दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग-२
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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।।ब।।
गली-गली से हुए इकट्ठे, बाँधे पट्टे निकले हैं।
अपनी जाति देख गुर्राने, वाले पट्ठे निकले हैं।।१।।
जितनी ताकत है दोनों में, उतनी धूम मचायेंगे।
जितनी पूँछ उठा सकते हैं, उतनी पूँछ उठायेंगे।।२।।
धरती खोद रहे पैरों से, इक-इक टाँग उठा ली है।
गुर्राहट बढ़ रही कि, गुत्थम गुत्था होने वाली है।।३।।
कुछ भौं-भौं करके भागेंगे, कुछ इस रण को जीतेंगे।
बुरी तरह कुछ चिथ जायेंगे, बुरी तरह कुछ चीथेंगे।।४।।
जितनी जबर खुदाई होगी, उतनी लोथल खतरे में।
जितना अधिक जिन्न उछलेगा, उतनी बोतल खतरे में।।५।।
बेशर्मों में शर्म न मिलती, करुणा नहीं कसाई में।
माँ के मन में बैर न मिलता, मिरची नहीं मिठाई में।।६।।
अकली कुछ ऐसे हावी हैं, नकली असली लगते हैं ।
और असलियत वाले असली, सचमुच नकली लगते हैं।।७।।
फिर भी चाल-...

















