर में उब जाते है। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं।   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
उपन्यास : मै था मैं नहीं था भाग : १५
उपन्यास

उपन्यास : मै था मैं नहीं था भाग : १५

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** नानाजी अब कभी कभार मुझे उनके साथ बाहर भी ले जाने लगे। ख़ास कर रविवार को मैं उनके साथ सब्जी मंडी जाने की जिद भी करता। वे बड़ी ख़ुशी से मुझे ले जाते। नानाजी को सब्जी लेने के लिए किसी थैले की जरुरत नहीं पड़ती थी। इसके लिए उनके पास एक अलग ही मजेदार तरीका होता। सब्जीमंडी में खरीदी सब्जी रखने के लिए वे अपनी धोती का उपयोग करते। वे अपनी धोती की आगे की घड़ियाँ (कासोटा) खोल लेते और उस आधी खुली हुई धोती में सारी खरीदी हुई सब्जी भरकर धोती में गठान बांध लेते। फिर उसे अपने कंधे पर ले लेते। एक हाथ से वो मेरी उंगली पकड़ते। दिवाली बाद ग्यारस के दिन गन्ने का गट्ठा भी वें अपने कंधो पर ही लाद कर लाते। नानाजी को भी अब मुझसे लगाव सा हो गया था। रविवार को या छुट्टी वाले दिन वो मुझे अपने साथ कही न कही बाहर ले जाने लगे। कभी बाड़े पर के पार्क में या कभी दत्तमंदिर में य...
एक पत्र देश के नाम
पत्र

एक पत्र देश के नाम

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक पत्र देश के नाम २६ मई २०२० इंदौर(म.प्र.) प्रिय देश, सादर नमस्कार🙏🏻 तुम्हारी भूमि में जन्म लेकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम भी मेरे समान आदर्श नागरिक पा कर प्रसन्न होंगे। तुम्हे विदित हो कि इस धरा पर बड़े होते हुए मुझमे तुमसे प्रेम और आत्मीयता अनायास ही सहज रूप से पनप गई है। पिछले दो दशकों में समझ नहीं आता कि तुम्हारे विकास और उन्नति का जश्न मनाऊँ या तुम्हारे मौलिक गुणों के पतन का मातम मनाऊँ। उम्र के हर पड़ाव पर मैंने तुम्हारे साथ परिवर्तन को महसूस किया है। मेरे प्यारे देश तुम्हारा वो समय जब यहाँ की बेटियाँ, लाज शर्म में रहते हुए, बेख़ौफ़ सभी में अपनापन अनुभव किया करती थी। यहाँ के बेटे नैतिक रूप से संबल थे। यहाँ का हर नागरिक आपसी बंधन में मजबूती से बंधा था। भौतिक संसाधनों और सुख-सुविधाओं को पाने की होड में हे ! भारत आज जो तुम्...
मैं इंसान होना चाहती हूँ
कविता

मैं इंसान होना चाहती हूँ

डाॅ. अहिल्या तिवारी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** मैं इंसान होना चाहती हूँ न हिन्दू न मुसलमान, दुनिया के दिलों की मैं ईमान होना चाहती हूँ। दुनिया मेरी दौलत नहीं हक़ नहीं टुकड़ों पर, चार दिनों की दुनिया में मैं मेहमान होना चाहती हूँ। मिट गए जो अमन पर हो कर परे जग से, हर जन्म में दिल का मैं अरमान होना चाहती हूँ। दे सके जो दान जीवन को जीवन का, ऐसे धरा के लाल पर मैं कुर्बान होना चाहती हूँ। जाने कैसे सीख जाते कुछ लोग आग का खेल, जलाते घर भाई का, यहाँ मैं नादान होना चाहती हूँ। जगह नहीं फूलों के लिए दिलों में एकत्र हो गए पत्ते, स्वार्थ के सूखे पत्ते उड़ाने मैं तूफान होना चाहती हूँ। बिकती ज़िन्दगी पलों की मौत दुआएँ देता है, हर साँस होती दर्द भरी मैं बेजान होना चाहती हूँ। दे दस्तक धरती तले थाम सीने में गगन, प्यार बो कर यहाँ मैं आसमान होना चाहती हूँ। क्यों बने कहानी मेरी हँसने हँसाने के...
कहीं दूर चलें
कविता

कहीं दूर चलें

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** चलो कहीं चलें दूर सड़क के किनारे, किसी मोड़ पर, रौशनी के किसी खंभे के नीचे बैठकर मन की बातें करें। अपने अपने अतीत के, नुचे घुटे घरौदें से दूर, किसी सूखें हुऐ नाले की पुलिया, पर बैठकर बातें करें। चलो कहीँ दूर चलें। डरावने घने जंगलों की अंधेरी पगडंडियों पर रतजगा मनाएं जिन्दगी के हर मसलें पर बहस करें झगड़े, ढेर सारी सुख दुखः के अतीत को दोहराये और खो जायें । कुछ सुकून पायें, कहीं दूर। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्...
आक्रोश
कविता

आक्रोश

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अधिकांश युवा मानस की पटल से उभर रही है आक्रोश की गुबार। क्योकि आजकल की युवाओ को सही पहचान बनाए रखने के लिए। न तो कोई मार्गदर्शक हैं न कोई मानदंड सिर्फ भौतिकता की दौड़। उदंडता से पीड़ित सुकुमार सपने को साथ बिन्दीया सी चमकती। तुच्छ सफलताओ को चूमने पुचकारने में व्यस्त। खाशकर माध्य्म वर्गीय पिछड़े परिवार के किशोर और युवा अपनी मनोवृत्तियों में। छेड़ रखा है आक्रोश की धुंआ जो गुबार बनता जा रहा है। इस जीवन की निरस्त उत्कण्ड़ाओ को एक आकलन की सूत्र लिए। अपनी पहचान बनाए रखने की लिए भ्र्ष्टाचार की गर्माहट में भइए भतीजावाद में। जो नाजीवाद से छह गया है इस आजाद हिंदुस्तान में। अपने आपको चर्चित तस्वीरों में उवभारने के लिए आक्रोशो को साथ लिए। कानूनी अपराधों की संगीनों में बेध रहा है अपने आपको। अगर यह आक्रोश रोजगार की मरहम से बन्द न हुआ तो शांति का नब्ज डु...
पहुँचा देना मधुशाला
कविता

पहुँचा देना मधुशाला

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** घर घर गैस नही पहुँचाओ बस पहुँचा देना हाला जीतोगे झकझोर इलेक्शन देगा दुआ पीने वाला होश में आ जाता है पीकर एक पेग हर दीवाना मुझसे पूछो उसकी ताक़त क्या होती है मधुशाला बादल बरसें बिजली तड़के या आँधी तूफ़ाँ आए क्या मजाल की पीने वाला ख़ाली हाथ चला जाए पिया नहीं इसको जिसने वो क्या क़ीमत समझेगा तुम्हें पढ़ाएगा गुण इसका एक प्याला पीने वाला देखा होगा तुम लोगों ने मेरे जलवे का जलवा लम्बी लम्बी लगी क़तारें बटता ज्यों पूड़ी हलवा पी लो एक पेग फिर जन्नत का होगा दीदार तुम्हें दिखेगी प्यारे तुम्हें मसाना भी प्यारी सी मधुबाला चिंता औ अवसाद तुम्हारे सब के सब मिट जाएँगे जो भी ग़म होंगे जीवन में ख़ुशियों में ढल जाएँगे ग़म की ऐसी तैसी करती एक खुराक करो सेवन ऊँच नीच हिंदू मुस्लिम का भेद मिटाती मधुशाला जब तक सूरज चाँद रहेगा मधुबाला का ना...
विन्ध की पहाड़ी
कविता

विन्ध की पहाड़ी

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** विन्ध की पहाड़ी फैली मेखलाकार केहेजुआ पर्वत के फैला विस्तार है ता समीप नद सोनभद्र भवरसेन नामक सुरम्य स्थान हैं वही बाण भट्ट तपोस्थली कादम्बरी ग्रंथ वाको साक्ष्य हैं केहेजुआ के सौंदर्य वर्णन करू जह विविध भांति के तरु वृक्ष हैं आमा अमरोला अमरबेली अमलतास शोभित अपार है उमरि करौंदा कहुआ कटैया कुल्लू कारी कैमा कठमहुआ भरमार हैं कैथा कोसम कुम्भी कया खैर घोटहर घुघुची खनकदार है गुरुचि ऑउ खरिहारी गुलमेंहदी फूलै छिऊला की कतार है जामुन कठ जामुन अमला ऑउ प्रसूतिहा मुरुलू सहिजन जरहा ऑउ बतिलहा बबूर सेम नीम बेल बेर बरारी सेमर गावड़ी पेड़ सुकुमार है बॉस बेर्री बनचूक बरसज बरगद तेंदू शाल सगमन गुर्जा की कतार हैं शीशम हेरुआ रोरी रेऊजा सरई धवा धवाई दे जंगल गुलजार हैं हर्रा ऑउ बहेरा औषधीय पेड़ चिरचिरी अमृत समान है पारिजात को कहत सेहरूआ यहाँ बन ...
बदली है सोच
कविता

बदली है सोच

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** कहां गये वो जंत्र-तंत्र ? कहां गए वो जादू मंत्र ? पाखंडों ने था डाला डेरा, अंधविश्वासों ने था घेरा...। भूत भगाओ ... चुड़ैल छुड़ाओ.... सौतन से निजात पाओ, व्यापार में वृद्धि लाओ। घर में सुख समृद्धि पाओ। बंद हुआ व्यपार ठगों का.... भ्रमित करके लूटा खूब। गई ...अब इनकी लुटिया डूब। बिरला ही कोई झांसे में आएगा जरूर करोना ने नुकसान पहुंचाया। पर सही मायनों में जीना सिखाया। तन -मन -आत्मा की शुद्धि, अब आई जीवन जीने की बुद्धि। आहार-विहार, आचार-विचार, वैदिकता से था जिन का प्रचार.... पुनःहुआ इनका प्रसार... जीवन सिद्धांत जो भुुलाएगा,, कोरोना जैसे राक्षस से मारा जाएगा।।   परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परि...
मन के अँधेरे में
कविता

मन के अँधेरे में

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** छिपा पडा़ हैं अपार खजाना, मन के अँधेरे में। ढुंढ़ सको तो ढुंढ़ लेना, मन के अँधेरे में। वहीं मिलेंगे राम-रहीम, वहीं मिलेगा कान्हा कन्हैया। छिपे पडे़ हैं , मन के अँधैरे में। हे! बन्धे मन-मंदिर की बत्ती जला दे, तेरा मन अमृत का प्याला, यहीं काबा, यहीं शिवाला। न मिलेगा मंदिर-मस्जिद, न मिलेगा गिरजाघर में। सब कुछ तुझे मिल जाएगा, मन के अँधेरे में।। . परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने क...